ध्यप्रदेश सरकार ने राज्य में एक अजीब परंपरा की शुरुआत कर दी है. सरकार ने पहले तो ग़रीब लड़कियों की शादी की ज़िम्मेदारी यह कहकर उठाई कि प्रदेश की हर लाड़ली लक्ष्मी का भविष्य भाजपा सरकार में सुरक्षित होगा. इसके बाद अपनी इन्हीं लड़कियों को शादी से ऐन पहले सार्वजनिक रूप से कौमार्य परीक्षण के लिए बाध्य कर दिया. सामूहिक समारोह में अपने भविष्य का सपना संजोए पहुंची शहडोल जिले की लगभग पौने दो सौ लड़कियों को समारोह स्थल पर ही कन्यादान योजना का लाभ सामाजिक अपमान के रूप में मिला.
सभ्य समाज को शर्मसार कर देने वाली यह घटना 30 जून को शहडोल जिले में आयोजित किए गए सामूहिक विवाह के दौरान घटी. इस अपमान का घूंट सरकारी ख़र्च पर शादी करने पहुंचीं राज्य की 152 बेटियों को पीना पड़ा. जिन्होंने इसका विरोध किया, उन्हें शादी मंडप में नहीं बैठने देने की धमकियां दी गईं. इस कार्यक्रम में भाग लेने वाली प्रत्येक कन्या को उपरोक्त परीक्षण के बाद ही कार्यक्रम में शामिल होने की इजाज़त दी गई. सामाजिक रूप से अपमानित करने की इस घटना के साक्षी बने शहडोल संभागीय मुख्यालय के प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी. ग़ौरतलब है कि गरीबों के  सम्मान के लिए शिवराज सिंह सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं की धज्जियां अधिकारी और कर्मचारी लगातार उड़ा रहे हैं.
दरअसल, शहडोल संभागीय मुख्यालय सोहागपुर स्थित पॉलीटेक्निक कॉलेज में आयोजित इस समारोह में जिले के व्यौहारी, गोहपारू, जैसिंहनगर और बुरहाल जनपत के 152 से अधिक जोड़े शामिल होने के लिए आए थे. जोड़ों के पंजीयन के समय ही ए.डी.एम. सोहागपुर वीएन. राय ने एक मौखिक आदेश दिया, जिसमें उपरोक्त परीक्षण अनिवार्य था. यह आदेश सुनते ही  विवाह के लिए आई हुई कन्याओं और उनके परिजनों में रोष फैल गया. कन्याओं ने इस तरह की अपमानजनक जांच कराने से सीधे-सीधे मना कर दिया. इससे माहौल तनावपूर्ण बन गया. इस पर प्रशासन की ओर से कहा गया कि कन्यादान योजना के तहत दी जाने वाली सामग्री उपरोक्त जांच के बाद ही मिलेगी. ग़रीब घरों से आई इन युवतियां के सामने ए.डी.एम. की बात मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 18 से 30 साल की कन्याएं आई थीं.
इन कन्याओं की जांच के लिए समारोह स्थल पर ही गर्भ परीक्षण का इंतजाम किया गया था और शहडोल की स्त्री रोग विशेषण डॉ. रीना गौतम इसी कार्य के लिए विशेष तौर पर बुलाई गई थीं. दरअसल, इस घटना से चार दिन पहले यानी 26 जून को इसी जिले के व्यौहारी जनपद में सामूहिक विवाह के दौरान मंडप में ही प्रसव की एक घटना घट गई थी. इससे प्रशासन की बड़ी किरकिरी हुई थी. ऐसी घटना फिर न होने देने के लिए जिला प्रशासन ने सरकारी योजना के तहत शादी के लिए आने वाली सभी ग़रीब कन्याओं का गर्भ परीक्षण आवश्यक करा दिया. राज्य शासन द्वारा इस कार्यक्रम के तहत दी जाने वाली सहायता लेना असल में कन्यादान योजना में भाग लेने वाले ग़रीब परिवारों के लिए मजबूरी है. इसी मजबूरी के कारण कन्यादान और लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं में ग़रीब परिवारों की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शहडोल जिले में हुई इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है. उन्होंने कहा है कि कन्यादान जैसी योजना को भी भ्रष्टाचार का साधन बना लिया गया है और इस भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए कन्याओं का कौमार्य परीक्षण करना घोर अपमान है. प्रतिपक्ष की नेता जमना देवी ने भी इसकी निंदा की है. उन्होंने कहा कि, इस तरह की घटना उन्होंने न देखी है, न सुनी है. यह नारी जाति का अपमान है और इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजय वर्गीय उपरोक्त परीक्षण में कुछ भी ग़लत नहीं मानते. उनका कहना है कि लोग इस योजना का ग़लत तरीके से लाभ लेने लगे हैं, जिसे रोकना शासन का कर्तव्य है. हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस तरह के किसी परीक्षण से इंकार किया है. उनके मुताबिक कन्यादान योजना के तहत सामूहिक विवाह से पहले लड़कियों के जो टेस्ट किए गए थे, वे कौमार्य परीक्षण (वर्जिनिटी टेस्ट) नहीं थे. वह स़िर्फ औपचारिक मेडिकल जांच थी और महिला डॉक्टर ने लड़कियों से कुछ ही सवाल पूछे थे. शहडोल के जिलाधिकारी नीरज दुबे ने भी यूं तो मुख्यमंत्री से सुर मिलाया है, लेकिन लगे हाथ उन्होंने यह भी माना है कि कुछ क्लिनिकल टेस्ट कराए गए थे.
बहरहाल, राज्य की बेटियों के साथ हुई इस अपमानजनक व्यवहार को लेकर राज्य सरकार चौतरफा आलोचना की शिकार हो रही है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी उससे जवाब तलब कर लिया है. संसद तक में मामला उठ जाने से इस मामले में लीपापोती की भरपूर कोशिश शुरू हो गई है.

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