जिस बिहार में अस्सी के दशक की शुरुआत में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन ने, आज़ादी बाद पहली बार भारत में कांग्रेस की सरकारों को केंद्र से लेकर भारत के विभिन्न राज्यों में आपदस्थ करने का सुत्रपात शुरू किया गया था ! उसी बिहार के समस्तीपुर जिले के, कर्पूरी ग्राम में 24 जनवरी 1924 के दिन, लेकिन यह तारीख अधिकारीक तारीख नही है ! जैसे कि हमारे देश के ज्यादातर बहुजन समाज के अभिभावक, अनपढ होने की वजह से अमूमन स्कूल के मास्टरजी के भरोसे से दाखिला कराने के समय, मास्टरजी की मर्जी से, उन्हें जो भी तारीख सुविधाजनक लगती थी ! उसे वह स्कूल के रजिस्टर के लिख लेते थे ! और वही उस विद्यार्थिकी जन्मतिथि मानी जाती है ! वही बात कर्पूरी ठाकुरजी के भी जन्मदिन के साथ लागू है ! और हमारे देश में ज्यादा तर लोगों की जन्मतिथि उसिको मानकर हम लोग चलते हैं ! मै खुद भी उनमें से एक हूँ ! तो कर्पूरी ठाकुर के जन्मशताब्दी वर्ष में हम लोग उन्हें याद कर रहे हैं !
कुलमिलाकर उन्हें सिर्फ 64 साल का समय अपनी जीवन यात्रा के लिए मिला है ! शुरू के 24 सालों को कम कर दे, क्योंकि वह उनके शिक्षा – दिक्षा में गए होंगे ! लेकिन बचे हुए चालिस सालों के दौरान, वह अठारह बार (आजादी के पहले दो बार ! और बाकी आजादी के बाद जेल में गए ! ) और एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं ! डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायियों में से कुजात लोहियावादी थे ! और डाक्टर साहब के भारतीय सामाजिक जीवन तथा राजनीतिक जीवन में भी जो विषमता हजारों वर्ष से चली आ रही, उसे बदलने को लेकर “सौ में पांवों पिछडा साठ” के सिद्धांत का बिहार की राजनीति में का जागृत उदाहरण थे, कर्पूरी ठाकुर !
जैसे मैने शुरू में ही लिखा है, कि जिस बिहार में 1972-73,74 के दौरान सबसे पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत हुई है ! लेकिन उसी समय पचास साल की उम्र के, कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवन के पच्चीस साल पूर्ण करने के बावजूद ! और भारत की आजादी के बाद पहले चुनाव से अपनी मृत्यु के समय तक, वह चुनाव की राजनीति में लगातार चुनाव जितकर आते रहे ! लेकिन मरने के समय उनके घर की परिस्थिति वैसी ही थी ! जैसे उनके जन्म के समय में थी ! हालांकि वह बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री जैसे सर्वोच्च पदों पर रहे थे !
हमारे देश में एक ग्रामपंचायत सदस्य भी चुनकर आने के बाद, किस तरह से अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के काम में लग जाते हैं ! यह हमारे देश के बच्चा-बच्चा भी जानने लगा हैं ! लेकिन कर्पूरी ठाकुर एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पदपर रहने के बाद भी ! उन्होंने अपने और परिवार के लिए संपत्ति बनाने का काम नही किया ! यह भारतीय राजनीति में का अनूठा उदाहरण है ! अन्यथा दिन में दसियों बार कपड़े बदलने वाले ! और महंगा से महंगा हवाई जहाज खुद के मौजमस्ती के लिए खरीदने वाले,और अपने जीवन में चाय बेचने का राजनीतिक केपिटल करने वाले जुमले बाज सत्ताधारियों के रोजमर्रे के खर्च और अपने दाढी के एक- एक बाल को संवारने के लिए कर्पूरी ठाकुर जैसे नाई के व्यवसाइयों के सालाना आय के बराबर, या हमारे देश के गांव के सालाना बजट के बराबर खर्च करने वाले पाखंडीयो की तुलना मे, ऐसे समय में, कर्पूरी ठाकुर के जीवन एक किंवदंतियों के जैसा लग सकता है !
