लम्बे समय बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष मिला है, जो क्षत्रपों को साधने और पार्टी पर नियंत्रण पाने में कामयाब नजर आ रहा है. कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर इस साल 1 मई को कमान संभाला था और अब चार महीने बीत जाने के बाद संगठन पर उनका नियंत्रण साफ झलकता है. इस दौरान भोपाल स्थित पार्टी कार्यालय का मिजाज बदला है, साथ ही पार्टी में अनुशासन भी बढ़ा है. कमलनाथ यह संदेश देने में काफी हद तक कामयाब रहे हैं कि पार्टी में पद या टिकट की दावेदारी पहले की तरह किसी गुट के सदस्य के आधार पर नहीं, बल्कि परफॉरमेंस के आधार पर तय होगी.
कांग्रेस ने कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था, जिसके बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए दो ही दावेदार रह गए थे. आज जनता के बीच कमलनाथ के मुकाबले ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही ज्यादा लोकप्रिय हों, लेकिन पार्टी संगठन पर कमलनाथ का नियंत्रण ज्यादा नजर आ रहा है. उम्र के 70 साल पार कर चुके कमलनाथ अच्छे तरीके से जानते हैं कि मुख्यमंत्री बनने का उनका यह पहला और आखिरी मौका है, इसीलिए वे इसबार कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं. वे बहुत सधे हुए तरीके से कांग्रेस और खुद अपने लिए फील्डिंग जमा रहे हैं.
कमल की कांग्रेस
कमलनाथ यूं तो जीवनभर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन उन्होंने हमेशा से खुद को छिंदवाड़ा तक ही सीमित रखा था और मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका किंग मेकर तक ही रही. यह पहली बार है, जब वे मध्य प्रदेश की राजनीति में इस तरह सक्रिय हुए हैं. जाहिर है, अब वे किंगमेकर नहीं किंग बनना चाहते हैं. कमलनाथ के आने के बाद से उनकी छाप हर जगह देखने को मिल रही है. लम्बे समय बाद भोपाल स्थित प्रदेश कार्यालय की डेंटिंग-पेंटिंग हो रही है और अब वहां संजय गांधी की तस्वीरें भी लगा दी गई हैं, जो इस बात का संकेत है कि अब यहां नियंत्रण कमलनाथ का है. इस साल एक मई को उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी. इन चार महीनों के दौरान उनका फोकस संगठन और गठबंधन पर रहा है.
वे खुद कहते हैं कि पिछले 4 महीनों में मैंने संगठन के काम में ज्यादा जोर दिया है, हमारी लड़ाई भाजपा संगठन से है, धनबल से है. हम मैदान में चले जाएं और पीछे कोई संगठन ना हो, कोई सिस्टमैटिक अप्रोच ना हो, तो ठीक नहीं है. इसी सोच के चलते इस दौरान उन्होंने 15 साल से सुस्त पड़ चुके संगठन को सक्रिय करने पर जोर लगाया. कमलनाथ का दावा है कि करीब चार माह में उन्होंने संगठन में जान फूंक दी है और जल्दी ही पार्टी बूथ स्तर तक खड़ी दिखाई देगी. अभी तक करीब सवा लाख से ज़्यादा पदाधिकारियों की नियुक्ति की जा चुकी है और प्रदेश जिले, ब्लॉक, उपब्लॉक, मंडल, सेक्टर और बूथ तक की कमेटियां में नियुक्ति के काम को लगभग पूरा कर लिया गया है. वे कहते हैं कि अब तक कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में व्यस्त था अब मैदानी मुकाबले के लिए निकल रहा हूं.
पिछले चार महीनों के दौरान संगठन में जान फूंक देने के कमलनाथ के दावे में कितना दम है, इसका पता तो आने वाले दिनों में चल ही जाएगा, लेकिन इसका श्रेय वे खुद अकेले ही ले रहे हैं. कमलनाथ ने पिछले चार महीनों के दौरान सिंधिया के मुकाबले अपनी दावेदारी को मजबूत करने का काम भी किया है. वे अपने पत्ते बहुत धीरे-धीरे लेकिन बहुत सधे हुए तरीके से खोल रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने लगातार यह संदेश दिया है कि वे निर्णायक भूमिका में हैं, कमान उनके हाथ में है और पार्टी की तरफ से शिवराज के मुकाबले वही हैं. हालांकि इसे लेकर उन्होंने अभी तक सीधे तौर पर कोई दावा तो नहीं किया है, लेकिन खुद को शिवराज के मुकाबले खड़ा करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा है. वे लगातार संदेश देते आए हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी निभाने के लिए वे पूरी तरह से तैयार हैं और यदि सूबे में कांग्रेस सत्ता में आती है, तो मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार वही होगें.
