-परिचर्चा :

प्रस्तुत हैं अनेक साहित्यकारों के कविता पर उनके विचार।इन सभी ने विशेष रूप से कविता के निहितार्थ को व्यक्त किया है। संकलन किया है कवि लेखक ब्रज श्रीवास्तव ने।

———————————-
1. मेरी नजर में कविता  –  गीता चौबे गूँज

कविता अंतर्मन में छुपी भावनाओं की वो हलचल है जो शब्दों के रूप में मुखरित होकर जनमानस पर सशक्त प्रभाव डालती है।
मेरे लिए कविता एक हथियार है जिसके माध्यम से मैं अपने बचाव के साथ विसंगतियों पर करारा प्रहार कर सकती हूँ। प्रेम की मधुरता को कविता के माध्यम से व्यक्त कर सकती हूँ। अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को कविता में पिरोकर पीढ़ी-दर-पीढी संचारित कर सकती हूँ। सीमा पर न सही, किंतु लेखनी को तलवार बनाकर देशभक्ति से सराबोर अपनी कविता से सैनिकों और देशवासियों को उत्प्रेरित कर सकती हूँ। प्रेम रस से सुवासित कविताएँ नफरत के दुर्गंध को हटाने में मेरी मदद करती हैं। अन्याय के खिलाफ आवाज बनती हैं मेरी कविताएँ। दिलों को जोड़ने में प्रेम-डोर भी बनती हैं मेरी कविताएँ। एक सजग नागरिक के कर्तव्य निभाने की संतुष्टि देती हैं मुझे।
मैं और मेरी कविताएँ एक-दूसरे को खूब अच्छी तरह समझती हैं एक सच्ची सहेली बनकर। जब तक मेरी कविताएँ मेरे साथ हैं, मुझे अकेलापन कभी खल ही नहीं सकता।

2. जीवित होने का प्रमाण – रीमा दीवान चड्ढा, नागपुर

मेरी कवितायें यानी मेरी कोमल भावनाओं का निर्मल निर्झर जहां हर शब्द बहता चला जाता है और साथ अपने पढ़ने वाले को भी बहा ले जाता है । ये कवितायें कभी बहुत सुख की अनुभूति में हृदय से फूट पड़तीं हैं तो कभी असहनीय दुख को शब्दों में बहा ले जाती है । कभी दूसरे के दुख में रो पड़ती है तो कभी विसंगतियों को देख आक्रोशित हो जाती है । मेरी कविताओं में जीवन का हर रंग है । मुझको मुझसे ज़्यादा मेरी कवितायें कहतीं हैं । ये कवितायें झूठी नहीं हैं इनमें भावनाओं की निर्मल गंगा बहती है तभी यह हृदय को छू जाती हैं । इन कविताओं में उगते सूर्य का सौन्दर्य है , चन्द्रमा की शीतल चांदनी है तो अस्त होते सूर्य सा गांभीर्य भी है । ये कवितायें हैं इसलिये मैं हूं । मेरे जीवित होने का प्रमाण हैं ये कवितायें । इन कविताओं से प्रेम है मुझे क्योंकि ये कभी छलती नहीं मुझे । इन कविताओं से ही जीवन में स्पंदन हैं और जीवन के बाद भी ये कवितायें ही रहेंगी जो हमें दुनिया में किताबों में संजों कर रखेंगी ।

3. भावना सिन्हा

कविता मन की बात उजागर करती है। सुख ,दुःख , क्लेश, क्रोध, प्रेम, प्रसन्नता ,सबकुछ प्रकट करती है। अर्थात यह संसारिक बंधनों से मुक्त है। कविता संगीत है, कविता प्रेम है, अर्थात वह एक ऐसी भाषा है जो , चेतना में बसर करती हो । जैसे चंद्रमा अपनी कलाएँ बदल कर!

4. विश्व कविता दिवस पर एक नोट – ब्रज श्रीवास्तव

कविता ने मुझे नहीं चुना। जैसे प्रेम ने और भक्ति ने मुझे नहीं चुना। मैं उसका याचक ही रहा आया।वह झिलमिल झिलमिल कभी कभी मेरी जानिब आती दिखाई दी।वह क्षितिज की तरह दिखाई देने में नजदीक रही।उसने मेरी प्यास की शिद्दत अभी तक बनाए रखी।वह चेतना में एक ख्वाहिश एक कसक बनकर उपस्थित रही। मुमकिन है वह इस जीवन में मेरे लिए इसी तरह मिराज बनी रहे।
कविता एक मिराज है। अधिकतर लोग इसके चक्कर में फंसकर समय व्यर्थ करते हैं। यह सभी के लिए अलग सी एहसास है।यही वजह है कि एक व्यक्ति जिसे कविता ताल ठोक कर कहता है,दूसरा उसे नाकविता कहता है।यह शिशु की उस समझ की तरह है जो न जाने किस बात पर मुस्कराता है या किलकारी भर कर हंसता है।यह दीवानों की मस्ती और अवसाद का सबब है।
मगर अब कविता दो और दो चार होने की शर्त पर बाजार में उपलब्ध है।जो समझ में आ जाए और उनके मानसिक स्तर से जुड़ जाए वो कविता है।जिस बात को सुनकर ताली बजाने को मन करे वो कविता है।या वो कविता है जिसे कहकर सम्मुख बैठे मनचले एक साथ दांत निकालकर वाह वाह करें। कविता फेसबुक पर एक ईगो के विरेचन के लिए मौजूद है। इश्तहार है कविता जो व्यापार के लिए भले नहीं कविनाम के दिमागों पर चस्पा होने की आकांक्षा के लिए मौजूद है।जनक के दरबार में कविता की जानकी को वरण के लिए कविता लिखने को आजमाते अहंकार की हुंकार भरते राजा राजकुमारों का जमावड़ा है यह दृश्य। कविता मगर चुनती है उसे वास्तव में संधान करने वाले किसी वास्तविक संवेदना के मर्म को समझने वाले सुपात्र को।

