keralभारत में सियासी रंजिशों को लेकर हत्याएं होना, वैसे तो कोई नई बात नहीं है, लेकिन देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्य केरल के कन्नूर ज़िले में सियासी क़त्लेआम चिंता की बात है. इन्हीं वजहों से इस ज़िले को मौत की राजधानी भी कहा जाने लगा है. लेकिन कन्नूर में क़ायम इस खूनी राजनीति के लिए किसी एक पार्टी को दोषी क़रार देना भी उचित नहीं है. कन्नूर में तमाम सियासी दलों के पास अपने कार्यकर्ताओं की हत्या से संबंधित लंबी फ़ेहरिस्त है, जो सीधे तौर पर सीपीएम को कसूरवार मानते हैं.

अगर देखा जाए तो, यहां होने वाली ज़्यादातर हत्याएं सीपीएम और आरएसएस-भाजपा कार्यकर्ताओं की हुई हैं. सीपीएम और इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग भी एक दूसरे के प्रति हमलावर हैं. कई जगहों पर कांग्रेस और सीपीएम के बीच भी हिंसक झड़पें होती हैं. हालांकि, केरल में आरएसएस-भाजपा और मुस्लिम लीग के दरम्यान उतनी बड़ी सियासी रंजिश नहीं है, क्योंकि इन संगठनों को एक-दूसरे से वोट बैंक में सेंध लगने का ख़तरा नहीं है.

इसके बरअक्स सीपीएम और आरएसएस-भाजपा के बीच सियासी रंजिश अधिक इसलिए है, क्योंकि केरल में बतौर पार्टी भाजपा लगातार मज़बूत हो रही है. भाजपा के इस उभार के पीछे उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ज़मीनी कार्यों का योगदान है. केरल की मौजूदा सियासत में भाजपा को उन लोगों का समर्थन हासिल है, जो कभी सीपीएम के काडर हुआ करते थे. असल में यहां की पूरी लड़ाई वोट बैंक पर क़ब्ज़ा जमाने को लेकर है.

इसमें कोई शक नहीं कि कन्नूर में होने वाली ज़्यादातर हत्याएं सीपीएम और आरएसएस-भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच होती हैं, लेकिन कई दशक पहले कांग्रेस भी वही करती थी, जो आज सीपीएम कर रही है. केरल समाजवादी जनपरिषद के अध्यक्ष विनोद पायडा बताते हैं,  पचास और साठ के दशक में कन्नूर समेत पूरे मालाबार इला़के में सोशलिस्ट पार्टी का अच्छा-ख़ासा असर था. यहां कांग्रेसी कार्यकर्ता सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं पर ऐसे टूटते थे, मानो संसदीय राजनीति में उनकी कोई अहमियत ही नहीं है. कन्नूर में जारी सियासी क़त्लेआम के लिए वैसे तो सभी दल ज़िम्मेदार हैं, लेकिन वर्षों पहले इस खूनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस ने की थी. केरल प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता के.

रंजीत ने चौथी दुनिया से ख़ास बातचीत में बताया कि सीपीएम की सरकार बनने के बाद भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर हमले काफ़ी बढ़ गए हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री पिनाराई खुद आरएसएस कार्यकर्ता वडिकल रामकृष्णन की हत्या में आरोपी हैं. 28 अप्रैल 1969 में हुई यह हत्या केरल में भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ता की पहली हत्या थी. रंजीत के मुताबिक़, केरल में अब तक 172 भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. सिर्फ कन्नूर ज़िले में पार्टी से जुड़े 80 लोगों को सीपीएम ने मौत के घाट उतार दिया.

कन्नूर में जारी सियासी क़त्लेआम को इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसके लिए सीपीएम को कसूरवार मानती है. पार्टी महासचिव एडवोकेट अब्दुल क़रीम ने इस संवाददाता को बताया कि पिछले दो दशकों में उनके कई कार्यकर्ताओं की हत्या सीपीएम के कारकुनों ने की है. उनके मुताबिक, केरल में सीपीएम की सरकार बनने के बाद कन्नूर में अलग-अलग पार्टियों के छह लोगों की हत्याएं हुईं, जबकि साढ़े तीन सौ लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं.

