भट्टा-पारसौल किसान आंदोलन के अग्रणी नेता मनवीर तेवतिया ने भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन की मांग को लेकर और किसान हितों की अनदेखी के ख़िलाफ़ पिछले दिनों जंतर-मंतर पर आमरण अनशन किया. उनके इस किसान सत्याग्रह आंदोलन को समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी समर्थन दिया. क्या मनवीर तेवतिया का यह आंदोलन देश की किसान राजनीति को संजीवनी प्रदान करेगा, इसी मसले पर प्रस्तुत है चौथी दुनिया की यह रिपोर्ट…
यूंतो नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर देश के कई आंदोलनों का गवाह रहा है. ऐसा कोई आंदोलनकारी नहीं रहा होगा, जिसने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए यहां आकर अपनी आवाज़ बुलंद न की हो. किसान नेता मनवीर तेवतिया ने भी किसानों के हित से जुड़ी कई मांगों की ख़ातिर बाईस दिनों तक आमरण अनशन किया. ग़ौरतलब है कि मनवीर तेवतिया की अगुवाई में जंतर-मंतर पर बीती एक फरवरी, 2014 से किसान सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ था. इस सत्याग्रह में मनवीर तेवतिया के अलावा उत्तर प्रदेश तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष एवं मॉट के विधायक श्याम सुंदर शर्मा, उत्तर प्रदेश तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव सिरोही, प्रदेश महामंत्री जयप्रकाश सिंह मलिक, उत्तर प्रदेश युवक तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष ललित भारद्वाज, राधा तेवतिया, रवींद्र शर्मा, काले सिंह, विक्रम सिंह अत्री एवं हरीश कुमार भी अनशन पर बैठे.
चौथी दुनिया से ख़ास बातचीत में मनवीर तेवतिया ने कहा कि किसान सत्याग्रह आंदोलन को समाजसेवी अन्ना हजारे का समर्थन मिलने से किसानों में काफ़ी हर्ष है. उनके मुताबिक़, अन्ना का समर्थन मिलने के बाद जंतर-मंतर पर किसानों की पंचायत हुई, जिसमें किसान आंदोलन को देश भर में मज़बूत करने का निर्णय लिया गया. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए तेवतिया ने कहा कि कांग्रेस किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन है, जबकि राहुल गांधी जैसे नेता स्वयं को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी क़रार देते हैं. देश की मौजूदा किसान राजनीति कितनी प्रखर है, यह पूछे जाने पर उन्होंने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा कि ज़्यादातर किसान नेताओं ने किसानों के हितों की अनदेखी की है. कल तक जो किसान नेता साइकिल से चलते थे, आज वही लोग महंगी गाड़ियों पर घूम रहे हैं. हमारे बीच अन्ना हजारे जैसे समाजसेवी भी हैं, जो आज भी साधारण जीवन व्यतीत करते हैं. इसलिए किसानों को नकली किसान नेताओं से सावधान रहना चाहिए.
तेवतिया के मुताबिक़, चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद किसानों की सोच बदली है. चौधरी चरण सिंह का कहना था कि किसानों को एक नज़र अपने खेतों पर और दूसरी नज़र राजनीति पर रखनी चाहिए. वहीं किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का कहना था कि किसानों को राजनीति से दूर रहना चाहिए. बकौल मनवीर तेवतिया, देश में किसानों की बात तभी सुनी जाएगी, जब मौजूदा राजनीति में किसानों का दख़ल बढ़ेगा. हालांकि, यह तभी संभव है, जब किसान प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में आएंगे, क्योंकि किसानों के मुद्दों को मौजूदा राजनीति में कोई भी पार्टी अपने घोषणापत्र में शामिल नहीं करती है. अरविंद केजरीवाल को राजनीति का आसाराम बताने वाले किसान नेता मनवीर तेवतिया ने कहा कि आम आदमी पार्टी देश में अराजकता फैलाने की राजनीति करती है. उनके अनुसार, अरविंद केजरीवाल सभी नेताओं को भ्रष्ट और बेईमान क़रार देते हैं, जबकि वह कितने सच्चे हैं, लोग यह जानने लगे हैं. अगर केजरीवाल में साहस है, तो किसानों के सवाल पर वह देश के बुद्धिजीवियों से वार्ता करें. केजरीवाल जो कहे वही क़ानून है, यह उनकी अधिनायकवादी मानसिकता का परिचायक है. देश भर में किसानों की दुर्दशा का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के बीच आपसी एकता न होने का फ़ायदा राजनीतिक दलों ने उठाया है. दरअसल, किसानों को बांटने का काम किसान नेताओं ने ही किया है. आज गन्ना, आलू और धान उत्पादक किसानों की अलग-अलग यूनियनें हैं. आख़िर ऐसा क्यों है? किसान तो किसान हैं, चाहे वह गन्ना उगाए या आलू.
