agnishamanबिहार के लगभग सबसे अधिक पिछड़े इलाकों में शुमार कोसी अर्थात सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, खगड़िया गर्मी का मौसम आते ही आग में जलने लगता है. प्रत्येक वर्ष न केवल दर्जनों लोगों के आशियाने आग के भेंट चढ़ जाते हैं, बल्कि कई लोगों की आग में झुलसकर मौत भी हो जाती है. घटना घटित हो जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचते हैं और जांच पड़ताल के बाद अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं. राहत के नाम पर प्रभावित परिवारों के हाथों में मुट्‌ठी भर अनाज और चंद रुपये थमा दिए जाते हैं. इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि सात नदियों से घिरे इस इलाके के लोग कहीं भी आग लग जाती है, तो पानी के लिए तरस जाते हैं.

अग्निशमन विभाग की व्यवस्था से दहशतजदा लोगों का कहना है कि अगर कभी भीषण आग लगने की घटना घटी, तो पूरा खगड़िया जलकर खाक हो सकता है. यहां के भौगोलिक बनावट की वजह से वैसे भी इस इलाके के लोग अपने गंतव्य तक समय पर नहीं पहुंच पाते हैं. अग्निकांड की घटना होने पर आग पर काबू पाने वाला विभाग भी बौना पड़ जाता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि खगड़िया का अग्निशमन विभाग भगवान भरोसे चल रहा है. विभाग के पास न ही पर्याप्त मात्रा में दमकल गाड़िया हैं और न ही पर्याप्त कर्मचारी.

लेकिन इसके बावजूद इसके पूरे जिले के लोगों को अग्निकांड से बचाने का भरपूर दावा किया जाता है. पिछले वर्ष भी प्रशासनिक पदाधिकारी दुरुस्त अग्निशमन व्यवस्था का ढोल पिटते रहे, लेकिन दर्जनों बस्तियां जलकर राख हो गईं. लाखों रुपये की बर्बादी तो हुई ही और साथ ही व्यापक पैमाने पर जान-माल की भी क्षति हुई. दमकल की गाड़िया या तो पहुंची ही नहीं और अगर पहुंची भी तो तब तक गांव के गांव जलकर राख हो चुके थे.

अग्निकांड की घटना के समय दमकल की गाड़ियों में दरअसल पानी का खत्म हो गया था. विभागीय अधिकारी से जब बात की गई, तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि जिले में महज एक ही पानी टंकी की वजह से पानी की कमी रहती है. लेकिन बावजूद इसके प्रशासनिक अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है. नतीजतन आज भी अग्निशमन विभाग का हाल खराब है.

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आग पर काबू पाने के लिए प्रर्याप्त पानी की व्यवस्था भी समय पर नहीं हो पाती है. जब तक विभाग के कर्मचारी पानी की व्यवस्था कर पाने में सफल हो पाते हैं, तब तक बस्तियां जलकर खाक हो जाती हैं. बार-बार मिल रही शिकायत की सत्यता के लिए चौथी दुनिया के द्वारा विभागीय व्यवस्था का मुआयना किया गया. शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर बाजार समिति प्रांगण में ‘‘फायर स्टेशन खगड़िया’’ का बोर्ड लगा था और कार्यालय के बाहर एक छोटी अग्निशमन गाड़ी सहित तीन दमकल की गाड़ियां लगी थीं.

दमकल गाड़ियों की हालत के संदर्भ में पूछे जाने पर बताया गया कि तीन वाहनों में से दो बेहतर स्थिति में है जबकि एक वाहन खराब पड़ा है. अधिक जर्जरता की वजह से वाहन की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. वर्ष 1991 में स्थापित इस अग्निशमन विभाग के लिए अपना कार्यालय भवन भी नहीं है. टूटे-फूटे कमरे में संचालित कार्यालय भवन की हालत इतनी खराब पड़ी है कि रात्रि में विश्राम करना भी कार्यालय प्रभारी सहित अन्य कर्मियों के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्थिति में विभागीय कर्मचारियों को चौबीस घंटे चौकस रहने की हिदायत देना कर्मियों के गाल पर करारा तमाचा ही है.

कई माह से वेतन के लिए लालायित कर्मचारियों का कहना था कि भूखे पेट ही सही सभी विभागीय कर्मी आग पर काबू पाने के मामले में पीछे नहीं हटते. लेकिन बिना पानी के आग पर काबू पाना कितनी टेढ़ी खीर है, यह बताने की शायद कोई आवश्यकता नहीं है. कार्यालय प्रभारी आरएन रजक ने बताया कि महज दो दमकल गाड़ियों के दम पर दो अनुमंडल और सात प्रखंड के लोगों को आग से होने वाली जान-माल की क्षति से बचाना कितना संभव है! वैसे भी सृजित पद के अनुसार कर्मियों की नियुक्ति नहीं होने की वजह से चार गृह रक्षकों से सहयोग लिया जा रहा है.

इन प्रशिक्षित जवानों को जब तक थोड़ा बहुत प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है तब तक इनका स्थानांतरण हो जाता है. उन्होंने कहा कि सबसे अधिक कठिनाई तब आती है जब आवश्यकता के समय पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती है. खगड़िया शहर में एक ही पानी की टंकी है और इसका नल हमेशा खराब ही रहता है. बीते लगभग एक माह से शहर की पानी टंकी का नल खराब पड़ा था. संबंधित विभाग के अधिकारी से जब नल ठीक कराने की गुहार लगाई गई, तो उन्होंने कहा कि विभाग को इसके लिए लिखा गया है,  राशि आवंटित होते ही नल ठीक करा दिया जाएगा.

हालांकि जब इस बात की जानकारी नवपदस्थापित जिलाधिकारी को मिली तो उन्होंने त्वरित गति से इसे ठीक कराया. कार्यालय प्रभारी रजक का कहना था कि अगर जिले को अग्निदेव के कोप से सुरक्षित रखना है, तो सर्वप्रथम वाहनों की संख्या में इजाफा करते हुए जगह-जगह पानी की व्यवस्था की जानी चाहिए. अगर संभव हो तो कार्यालय परिसर में ही पानी की टंकी की व्यवस्था की जाए, ताकि जब भी जरूरत पड़े पानी की व्यवस्था हो जाए.

बहरहाल, गर्मी के मौसम में पछुआ हवा को देखते हुए प्रशासनिक पदाधिकारियों के द्वारा अग्निशमन व्यवस्था में सुधार किया जाएगा या नहीं, यह तो प्रशासनिक पदाधिकारी ही जानें. लेकिन इतना तय है कि इस वर्ष भी अग्निशमन व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया तो अन्य वर्ष की तरह इस वर्ष भी कई परिवार के लोग न केवल आशियाना गंवाने के लिए मजबूर होंगे, बल्कि कई परिवार के लोग अपनों को खोने के गम में आंसू बहाते रह जाएंगे.प

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