educationकुछ हफ्ते पहले जम्मू और कश्मीर सरकार के शिक्षा विभाग ने एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया. इसके तहत कश्मीरी, डोगरी और बोढ़ी भाषाओं को कक्षा 9 और 10 में अनिवार्य विषयों के रूप में पढ़ाया जाएगा. कश्मीरी भाषा को पढ़ाने की मांग पूरी होने के साथ ही भाषा समर्थकों की एक लंबित मांग भी पूरी हो गई है.

राज्य में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा होने के बावजूद 1953 में कश्मीरी भाषा को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था. यह उस वक्त हुआ था, जब कश्मीर के सबसे बड़े नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला सरकार को अवैध तरीके से हटा कर जेल में बंद कर दिया गया था. एक लंबे समय से कश्मीर के निवासी इसकी मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि शेख साहब को तो रिहा कर दिया गया, लेकिन कश्मीरी भाषा को सलाखों में अब भी रखा जा रहा है.

इसे वापस लाने का फैसला पिछली सरकार द्वारा 2013 में स्थापित एक समिति की सिफारिशों पर आधारित है. यह फैसला ऐसे समय आया है, जब देश के कुछ और हिस्सों में भी भाषाओं की लड़ाई लड़ी जा रही है. पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में हाल में हुए उथल-पुथल का कारण भी भाषा ही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी से मिलने वाले संभावित खतरों के बीच अपना वोट बैंक बरकरार रखने के लिए बंगाली भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में पेश किया था. इससे गोरखालैंड (दार्जीलिंग हिल्स के लोगों द्वारा प्रस्तावित राज्य) की मांग पुनर्जीवित हो गई क्योंकि वे इस भाषा को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं.   इसके कारण 1980 से चला आ रहा आंदोलन और तीव्र हो गया.

इसी तरह, दक्षिणी भारतीय राज्यों में हिंदी का प्रतिरोध बहुत गहरा है, क्योंकि यहां विभिन्न समुदायों की पहचान भाषा से जुड़ी हुई है. दक्षिण भारत ने हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने के भाजपा के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया है. इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पाकिस्तान निर्माण के लिए भाषा अन्य कारकों के साथ एक प्रमुख कारण बना. कश्मीरी भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में पेश किए जाने से पाठ्यक्रम में आया एक बड़ा गैप भर गया है. कश्मीरी भाषा प्राथमिक से लेकर कक्षा 8 तक अनिवार्य था और अन्य सभी विषयों की तरह ही कक्षा 10 के बाद एक वैकल्पिक विषय था. इस महत्वाकांक्षी संघर्ष के रास्ते में न केवल तकनीकी मुद्दे बल्कि नौकरशाहों के प्रतिरोध भी हुए, लेकिन मौजूदा शिक्षा मंत्री अल्ताफ बुखारी ने रास्ता निकाल ही लिया.

नौकरशाहों का पूर्वग्रह कश्मीरी भाषा को अपना सही स्थान देने में लंबे समय से आड़े आ रहा था. कश्मीर का सबसे पुराना, सबसे बड़ा सांस्कृतिक और साहित्यिक संगठन अदबी मरकज कमराज ने एक लंबे संघर्ष का नेतृत्व किया. इसके बाद साल 2000 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने स्कूलों में इसे फिर से शुरू किया था. सरकार और निजी स्कूल की कक्षाओं में इस भाषा को वापस लाने में एक दशक से अधिक समय लग गया, लेकिन यह तब भी 9 वीं और 10 वीं कक्षा में नहीं आ पाया था.

कश्मीरी जम्मू और कश्मीर राज्य में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. यह 22 जिलों में से 18 में बोली जाती है. यह पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर में भी बोली जाती है. मुजफ्फराबाद के एजेके मेडिकल कॉलेज के एक संकाय सदस्य डॉ. मोहसिन शाकल की भाषा और साहित्य में रुचि है. उन्होंने एक सर्वे किया, जिसकेमुताबिक 14 अगस्त 1947 से पहले के राज्य में कश्मीरी बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. 1947 से क्षेत्रीय भाषाई जनसांख्यिकी में बदलाव को देखते हुए डॉ. शकील जम्मू-कश्मीर में जिला स्तर पर स्वदेशी भाषा बोलने वालों की संख्या का अनुमान लगाना चाहते थे. एक अध्ययन के अनुसार, पहले के जम्मू-कश्मीर राज्य के लोग बहुसंख्यक समाज होने के कारण कई स्वदेशी भाषा से संबंधित हैं.

