delhiलोकसभा चुनाव होने में अभी करीब दो साल का वक्त है, लेकिन कोसी की राजनीति ने अभी से करवट लेनी शुरू कर दी है. राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील कोसी के दो लोकसभा क्षेत्र सहरसा और सुपौल के लिए नेताओं ने  राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है. इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों का मामला अलहदा है, क्योंकि यहां से पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंंजीता रंजन सांसद हैं. पप्पू यादव ने पिछला चुनाव राजद की टिकट पर जीता था और फिलहाल वे इससे निकाले जा चुके हैं. रंजीता रंजन ने कांग्रेस का दामन थाम सुपौल से जीत का परचम लहराया था.

इन तीन साल में सूबे की राजनीति काफी बदली है और अब मौजूदा महागठबंधन में भी भारी दरार के संकेत मिल रहे हैं. दूसरी तरफ भाजपा 2014 की हार का हर हाल में बदला लेने को तैयार है. पार्टी से जुड़े कई महारथी अभी से दिल्ली की टिकट के लिए पसीना बहा रहे हैं. तय है कि पिछले चुनाव की तुलना में 2019 का चुनाव बिल्कुल नए सत्ता समीकरणों के घेरे में होगा. कोसी की धरती पर जो नेता इन समीकरणों को साधने में सफल होगा, वही दिल्ली का टिकट लेने में कामयाब होगा.

मधेपुरा व सुपौल लोकसभा क्षेत्र की जो तस्वीर 2014 के लोकसभा चुनाव में बनी थी, वह 2019 आने के पहले ही बदल गई है. जो कभी जदयू व राजद के साथ थे, वे आज भाजपा के साथ हैं, तो कोई खुद अपनी डफली बजाते नजर आ रहे हैं. भाजपा अपनी पुरानी तस्वीर बदलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है, वहीं भाजपा से छातापुर के विधायक नीरज कुमार भी 2019 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर सियासी कसरत में जुट गए हैं. वैसे कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा के लोकसभा क्षेत्र मधेपुरा से अभी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के संरक्षक राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसद हैं. इनकी जीत लालू प्रसाद के राजद के टिकट व कार्यकर्ताओं के बल पर हुई थी. लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है.

राजद से सांसद के रूप में निर्वाचित पप्पू यादव ने दल से निष्कासित होने के बाद न सिर्फ जाप बनाया, बल्कि कार्यकर्ताओं का एक बड़ा सैलाब भी कोसी की धरती पर पैदा कर लिया है. वहीं सुपौल लोकसभा सीट पर सांसद पप्पू यादव की धर्मपत्नी कांग्रेस के टिकट से सदन पहुंची थीं, लेकिन फिलहाल पार्टी आचार संहिता को लेकर पति-पत्नी राजनीतिक मंच पर अकेले ही दिखाई पड़ते हैं. आम जनता को भी दल से ज्यादा अपने सांसद पर गुमान है. ये दोनों सांसद ऐसे हैं जिन्होंने आम जनता को भरोसा दिया है कि न तो उनके लिए दिल्ली दूर है और न ही अपना क्षेत्र.

जब किसी को सांसद से मिलना हो वे आसानी से मिल भी लेते हैं और सांसद भी एक छोटे जनप्रतिनिधि की तरह अपने शहर व गांव की सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी निभाते रहते हैं. इधर, इनको पटखनी देने के लिए छातापुर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू भी मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में अभी से चुनावी तैयारी में जुट गए हैं.

विधायक नीरज लगातार चौथी बार सुपौल जिले के विभिन्न क्षेत्रों से विधायक रहे हैं. पहले ये राधोपुर विधानसभा क्षेत्र से फरवरी 2005 व अक्टूबर 2005 में जदयू के टिकट पर दो बार विधायक बने. परिसीमन में जब राधोपुर विधानसभा खत्म होकर निर्मली विधानसभा क्षेत्र बन गया तो 2012 में छातापुर से जदयू ने टिकट दिया और ये तीसरी बार छातापुर से विधायक बने.

