कृषि के विकास के बिना देश समृद्ध नहीं हो सकता है. बिहार का तराई क्षेत्र चम्पारण दोहरी मार का शिकार होता रहा है. नेपाल से निकलने वाली नदियों का कहर हर साल किसानों के सपनों को भी बाढ़ के पानी के साथ बहाकर ले जाता है. ऐसे मेे पीपरा कोठी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा राष्ट्रीय समेकित कृषि अनुसंधान केन्द्र की स्थापना से चम्पारण के कृषकों में खासा उत्साह दिख रहा है.
विगत 9 जून को केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने बाबा रामदेव के साथ पूर्वी चम्पारण जिला के पीपरा कोठी स्थित भारतीय अनुसंधान केन्द्र में गुड़ प्रसंस्करण इकाई एवं मधुमक्खी कॉलोनी का उद्घाटन किया. मौके पर उपस्थित किसानों की महती सभा को सम्बोधित करते हुए मंत्री राधामोहन सिंह ने राष्ट्रीय समेकित कृषि अनुसंधान केन्द्र द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी दी. उन्होंने केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के हित में किए जा रहे कार्यों और योजनाओं की भी जानकारी दी.
राज्य सरकार नहीं कर रही सहयोग
राज्य सरकार पर असहयोग का आरोप लगाते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री एक तरफ प्रधानमंत्री द्वारा किसानों की आमदनी बढ़ाने के प्रति चिंतित हैं, दूसरी तरफ बिहार में किसान कल्याण एवं कृषि विकास के लिए भारत सरकार द्वारा स्वीकृत एवं चलाई जा रही योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन भी नहीं होने दे रहे हैं. इस संबंध में जब भी उनसे कोई सवाल पूछता है तो बात को दूसरी तरफ मोड़ देते हैं.
मुख्यमंत्री जी को बिहार की जनता को यह बताना चाहिए कि बिहार को सूक्ष्म सिंचाई के मद में वर्ष 2014-15 में 35 करोड़ और 2015-16 में 10 करोड़ रुपए दिए गए, लेकिन 2016-17 के अंत तक 31.71 करोड़ रुपये भी खर्च नहीं कर पाए. प्रधानंमत्री कृषि सिंचाई योजना के अन्य क्रियाकलापों के लिए 2015-16 में 18.60 करोड़ रुपए निर्गत किए गए, लेकिन राज्य ने केवल 5.16 करोड़ रुपए ही खर्च किए. 2016-17 में 21.60 करोड़ रुपए निर्गत किए गए, जिसमें से 10.8 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाए.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत भी पिछले तीन वर्षों में जो राशि दी गई, उसमें भी 143.22 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए गए. एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात करते हैं, दूसरी तरफ सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम को नकारते भी हैं. यदि मुख्यमंत्री ईमानदारी से किसानों की आमदनी बढ़ाने की चिंता करते हैं, तो मोदी सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं को बिहार में क्रियान्वित कराने की प्रतिबद्धता भी दिखाएं.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत किसानों को बेहतर गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकारों को सब्सिडी राशि दी जाती है. बिहार सरकार के पास वर्ष 2016-17 में 85.23 करोड़ की राशि उपलब्ध कराई गई, जिसमें 31 मार्च 2017 तक 62 करोड़ रुपए भी सरकार खर्च नहीं कर सकी. किसानों के लिए अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की चिंता सरकार को योग से ज्यादा करनी चाहिए.
