यह पहली बार नहीं है, जब चुनाव के समय जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुख़ारी ने मुसलमानों से किसी ख़ास पार्टी के पक्ष में वोट करने की अपील की हो. कभी कांग्रेस, कभी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी को वोट देने की बात कहने वाले इमाम बुख़ारी इस बार कांग्रेस की हिमायत कर रहे हैं. क्या देश के मुसलमानों पर उनकी इस अपील का असर पड़ेगा, इसी मसले पर प्रस्तुत है चौथी दुनिया की यह ख़ास रिपोर्ट…
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र सियासी पार्टियों और धार्मिक गुरुओं एवं नेताओं की सक्रियता बढ़ गई है. बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुख़ारी से मुलाक़ात की. उसके बाद बुख़ारी ने सभी को चौंकाते हुए मुसलमानों से कांग्रेस के समर्थन की अपील कर दी. हालांकि बुख़ारी ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और बिहार में लालू प्रसाद की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनता दल को भी वोट देने की गुज़ारिश की.
इस बारे में इमाम बुख़ारी की दलील है कि अगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों का जीना दुश्वार हो जाएगा. लिहाज़ा भाजपा के मंसूबे को नाक़ाम करने के लिए देश में सेक्युलर मतों का विभाजन न हो. गौरतलब है कि इमाम बुख़ारी की इस अपील के बाद कई मुस्लिम संगठनों ने भी अपनी-अपनी राय ज़ाहिर की. जमीअत-ए-उलेमा हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए हर उन पार्टियों को वोट देना चाहिए, जो भाजपा को चुनाव में हरा सके.
हालांकि इस बीच शिया धर्मगुरू कल्बे जव्वाद ने शिया मुसलमानों से कांग्रेस को वोट न देने की अपील की है. उनके मुताबिक, मुसलमानों की ख़राब हालत के लिए कोई और नहीं, बल्कि कांग्रेस ज़िम्मेदार है, क्योंकि वह मुसलमानों को अपनी रियाया समझती है.
इमाम बुख़ारी की अपील पर मचे सियासी घमासान के बाद लेखक मुसलमानों की राय जानने के लिए दिल्ली स्थित जामा मस्जिद गया और लोगों से बात की. मटिया महल स्थित इस्लामिक ग्रंथों के विक्रेता मोहम्मद जुबैर अहमद ने चौथी दुनिया को बताया कि इमाम बुख़ारी कौम के लोगों के बीच अपना यकीन खो चुके हैं. इस बार उन्होंने कांग्रेस के हक़ में वोट करने की अपील की है, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट करने की अपील की थी, जबकि एक मर्तबा उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की हिमायत करते हुए मुसलमानों से उसके फेवर में वोट करने की अपील की थी. यही वजह है कि देश के मुसलमानों को उनके ऊपर कोई एतबार नहीं रह गया है. गांव-देहात के कम पढ़े लिखे लोग बेशक उनके झांसे में आ जाएं, लेकिन पढ़ा लिखा मुसलमान किसी के कहने पर वोट नहीं करेगा. वहीं इस बारे में अमीन अहमद बताते हैं कि लोग चाहे जो कहें, लेकिन इमाम साहब की बातों पर आज भी मुसलमानों को भरोसा है. अगर उन्होंने भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की अपील की है, उसे मुसलमान संजीदगी से ले रहे हैं. निश्चित रूप से इसका असर देखने को मिलेगा.
इरशाद अहमद अंसारी नामक एक युवक ने बताया कि इमाम बुख़ारी का नज़रिया समझ में नहीं आता. इस चुनाव में वह कांग्रेस की तरफदारी कर रहे हैं, जबकि पिछले चुनाव में किसी और पार्टी की हिमायत कर रहे थे. खुदा जाने अगले चुनाव में वह किसका समर्थन करेंगे. वहीं मोहम्मद सरफ़राज़ ने बताया कि मुसलमानों के बीच इमाम साहब की लोकप्रियता घट रही है. बेहतर यही होगा कि इमाम बुख़ारी अपनी इमामत छोड़ किसी सियासी पार्टी में शामिल हो जाएं.
