एनआरसी पर छिड़े विवाद के बीच असम में कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा मंडरा रहा है. खुफिया एजेंसियो ने केंद्र सरकार को सतर्क किया है कि देश विरोधी लोग इस स्थिति का फायदा उठा सकते हैं. असम के दूर दराज के इलाकों में सुरक्षा बलों को सतर्क किया गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कल गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलीं. उन्होंने शिकायत की कि बंगाल में भी एनआरसी होने की बात हो रही है. ऐसा कुछ हुआ तो सिविल वार की नौबत आ सकती है.
इस बीच खबर है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए राज्य चुनाव आयोग को निर्देश जारी किए हैं. चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव आयोग से कहा है कि वोटर लिस्ट से लोगों को बाहर करने में जल्दबाजी न दिखाएं.
इसे लेकर हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि NRC की ड्राफ्ट लिस्ट के आधार पर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कल कोई निर्देश नहीं दिया. लेकिन कहा, अभी आप पूरी तहकीकात के साथ क्लेम और रिजेक्शन को लेकर मानक कार्य प्रक्रिया तैयार करें. हम उसे अपनी मंज़ूरी देंगे. हम फिलहाल चुप रहेंगे. लेकिन इस चुप्पी का मतलब ये नहीं है कि हम आपकी स्कीम से सहमत हैं या असहमत. सुप्रीम कोर्ट के सामने स्टेट कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि लोगों को बताया जाएगा कि उनका नाम क्यों नहीं आया, साथ ही नागरिकता का दावा करने के लिए फॉर्म भी 7 अगस्त से मुहैया कराया जाएगा. ये भी बताया गया कि अभी NRC की फाइनल लिस्ट नहीं आई है.
बता दें, एनआरसी की दूसरी लिस्ट में 2 करोड़ 89 लाख लोगों को असम के नागरिक के रूप में पहचान मिली थी, जबकि 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया. हालांकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रजिस्टर जारी होने के बाद एक बयान में कहा, “अंतिम एनआरसी में किसी का नाम नहीं होने के बावजूद भी ट्राइब्यूनल का रास्ता खुला रहेगा. किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, अतः किसी को अनावश्यक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.”
असम के असली नागरिकों की पहचान के लिए 24 मार्च 1971 की समय सीमा मानी गई है यानी इससे पहले से रहने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है.