हाल में इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग के तीन युवा कार्यकर्ताओं अनवर, शकूर और केवीएम मुनीर की हत्या सीपीएम के लोगों ने कर दी. सत्तर के दशक में कालीकट में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जानें गईं. इस फ़साद की जड़ में कोई और नहीं, बल्कि सीपीएम थी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष क़रार देती है, लेकिन कालीकट दंगे का जब भी ज़िक़्र आता है, तब उनके नेता खामोश हो जाते हैं. दरअसल, केरल में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं पर सीपीएम समर्थक इसलिए हमला करते हैं, क्योंकि सूबे में मुसलमानों का एकमुश्त वोट मुस्लिम लीग को जाता है.

सीपीएम इसमें सेंध लगाना चाहती है, लेकिन उसके सारे प्रयास अबतक विफल साबित हुए हैं. हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग कुल चौबीस सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें पार्टी ने अठारह सीटों पर जीत हासिल की. अगर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती या ज़्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करती, तो उनके विधायकों की संख्या इससे अधिक हो सकती थी, ऐसा पार्टी के कई बड़े नेताओं का मानना है.

कन्नूर ज़िला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के. सुरेंद्ररन भी राजनीतिक हत्याओं के लिए सीपीएम को जिम्मेदार मानते हैं. उनके अनुसार, वामपंथ का सिद्धांत ही हिंसा पर आधारित है. कहने को वामपंथी पार्टियां चुनाव लड़ती हैं, लेकिन लोकतंत्र पर उनका कोई भरोसा नहीं है. अपने राजनीतिक विरोधियों को वामदल शत्रु समझते हैं.

गौरतलब है कि वर्ष 1973 से लेकर 2016 तक कुल 43 कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं, जबकि ढाई सौ लोगों पर कातिलाना हमले हुए, जिसमें कई लोग अपंग हो गए हैं. कन्नूर में जारी राजनीतिक हत्याएं और सीपीएम पर उठ रहे सवाल पर यह संवाददाता स्थानीय सीपीएम दफ्तर पहुंचा, लेकिन वहां मौजूद नेताओं ने इस मुद्दे पर बात करने से मना कर दिया. दफ्तर से बाहर निकलते समय एक कार्यकर्ता ने सीपीएम के मुखपत्र देशाभिमानी के कार्यालय जाने की सलाह दी.

बतौर लाइब्रेरियन वहां कार्यरत अजिंद्रन के मुताबिक़, भाजपा और आरएसएस का यह आरोप ग़लत है कि उनके कार्यकर्ताओं की हत्या में सीपीएम से जुड़े लोग शामिल हैं. उनके मुताबिक़, 1994 से लेकर 2016 के बीच 53 सीपीएम कार्यकर्ताओं की हत्या आरएसएस और भाजपा समर्थकों ने कर दी. कन्नूर में किसी भी राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों की हत्या होने पर विपक्षी पार्टियां बग़ैर किसी ठोस सबूत के सीपीएम पर आरोप मढ़ देते हैं.

कन्नूर में जारी राजनीतिक हत्याओं के बारे में सियासी दलों का कहना है कि स्थानीय पुलिस ऐसी घटनाओं को रोकने में नाक़ाम साबित हुई है. भाजपा और कांग्रेस का यहां तक कहना है कि पुलिस सरकार के दबाव में काम करती है, इसलिए दोषियों के ऊपर उचित कार्रवाई नहीं होती. हालांकि, कन्नूर के पुलिस अधीक्षक कोरी संजय कुमार गुरुदीन इन आरोपों को खारिज करते हुए बताते हैं, स्थानीय पुलिस बग़ैर किसी पक्षपात के राजनीतिक हत्या में शामिल लोगों पर क़ानून के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करती है.

उनके अनुसार, कन्नूर में होने वाली सभी हत्याएं राजनीतिक नहीं हैं, लेकिन सियासी फ़ायदे के लिए इन हत्याओं को राजनीतिक रंग दे दिया जाता है. कन्नूर पुलिस अधीक्षक ने वर्षवार हुई हत्याओं के संबंध में एक आंकड़ा पेश किया, लेकिन राजनीतिक दलों को इस आंकड़े पर भरोसा नहीं है. भाजपा और कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि स्थानीय पुलिस सीपीएम सरकार के दबाव में राजनीतिक हत्याओं से जुड़े आंकड़ों को कम कर के बता रही है.