एक रहस्य है कविता।इसे समझने और तलाशने में वक्त गुजर जाना ही जीवन का मर्म भी है। मुझे यह मर्म अपनी ओर खींचता रहे।

 

5. मेरे लिये कविता का अभिप्राय – रश्मि वैभव गर्ग

कविता ..मानो .. मेरे मन के भावों की अभिव्यक्ति है..जैसे मेरे हृदय का प्रतिबिंब है..कहना मुश्किल है कि मैं कविता को लिखती हूँ या कविता मुझे लिखती है।
नन्ही सुता सी कविता, शब्दों की पायल पहनकर रुनझुन .. रुनझुन..जब मेरे हृदयांगन में उतरती हैं तो मेरा तन और मन प्रफुल्लित हो जाता है।
मेरे अंतर्मन की आवाज है कविता ..मेरे अंतस् में समाहित विचारों के सागर का प्रतिबिंब है कविता.. मेरी स्मृतियों के अबोल स्वरों का शंखनाद है कविता.. मेरे मन की आवाज़ है कविता।
कविता मुझे त्वरित आनंद देती है ..जिसको मैं महसूस करना चाहती हूँ ..और श्वेत कागज पर श्याम वर्णों में अठखेलियाँ करती हुई आप तक पहुँचाना चाहती हूँ।

 

6. उपमा ऋचा

मेरे लिए कवि ही कविता है लेकिन आश्चर्य कि सच को सच कहने से गुरेज़ करने वाली इस दुनिया ने अगर सबसे ज्यादा सवाल उठाए हैं, तो वह ज़िदगी की तल्ख़ हकीकतों के बीच की ज़िंदगी का रोमन बयान करने वाली कवियों की कौम है। अगर सबसे ज़्यादा दायरे किसी के आसपास खींचे हैं, तो वह ‘कवि’ है और जगह और ज़रूरत को लेकर सबसे ज़्यादा तफ़सील और कैफियत अगर किसी से मांगी गई है, तो वह कवि है। जबकि कवि होना, महज़ कवि होना नहीं यह एक स्थिति है। जो उतनी ही सरल है, जितना कि रात की आंखों में रखे सपने को दिन की मुंडेर पर बैठा देना और उतनी ही कठिन, जितना कि दिन की आंखों में चुभते सवालों का शोर रात के निविड़ सन्नाटों में सुनना… कवि होने का मतलब है, मुट्ठी में मौसमों को बांधना। इंसानी हक़ और ज़रूरतों को आवाज़ देना। ख़ुद को गलाकर, सच को जिलाना और अपने शब्दों को भूलकर, वक़्त की ख़ामोशी को आवाज़ देना। शायद इसीलिए इस दुनिया के इतने सवालों, इतनी कैफ़ियतों, इतनी बातों, इतने दायरों के बावजूद ‘कविता’ बची हुई है, क्योंकि ‘कवि’ बचे हुए हैं… केवल इस आस में कि उनके साथी कलम की स्याही सूखने नहीं देंगे। दुनिया के सवालों से डर कर दुनिया से सवाल करना नहीं छोड़ेंगे और न वक़्ती ख़ुशी के भरम में बड़ी चतुराई से जमींदोज़ की जा रही वक़्त की सच्चाईयों को खोदना बंद करेंगे। अब यह हम और आप पर ही है कि इस आस को जिलाए रखें, ताकि बची रहे कविता और बचे रहें कवि…

7. मेरे लिए कविता का अभिप्राय – ख़ुदेजा खान, जगदलपुर

कविता इतनी आसान और मनमोहनी सी लगती है कि प्रायः लेखन की शुरुआत पद्य से ही होती है लेकिन जैसे – जैसे हम कविता की अतल गहराइयों में उतरते जाते हैं इसकी गहराई का अंदाज़ा होने लगता है।
गहरे और गहरे… डूबना और डूबना…. जहां सांस भी अटकी सी महसूस होने लगे जब पर्याप्त शब्दों में अभिव्यक्ति की ऑक्सीजन न मिले।
कुछ जो आम बोलचाल की भाषा से परे बिम्बात्मक हो या प्रतीकात्मक,
संकेतात्मक हो या फिर व्यंजनात्मक, कुछ ऐसे अनगढ़ से भाव जब भीतरी उष्णता में पकते हैं तब कविता उदय होकर मुझे चकित करती है ,उस क्षण, उस एक क्षण में कविता सृजन की अनुभूति सच में अलौकिक होती है। नव अंकुरण जैसे प्रकृति को फलीभूत करता है,नव सृजन कवि को।
मैं कविता को मांजती हूं, कविता मुझे।
परस्पर घर्षण दोनों की चमक बरक़रार रखता है।