अपनी तरह का यह पहला स्टडी जून 2014 में सार्वजनिक किया गया. यह दर्शाता है कि कश्मीरी 35 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती है. इसके बाद पहाड़ी/ पोथवारी (24 प्रतिशत) और डोगरी (18 प्रतिशत) है. सर्वेक्षण से पता चलता है कि इस क्षेत्र में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के प्रभाव से संभवतः क्षेत्रीय भाषा बोलने वालों की संख्या में गिरावट आई है. आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा कश्मीरी  पढ़ और लिख नहीं सकता था. अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ रहा था.

कश्मीरी को 8 वीं कक्षा में पढ़ाए जाने के बाद से यह प्रवृत्ति अब बदल रही है. विडंबना यह है कि बच्चों को उस भाषा के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जो वास्तव में उनकी मातृभाषा है. उनके माता-पिता अपने अंग्रेजी और उर्दू कौशल को लेकर चिंतित रहते हैं. वे इस विश्वास के तहत परिश्रम करते हैं कि दुनिया में प्रतिस्पर्धा करने और कुलीन स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए यह आवश्यक है.

कश्मीरी के लिए असली चुनौती समाज से ही आती है. इसे पहचान के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. इसके लिए बच्चों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए. यह प्रणाली ही ऐसी है, जो उन्हें अपनी भाषा को गले लगाने की इजाजत नहीं देती है. इस भाषा के पतन के लिए जिम्मेदार है बदलती शिक्षा प्रणाली की मांग, जो परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है. कश्मीरी भाषा के संघर्ष का यही कारण है.

कश्मीरी, जो इस क्षेत्र की सबसे पुरानी और सबसे अमीर भाषाओं में से एक है, को फारसी और संस्कृत की बहन भाषा मानी जाती है. 14 वीं शताब्दी के कश्मीरी संत और कवि लाल देद अपनी कविता के लिए कश्मीरी भाषा के लिखित शब्द का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे. उनके बाद कश्मीरी संत शेख-उल-आलम थे. लेकिन कश्मीरी एक भाषा के तौर पर बहुत पहले से अस्तित्व में थी. इतिहासकार मानते हैं कि यह 2000 वर्ष पुरानी भाषा है और इसकी लिपि 900 वर्ष पुरानी है. यह इसे दक्षिण एशिया की कई लोकप्रिय भाषाओं (उर्दू, हिन्दी) की तुलना में पुराना बनाता है. विख्यात साहित्यकार मोहम्मद यूसुफ टैंग के अनुसार, कश्मीरी भाषा के निशान 400 ई.पू. तक मिलते हैं और यह चरक-संहिता में भी पाई जाती है. यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा का एक व्यापक पाठ है, जिसका श्रेय चरक को दिया जाता है.

कश्मीरी शब्द राजतरंगिनी (रिवर ऑफ किंग) में भी मिलता है जिसे 1148 में कश्मीरी ब्राह्मण कल्हण द्वारा संस्कृत में लिखा गया था. यह कश्मीर के इतिहास को अपने में समेटे हुए है. यह अपनी तरह का सबसे बेहतर और प्रामाणिक काम माना गया है. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, यह किताब कश्मीर के इतिहास के पूरे दौर को अपने में समेटे हुए है.

उस खतरे को समझना महत्वपूर्ण है, जो 2500 से अधिक भाषाओं के सामने है. यूनेस्को द्वारा 2009 में पेरिस मुख्यालय से जारी दुनिया की लुप्तप्राय भाषाओं के व्यापक डेटाबेस में इस मुद्दे को रेखांकित किया गया है. विशेषज्ञों की टीम के अनुसार, 2500 भाषाएं खतरे में हैं, जिनमें 500 से अधिक तकरीबन लुप्तप्राय हैं. इनमें 199 ऐसी भाषाए हैं, जिसे बोलने वालों की संख्या 10 से भी कम है. यह आश्चयर्र्जनक है कि इक्वाडोर के अंडोवा भाषा को बोलने वालों की संख्या केवल 10 है. हाल में स्थानीय लोगों द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया है. अब तक उन्होंने लगभग 150 शब्द इकट्‌ठेे किए हैं और शब्दों की तलाश जारी है. एक और चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन से पता चलता है कि दुनिया भर में एक दर्जन से अधिक भाषाओं के पास केवल एक मातृभाषा बोलने वाले ही हैं. कुछ भाषाएं जल्द ही मरेंगी, जबकि अन्य को फिर से जीवित करने के लिए युवा पीढ़ी उत्सुक है.

9 वीं और 10 वीं कक्षा में कश्मीरी भाषा लाए जाने से यह उम्मीद की जा रही है कि कश्मीरी भाषा का विकास होगा.   चुनौतियां फिर भी रहेंगी, लेकिन मौजूदा कदम अपने प्राचीन गौरव को बहाल करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगा.

-लेखक राइजिंग कश्मीर के संपादक हैं.

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