भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के एक श्लोक में कहा है कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् अर्थात जब अधर्म बढ़ने लगता है. तब मैं मानव की रक्षा करने और धर्म की पुनःस्थापना के लिए अवतार लेता हूं.
भगवान श्रीहरि विष्णु के दस अवतारों में से एक है कच्छप अवतार. इसे कूर्म अवतार के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की कहानी समुन्द्र मंथन से ही जुडी हुई है. जिससे निकले अमृत कलश को लेकर देवासुर संग्राम हुआ था.
बताया जाता है कि दैत्यराज बलि के शासन काल में गुरु शुक्राचार्य से प्राप्त शक्तियों से दैत्य काफी शक्तिशाली हो गए थे. इसी बीच दुर्वाशा ऋषि के शाप से देवराज इंद्र अपनी सारी शक्तियां खो बैठे. जिसके चलते बलि का साम्राज्य तीनों लोकों में फ़ैल गया. तब असुरो के आतंक से त्रस्त देवताओं ने भगवान श्री हरी विष्णु की शरण ली. ऐसे में देवताओं की समस्या सुन श्रीहरि ने उन्हें असुरों से मित्रता करने और मिलकर समुद्र मंथन करने की सलाह दी. साथ ही बताया कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीकर देवता अमर हो जायेंगे.
भगवान विष्णु के आदेशानुसार देवताओं ने यह बात दैत्य राज बलि को बताई. जिसके बाद देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया.समुद्र मंथन के लिए मंदर पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को नेति बनाया गया. पुराणों के मुताबिक समुद्र मंथन के लिए भगवान श्री हरी विष्णु को कच्छप अवतार लेना पड़ा और वे समुद्र मंथन के दौरान मंदर पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसका आधार बने.