8. कविता कहाँ से आती है – निर्मल सैनी, डूंडलोद झुंझुनूं राजस्थान

कविता कहाँ से आती है? शायद उस पहाड़ी की टेकड़ी से
जहाँ से जीवन गिरता, लुढ़कता हर सीढ़ी से होते हुए नीचे तक आते आते मीठा झरना बनता है

चारों और धुंध सूरज भी अपने तय समय से अढ़ाई घंटे देरी से है। टिन के बने अहाते में खुद को खोजता सोचता बैठा हूँ। सहसा पानी की बूँद गिरती हुई बगल से निकल जाती है
इस पल की सिरहन में कविता आती है।

तेल से भरे दीपक में लगी रुई की बाती के केशिकत्व से तेल को जाते हुए बाती के अन्तिम पोर पहुँचने तक देखना। फिर घर्षण से उत्पन्न ज्योति को बाती से मिलाने तक के रास्ते से कविता आती है।

कविता फूटती है उस स्रोत की भाँति जो बांझ वीरान सूखी पहाड़ी की कोख से जन्म लेकर उसे सघन सजन बना देती है।
जन्म के बाद की खुशियाँ जीवन को आसान बना जीवन को माध्यम दे देती है।

मेरा कहा न मानो तो मान लो कुंवर नारायण की बात ‘कुछ भी करते हुए कहीं और भी होने से ‘भी कविता मिलती है।

प्रकृति की दया से वसुधा हँसती है बेपरवाह होकर, तभी यहाँ वहाँ सब जगह कविता उगती है अंकुरित होती है।

9. मेरे लिए कविता का अभिप्राय*-स्वच्छ आकाश की लिखावट – मधु सक्सेना, रायपुर

आज का विषय इतना विस्तृत है की कितना भी लिखो कमी ही रह जायेगी ।फिर भी अपनी समझ से लिख रही हूं ।
मेरे लिए कविता अकेलेपन का अभिव्यक्त विस्तार है । कविता ने कभी रोका नही बोलने से मां की तरह ,पिता की तरह बंधन नही लगाए ।अन्य रिश्तों की तरह संकोच से मुक्त रखा …।एक जगह बैठे बैठे उड़ान की सहूलियत दी ।मेरी पहचान और सम्मान है ।
मेरे लिए कविता का अर्थ है जीवन ।जीवन के रंग हैं
इंद्रधनुष की तरह ..।मन के स्वच्छ आकाश की उन्मुक्त लिखावट …। लिखावट भले ही सुंदर और सुघड़ न हो पर लिखावट है मेरे पास ।
कविता का अर्थ मेरे लिए प्रेम का इजहार , जीवन की लय ,धिक्कारने की छूट , सच की अभिव्यक्ति, घुटी हुई चीख से मुक्ति और खुल कर अपने हिस्से की हवा ले सकने वाला मेरा घर है ।
पल पल का अहसास है तो वर्षों की स्मृतियों का कोलाज है ।
कविता, कभी खत्म न होने वाला सुख है तो दुख का परिवर्तनशील रूप है ।
कविता के अंदर मैं हूं और मेरे अंदर कविता ..…।

 

10. सुचिंतित भाव है कविता – मिथिलेश रॉय

दुनिया के हर मनुष्य के मनोभाव वाला जगत लगभग एक सा ही है। एक अच्छी कविता सबके मन को छूती है।इस तरह कविता के बहाने हम थोड़ा थोड़ा सबके हर्ष दुख प्रेम, चुनौतियों के भी हमसफर बनते हैं। लिहाजा मेरे लिए कविता यूं कोई अचानक आ जाने वाला भाव न होकर एक सुचिंतित भाव रही है। एक स्थाई विचार ,अंगद का पैर, कविता लिखने से ज्यादा मैने जीने की कोशिश की है। और जब भी मैं कविता की तरह घर परिवार संगी साथी सहकर्मी से भिड़ा क्षत विक्षत हो,खाली हाथ ही लौटा । पर हारा नही। कविता ने मुझे हारने नही दिया। जी केदारनाथ सिंह अपनी में कहते है “जब दुखने लगती है मेरी आत्मा मैं तुम तक लौट आता हूं । उसी तरह जब हर तरफ से आत्मा दुखने लगती है तो मैं कविता के पास लौट आता वही मेरा स्थाई पता है। मेरे जानने वाले वहीं आते है। जो मेरा पता नही जानते हैं, उनमें न तो मेरी कोई दिलचस्पी है न उनसे कभी मिलता ही हूं।