इसके बाद नीतीश कुमार व जीतनराम मांझी प्रकरण में जब जदयू में गुटबंदी शुरू हुई तब उन्होंने पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह के गुट में जाकर उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया. इस बीच पार्टी से निष्कासित होने के बाद वे  भाजपा के साथ चले गए और चौथी बार 2015 में ये छातापुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़े और जीते भी.

इस वजह से नीरज कुमार न केवल कोसी में भाजपा विधायक के रूप में छा गए बल्कि अपनी गतिविधियों से पार्टी व पार्टी नेताओं के बीच भी स्वच्छ छवि बनाने में कामयाब रहे. यही वजह है कि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के अंदर वे अपनी दावेदारी को मजबूत मान रहे हैं.

लोकसभा में अपनी दावेदारी को मजबूत बनाने के लिए ही छातापुर के विधायक नीरज कुमार बबलू सहरसा में वीर कुंवर सिंह की मूर्ति लगाने के बहाने इलाके भर से राजपूतों सहित अन्य जातियों की गोलबंदी कर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष यह साबित कर दिया कि वे भाजपा से लोकसभा के उम्मीदवार हो सकते हैं. इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए नीरज कुमार को पूर्व विधायक संजीव कुमार झा व भाजपा के मनोनीत जिला अध्यक्ष नीरज कुमार गुप्ता का भी भरपूर सहयोग मिला. मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से पप्पू यादव के अलावा संभावित

उम्मीदवारों में छातापुर के भाजपा विधायक नीरज कुमार सिंह, भाजपा के पूर्व विधायक संजीव कुमार झा, पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना, 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग के प्रत्याशी रहे विजय कुमार सिंह कुशवाहा, राजद सह महागठबंधन से मधेपुरा के विधायक सह बिहार सरकार के मंत्री प्रो. चन्द्रशेखर व जदयू से राज्यसभा सांसद शरद यादव का नाम अभी से हवा में तैर रहा है. जदयू सांसद शरद यादव को राजद के टिकट पर चुनाव लड़े पप्पू यादव ने पराजित किया था. इसके बाद बिहार में राजद, कांग्रेस व जदयू का विधानसभा चुनाव में महागठबंधन बना और जदयू के अंदर सांगठनिक फेरबदल भी हुआ. इसके बावजूद शायद ही 2019 लोकसभा चुनाव में राजद, जदयू व कांग्रेस का महागठबंधन बिहार में नजर आए.

वैसे राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि जाप के सांसद   पप्पू यादव को भी राजग गठबंधन 2019 लोकसभा चुनाव  में समर्थन दे सकता है. इसलिए भाजपा से उम्मीदवारी की दावेदारी करने वाले संभावित उम्मीदवार सहरसा नगर परिषद चुनाव के बाद नगर सरकार बनाने में सभी राजनीतिक कटुता को भुलाते हुए जदयू नेता सह पूर्व सांसद दिनेश चन्द्र यादव की पत्नी श्रीमती रेणु सिन्हा की ताजपोशी आसानी से कर दी गई. उपसभापति के पद पर भी सांसद राजेश रंजन के करीबी रहे उमेश यादव को आसानी से विजय प्राप्त हो गया.

यह तिकड़म आगामी लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे को कमजोर करने के लिए ही रचा गया. इस तिकड़म में पहले सांसद पप्पू यादव को कोसी में कमजोर करने की रणनीति बनी, फिर सांसद पप्पू यादव भी यादव कार्ड खेलने में सफल हुए. शहर के विकास एवं कई टर्म से नगर परिषद पर काबिज पूर्व सांसद दिनेश चन्द्र यादव के कुनबे को परिवर्तन की लड़ाई के बहाने पूर्व विधायक संजीव कुमार झा, विधायक नीरज कुमार बबलू, पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना एवं सांसद रंजन ने अलग-अलग रहते हुए भी एक साथ लड़ने का प्रयास किया.

लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे से कमजोर साबित न हो जाएं, इसका भी ख्याल रखा गया. यही वजह है कि इस लड़ाई में विरोध का कुनबा बिखर गया और पूर्व विधायक संजीव कुमार झा विरोध का झंडा लेकर अकेले मैदान में डटे रहे. कहने का मतलब यह है कि सारा तिकड़म 2019 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही रचा गया, ताकि नगर सरकार बनाने का क्रेडिट किसी को अकेले ही न मिल जाए.

इसके चक्कर में कोसी में राजनीति के माहिर समझे जाने वाले पूर्व मंत्री सह सिमरी बख्तियारपुर के जदयू विधायक दिनेश चन्द्र यादव को न चाहते हुए भी के्रडिट मिल गया. खैर, अभी जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद शरद यादव का मधेपुरा लोकसभा से मोहभंग नहीं हुआ है. यही वजह है कि पप्पू यादव से पराजित होने के बाद भी वे मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से अपने पुराने रिश्ते बनाए रखते हैं.

अपने पुराने ठसक के साथ जदयू कार्यकर्ताओं के साथ मिलना-जुलना और सांगठनिक पदाधिकारियों के साथ बैठकबाजी आज भी उनकी दावेदारी पुख्ता करती है. अगर शरद की दावेदारी कमजोर पड़ी और सीटिंग के आधार पर महागठबंधन में राजद की चली तो प्रो. चंद्रशेखर राजद के सबसे प्रबल उम्मीदवार साबित हो सकते हैं. लेकिन प्रो. चन्द्रशेखर यादव की गतिविधि सहरसा जिले में कोई खास नहीं दिखती है, जबकि पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना भी पिछली बार मधेपुरा लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं.

उनको मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अनुभव है और   भाजपा के अंदर अभी उनका उड़नखटोला भी खूब उड़ रहा है. वैसे पूर्व सांसद दिनेश चन्द्र यादव की भी नजर अपनी पुरानी सीट पर है, लेकिन उम्मीद है कि दल उन्हें खगड़िया से ही लड़ाना बेहतर समझेगी. मधेपुरा के वर्तमान सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने भी यह ऐलान कर रखा है कि अगर शहर सहरसा के बंगाली बाजार स्थित रेलवे ढाला पर आरओबी का निर्माण नहीं हुआ तो वोट मांगने नहीं आऊंगा. अब देखना है कि आरओबी बनती है या फिर वे वोट मांगने आते हैं या नहीं.

इधर, सुपौल लोकसभा क्षेत्र से भाजपा से कामेश्वर चौपाल व वर्तमान सांसद रंजीता रंजन के बीच लड़ाई का परिणाम पार्टी और आम जनता भी देख चुकी है. महागठबंधन में उठापटक हुई तो जदयू से बिहार सरकार के कद्दावर मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव को भी मैदान में उतारा जा सकता है. जबकि भाजपा से विश्वमोहन कुमार व राजद से सुपौल राजद के जिला अध्यक्ष सह पूर्व विधायक यदुवंश कुमार यादव की दावेदारी किसी से कम नहीं आंकी जा रही है.

वैसे रंजीता रंजन की लड़ाई व दावेदारी मधेपुरा के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के राजनीतिक भविष्य पर निर्भर है. अगर पप्पू यादव का राजग से तालमेल होता है तो सुपौल व मधेपुरा से लोकसभा सीट की तस्वीर पुरानी भी रह सकती है. जदयू के विजेन्द्र प्रसाद यादव व राजद के यदुवंश कुमार यादव दोनों की यादव बिरादरी में पैठ है. कहा जा सकता है कि सुपौल लोेकसभा से महागठबंधन व राजग के संभावित उम्मीदवारों का भविष्य महागठबंधन के भविष्य पर ही निर्भर होगा.

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