कन्नूर पुलिस अधीक्षक कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक़, वर्ष 1991 से 2016 के बीच कन्नूर में कुल 104 राजनीतिक हत्याएं हुईं. मरने वालों में सबसे ज़्यादा 42 व्यक्ति सीपीएम से जुड़े कार्यकर्ता थे, जबकि भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं की संख्या 41, कांग्रेस के 15 एवं इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग से जुड़े चार और अन्य पार्टियों से संबंधित दो लोग शामिल हैं. पुलिस अधीक्षक के मुताबिक़, 1 मई 2016 से 16 सितंबर के बीच ज़िले में राजनीतिक हिंसा की कुल 301 वारदातें घटित हुईं. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ होने के बाद सर्वाधिक 485 सीपीएम से जुड़े नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, जबकि भाजपा और आरएसएस से जुड़े 190, कांग्रेस के 42 एवं अन्य दलों से संबंधित 113 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

हर आंगन में मातम

कन्नूर ज़िले का तलेश्शरी और पय्यनूर तालुका राजनीतिक हत्या का केंद्र बन चुका है. बीते कुछ दशकों में यहां विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंधित सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. केरल में सीपीएम की सरकार बनने के बाद यहां सियासी रंजिशें अपेक्षाकृत बढ़ गई हैं. गांव अन्नूर में बीते 11 जुलाई 2016 को भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) से जुड़े ऑटो ड्राइवर सीके रामचंद्रन की हत्या रात क़रीब साढ़े ग्यारह बजे सीपीएम के आधा दर्जन हथियारबंद लोगों ने घर में घुसकर कर दी. एक साधारण परिवार से संबंध रखने वाले रामचंद्रन की विधवा पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं.

इस घटना के बाद आरएसएस ने रामचंद्रन के पीड़ित परिवार को बीस लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की, लेकिन घर में एकमात्र कमाने वाले सदस्य की ग़ैर-मौजूदगी इस परिवार को बराबर सालती रहेगी. अन्नूर गांव से क़रीब पंद्रह किलोमीटर दूर रामंदली गांव में उसी दिन सीपीएम कार्यकर्ता सीवी धनराज की हत्या आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं ने कर दी.

सेंट्रिंग मज़दूर धनराज के दो बेटे हैं, जिनकी उम्र क्रमशः दस साल और ढाई वर्ष है. सीपीएम की ओर से धनराज के पोस्टर तो पूरे कन्नूर ज़िले में चस्पां कर दिए गए हैं, लेकिन इस पीड़ित परिवार को पार्टी की ओर से कोई मुआवज़ा नहीं मिला है. धनराज की पत्नी सजनी के मुताबिक़, सीपीएम से जुड़े नेता घर आकर सांत्वना तो दे रहे हैं, लेकिन किसी ने भी आर्थिक मदद का भरोसा नहीं दिया है.

कन्नूर में जारी सियासी क़त्लेआम शर्मनाक

देश की शिक्षा एवं तरक्की का ज़िक़्र होने पर केरल का नाम आना लाज़िमी है, लेकिन इसके बरअक्स यहां की राजनीति में सियासी पार्टियों के दरम्यान आपसी रंजिश और उसके नतीज़े में होने वाली क़त्ल-ओ-गारत की घटनाओं से बुद्धिजीवी और शिक्षाविद् भी बेहद दुखी हैं. मालाबार इलाके में जारी राजनीतिक हिंसा के अंतहीन सिलसिले पर अभिषेक रंजन सिंह के सवालों का जवाब दे रहे हैं कन्नूर विश्‍वविद्यालय के कुलपति एम.के अब्दुल क़ादर.

केरल देश का सर्वाधिक शिक्षित राज्य है, इसके बावजूद कन्नूर और कोझिकोड इलाक़ों में राजनीतिक हत्याएं पिछले कई दशकों से जारी हैं. आख़िर इस हिंसा की मुख्य वजह क्या है?