कविता लिखने के लिए मैं उत्साहित इसलिए भी रहा की मैने इसे बहुत अच्छे से उपयोग करते अपने पिताजी को पाया, वैसे तो वे बहुत उग्र थे पर कभी कभी तुलसी, कबीर, विलियम ब्लैक,शेक्सपियर आदि की लिखी बातों को कहकर अपने मन की भड़ास को निकाल लेते थे और सामने वाले तक मैसेज पहुंच जाता था। जैसे मेरे बड़े पापा बहुत सरल स्वभाव के थे लोग उन्हें मुनि जी कहते थे, अब पिताजी उनको अपशब्द तो कह नहीं सकते थे । लेकिन मन को कुछ बुरा लगे तो चुप कहां रह सकते थे, तब वे इसके लिए सीधे बाबा तुलसी के पास जा पहुंच जाते थे,और जोर जोर से गाने लगते , ,,,”मुनि न होही यह निश्चय घोरा मनेहु……………………….।इस तरह सांप भी मर जाता और लाठी भी टूटने से बच जाती। कविता का असल काम मुझे ठीक ठीक यही लगा।

अच्छी कविता हमारे समय के हर चौक पर मुझे नागार्जुन की तरह इसकी विद्रूपता पर बिहसते मिली, ताल ठोककर कहती मिली ” बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक”
यह बेहद निराशा का समय पर मैं समझता कविता के लिए बहुत अच्छा समय भी है। आज कविता मुख्य दो रूप में मौजूद है। कविता शान शौकत व जीवन के लिए
पहली श्रेणी शान शौकत के लिए लिखने वालों के भारी संख्या है। इस श्रेणी में विश्व दृष्टि रखने वाले कवि /कवयित्री शामिल है। आश्चर्य है उनके पास बूढ़े मनचले विश्वदृष्टि पारखी गुरुघंटाल भी है। आये दिन ऐसे कवि,/ कवयित्री की खेप सोशल मीडिया पर फिल्मी धुन में थिरकते व कोई पुरुस्कार थामे मिल जाते है। दूसरी श्रेणी के कवि/ कवयित्री जो अपने जीवन को ही मांजने स्वयं को बेहतर बनाने में लगे है। जो मंच और मजमे से दूर है। उन्ही से कविता बची है।

कविता एक पक्ष की मांग करती है। उसमे मिलावट अच्छी नहीं लगती मैं इधर भी, उधर भी कहने करने वाले शब्दों में वाक्यों प्रतीकों में बिंबों में कविता को खूब साध लेते हैं । लेकिन आत्मा डालना है तो उसके अनुरूप होना पड़ेगा AI कवि असल कवि से अच्छा लिख सकता है। पर AI कवि मनुष्यता के पक्ष में खड़ा नही हो सकता।

कविता लिखते हुए मैं अक्सर उससे पूछता हूं तुम किसके लिए, और उसका उत्तर सही मिलने पर सोचता हूं उसके लिए क्या कुछ कर रहा हूं अगर उत्तर हां में मिला तो मैं मानता हूं। हां इस कविता का रचयिता मैं ही हूं।