घोषणा का जवाब वचन
कमलनाथ का व्यवहार भावी मुख्यमंत्री की तरह है और शिवराज की घोषणाओं के मुकाबले वे वचन दे रहे हैं. अभी तक वे कई वचन दे चुके हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस तरह से हैं- कांग्रेस अगर सत्ता में आई, तो किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा, तत्काल प्रभाव से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः 5 और 3 रुपए की कमी की जाएगी, प्रदेश की हर पंचायत में गोशाला का निर्माण किया जाएगा, भाजपा के शासन काल में प्रदेश में हुई व्यापमं घोटाले जैसी गड़बड़ियों की जांच के लिए जन आयोग का गठन किया जाएगा, व्यापमं परीक्षा से जुड़े करीब 15 लाख परीक्षार्थियों की फीस वापस की जाएगी आदि.
छिंदवाड़ा मॉडल का प्रचार
मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों छिंदवाड़ा मॉडल की बहुत चर्चा है. इसे लेकर कमलनाथ ने कहा था कि शिवराज छिंदवाड़ा आकर बुधनी और छिंदवाड़ा के विकास की तुलना करते-करते हैरान होते रहते हैं. छिंदवाड़ा कमलनाथ का कर्मक्षेत्र रहा है. यहां से वे 9 बार सांसद चुने जा चुके हैं. इसी छिंदवाड़ा मॉडल को कमलनाथ की काबिलियत के तौर पर पेश किया जा रहा है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद ही कमलनाथ ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा था कि छिंदवाड़ा विकास में प्रदेश के कई जिलों से आगे है, जाकर छिंदवाड़ा का विकास देखें और फिर लोगों के बीच जाकर विदिशा और छिंदवाड़ा के विकास के बारे में बताएं.
पिछले दिनों भोपाल में छिंदवाड़ा मॉडल नाम की एक पुस्तक का विमोचन किया गया. इस विमोचन समारोह के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर द्वारा छिंदवाड़ा मॉडल की जमकर तारीफ की गई और छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ की शान में कसीदे गढ़े गए. इस दौरान गौर ने कमलनाथ को विकास पुरुष बताते हुए कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा का जिस तरह तेजी से विकास हुआ वो तारीफ़ के काबिल है, कमलनाथ की कोई बराबरी नहीं कर सकता, छिंदवाड़ा का विकास मॉडल सर्वश्रेष्ठ है. बाबूलाल गौर यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि कमलनाथ का मध्य प्रदेश के विकास में भी योगदान है.
जब यूपीए की सरकार थी तब मैं विकास के लिए पैसा लेने कमलनाथ के पास गया, तो उन्होंने मुझे निराश नहीं किया. मेट्रो की डिटेल सर्वे रिपोर्ट के लिए बिना देर किए उन्होंने तीन करोड़ रुपए दिए थे. बाबूलाल गौर द्वारा इस तरह से खुलकर कमलनाथ की तारीफ करने से सूबे की सियासत में हलचल मच गई. इसपर कमलनाथ ने कहा कि बाबूलाल गौर जी एक सच्चे इंसान हैं, वे बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं, जिन्होंने सच्चाई स्वीकार की’. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा भी कमलनाथ की तारीफ करने पर बाबूलाल गौर की जय जयकार की गई. उन्होंने ट्वीट किया कि बाबूलाल ग़ौर भाजपा में एक मात्र शेर हैं, गौर साहब आपकी हिम्मत की मैं दाद देता हूं, गौर साहब ज़िंदाबाद.
सिंधिया से ज़ोर-आज़माइश
कांग्रेस आलाकमान द्वारा मध्य प्रदेश में कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की गई थी. यह एक नाजुक संतुलन है, जिस पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खरा उतरना आसान नहीं है. 6 जून को मंदसौर में हुई रैली के दौरान भी राहुल गांधी ने कमलनाथ और सिंधिया की जोड़ी के साथ आगे बढ़ने पर जोर दिया था. लेकिन आए दिन इन दोनों के बीच की जोर-आजमाइश उभर कर सामने आ ही जाती है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर इन दोनों के समर्थकों के बीच जंग छिड़ गई थी, जिसमें एक तरफ सिंधिया के समर्थक ‘चीफ मिनिस्टर सिंधिया’ के नाम से अभियान चला रहे थे, जिसका नारा था ‘देश में चलेगी विकास की आंधी, प्रदेश में सिंधिया केंद्र में राहुल गांधी’, वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ के समर्थक ‘कमलनाथ नेक्स्ट एमपी सीएम’ के नाम से अभियान चला रहे थे, जिसका नारा था ‘राहुल भैया का संदेश, कमलनाथ संभालो प्रदेश.’ इन सबको दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है.