चम्पारण को बाबा रामदेव का तोहफा
इस मौके पर बाबा रामदेव ने भी कृषि को लाभप्रद बनाने के गुर सिखाए. बाबा रामदेव के अनुसार किसानों के लिए पशुधन बहुत महत्वपूर्ण है. गन्ना किसानों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चीनी मिल बन्द होने से निराश होने की जरूरत नहीं है. गुड़ प्रसंस्करण के लिए अब सस्ते में उपकरण उपलब्ध हैं. आप सभी अपने गन्ने का गुड़ तैयार करें और जितना भी गुड़ तैयार होगा, उसे पतंजलि खरीद लेगी. इससे किसानों को ज्यादा मुनाफा भी होगा. वहीं बाबा रामदेव ने पूर्वी चम्पारण के मेहसी प्रक्षेत्र के लीची की भी जमकर तारीफ की. इसके साथ ही उन्होंने चम्पारण में लीची प्रसंस्करण इकाई लगाने की भी घोषणा की. बाबा रामदेव केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह के आमंत्रण पर चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर तीन दिवसीय प्रवास पर मोतिहारी आए थे.
क्या है समेकित कृषि
राष्ट्रीय समेकित कृषि अनुसंधान केन्द्र देश भर के जल-जमाव वाले क्षेत्रों में कृषि विकास के लिए कार्य करती है. इसमें मुख्यत: समेकित मत्स्य प्रणाली, कृषि वानिकी, कुटकुट, बतख, बकरी पालन के साथ-साथ मखाना, सिंघाड़ा तथा अन्य जलीय फसलों पर शोध कार्य किया जाता है, ताकि किसानों की आजीविका में सुधार हो सके. पीपरा कोठी स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र में देश का पहला शोध संस्थान स्थापित किया जा रहा है, जो जल-जमाव वाले क्षेत्रों एवं खेतों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने का कार्य करेगी. केंद्र का निर्माण कार्य शुरू हो गया है और वैज्ञानिकों की नियुक्ति भी हो गई है. अगले छह माह में प्रयोगशाला सह प्रशासनिक भवन का निर्माण भी पूरा हो जाएगा.
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन से खेती पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से बचाने के लिए चंद्रहिया, चिंतामनपुर, खैरीमल जमुनिया और पट्टी जसौली पंचायतों में आधुनिक और वैज्ञानिक कृषि प्रणाली इकाइयों का प्रदर्शन चल रहा है. इस परियोजना के तहत जल प्रबंधन से भूमिहीन किसानों की आजीविका, खेतों की उर्वरा शक्ति में वृद्धि के लिए भी काम किया जाएगा. वहीं पूर्वी चम्पारण में मात्स्यिकी में विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन, संरक्षण और खेती की उन्नत तकनीक पर भी कार्य शुरू किया जा रहा है.
इस योजना के तहत मोतिहारी की शान कहे जाने वाले मोतीझील का खर-पतवार प्रबंधन, जल संचयन, जीवों के संरक्षण का कार्य शुरू किया गया है. इस योजना से न केवल मछली उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी यह अनोखा प्रयोग साबित होगा. वहीं भटहां कररिया मन, सिरसा मन, रूलही मन और मझरिया मन में भी मात्स्यिकी विकास योजन की स्वीकृति दी गई है, जिससे वहां मछली उत्पादन और मत्स्यजीवियों की आमदनी में इजाफा हो सके.
किसानों का तीर्थ बन रहा पीपरा कोठी
चम्पारण का पीपरा कोठी 20 वीं शताब्दी में अग्रेज निलहों के अत्याचार का केन्द्र माना जाता था। अग्रेज निलहों की यहां कोठी थी, इसी से इसका नाम पीपरा कोठी पड गया। अंग्रेजो के अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध किसानों ने आवाज उठाई थी। महात्मा गांधी को किसानों के बुलावे पर आना पडा। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ गांधी जी ने चम्पारण से सत्याग्रह शंखनाद किया था। यह कालचक्र हीं है कि कभी पीपरा कोठी के नाम से दहशत में आ जाने वाले किसानों के लिए पीपरा कोठी कृषि का तीर्थ स्थल बनता जा रहा है। केन्द्र में बडे-बडे कृषि वैज्ञानिकों का निरन्तर आना होता है। बाबा रामदेव सहित बडी संख्या में कृषि वैज्ञानिक यहां आ चुके है।
पीपरा कोठी कैसे बन रहा किसानों का तीर्थस्थल
विगत तीन वर्ष के दौरान पीपरा कोठी के कृषि विकास केन्द्र में मधुमक्खी पालन विकास केन्द्र की स्थापना की गई है. इससे क्षेत्र के मधुमक्खी पालकों को लाभ मिल सकेगा. वहीं दलहन की पैदावार बढ़ाने और किसानों को बेहतर लाभ दिलाने के मकसद से कृषि विज्ञान केन्द्र में दलहन के उन्नत बीज उत्पादन हेतु दलहन बीज उत्पादन इकाई की स्थापना की गई है. यही नहीं बांस की विभिन्न प्रजातियों को भी विकसित किया जा रहा है.