11. मेरे लिए कविता – ज्योति खरे

वैश्वीकरण की प्रक्रिया से दुनिया में चाहे जितने सन्दर्भ बदल जाएं
परम्परा वादी समाज आधुनिकता का लबादा ओढ़ ले,गांव के बाज़ार शोपिंग माल में तब्दील हो जाएं लेकिन संकृति,समाज, संवेदनशीलता में अभी तक कमी नहीं आयी है.
मानव के अस्तित्व का संकट ,मानव की नियति पर ही आधारित है ,यह बात चाहे छोटी सी कथा में कही जाए या किसी महाकाव्य में रची जाए,बात वही रहती है,बस बयां करने का
अंदाज़ और विचार अनुभव बदल जाते हैं.
समकालीन जीवन मूल्य प्रत्येक घंटे के अंतराल में बदलता जाता है,यह
मूल्यवान न होकर मूल्यहारा हो जाता है,इस अनगढ़ मुल्यहारा जीवन में,संस्कृति,समाज और स्थानीयता के रंग भरना पड़ते है,तभी यथार्थ के प्रति,मानव मूल्यों के प्रति,घर परिवार और राष्ट्र के प्रति सजग एवं संवेदनशील भाव उत्पन्न करने होते है.यह भाव कविता के माध्यम से ही उकेरे और संजोय जा सकते हैं.
समाज की संवेदनशीलता की वृद्धी के लिए इतिहास के आदिकाल से आज तक कलासाधकों और
रचनाकारों ने सक्रिय और विशेष योगदान दिया है.
नृत्य में भावभंगिमाओं द्वारा,अभिनय में मुखाकृतियों के द्वारा,संगीत में स्वरलहरियों द्वारा,चित्रों में रंगों के द्वारा और कविता में आँखों से न दिखने वाले अदृश्य रसों,भावो,
अनुभूतियों के स्पर्श द्वारा, यह अदृश्य स्पर्श
केवल कविता के माध्यम से ही होता है.
कविता हमेशा से ही पाठकों के मन मस्तिष्क को झंकृत करती आयी है.
“कविता के भीतर की कविता” की प्रतिबद्धता अपने गांव,समाज,संस्कृति पर ही आधारित होती है, इसे होना भी चाहिए क्योंकि
कविता के विस्तृत क्षेत्र में ही ये सारे पड़ाव आते हैं.
कविता का विशाल,गंभीर और अति सुखद वातावरण हमें हमारे भीतर के मनुष्य की आत्मा से सहजता से परिचित कराता है.
यदि कविता न होती तो मनुष्य का होना या न होना
कोई बात नहीं होती, मनुष्य का इतिहास इतना लम्बा न होता और न होती अदृश्य सूक्ष्म की पहचान.
कविता का अंकुरण हर मनुष्य में जन्म के साथ ही होता है, माँ की लोरी सुनते,
उनकी ऊँगली पकडे
कविता का यही सम्मोहन अनंत तक देख सकने की ललक,उत्साह से सरोबार मन मस्तिष्क को चुनौंतियों
से लड़ने की ताकत देता है.
वर्ण,रंग,धर्मभेद से विमुक्त विचारधारा कविता के माध्यम से ही सीखी जा सकती है.
समाज की वर्जनाएं, नियंत्रकों का कठोर
अनुशासन और वाद,समुदाय,विचारधारा का संकीर्ण चिंतन कविता के
कोमल मन को कांटेदार सीमाओं में बाधने के लिए हर संभव प्रयास करता रहा है,तभी देखिये न बचपन में गायकी का प्रयास करने वाला युवक भविष्य में गला फाड़कर उठते गिरते शेयर के नाम चिल्लाने वाला ब्रोकर बन जाता है,
और अन्तरिक्ष को अपनी खोजी नजरों की सीमा में लेन वाला युवक ग्राम पंचायत के चुनाव में जीतने के लिए तिगडम करता नज़र आता है.
न जाने कितने चमकदार हीरे कच्चे कांच की तरह टूटकर बिखर जाते हैं.
कविता समाज की इसी विषमता के विरुद्ध लड़ना सिखाती है.
कविता पारदर्शी रहने का सलीका सिखाती है.
इतिहास पर नज़र डाले तो कविता कर्म को हमेशा कुचलने का प्रयास किया
लेकिन कविता कभी हारी नहीं बल्कि इसने कुचलने वालों को ही कुचल दिया.
समकालीन कविता,
आधुनिक कविता,छन्दमुक्त कविता,नई कविता जैसे
संबोधनों से कविता गुजरती आयी है.इसके
बावजूद कविता कविता ही रही और अपने
अस्तित्व को कायम रखने में
सफल रही.
आज के इस नए दौर में, लालसा भरे वातावरण में, “कविता कर्म” के लिए “स्पेस” का सिरा खोज निकलना मुश्किल होता जा
रहा है,ऐसे में कविता अपनी सधी-मंजी वैचारिक
अभिव्यक्ति को उजागर करने में समर्थ है.
आपके आँगन में फूलों की बहार हो तो,इसके लिए अपने आँगन में,फूलों के पौधे रोपनें ही होंगे और अपने व्यस्ततम जीवन के बीच से इन पौधों में लगी रंग बिरंगी कलियों की सुरक्षा के लिए कुछ समय तो देना होगा. तब ही फूलों के सुगंध का अहसास जीवित रहेगा,कविता इसी सुगंध को कायम रखने की प्रेरणा देती है.
जो कविता की सुगंध से आनंदित होते है,वे सामान्य जन है,और जो इस सुगंध को अपने चिंतन,अपने
जीवन में स्थान देते हैं,वे
महान हैं और जो कविता की सुगंध सुरक्षित रख रहे हैं जन-जन तक अबाध रूप से
यह सुगंध पहुंचा रहे हैं,इस कार्य में जो जीवन होम कर रहे है,वे धन्य है “युगसाधक” हैं.
निश्चय ही वे इतनी सुगंध छोड़ जाते हैं,कि युगों तक आने वाली पीढियां उस सुगंध को महसूस करती रहें.
“साहित्य की बात”
इसी सुगंध को कायम रखने की पाठशाला है,
यहाँ रचनाकार युगों युगों तक अपनी रचनाओं की सुगंध बिखेरते रहेंगें.

12. शायरी और मैं – भवेश दिलशाद

बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोफ़्त तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे ज़ियादा पुकारते रहे. ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां. कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान. छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ज़िद और विध्वंस भी… इसी दौर में वो मुझे मिली.

घूंघट, पर्दे और नक़्ली ज़ेवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी. दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं. एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे. एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा. फिर ढलने और पिघलने तक. बज़ाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये. अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में… वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी.

प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है. चलता रहेगा. हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे. नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे. हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है. जज़्बात की उथल-पुथल है. न चाहे भी रहेगी. मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी. हमेशा के लिए!

