मुख्यमंत्री रघुवर दास और अन्य भाजपा नेताओं को मालूम है कि इस बार वे बहुमत के अभाव का बहाना बनाकर बच नहीं सकते. इसलिए प्रचार माध्यमों में सरकार की कागजी उपलब्धियों के बखान में वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे. सौ दिन पूरे होने के अवसर पर सरकार ने बड़े-बड़े विज्ञापनों में अपनी उपलब्धियों की लंबी सूची जनता के सामने रखी. विज्ञापनों में स्थानीयता, ग्रेटर रांची, भ्रष्टाचार उन्मूलन, ईमानदार छवि, विकास योजनाओं, आदिवासी कल्याण और गुड गवर्नेंस आदि मुद्दों पर लिए गए फैसले जोरदार ढंग से रखे गए हैं. लेकिन, हक़ीक़त यह है कि इनमें से एक-दो मुद्दों को छोड़कर बाकी पर अब तक नेताओं-अधिकारियों की बैठकों, दौरों और प्रेस कांफ्रेंस से ज़्यादा कुछ हुआ नहीं है.
किसी भी सरकार के मूल्यांकन के लिए 100 दिन नाकाफी होते हैं, लेकिन उसकी दिशा और विजन के संकेत तो मिल ही जाते हैं. छह अप्रैल को झारखंड की रघुवर सरकार ने अपने कार्यकाल के सौ दिन पूरे कर लिए, लेकिन अब तक उसने किसी भी मोर्चे पर कोई ठोस शुरुआत नहीं की है. हां, इतना ज़रूर है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा के नेता अच्छी-अच्छी बातें खूब कर रहे हैं. बैठकों, बयानों और भाषणों के ज़रिये जनता को छद्म एहसास दिलाने की पूरी कोशिश की जा रही है कि सरकार राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए कृतसंकल्प है. जबकि सच्चाई यह है कि बिगड़ी क़ानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, मृतप्राय: प्रशासनिक ढांचा, खस्ताहाल बिजली व्यवस्था, दलाल संस्कृति, पलायन, लचर स्वास्थ्य सेवा एवं नक्सलवाद जैसी तमाम पुरानी समस्याओं के निदान की दिशा में सरकार अब तक कोई क़दम नहीं उठा सकी है. यही वजह है कि सरकार से आस लगाए बैठे विभिन्न संगठनों का धैर्य जवाब देने लगा है. अगले पखवाड़ेे से राज्य में एक बार फिर आंदोलनों की शुरुआत होने वाली है. शिक्षक संघ से लेकर बिजली यूनियन तक ने ताल ठोंक रखी है. बिजली कामगार, टेट उत्तीर्ण शिक्षक और पैरा शिक्षक आंदोलन की राह पर हैं. मदरसा शिक्षक भी आंदोलन के मूड में हैं. इसके अलावा अराजपत्रित महासंघ प्रोन्नति की मांग को लेकर आंदोलन करने वाला है, वहीं दूसरी ओर सचिवालय के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों में जबरदस्त नाराज़गी है. राज्य स्वास्थ्य सेवा (स्टेट हेल्थ सर्विस) के हज़ारों कर्मचारी भी चरणबद्ध आंदोलन करने वाले हैं.
मुख्यमंत्री रघुवर दास और अन्य भाजपा नेताओं को मालूम है कि इस बार वे बहुमत के अभाव का बहाना बनाकर बच नहीं सकते. इसलिए प्रचार माध्यमों में सरकार की कागजी उपलब्धियों के बखान में वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे. सौ दिन पूरे होने के अवसर पर सरकार ने बड़े-बड़े विज्ञापनों में अपनी उपलब्धियों की लंबी सूची जनता के सामने रखी. विज्ञापनों में स्थानीयता, ग्रेटर रांची, भ्रष्टाचार उन्मूलन, ईमानदार छवि, विकास योजनाओं, आदिवासी कल्याण और गुड गवर्नेंस आदि मुद्दों पर लिए गए फैसले जोरदार ढंग से रखे गए हैं. लेकिन, हक़ीक़त यह है कि इनमें से एक-दो मुद्दों को छोड़कर बाकी पर अब तक नेताओं-अधिकारियों की बैठकों, दौरों और प्रेस कांफ्रेंस से ज़्यादा कुछ हुआ नहीं है. बीस जनवरी को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आला अधिकारियों के साथ बैठक के बाद लोगों को आश्वस्त किया था कि कोयला-लोहा चोरी और ज़मीन की दलाली करने वाले और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को बर्खास्त किया जाएगा, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रदेश की मौजूदा राजनीति और प्रशासनिक ढांचे के मद्देनज़र इस बात की संभावना भी कम है कि आने वाले दिनों में कोई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. स्थानीयता को लेकर जो राजनीति गरमा रही है, वह इस आशंका को बल प्रदान करती है.
ग़ौरतलब है कि सरकार ने घोषणा कर रखी है कि राज्य के सबसे संवेदनशील मुद्दे स्थानीयता की नीति अप्रैल के अंत तक बना ली जाएगी, लेकिन इसे लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच जो राजनीतिक दांव-पेंच शुरू हो गए हैं, उन्हें देखकर तो यही लगता है कि आने वाले कई महीनों तक स्थानीयता की आड़ में ही सरकार अपना गुजारा करेगी. पिछले 14 वर्षों में यह पहला अवसर है कि जब झारखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है. झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायकों को अपने में मिला लेने के बाद अब भाजपा को गठबंधन साथी आजसू के सहयोग की भी ज़रूरत नहीं है. यही वजह है कि इस सरकार से लोगों की उम्मीद बहुत ज़्यादा है. प्रदेश की राजनीति के जानकारों का मानना है कि जनता का ध्यान विकास और गवर्नेंस के मुद्दे से हटाने के लिए स्थानीयता का सवाल गरमाए रखना सरकार के लिए सबसे सुरक्षित उपाय है.
हाल के दिनों में मुख्यमंत्री रघुवर दास के कुछ ऐसे बयान आए हैं, जो पार्टी लाइन से मेल नहीं खाते. बीते एक अप्रैल को उन्होंने अपने आवास पर आयोजित सरहुल मिलन समारोह में कहा कि झारखंड में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां बिहार-उत्तर प्रदेश के लोगों को नहीं, बल्कि झारखंडवासियों को ही मिलेंगी. पूर्व में नियुक्तियों में कुछ त्रुटियां रह गई थीं, जिन्हें वह मिलकर दूर कर रहे हैं.
इसके लिए सरकार स्थानीयता नीति बना रही है. उन्होंने कहा कि स्थानीयता नीति तय करने में राजनीति नहीं होगी, बल्कि लोगों से विचार-विमर्श करके नीति बनाई जाएगी. इसके लिए वह सर्वदलीय विमर्श करेंगे. आदिवासी संगठनों, राजनीतिक दलों एवं अनुसूचित जाति मोर्चा के लोगों से भी राय लेंगे. लेकिन, झारखंड नामधारी पार्टियों के तेवर देखकर तो यही लगता है कि राजनीति स्थानीयता के झूले पर ही झूलती रहने वाली है. पृथक झारखंड राज्य के लिए आंदोलन की अगुवाई करने वाले पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने एक बार फिर आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने तो अघोषित तौर पर अपने कार्यकर्ताओं को आंदोलन के लिए तैयार रहने का संदेश तक भिजवा दिया है.