बंजर और बेकार पड़ी भूमि पर भी बांस के पैदावार से किसानों को काफी लाभ मिल सकता है. कृषि विज्ञान केन्द्र में ही मिट्टी की जांच के लिए एक प्रयोगशाला स्थापित किया गया है. मिट्टी की जांच से किसानों को बेवजह खाद देने से मुक्ति मिल रही है. जरूरत के अनुसार सही उर्वरक देने से जहां पैदावार बढ़ेगी, वहीं खाद पर किसानों का अनावश्यक खर्च नहीं करना पड़ेगा. इससे किसानों को निश्चित रूप से ज्यादा मुनाफा होगा.
भारतीय गन्ना अनुसंधान केन्द्र के सहयोग से पीपरा कोठी के कृषि विज्ञान केन्द्र में गुड़ प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की गई है. इससे गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर निर्भरता कम होगी और उनके शोषण का शिकार नहीं होना पड़ेगा. इससे किसान अपने गन्ने को बाजार में कृषि उत्पाद के रूप में पहुंचा सकेंगे. स्वाभाविक तौर पर इससे किसानों का मुनाफा बहुत हद तक बढ़ जाएगा. कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है मवेशी.
यहां पशुओं के नस्ल सुधार के लिए पशुपालन विकास केन्द्र की भी स्थापना की गई है. हरियाणा और अन्य जगहों से यहां उन्नत नस्ल के पशुओं का सीमेन उपलब्ध कराया जा रहा है. उम्मीद है कि तीन से चार वर्षों में क्षेत्र में पशुधन में गुणात्मक वृद्धि होगी. वहीं दुग्ध उत्पादन में भी जबरदस्त वृद्धि होगी. दुधारू पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए भी चारा विकास केन्द्र की स्थापना की गई है. यह योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इससे अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बिहार में दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता काफी कम है, जिससे पशुपालकों को उचित लाभ नहीं मिल पाता है. मशरूम बीज फार्म इकाई का कार्य भी सराहनीय रहा है.
विगत तीन साल में पांच हजार से ज्यादा कृषकों को मशरूम का बीज मुहैया कराया गया है. सबसे बड़ी बात यह है कि किसानों के कौशल विकास केन्द्र की भी स्थापना की गई है. आर्या नामक परियोजना के तहत पीपरा कोठी कृषि विज्ञान केन्द्र ने दो सौ ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षण और रोजगार देने का लक्ष्य रखा है. इस क्रम में अब तक 60 युवकों को प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराया गया है.
पीपरा कोठी कृषि विज्ञान केन्द्र परिसर में ही पांच एकड़ भूमि पर मदर डेयरी का स्थापना-कार्य शुरू होने जा रहा है. जुलाई में इसका शिलान्यास होगा. शुरू में 20 हजार लीटर की क्षमता का प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाएगा, जिसका बाद मे विस्तार किया जाएगा. प्लांट लग जाने से जहां दुग्ध उत्पादकों को ज्यादा कीमत मिलेगी, वहीं उपभोक्ताओं को भी शुद्ध दूध मिलेगा. यही कारण है कि पीपरा कोठी बदल रहा है और धीरे-धीरे यह किसानों के तीर्थ के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है.