13. जया श्रीवास्तव, भोपाल

विश्व कविता दिवस पर मेरे लिए कविता का अभिप्राय कवि के ह्रदय को झकझोर देने वाली घटनाएं, आस पास के वातावरण में बनने वाली परिस्तिथियां चाहे वो स्वयं के साथ हो या दूसरों के साथ,जब हृदय में हाहाकार मचा दें और शब्दों के रुप में कलम के माध्यम से कागज़ पर उतर आए तो वो शब्द कविता बन जाते हैं।
एक ओर जहां कवि का आक्रोशी मन जब अपने भावों को कहीं प्रकट नहीं कर पाता तो उसके भाव शब्दों का सहारा पाकर हृदय में उफनते लावे को बाहर निकाल देते हैं तो दूसरी ओर जीवन की कोमलता कवि मन पर प्रभाव डालती है तो प्रेम से पूर्ण कविताएं नदी की धारा की तरह बह निकलती हैं।

14. गंगाधर ढोके – शहडोल

मानवीय सभ्यता की सुदीर्घ ऐतिहासिक यात्रा के साथ-साथ कविता भी नदी की तरह अनवरत प्रवाहित होती रही है। हालांकि उसकी राह में यदा कदा रुकावटें, व्यवधान और अड़चनें आती रहीं, लेकिन वह रुकी नहीं । समय के साथ-साथ अपना कलेवर, कहन और भाषिक बुनावट बदलती रही । नदी और कविता में महत्वपूर्ण भिन्नता इस अर्थ में देखी जानी चाहिए कि जहां नदी समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती है वही अच्छी कविता जन मानस में मिलकर और अधिक सुघड़, अर्थवान और सौन्दर्य के विविध रूपों को प्राप्त करती है ।
कभी वह कबीर के पास गई तो सांप्रदायिकता की पीठ पर चाबुक की तरह पड़ती रही । कभी वह किसी दोस्त की पीठ पर धौल बनकर झंकृत हुई तो कभी सामाजिक समरसता का संदेश देती हुई रहीम के पास बैठी रही । कालांतर में जब कविता ने देखा की कोई राजा जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर होकर अपने अंत:पुर में नयी नवेली रानी के साथ आराम फरमा रहा है और राज्य को अराजकता का कोहरा ढंक रहा है तब वह एक गुरु की तरह उसको झनझोरती है और बिहारी के कंठ से जिम्मेदारियों का एहसास कराती रही है-
“नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥”

कविता की यह सुदीर्घ परंपरा आदिकाल से होते हुए समकाल तक लगातार प्रवाहमान है । मैं उसी परंपरा का एक छोटा-सा हिस्सा बनने की प्रयास में हूं और कविता के प्रति जिम्मेदारी का एहसास भी रखता हूं ।

मेरी दृष्टि में किसी भी कविता की सार्थकता इस तथ्य में देखता हूं कि कविता व्यक्तिगत अनुभूतियों को समष्टि में परिवर्तित होने की क्षमता रखती या नहीं । मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसी कविता का हिमायती रहा हूं जब कवि का व्यक्तिगत दुख समस्त मानव जाति के दुखों को अभिव्यक्ति दे सके । ऐसी कविता व्यक्तिगत होकर भी संपूर्ण मनुष्य की आवाज बन जाती है । दूसरे अर्थ में मेरे लिए कविता लिखना ऐसा रहा कि मैं मनुष्य को उसकी सम्पूर्ण मनुष्यता के साथ पा सकूं उसे निजी जीवन में जी भी सकूं ‌। कविता लिखने का शौक न जाने कब मेरे जीवन का हिस्सा हुआ यह तब पता चला जब कविता मेरे अकेलेपन में मेरे सिरहाने आकर बैठी और दुनियावी झंझावातों में हौसला देने लगी । तब भी जब हृदयाघात के बाद अस्पताल के बिस्तर पर रहा वह मेरे लिए स्वप्न बुनती रही ।
जब परिस्थितियों के शिकंजा कसा तो कविता मेरे लिए प्रश्न बनकर उभरी और मानवीय विघटनकारी शक्तियों के समक्ष चुनौती के तौर पर खड़ी हुई ।‌ विरासत में मिले अंधकार में पहले जुगनू फिर कंदील फिर टार्च की रोशनी बनकर कविता मुझे रास्ता दिखाती रही है ।

मेरे लिए कविता का रास्ता फूलों के गलियारों से होकर नहीं जाता । मेरी कविता जिस रास्ते से गुजरती है उसमें खेत है खलियान है गैंती है फावड़े है । मानवीय रिश्तों के उलझते सुलझते धागे हैं । सब आल्टर्न समाज का वह बड़ा भूभाग है, जिनके अपने संघर्ष है ।

इधर के कुछ दिनों से मेरे लिए और कविता के लिए जो नया संकट चुनौती के रूप में आया है । वह है चीजों को उनके सही नाम से पुकारे जाने का । जो नारेनुमा हवा में उछाले जा रहे हैं वे अपना परंपरागत सांस्कृतिक अर्थ छोड़ रहे हैं । वस्तुत: वर्तमान भाषा का संकट कविता का संकट है । उसे भी समझने और समझाने की जरूरत महसूस करता हूं, कविता की जिम्मेदारी ही अपने समय, समाज, धारा की पहचान और पड़ताल कर, शब्द-बद्ध करना रहा है ।‌