चावड़ी बाज़ार स्थित जरी-दरदोज़ी के कारीगर मोहम्मद जुनैद बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में सबसे भ्रमित मुस्लिम मतदाता ही हैं. उन्हें समझ में नहीं आता कि वह किसे वोट करे. बेशक, इमाम साहब की कौल का असर देखने को मिलेगा. उनके मुताबिक़, मुसलमानों का आधा वोट कांग्रेस को मिलेगा, जबकि आम आदमी पार्टी के हिस्से में भी कुछ वोट आएंगे.
जामा मस्जिद इला़के में कुतुब खाना अंजुमन-ए-तरक्की-ए-उर्दू के संचालक मोहम्मद निज़ामुद्दीन बताते हैं कि इमाम बुख़ारी का कहना बिल्कुल सही है कि मुसलमानों को कांग्रेस के पक्ष वोट करना चाहिए, ताकि फ़िरकापरस्त ताक़तें हुकूमत में न आ सके.
बहरहाल, जामा मस्जिद के शाही इमाम ने मुसलमानों से भले ही कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की अपील की हो, लेकिन सच्चाई यह है कि देश के मुसलमानों को अब उनके ऊपर कोई ख़ास एतबार नहीं रह गया है. मिसाल के तौर पर कांग्रेस को समर्थन करने की अपील पर उनके ही भाई याहया बुख़ारी ने विरोध जताया है. दरीबा कलां निवासी जमीला खातून ने चौथी दुनिया को बताया कि इमामा बुख़ारी कौन होते हैं, हिंदुस्तान के मुसलमानों को यह कहने वाले कि किसे वोट देना चाहिए और किसे नहीं. उनके मुताबिक़, इमाम बुख़ारी जैसे लोग स़िर्फ अपने निजी फ़ायदे के लिए ही काम करते हैं. उन्हें देश के मुसलमानों से कोई लेना-देना नही है. दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली राबिया बताती हैं कि इमाम बुख़ारी जैसे लोगों को मुसलमानों के लिए शिक्षा और रोज़गार की बात करनी चाहिए न कि किसी पार्टी विशेष को वोट देने की अपील करनी चाहिए.
बहरहाल, 10 अप्रैल को दिल्ली-एनसीआर की सभी संसदीय सीटों पर मतदान हो गए, लेकिन जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुख़ारी की अपील का कोई ख़ास असर देखने को नहीं मिला. शाही इमाम के दफ्तर से भले ही तमाम दावे किए जा रहे हों, लेकिन उन दावों की हक़ीक़त 16 मई को सामने आएगी, जब एक साथ पूरे देश में मतगणना होगी.
इमाम के दफ्तर में अख़बारों के कतरन
दिल्ली स्थित जामा मस्जिद का सेहन (अहाता) में सालों भर पर देशी-विदेशी सैलानियों और नमाजियों से भरा रहता है. यहीं पर शाही इमाम सैय्यद अहमद बुख़ारी का दफ्तर भी है. उनसे मिलने के लिए सबसे पहले आपको यहीं से इज़ाज़त लेनी पड़ती है. लोकसभा चुनाव में मुसलमानों को कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की शाही इमाम की अपील के बाद, इस बारे में मैं उनकी राय जानने उनके दफ्तर पहुंचा. हमेशा की तरह वहां गहमागहमी का माहौल था, लेकिन इमाम साहब नहीं थे. काफ़ी देर की मशक्कत के बाद वहां कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि इमाम साहब दिल्ली में नहीं है. वैसे तो उनके दफ्तर में उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी जबान के कई अख़बार नियमित आते हैं, लेकिन कांग्रेस के पक्ष में दिए गए उनके बयान के बाद शाही इमाम के दफ्तर में अख़बारों के कतरन सहेजने की कवायद चल रही थी. वहां मौजूद दो-तीन मुलाजिम संजीदगी के साथ इमाम साहब और कांग्रेस से जुड़े उनके बयान और आलेखों का संग्रह कर रहे थे. इस दौरान इमाम बुख़ारी से मिलने आए लोगों को निराशा का सामना करना पड़ा, जब उन्हें पता चला कि वह शहर से बाहर हैं. इमाम बुख़ारी भले ही खुद को सक्रिय राजनीति से अलग बताते हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनके हालिया बयान के बाद जामा मस्जिद में मौजूद उनके दफ्तर में उस वक्त तक गहमागहमी बनी रहेगी, जब कि लोकसभा के चुनाव संपन्न नहीं हो जाते और नई दिल्ली में नई सरकार क़ाबिज नहीं हो जाती.