कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। यह पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता है। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। वामन पुराण और अन्य ग्रंथों में चंद्रमा की पूजा का वर्णन किया हुआ है। इसके अलावा छांदोग्य उपनिषद में भी चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना का महत्व बताया गया है। 17 अक्टूबर, गुरुवार को ये व्रत किया जाएगा। चतुर्थी तिथि के देवता भगवान गणेश हैं। इसलिए इस दिन चतुर्थी देवी के साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है।
गणेश तथा चंद्रमा का होता है पूजन
करवा चौथ यानी पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाने वाला व्रत। छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर भेंट करनी चाहिए।
पत्नियों का व्रत देवताओं की जीत
एक बार देवताओं और दानवों के युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ब्रह्मदेव ने इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को यानी शक्तियों को व्रत रखने की सलाह दी। कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा। व्रत करने से सभी शक्तियां एकत्र हुई। जिससे युद्ध में देवताओं की जीत हुई। यह सुन सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई।