रोनाल्ड रीगन इस बात को लेकर कभी स्पष्ट नहीं थे कि वह वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े थे या इस संबंध में उन्होंने स़िर्फ फिल्म में अभिनय किया था. अभिनेता एक ऐसी दुनिया में लगातार जीते हैं, जहां तथ्य और कल्पना का समावेश इस तरीके से होता है, जिसे अलग रखना कठिन है. केवल एक बार मैं संजय दत्त से मिला, तब मुझे लगा कि वह बहुत हद तक इसी परंपरा से आते हैं. अब यह प्रतीत होता है कि वास्तविकता बहुत ही क्रूर तरीके से उन्हें पकड़ चुकी है. यह वास्तविकता बहुत ही भारतीय किस्म की है. 20 साल लग गए, उनके अपराध पर अंतिम निर्णय आने में. लोग 1993 के दंगों का संदर्भ भूल चुके हैं.
मुंबई पर हमले यानी 26/11 और 9/11 के बाद अब बम विस्फोटों का अर्थ केवल एक ही रह गया है, इस्लामवादी आतंकवाद. बमुश्किल यह याद किया जा सकता है कि मुंबई बम विस्फोट बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद शुरू हुए तीव्र सांप्रदायिक दंगे के बाद का एक अध्याय था. दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के दौरान भारत के कई शहरों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ उक्त दंगे फैले केंद्र की कांग्रेस सरकार और राज्य सरकारें उस वक्त हाथ पर हाथ धरे बैठे रहीं, जब मुसलमानों पर हिंदू भीड़ ने हमला किया था..
मुंबई में शिवसेना, भाजपा और कांग्रेस की ओर से मुसलमानों का कत्लेआम जारी था. (मैं जनवरी 1993 के दौरान मुंबई में एक व्याख्यान देने के लिए मौजूद था और मुझे होटल ताज से पुलिस सुरक्षा में हवाई अड्डे के लिए भेजा गया.) यह सब श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट में दर्ज है. इस रिपोर्ट में दर्ज नामों में से किसी को भी सजा नहीं मिली है. संजय दत्त का परिवार भारतीय धर्मनिरपेक्षता का एक प्रतिमान है. उनकी परनानी एक ब्राह्मण परिवार की बाल विधवा थीं, जो घर से चली गई थीं. फिर वह मुसलमान बन गईं और इलाहाबाद में गायन व्यवसाय से ज़ुड गईं. जद्दन बाई ने एक हिंदू (जो बाद में मुसलमान बन गया) से शादी की और उनकी बेटी प्रसिद्ध अदाकारा नरगिस थीं, जिनके दो नाम थे, फातिमा और तेजेश्वरी.
नरगिस ने बलराज (सुनील) दत्त से शादी की, जो मोहयाल ब्राह्मण समुदाय से आते थे और यह समुदाय कर्बला के युद्ध में भी भाग ले चुका है. इन दोनों की शादी आर्य समाज विधि से हुई और शादी के समय नरगिस ने अपना नाम तेजेश्वरी रखने की घोषणा की. जब 50 साल की उम्र में उनका निधन हुआ, तब हिंदू और मुस्लिम पुजारियों में इस बात पर मतभेद था कि उनका अंतिम क्रियाकर्म कैसे हो. अंत में यह कर्म सार्वदेशिक तौर-तरीके से हुआ.
संजय दत्त को इस बात के लिए मा़ङ्ग किया जा सकता है कि वे यह नहीं जानते कि वह हिंदू हैं या मुसलमान, लेकिन जनवरी 1993 में मुंबई गहरे रूप से विभाजित था. सुनील दत्त ने अपने परिवारजनों से ऐसे मुस्लिम परिवारों की मदद करने के लिए कहा, जो बेघर थे और जिन्हें मदद की ज़रूरत भी थी. इसी बात से दंगाई नाराज़ हो गए. संजय और उनकी बहनों को मुसलमान बताया गया, उनकी निंदा की गई और उन्हें धमकियां भी मिलने लगीं. इसलिए संजय दत्त ने एहतियाती उपाय के तौर पर बंदूकें लेने का फैसला किया.
इसमें कोई शक नहीं है कि संजय दत्त ने हथियार रखने संबंधी क़ानून का उल्लंघन किया. हालांकि, टाडा के तहत किसी भी तरह के अपराध से वह बरी कर दिए गए. सुनील दत्त ने अपने बेटे को बचाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुए. वह एक कांग्रेस सांसद थे, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री उनकी चिंताओं से चिंतित नहीं थे, इसलिए संजू को अंतत: जेल जाना पड़ा. उनकी अपील लंबित रही. 18 माह बाद वह बाहर आए और अपनी अपील के परिणाम की प्रतीक्षा करते रहे. अब अंतिम निर्णय आ चुका है और उन्हें अब एक बार फिर साढ़े तीन साल के लिए जेल जाना है.
संजय दत्त का परिवार भारतीय धर्मनिरपेक्षता का एक प्रतिमान है. उनकी परनानी एक ब्राह्मण परिवार की बाल विधवा थीं, जो घर से चली गई थीं. फिर वह मुसलमान बन गईं और इलाहाबाद में गायन व्यवसाय से ज़ुड गईं. जद्दन बाई ने एक हिंदू (जो बाद में मुसलमान बन गया) से शादी की और उनकी बेटी प्रसिद्ध अदाकारा नरगिस थीं, जिनके दो नाम थे, फातिमा और तेजेश्वरी.
क़ानून को अपना काम करना चाहिए. यदि मैंने क़ानून तोड़ा है, तो यह कोई बचाव नहीं है कि किसी और ने ऐसा किया और बच गया. भारत में अपराध और सजा की हालत कैसी है, यह सब जानते हैं (यहां भ्रष्टाचार और काले धन को वैध बनाने जैसे सिविल केस और ऐसे अन्य मामलों का उल्लेख करना ज़रूरी नहीं है). ऐसे कई सांसद एवं विधायक हैं, जिनका आपराधिक रिकॉर्ड है. प्रत्येक राजनीतिक दल की सूची में बलात्कारी, छेड़छाड़ करने वाले और हत्यारे शामिल हैं, जो अकड़ के साथ खुलेआम घूम रहे हैं. दंगे के बाद आई रिपोर्ट के बावजूद ऐसे किसी एक भी शख्स को सजा नहीं मिली, जिसका किसी राजनीतिक दल के साथ संबंध है. यदि आप एक अपराधी हैं, तो राजनीति सजा के ख़िलाफ़ सबसे अच्छा बीमा है. संजय दत्त क़ानून का पालन करने वाले एक नागरिक हैं. क्या यह एक दुर्लभ बात नहीं है?