 

14. कंचन जायसवाल, अयोध्या

कवि का मन अतिसंवेदनशील होता है और यही उसकी सबसे बड़ी शक्ति तथा कमज़ोरी दोनों है।उसे अपनी रचनाएं अपनी संतान समान प्रिय होती हैं,उसके लिए कविता ईश्वर से प्रार्थना है , संवाद है। कविताओं में रचती बसती है उसकी आत्मा और आत्मिक सुख शांति…..वो शब्दों में न कह सकेगा कि वो कविताओं की वजह से जीवित है या यूं कि उसके प्राण बसते हैं उसमें। ये ईश्वर का वो उपहार है, जिसमें सारे जहान का सुकून है।

 

15. “कविता एक अहसास” – ई अर्चना नायडू -भोपाल

यूं तो जिंदगी का हर अहसास नायाब है अज़ीज़ है। उन्हें खूबसूरत अल्फाजों का जामा पहना कर हसीन और दिलकश बनाना भी एक खूबसूरत हुनर है।
दिल की गहराइयों में जब्त ये लफ्ज़ जब दिल के बंद कपाटो से मुक्त होकर कलम और कागज़ से दोस्ती कर लेते है या फिर लय , छंदों के प्रवाह में बह रहे होते है ,तब वे अनुभूतियों के रंग में रंगकर अल्फाजों से सज जाते है।ये अहसास सुखद और दुखद दोनो हो सकते है।
दिल से निकली दिल की अनुभूति कब कविता का रूप ले लेती है ।यह कोई नही जान सकता ।
बस यूं समझ लीजिए,किसी सद्य प्रसूता के वलयाकार पीड़ा का सुखद अहसास जो जन्म देने के लिए आतुर हो रहा हो।जन्म होने पर अपनी नव कृति को आत्म मुग्धा हो कर निहारना ,उसे नजर का टीका लगाना बहुत ही लुभावनी अदा है।और इन्ही में गिरफ्त ये खूबसूरत लम्हें कविता के प्रस्फुटन के साक्ष्य होते है। यहां प्रेम में भी पीड़ा है और पीड़ा से भी प्रेम है।कवित्व के ये क्षण अनमोल है।
मेरे लिए ये सुखद अहसास ही जीवन की संजीवनी है ।

 

16. मेरी अभिभावक है कविता – डा .पदमा शर्मा

कविता मात्र भावों का उद्गार ही नहीं वरन मन की किरच और चुभन की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति है। मन को अंदर तक झकझोर देने वाली किसी घटना या बात को जब तक शब्दों में पिरोकर अभिव्यक्त न कर दिया जाए कविता मानती ही नहीं है।
मेरे साहित्य की दुनिया में कविता ने ही किलोल करके मेरी उंगली थामी थी इस मायने में कविता मेरी अभिभावक है।
कविता ने मेरे मन को सहलाकर मुझे सांत्वना दी समझाइश दी इस मायने में कविता मेरी सहेली है।
कविता का वरदहस्त मेरे सिर पर रहा कल्याणकारी रही इस मायने में यह ईश्वर समान है।
कविता माता-पिता, ईश्वर, सहेली, मार्गदर्शक, सब कुछ है।

17. मेरे लिये कविता – नीलिमा करैया

हमारे लिए कविता एक कठिन राह है जिस पर चलना सहज नहीं। जितना सत्य कठिन होता है उतनी ही कठिन कविता है। हमारे लिये वह सिर्फ़ रुचि या शौक नहीं;वह उत्तरदायित्व है।

कविता वास्तव में कवि के मन का वह उद्वेलन है जिसे वह देखकर, सुनकर,पढ़कर या भोगकर महसूस करता है । कविता उद्वेलित मन की वे भावनाएँ, संवेदनाएँ हैं जो आत्मा को निचोड़ कर कविता रूप में अपने को स्थापित करती है। वह प्रेम में पोषित होती है। कविता श्रंगार में रति है। संयोग की अभिप्सित चाह तो वियोग में प्रिय के प्रति विलाप का रुदन ।हास्य में वह बालक की स्मित मुस्कान का आल्हाद है तो मैत्री का मुखर हास,ममता में न्यौछावर है तो अट्टहास में भय।
रौद्र में वह क्रोध,उन्माद व आक्रोश है वहीं अपने
करुण रूप में सहनशक्ति की पराकाष्ठा। करुणा से शोक की व्याप्ति के बाद भी वीरांगना सी दीप्त।
वीरता में उत्साह का आगाज़ है कविता।
अद्भुत व आश्चर्य में स्तब्धता और वीभत्सता के हर रूप में घृणा और जुगुप्सा है।शांति में निर्वेद और सुकून तो प्रार्थना में भक्ति है कविता। प्रकृति में माता वात्सल्य व सौंदर्य है।
ऋतुओं में पोषक पालक रूप में जीवन।हर व्यक्ति, स्त्री ,पुरुष, वस्तु, क्षेत्र, जाति,धर्म, कर्तव्य ,जन्म, मृत्यु , धरती, आसमान, अंतरिक्ष, ग्रह, नक्षत्र सबकी कविता में व्याप्ति है इस ब्रह्माण्ड में सब कविता की ज़द में हैं। इसीलिये कहा जाता है कि “जहाँ न पहुँचे रवि ,वहाँ पहुँचे कवि।”

