kanwarविश्‍व प्रसिद्ध श्रावणी मेले के समापन के बाद प्रशासनिक तौर पर कांवड़ियों के लिए उपलब्ध कराई गई सुविधाओं और सुरक्षा व्यवस्था की सच्चाई सामने आ गई है. बोलबम के जयकारे के बीच अनेक परेशानियों के बावजूद शिवभक्त कांवड़िए कावड़ लेकर देवघर पहुंचे. प्रशासनिक तौर कांवड़ियों को अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने का दावा किया जाता रहा है, लेकिन सुल्तानगंज से देवघर के बीच झपटमार और अपराधियों का बोलबाला रहा. झपटमारों और अपराधियों ने कई कांवड़ियों को अपना निशाना बनाया. देवघर पहुंचे कांवड़ियों का दर्द सुनकर पत्थर दिल इंसान भी पिघल जाए, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. कांवड़ियों की सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन कांवड़ियों के आराम और रात्रि विश्राम के लिए बनाए गए भवन जर्जर हालत में हैं, तो सड़के गड्ढों ओर पत्थरों से भरी हुई हैं. रास्ते में खुली दुकानों के सामानों का मूल्य निर्धारण कर दिया जाता है, लेकिन दुकानदार प्रशासन को ठेंगा दिखाकर कांवड़ियों को मनमाने मूल्य पर उनके जरूरत के सामान देते हैं. सुल्तानगंज से देवघर के बीच कांवड़ियों को होने वाली समस्याओं से न बिहार सरकार और न ही झारखंड सरकार छुटकारा दिला पाई. कांवड़ लेकर देवघर (बैजनाथ धाम) जाने वाली सीवान की राखी कुमारी ने बताया कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद वह लगभग दस वर्षों से देवघर आ रही हैं, लेकिन कभी भी कांवड़ियों को कोई सुविधा नहीं दी जाती है. रास्ते में समस्याएं ही समस्याएं मिलती हैं. कांवड़ लेकर देवघर जाने वाले निशांत कुमार बताते हैं कि कांवड़िया पथ पर बालू होने की वजह से कांवड़िए तपते बालू पर जाने को मजबूर हैं. प्रशासन की तरफ से उस पर कभी पानी का छिड़काव नहीं किया जाता. एक और कांवड़िए अभिषेक का कहना है कि विभिन्न सामानों के मूल्य निर्धारण के बाद भी भोजन अस्सी से नब्बे रुपये प्लेट मिलता है और प्रति कप चाय की कीमत दस रुपये वसूली जाती है. यहां तक की दवाईयां भी अधिक से अधिक मूल्यों पर दी जाती हैं. वहीं चंदन कुमार का कहना है कि पूरे रास्ते में कहीं पुलिस नजर नहीं आर्ई और इसका फायदा उठाकर चोर और असामाजिक तत्वों ने लोगों के सामान और पैसे खूब उड़ाए. सरकार कह रही थी कि सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम है. यह सब दिन के उजाले में हो रहा था, रात्रि की तो बात ही छोड़ दीजिए. देवघर आए कई भक्तों ने रास्ते में होने वाली परेशानियों को बताया. सुल्तागंज से देवघर की 96 किमी की यात्रा कांवड़ियों को असहनीय पीड़ा देती है. अगुवानी से स्टीमर सेवा, कोसी क्षेत्र से देवघर के लिए रेल सेवा न होने की वजह से शिवभक्त जान हथेली रखकर गंगा नदी पार करते हैं. खगड़िया जिले के अगुवानी घाट से नाविक नावों पर क्षमता से अधिक लोगों बैठाकर नदी पार कराते हैं, इस पर भी प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता, जिसकी वजह से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. लेकिन भागलपुर के आयुक्त उदय कुमार का कहना है कि कांवड़ियों की सुख-सुविधा के लिए पूरी व्यवस्था की गई थी. उनका कहना है कि अगर ओवरलोडेड नावों का परिचालन हुआ है, तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. कांवड़िए रास्ते में होने वाली समस्याओं के बीच प्रति वर्ष देवघर जाते हैं. लेकिन न बिहार सरकार और न ही झारखंड सरकार को कावड़ियों की होने वाली समस्याओं से कोई लेना देना है.

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