जाहिर है, कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री की दावेदारी का मसला भले ही दो नामों के बीच सिमट गया हो, लेकिन अभी भी यह मसला पूरी तरह से सुलझा नहीं है. अब दो ही खेमे बचे हैं, जो ऊपरी तौर पर भले ही एकजुटता का दावा करें, लेकिन दोनों ही अपनी दावेदारी से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. दोनों ही दावेदार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार नहीं कर रहे हैं. इस सम्बन्ध में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि पार्टी यदि उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहती है, तो वे तैयार हैं. कमलनाथ ने भी इससे इनकार नहीं किया है. पिछले दिनों इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि ‘मैंने अभी तय नहीं किया है …. ये भी चर्चा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हो सकते हैं.
जब इन सब चीजों का फैसला होगा, तब मैं भी फैसला करूंगा. हो जो भी लेकिन फिलहाल मुकाबला कमलनाथ और शिवराज के बीच ही बनता नजर आ रहा है. हालांकि कमलनाथ की लड़ाई दोहरी है. पहले तो उन्हें अपने जोड़ीदार ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर 15 सालों से वनवास झेल रही अपनी पार्टी को जीताकर सत्ता में वापस लाना है, जिसके लिए उन्होंने नारा भी दिया है, ‘कर्ज माफ, बिजली का बिल हाफ और इस बार भाजपा साफ.’ अगर वे इसमें कामयाब होते हैं, तो इसके बाद उन्हें अपने इसी जोड़ीदार के साथ मुख्यमंत्री पद के लिए मुकाबला करना है. फिलहाल वे अपनी फिल्डिंग दुरुस्त कर ‘कमलनाथ ही कमल की काट’ नारे के साथ खुद को बैटिंग के लिए तैयार कर रहे हैं.
दिग्विजय को क़बूल हैं कमलनाथ!
खुद दिग्विजय सिंह भी छिंदवाड़ा मॉडल की तारीफ करते हुए भावी मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ की दावेदारी को आगे बढ़ा चुके हैं. पिछले दिनों उन्होंने अपने बेटे के एक ट्वीट को रीट्वीट किया था, जिसमें जयवर्धन सिंह ने लिखा था कि जो विकास कमलनाथ ने छिंदवाडा में किया है, वह विकास शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में में 15 वर्ष में नहीं कर पाए हैं. हमारा संकल्प है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद पूरे प्रदेश में छिंदवाड़ा मॉडल लागू किया जाएगा. जाहिर है, छिंदवाड़ा मॉडल बिना कमलनाथ के तो लागू नहीं हो सकता है. यह एक तरह से दिग्विजय सिंह की स्वीकृति है कि इस बार अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जीत हासिल होती है, तो मुख्यमंत्री के तौर उन्हें कमलनाथ कबूल होंगे.
कमलनाथ की फिल्डिंग और शिवराज की बैटिंग
एक तरफ कमलनाथ संगठन पर पकड़ के जरिए अपनी सियासी फिल्डिंग को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के रूप में अपनी तीसरी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान लगातार बैटिंग पिच पर जमे हुए हैं. उन्होंने अभी से ही खुद को चुनावी अभियान में पूरी तरह से झोंक दिया है. वे पिछले 13 सालों से मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनका अंदाज ऐसा है जैसे वे पहली बार वोट मांगने के लिए जनता के बीच हों. वे अपने लम्बे कार्यकाल का हिसाब देने के बजाए उलटे विपक्षी कांग्रेस से ही हिसाब मांग रहे हैं. उनकी जन आशीर्वाद यात्रा सुर्खियों में है. इसमें उमड़ रही भीड़ से सत्ताधारी खेमा आत्ममुग्ध और उत्साहित नजर आ रहा है.
लेकिन भीड़ तो कमलनाथ की रैलियों में भी उमड़ रही है, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता है कि जन आशीर्वाद यात्रा में आ रही भीड़ वोट भी करेगी. शायद शिवराज को भी इसका एहसास हो गया है. इसलिए उनकी रणनीति में भी बदलाव देखने को मिल रहा है और अब उनकी भाषा मैं से हम की तरफ आ रही है. अब वे अपने अलावा दूसरों को भी श्रेय देने लगे हैं. पिछले दिनों टीकमगढ़ जिले की एक जनसभा में उन्होंने यह कह कर चौका दिया कि वर्ष 2003 में प्रदेश को बर्बाद करने पर उतारू दिग्विजय सिंह की सरकार को हटाने में उमाश्री भारती ने बड़ी भूमिका निभाई थी. उमाश्री भारती, बाबूलाल गौर, हम तीनों ने मिलकर प्रदेश की किस्मत बदलने का काम किया है.