विकास की गति में परिवर्तन अवश्यंभावी है। रचनात्मक सृजन प्रारंभ से ही अपने काव्यात्मक रूप में ही जन्मा ;भले ही वह संस्कृत के श्लोक रूप में रहा।
कविता भी कालगत परिवर्तन के अनुरूप परिवर्तित होती रही। वीरगाथा काल में वीर और श्रंगार रस की प्रधानता रही। पाली और प्राकृत भाषा की प्रधानता के साथ रासोग्रंथ रचे गए। पृथ्वीराज रासो,परमाल रासो।
युद्ध से आक्रांत मन भक्ति की ओर उन्मुख हुआ। भक्तिकाल साहित्य के क्षेत्र में स्वर्णयुग के नाम से जाना जाता है। तुलसीदास, सूरदास , मलिक मोहम्मद जायसी व कबीर के द्वारा क्रमश: रामचरितमानस, सूरसागर ,पद्मावत जैसे महाकाव्यों का सृजन हुआ। कबीर की निर्गुण धारा को उनके शिष्यों ने साखी,सबद और रमैनी में लिपिबद्ध किया। साखी में कबीर के दोहे हैं।इनके अतिरिक्त भी कई संत इस काल में हुए जिन्होंने भक्ति भाव के अतिरिक्त तत्कालीन राजनीतिक प्रभाव व स्थितियों के तहत नीति पर भी कलम चलाकर सचेत व जागरूक किया।उसके बाद रीतिकालीन अपनी विशेषतायें रहीं। इसमें भी श्रंगार व नीति की प्रधानता रही भूषण व लाल जैसे कवियों ने शिवाजी व छत्रसाल पर वीर रस में सृजन किया है।
आधुनिक काल में कविता का स्वरूप फिर बदला। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, छायावाद, रहस्यवाद और फिर आई नई कविता और अब समकालीन कविता।
छंदबद्धता काव्य की नियमबद्धता से ही उसमें लय आती है जो रस और अनुभूति की तीव्रता के कारण प्रभावित करती है। सुरों से सजकर कर्णप्रिय होती है। वह आनन्दवर्धन करती है।
कविता का छंदबद्धता से मुक्त स्वरूप दोषपूर्ण नहीं है। कविता के लिये आवश्यक है कि किसी भी रूप में अपने भावों और विचारों को कवि किस तरह लिपिबद्ध करें कि संप्रेषित विषय प्रभावशाली बन सके,पाठक को विचलित, उद्वेलित, सम्मोहित कर अपेक्षित संवेदनाओं को जाग्रत कर लेखन के उद्देश्य को सार्थक कर सके? यह कवि के शब्द- संयोजन,भाव पक्ष व कला पक्ष पर निर्भर है।
असंख्य कविताएँ लिखकर भी आप अच्छे कवि बन पायेंगे इसमें संदेह है पर आत्मा से तपकर जो भाव सत्यं शिवम् सुंदरम् रूप में स्फुरित होते हैं,ऐसी एक अच्छी कविता भी कवि को प्रतिष्ठित करती है।

 

18. बबीता गुप्ता, बिलासपुर

ह्रदय में वृतियों से प्रत्यक्ष संबंध रखने वाली कविता एक ऐसा भावयोग हैं जो चिड़िया सी चहचहाती, आम की मंजरियों की तरह महकाती हैं। भावों के लहलहाते खेत प्रफुल्लित करती हैं, वटवृक्ष की छाया जैसी दूर-दूर तक विस्तारित कर शीतलता प्रदान करती हैं तो कभी सर्द सी मस्तिष्क को झंकृत करने वाले भावों का विलोड़न अशान्त व गांभीर्यता दे जाता हैं।  जब कभी मार्मिक भावों की ललक पर  भावनाओं का आरोप-प्रत्यारोपण का प्रचंड झोंके सहती हुई कभी हांफती-सी भी नजर आती हैं,मन को अनुरंजित करती सुखांदित करती सौन्दर्य की अनुभूति में वर्णविन्यास का तिरोभाव होने से भावों का चराचर म्लान भी हो जाता हैं। तो कभी अंतर्मन में उतरती मर्म स्थलों को स्पर्श करते भावों की रागात्मक डोर कठपुतली-सी बन चित्तवृत्ति को स्थिर कर देती हैं। जीवन जगत की अर्थपूर्णता का प्रयोजन समझाती स्वान्तः सुखाय कविता मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्तुति की तरह हैं।

Adv from Sponsors