9लगता है कि पूरे हिंदुस्तान में ज़बरदस्त मोदी लहर चलाने के बाद भाजपा एक मात्र मुस्लिम राज्य यानी जम्मू-कश्मीर की जनता को रिझाने की जी तोड़ कोशिश कर रही है. जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य, जहां कि मुस्लिम आबादी के बारे में आम राय है कि यह अपने इरादों पर अडिग रहती है. यहां पिछले दिनों नरेंद्र मोदी के पक्ष में सूबे के एक वरिष्ठ नेता ने अप्रत्याशित बयान दिया. उसके बाद भाजपा के नेताओं ने कश्मीरी जनता के पक्ष में वादों की झड़ी लगानी शुरू कर दी. मोदी के हक़ में बयान देने वाले यह कश्मीरी नेता मीर वाइज़ उमर फ़ारूक़ हैं, जो न केवल पृथकता की मांग करने वाली पार्टियों के गठबंधन हुरियत कांफ्रेंस के एक हिस्से की अगुवाई कर रहे हैं, बल्कि एक सम्माजनक धार्मिक ज़िम्मेेदारी भी संभाले हुए हैं. मीर वाइज़ ने इंडिया टुडे को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें कांग्रेस के मुक़ाबले में मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार से अधिक उम्मीदें हैं, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल यानी वर्ष 1998 से 2004 में कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए कई महत्वपूर्ण क़दम उठाए गए थे.
मीर वाइज़ के इस बयान के बाद भाजपा के कई नेताओं ने उनकी सराहना की. यही वजह है कि बीते दिनों पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कश्मीर समस्या को लेकर वाजपेयी की राह पर चलने का संकल्प लिया. मोदी ने जम्मू के सांबा ज़िले में विजय रैली को संबोधित करते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री बनने पर अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों को पूरा करेंगे. मोदी के अनुसार, वह कश्मीरी जनता में मौजूद बेचैनी को दूर करने के लिए मानवता और लोकतंत्र की राह पर चलना चाहते हैं. उनका कहना था कि अगर वाजपेयी पांच वर्ष और प्रधानमंत्री रहते, तो कश्मीर की स्थिति आज बिल्कुल अलग होती और तमाम समस्याएं हल हो गई होतीं.
हालांकि सियासी जानकारों का कहना है कि दरअसल मोदी मीर वाइज़ फ़ारूक़ के उस बयान की सराहना करना चाहते थे, जिसमें अप्रत्याशित रूप से उन्होंने मोदी को बेहतर बताया था. ग़ौरतलब है कि वर्ष 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम विरोधी दंगों के कारण कश्मीर घाटी में अमूमन मोदी को नकारा जाता है, लेकिन इसके बावजूद एक वरिष्ठ अलगाववादी नेता का यह बयान निश्‍चित रूप से नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण समझा जा रहा है. दरअसल, इस प्रकार भाजपा देश के मुसलमानों को यह संदेश दे सकती है कि एक ऐसा राज्य जहां के मुसलमान अटल इरादे रखते हैं, वहां भी अब यह आभास हो गया है कि मोदी ही बेहतर शासक साबित हो सकते हैं.
ऐसे समय में जब संसदीय चुनावों की सरगर्मियां चरम पर है, उस वक्त मीर वाइज़ को मोदी के पक्ष में इस प्रकार का बयान देने की आवश्यकता क्यों पड़ी? चौथी दुनिया ने जब यह सवाल मीर वाइज़ से पूछा तो, उन्होंने कहा कि मेरे ख़्याल से यह एक निर्विवाद सच्चाई है कि वाजपेयी के शासनकाल में कश्मीर समस्या के हल की दिशा में कई असाधारण क़दम उठाये गए थे. मैं समझता हूं कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं और वाजपेयी की राह पर चलते हैं, तो निश्‍चित ही कश्मीर समस्या के हल के लिए वह असाधारण क़दम उठा सकते हैं. उनके मुताबिक़, नरेंद्र मोदी समस्त भारत में एक बेहतर शासक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन अगर वह कश्मीर समस्या शांतिपूर्ण तरी़के से हल कराने में अपनी भूमिका निभाएंगे, तो वह एक स्टेट्समैन (राजममर्ज्ञ) की उपाधि प्राप्त कर सकते हैं.
हालांकि मुस्लिम विरोधी होने के आरोप और गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगों का आरोप झेल रहे मोदी एक मुस्लिम बहुल राज्य की जनता के हित में ऐसा क्यों करेंगे? इस सवाल के जवाब में मीर वाइज़ ने चौथी दुनिया को बताया कि, ऐसा नहीं है कि शांति केवल हमें चाहिए. दरअसल, भारत जिस विकास की ओर अग्रसर है, उसे सबसे अधिक शांति की आवश्यकता है. इस देश में वार्षिक रक्षा बजट 37 बिलियन डॉलर से अधिक पहुंच चुका है, जबकि दूसरी ओर स्थिति यह है कि इस देश की बड़ी आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है. ऐसे में देश के किसी नेता को बदलाव की दिशा में आगे तो आना ही होगा और मेरे ख़्याल से मोदी ऐसा करने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि उनकी छवि पर देश की जनता विश्‍वास करती है.
हालांकि आलोचकों का एक वर्ग इस बात से सहमत नहीं हैं कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले को हल करने के लिए साहस की आवश्यकता है और यह साहसी क़दम देश की एक ऐसी पार्टी ही उठा सकती है, जो विश्‍वास से भरी हो और जिसे इस बात का डर न हो कि उस पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाएगा. कांग्रेस तो हर समय सहमी हुई रहती है. बीते वर्ष भाजपा ने कांग्रेस पर आतंकवाद के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगाते हुए इतना दवाब बनाया कि कांग्रेस ने जेल से अफ़ज़ल गुरू को निकाल कर फांसी पर लटका दिया, स़िर्फ यह साबित करने के लिए कि कांग्रेस आतंकवाद के प्रति नरमी नहीं रखती. इसके उलट भाजपा को स्वयं पर विश्‍वास है. ग़ौरतलब है कि एनडीए सरकार ने अपने शासनकाल में पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता आरंभ की और कश्मीर समस्या के हल के लिए कई महत्वपूर्ण क़दम उठाए थे. अगर यह सब कांग्रेस ने किया होता, तो यही भाजपा हंगामा खड़ा करती. ऐसी परिस्थितियों में मैं ( मीर वाइज़ उमर फ़ारूख़) समझता हूं कि कश्मीरियों के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए से अच्छी भाजपा की सरकार अधिक बेहतर साबित हो सकती है.
दिलचस्प बात यह है कि समस्त भारत में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी भाजपा और ख़ासकर नरेंद्र मोदी से नाराज़ है. इसके उलट कश्मीर में उसे समर्थन मिलने की संभावना दिख रही है. यह इस बात का भी सबूत है कि कश्मीरी मुसलमानों और भारत के अन्य राज्यों में रहने वाले मुसलमानों की विचाराधारा और विचारों में विरोधाभास है.

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