मांस निर्यात पर अविलंब रोक लगाने की मांग करते हुए तेवतिया ने कहा कि कृषि और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक हैं. हाल के वर्षों में गाय और भैंस की क़ीमतों में कई गुना वृद्धि हुई है. इसकी वजह यह है कि दुधारू पशुओं को बूचड़ख़ानों में काटा जा रहा है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन का काफ़ी महत्व है, इसलिए सरकार को चाहिए कि वह मांस उद्योग को बढ़ावा देने के बजाय पशुपालन को प्रोत्साहन दे. ग़ौरतलब है कि भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन की मांग और इसे लेकर सरकार के रवैये नाराज़ किसान नेता मनवीर तेवतिया ने एक फरवरी से जंतर-मंतर पर किसान सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी. देश के कई राज्यों से आए किसानों ने भी इस किसान सत्याग्रह में उनका समर्थन किया.
उल्लेखनीय है कि किसान नेता तेवतिया ने 31 जनवरी तक भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन करने की मांग केंद्र सरकार से की थी. बावजूद इसके, सरकार ने इस दिशा में कोई क़दम नहीं उठाया, लिहाज़ा एक फरवरी से तेवतिया ने जंतर-मंतर पर आमरण अनशन शुरू कर दिया. उनके अनुसार, किसान हितों को नज़रअंदाज़ करने वाली सरकार के ख़िलाफ़ यह निर्णायक आंदोलन है.
मुख्य मांगें
- देश में विकास योजनाओं के लिए किसानों के संपूर्ण भूमि क्षेत्र का आधा भाग ही अधिग्रहीत किया जाए.
- नई नीति को वर्ष 2000 से लागू किया जाए और जिन किसानों की भूमि का अधिग्रहण 1960 से 2000 तक किया गया है, उन्हें 25 प्रतिशत भूमि विकसित करके नि:शुल्क वापस की जाए.
- संपूर्ण भारत में किसान आंदोलन के दौरान दायर मुक़दमे वापस लिए जाएं.
- किसानों को उनकी भूमि का मुआवज़ा विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा विक्रय के लिए निर्धारित दरों के औसत का 60 फ़ीसद दिया जाए.
- बिहार के ढाढर और दुर्गावती जलाशय परियोजनाओं को यथाशीघ्र पूरा किया जाए.
- किसानों के प्रत्येक प्रकार के वाहन टोलमुक्त किए जाएं.
- गांवों में शराब की दुकानें बंद की जाएं.
- खेतों में हाईटेंशन बिजली लाइनों पर किसानों को बाज़ार भाव का 30 फ़ीसद मुआवज़ा मिले.
- दिल्ली के यमुना खादर क्षेत्र में बायो डायवर्सिटी पार्क बनाने के नाम पर किसानों से ली गई ज़मीन वापस की जाए.
- किसानों को यमुना खादर क्षेत्र में पक्के मकान बनाने की अनुमति दी जाए.
- मांस निर्यात पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया जाए.