भारतीय किसान यूनियन ने दिल्ली के जंतर मंतर ने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत किसान महापंचायत का आयोजन किया, जिसमें देश भर से आये किसानों ने एक सुर में सरकार से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को वापस लेने की मांग की. महापंचायत को संबोधित करते हुए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि यदि केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को वापस नहीं लेती, तो सरकार के खिलाफ आन्दोलन को और तेज किया जाएगा. उन्होंने कहा कि हम भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ संसद में होने वाली बहस में उन दलों पर भी नजर रखे हुए हैं, जो निजी स्वार्थों के कारण किसान हितों की अनदेखी कर उद्योगपतियों को समर्थन कर रहे हैं. हम उन्हें चेतावनी देना चाहते हैं कि उन्हें जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा.
किसानों को भूमि अधिग्रहण बिल 2013 में बदलाव मंजूर नहीं है. अध्यादेश के द्वारा किसान समर्थित कई प्रावधानों को हटा दिया गया है. इन बदलावों के बाद भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के कानून से भी बदतर हो जाएगा. किसानों के काफी संघर्ष के बाद भूमि अधिग्रहण बिल 1894 में बदलाव किया गया था. यदि यह अध्यादेश कानून का रूप लेता है, तो यह उद्योग समर्थक और किसान विरोधी होगा. देश के किसान इस बिल का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. राजग सरकार ब़डे पैमाने पर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को तैयार है, जिसका प्रभाव किसानों की आजीविका पर प़डेगा. पहले ही लाखों हेक्टेयर जमीन औद्योगिक गलियारे, लैंड बैंक, विशेष आर्थिक जोन, राष्ट्रीय राजमार्ग के नाम पर अधिग्रहीत की जा चुकी है. विशेष आर्थिक जोन पर कैग की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि जिस जमीन का विशेष आर्थिक जोन के नाम पर अधिग्रहण किया गया, उसका उपयोग नहीं हुआ है. कैग की रिपोर्ट के अनुसार, 45635.63 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण 2006 से 2012 तक किया गया. अधिग्रहीत भूमि 31886.27 हेक्टेयर का उपयोग नहीं हुआ, जबकि 5402.22 हेक्टेयर को दूसरे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए परिवर्तित कर दिया गया. हमारी मांग है कि इस अध्यादेश को अविलम्ब वापस लेते हुए भूमि अधिग्रहण पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे. देश में अधिकतर किसान एक हेक्टेयर से कम जमीन वाले हैं. इसका मतलब यह कि देश के लाखों किसान उनकी आजीविका से निर्वासित कर दिये गए. सरकार के इस तरह के कदम पूरी तरह अस्वीकार्य हैं.
महापंचायत में खेती किसानी मुद्दों के ज्वलन्त मुद्दों के साथ-साथ किसानों की जीविका से संबंधित मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगा गया. किसान पंचायत के एजेंडे में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, शांताकुमार उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिश भारत सरकार द्वारा जीएम फसलों को ब़ढावा देने एवं किसानों के उत्पाद का सही मूल्य न मिलना और किसान आयोग बनाने जैसी मांगें प्रमुख रही. किसान नेताओं ने किसानों की आत्महत्या एवं खेती के संकट पर मोदी सरकार के मूकदर्शक होने का आरोप लगाते हुए कहा कि कृषि का बजट घटकर पिछले पांच साल के सबसे निचले स्तर पर चला गया है.
भाकियू पंजाब के अध्यक्ष अजमेर सिंह लाखोवाल ने महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने अपने घोषणा पत्र में किसानों की फसलों का लागत में 50 प्रतिशत जोड़ कर मूल्य देने एवं किसान की आय में वृद्धि की बात कही थी, लेकिन अब वह अपने वादे से मुकरती दिख रही है. अभी जिस तरह से फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा की गयी है, उससे आभास होता है कि भारतीय जनता पार्टी सरकार अपने वायदे को पूरा करना चाहती है. ऐसे में उससे भूमि अधिग्रहण के मसले पर किसानों के हित की कैसे अपेक्षा की जाए. किसानों के लिए अच्छे दिन व उनकी आमदनी में वृद्धि किए जाने के का नारा देकर सत्ता में आई सरकार आज किसानों की समस्याओं पर मूकदर्शक बनी हुई है और किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है. इस देश का दुर्भाग्य है कि किसानों के दम पर सत्ता में आने वाली सरकारें अंततः किसानों को ही भूल जाती हैं. चुनाव से पहले सभी पार्टियां किसान-किसान चिल्लाती हैं, लेकिन सत्ता में आते ही किसान उनके एजेंडे से बाहर हो जाते हैं.
किसान महामंच : ज़मीन बचाने की जंग जारी है
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