मुझे उनसे मिलने का मौका जीवन में एक ही बार, और वह भी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में, शायद 71 – 72 के दौरान बंगला देश बनने के समय वह मुख्यमंत्री थे ! और मध्य प्रदेश में अरिफ बेग संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता थे ! तो उन्होंने किसी कार्यक्रम में उन्हें भोपाल बुलाया था ! और मै राष्ट्र सेवा दल के काम के लिए, सविता वाजपेयीजी के प्रोफेसर कॉलनी के मकान में ठहरा हुआ था ! तो पता चला कि आज भोपाल के एम एल ए गेस्ट हाऊस मे बिहार के मुख्यमंत्री श्री. कर्पूरी ठाकुर की प्रेस कांफ्रेंस है ! तो मै प्रोफेसर कॉलनी से पैदल ही टहलता हुआ चला गया ! और उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जैसे ही समय मिला ! तो मैंने भी उन्हें एक प्रश्न पुछा, कि “बंगला देश की मुक्तिवाहिनी में आप किशनगंज के तरफसे लुंगी – बनियान पहनाकर कुछ जवानों को बंदुको के साथ भेज रहे हैं ! और उन जवानों को बंदुको के साथ मदद कर रहे ऐसी खबर हैं ! क्या यह सही है ? ” कर्पूरीजी ने तपाक से कहा कि, ” बिल्कुल सही खबर हैं ! क्योंकि पाकिस्तान की सेना पूर्व पाकिस्तानी लोगों के साथ अत्याचार कर रही है ! और मै कैसे चुपचाप देख सकता हूँ ? क्योंकि हमारे भी प्रदेश में कई शरणार्थियों ने आश्रय लिया है ! तो मै अपनी तरफ से बंगला देश की मुक्ति के लिए जो भी कुछ बन सकता है, मै वह कर रहा हूँ !” और यही खबर की मुख्य लाईन दुसरे दिन भोपाल के अखबारों में प्रथम पृष्ठों पर छपी भी ! लेकिन मैंने अपने जीवन में उसके पहले मेरे कॉलेज के स्नेहसंमेलन के दौरान महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री. वसंतराव नाईक को भी देखा था ! और कर्पूरीजी को भी देखकर लगा कि जमीन अस्मान का फर्क है ! नाईक साहबों के जैसे लगे ! और कर्पूरीजी एकदम खाटी किसान जैसे ! साधारण धोती और कुर्ता पहन कर कोई भी आज नखरे नही ! मुझे तो मुख्यमंत्रीही नही लगे ! इतना सिधा – साधा भला कोई मुख्यमंत्री होता है ? क्योंकि मैं खुद उस समय सिर्फ अठारह साल का कॉलेज के द्वितीय वर्ष में पढाई करने वाला एक लडका था ! और एक नखरेबाज मुख्यमंत्री को उसी के आसपास देख चुका था !
उनकी सादगी का एक उदाहरण मैंने चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी के दौरान अपने खुद के अनुभव से देखा है ! 2017 मे राष्ट्र सेवा दल के तरफसे आयोजित, चंपारण से पटना की यात्रा के दौरान, समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गांव में, एक झुग्गीनुमा मकान-मालिक के यहां पर चाय के लिए ठहरे थे ! तो उन्होंने कहा कि “आप जिस जगह पर बैठे हैं ! उसी जगह पर कर्पूरी ठाकुर भी इस रास्ते से जाते हुए हमेशा ही ठहरकर चाय चूडा खाते थे !” कहने वाले सज्जन के शरीरपर सिर्फ कमर तक गमछा और उपरके शरीर का हिस्सा खुला ! दरिद्रता और कुपोषण से अस्थिपंजर शरीर ! लेकिन कर्पूरी जी इसी जगह बैठ कर चायचूडा खाते थे ! यह बात बताते हुए , उनके चेहरे पर की चमक लाखो अमिरो की अमिरी को फिकि करने वाली थी ! उस एक महिने की यात्रा में, हम शेकडो जगहों पर ठहरे, और चाय नास्ता तथा खाना खाते हुए, ठहरने के भी अनेक अनुभव है ! लेकिन समस्तीपुर जिले के उस गांव की उस ‘दरिद्रिनारायण’ के घर की यह बात मुझे लगता है, अभी – अभी घटि है ! वह पुरा दृश्य चलचित्रपट के जैसा मुझे यह लिखते हुए दिखाई दे रहा है !