उत्तरी केरल के जारी सियासी फ़सादात की मौजूदा सूरत-ए-हाल से पहले मैं आपको मालाबार क्षेत्र के इतिहास के बारे में थोड़ा बताना चाहूंगा. कई सौ साल पहले कोझिकोड यानी कालीकट में नायर शासकों का साम्राज्य हुआ करता था. यहां के राजा सामुथ्री वंश से संबंध रखते थे. राज्यसत्ता हासिल करने के लिए इस राजवंश का संघर्ष चेरा नामक एक लड़ाकू जाति से होता था. इन लोगों के बीच युद्ध के अपने कुछ ख़ास नियम और अनुशासन थे. ये लोग साल में एक बार लड़ाई लड़ते थे. उस युद्ध को मामंगम कहा जाता था, जो आज भी कन्नूर समेत पूरे मालाबार इला़के में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

मामंगम युद्ध में हमेशा सामुथ्री राजवंश की विजय होती थी, लेकिन पराजय के बावजूद भी चेरा समुदाय ने कभी हार नहीं मानी. इतिहासकारों के मुताबिक़, भारत की आज़ादी के बाद तक यानी ज़मींदारी उन्मूलन से पहले मालाबार इला़के में आपसी वर्चस्व के लिए इन दोनों कौमों के बीच युद्ध होते रहे हैं. मैं इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखता कि कन्नूर समेत पूरे मालाबार क्षेत्र के लोगों में हिंसक प्रवृति की भावना प्रबल है, लेकिन कुछ हद तक इसमें सच्चाई ज़रूर है कि यह क्षेत्र सैकड़ों सालों से अशांत और लड़ाइयों की ज़द में रहा है.

कांग्रेस, मुस्लिम लीग, भाजपा और आरएसएस कन्नूर में जारी सियासी हिंसा के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को ज़िम्मेदार मानती है, इस आरोप में कितनी सच्चाई है?

यह बात सही है कि कन्नूर में होने वाले ज़्यादातर राजनीतिक हत्याओं में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ता शामिल रहे हैं, लेकिन इस मामले में आरएसएस, भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी कम दोषी नहीं हैं. जिन इलाक़ों में सीपीएम का वर्चस्व है, वहां उनके कार्यकर्ता हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. उसी तरह जिन क्षेत्रों में भाजपा और आरएसएस का दख़ल है, वहां उनके समर्थक सीपीएम से जुड़े लोगों पर हमला करते हैं. यह सिलसिला आज से नहीं, बल्कि कई दशकों से जारी है. पहले मुख्य रूप से कांग्रेस बनाम सीपीएम के बीच झड़पें होती थीं, लेकिन अब यह लड़ाई आरएसएस और सीपीएम के बीच केंद्रित हो गई है.

कन्नूर को मौत का मरकज़ भी कहा जाने लगा है, आख़िर इस नकारात्मक छवि से उबरने का कोई रास्ता है या नहीं?

कन्नूर में जारी सियासी क़त्लेआम की घटनाओं से पूरा केरल शर्मसार है. देश में इसे लेकर इस सूबे की एक ग़लत छवि सामने आ रही है. मेरे ख़्याल से ज़म्हूरियत में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसका इल्म हर उन पार्टियों को होना चाहिए, जो केरल की राजनीति में सक्रिय हैं. सभी राजनीतिक दलों की अपनी विचारधाराएं होती हैं, हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी दल से जुड़ा हो, उसके लिए अपनी पार्टी की विचारधारा महत्वपूर्ण होती है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम उस विचारधारा या उस पार्टी के नेताओं से नफ़रत करें, जिनसे हमारा वैचारिक सामंजस्य नहीं है.

अफ़सोस की बात है कि आज केरल में यही हो रहा है. यहां सीपीएम से जुड़े लोग आरएसएस एवं भाजपा से घृणा करते हैं, जबकि मुस्लिम लीग के नेता सीपीएम और भाजपा नेताओं से नफ़रत करते हैं. कन्नूर में होने वाली राजनीतिक हत्याओं को रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए सभी सियासी दलों को आपसी मतभेद भुलाकर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा, क्योंकि अगर आने वाले दिनों में म़ौत का यह सिलसिला नहीं थमा तो इसकी क़ीमत सभी राजनीतिक दलों को चुकानी पड़ेगी. वह इसलिए कि आज हर दलों के साधारण कार्यकर्ताओं की हत्या हो रही है, लेकिन कल इन्हीं दलों के बड़े नेताओं को सरेआम बेरहमी से क़त्ल किया जा सकता है.

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