दुसरा प्रसंग जब वह मुख्यमंत्री के पद पर कार्यरत थे ! उस समय की बात है, और यह बात मुझे हमारे बोधगया भूमिमुक्ति आंदोलन के साथियों ने बताइ है ! शायद 1977-78 के समयकी है ! “हमारे संघठन ‘छात्र युवा संघर्ष वाहिनी’ का बोधगया महंत के जमींदार के पास, हजारों एकड जमीन को लेकर, भूमिहीन खेत मजदूरों को जमीन बाँटने के लिए आंदोलन जोरों पर था ! और उसी मांग को लेकर पटना विधानसभा के बाहर कुछ दूरी पर स्थित, पंडाल में हम लोगों का धरना जारी था ! और रात के समय आधे-अधूरे रोशनी में, धोती – कुडते वाले, मुँहपर मुछ वाले, एक आदमी को पैदल ही चल कर आते हुए, हमारे पंडाल में आकर बैठ गया ! तो हमारे ध्यान में आया, कि यह तो मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर है ! हम सभी के सभी हैरान रह गए ! और फुसफुसाती आवाज में उन्होंने जो कहा ! वह और भी अधिक हैरान करने वाली बात थी ! उन्होंने कहा कि “आप लोगों की मांग के साथ मै शतप्रतिशत सहमत हूँ ! बिहार में सिलिंग कानून के बावजूद , बहुत सारे जमींदारों ने चालाकी करते हुए, अपने नाते रिश्तेदारों तथा नौकर – चाकरो से लेकर कुत्ते – बिल्लीयो के तक नाम पर ! जमीन करते हुए, रेकॉर्ड बनाने की चालाकी की है ! इसलिए आप लोगों ने बोधगया महंत के खिलाफ जो आंदोलन की शुरूआत कीया है ! उसे मेरा उसे पूरा समर्थन है ! लेकिन मै भले मुख्यमंत्री पदपर हूँ, लेकिन विधानसभा के ज्यादातर सदस्यों को इन्हीं जमिंदारो ने धन मुहैया करा कर उन्हें विधानसभा में चुनाव जिताकर भेजा है ! इसलिए मै खुद लाचार हूँ ! आप लोग अपने आंदोलन को और मजबूती से अधिक तीव्रता से बढाईये तो मै विधानसभा में आंदोलन का हवाला देते हुए ! जमीन अधिग्रहण कानून को बदलने का प्रयास कर सकूँ !
साथियों यह बात आजादी के बाद भारत की केंद्रीय सरकार के सामने भी थी ! जवाहरलाल नेहरू की लाख इच्छा थी कि “खेतिहर मजदूरों को जमीन का आवंटन किया जाये !” लेकिन उनके भी सामने कर्पूरी ठाकुर जैसे ही धर्म संकट रहा है ! और इसिलिये साठ के दशक में आचार्य विनोबा भावे ने विश्व प्रसिद्ध भूदान आंदोलन की शुरूआत की थी ! तो उन्होंने आचार्य विनोबा भावे को पूरि तरह से मदद की है ! भले ही डॉ. राममनोहर लोहिया ने उन्हें सरकारी संत कहते हुए ! और भी आलोचना की है ! लेकिन हमारे देश में पचास लाख एकड से अधिक जमीन भूदान आंदोलन के दौरान बगैर जोर जबरदस्ती करते हुए सिर्फ प्रार्थना और अपनी वाणी का प्रयोग करते हुए ! लेने का विश्व भर में एक मात्र उदाहरण है ! और आज भी देश विदेश के कई अकादमिक अनुसंधान करने वाले लोग इस आंदोलन के उपर शोधकार्य कर रहे हैं !
हमारे देश के अदालतों में सब से ज्यादा केसेस जमीन जायदाद को लेकर ही चल रहे हैं ! एक दो फिट जमीन को लेकर मारामारी से लेकर हत्या तक मामले होना आम बात है ! और पीढी दरपिढी के दुष्मनी के किस्से हर गांव में मौजूद है ! लगता है कि जमीन को लेकर हमारे देश के लोगों में अजिबोगरिब आकर्षण की वजह से जमीन को लेकर झगड़े और उन्ही झगड़े के कोर्ट में केसेस की भरमार होती है ! एक दिन कलकत्ता हाईकोर्ट के कॅरिडॉर से कुछ वकिल मित्रों के साथ चलते हुए, उन्होंने एक जूट के झोला लेकर जमीन पर बैठे हुए, फटेहाल आदमी के तरफ इशारा करते हुए कहा कि “यह हम लोग कोर्ट में प्रॅक्टिस करने के पहले से ! शायद आजादी के भी पहले से ही ! अपने जमीन जायदाद को लेकर कोर्ट में आया हुआ है ! आज देखिये किस दयनीय स्थिति में है !
कर्पूरी ठाकुर ने अपने खुद के पुश्तैनी पेशा नाई के कामों से ही अपने जीवन को सवारा है ! वह मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके रिश्तेदारों में से कोई उनके पास पहुंच कर सरकारी नौकरी दिलाने के लिए उन्हें विनती की तो उन्होंने अपनी जेब से सौ रुपए का नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा कि “उस्तरा, कैची कंधी लेकर अपना पुश्तैनी काम करो ! यहां हमारे राज्य के सभी लोगों को नौकरी देने की स्थिति नहीं है !” इस तरह के राजनेता कितने हैं ?
बगैर सत्ताधारी बने भ्रष्टाचार से मुक्त रहना बहुत आसान है ! क्योंकि अपने काम करने के लिए कोई आपके पास क्यों आएगा ? लेकिन सत्ता में पहुंचने के बाद वह भी अपने जीवन का आधे से अधिक समय से सत्ताधारी बने रहने का अनुभव कर्पूरी ठाकुर के पास रहते हुए ! उन्होंने अपने और अपने परिवार के लिए किसी भी प्रकार की चल – अचल संपत्ति नही बनाई ऐसे कितने लोग भारतीय राजनीति में होंगे ?
लेकिन बिहार को जातिवादी – सामंतवादी प्रदेश के रुप में काफी बदनाम किया जाता है ! लेकिन डॉ. राम मनोहर लोहिया के अगडे – पिछडे सिद्धांत की वजह से, आजादी के बाद इसी बिहार में भोला पासवान शास्रि, राम सुंदर दास,जितराम मांझी जैसे दलितों से लेकर कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद यादव से लेकर आधा दर्जन से अधिक दलितों और पिछडी जाती तथा अब्दुल गप्फूर जैसे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मुख्यमंत्री या बिहार की राजनीति में महाराष्ट्र के मराठी भाषी मधू लिमये, तथा कानडी ख्रिश्चन, जॉर्ज फर्नाडिस को लोकसभा में भेजने वाले लोगों को कौन जातिवादी या भाषाओं के आधार पर राजनीति करने वाले बोलेंगे ?
आज भी तथाकथित गायपट्टे में घोर सांप्रदायिक दल सत्ताधारी बनाया जा रहा है ! लेकिन मुझे विश्वास है, कि बिहार उसके लिए अपवाद है ! बिहार के 1974 के आंदोलन ने ही भारत की राजनीति में बदलाव किया है ! और आने वाले समय में उसी बिहार से हमारे देश की छाती पर घोर सांप्रदायिक और पुंजिपतिमयोकी समर्थक फासिस्ट केंद्र सरकार को बेदखल करने का ऐतिहासिक काम, हमारे देश के सबसे पिछड़े, लेकिन सबसे राजनीतिक सोच – समझ रखने वाले ! जयप्रकाश तथा कर्पूरी ठाकुर के बिहार से ही सुत्रपात होगा ! और कर्पूरी ठाकुर की शताब्दी में, इससे बढ़कर कोई दूसरी आदरांजलि उन्हें हो ही नहीं सकती ! कर्पूरी ठाकुर के जन्म को सौ वर्ष होने पर उन्हें विनम्र अभिवादन के साथ !