भाजपा अध्यक्ष अमित शाह झारखंड में एक बार फिर कामयाब होते दिखने लगे हैं. जिस दल से भाजपा को खासा नुक़सान होना बताया जा रहा था, उससे समझौता करके शाह ने उसका अस्तित्व ही हाशिये पर ला दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा अपना मिशन-55 हासिल कर लेगी. आजसु अध्यक्ष सुदेश महतो के भाजपा के साथ तालमेल ने झारखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया. कई विधानसभा प्रभारी स्वयं को ठगा महसूस करते हुए अंतिम समय में दूसरे दलों में चले गए. विधानसभा चुनाव 2014 झारखंड की राजनीति में हमेशा याद किया जाता रहेगा. रंग बदलने में गिरगिटों को भी पीछे छोड़ देने वाले कई नेताओं को आम लोग एवं कार्यकर्ता हमेशा याद करेंगे.
झारखंड की राजनीति में दल-बदल कोई नई बात नहीं है, लेकिन अंतिम समय में जिस तरह से सुदेश महतो ने भाजपा के साथ समझौता किया, वह हैरान करने वाला था. केवल अपनी सीट बचाने और नई सरकार में मंत्री पद की लालसा के चलते आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने उन 73 विधानसभा प्रभारियों की मेहनत पर पानी फेर दिया, जिन्होंने लाखों रुपये खर्च करके पार्टी को सींचा-संवारा. आजसू के केंद्रीय महासचिव रहे तिलेश्वर साहू की शहादत भी सुदेश महतो भूल गए. हटिया के निवर्तमान विधायक नवीन जायसवाल, जो रांची में पार्टी का चेहरा बने हुए थे, का राजनीतिक करियर एक झटके में मटियामेट कर दिया गया. आजसू प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी थी और लोगों को भी उससे काफी उम्मीदें थीं, लेकिन भाजपा के साथ मात्र आठ सीटों पर समझौता करके आजसू अध्यक्ष ने सबकी उम्मीदें तोड़ दीं. हटिया विधायक नवीन जायसवाल एक जनसभा में मंच से भाषण देते समय अचानक फूट-फूटकर रो पड़े. अपने नेता को रोता देखकर वहां मौजूद लोग भी भावुक हो गए और उनकी आंखें गीली हो गईं. हटिया के डिबडीह पुल मैदान में आयोजित उक्त जनसभा में जायसवाल ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, मैंने पार्टी की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इलाकाई जनता और पार्टी पदाधिकारियों के बीच संवाद बनाए रखने के लिए हमेशा पुल का काम किया. इसके बावजूद मेरे समर्पण एवं सेवा-भाव का यह नतीजा देखने को मिला. जायसवाल ने कहा कि उन्होंने गहने और ज़मीन बेचकर हटिया से उपचुनाव लड़ा था और जनता के स्नेह से जीत भी हुई. यह कहते-कहते वह रोने लगे. यह देखकर कार्यकर्ता एवं समर्थक भी रोने लगे. वहीं कई लोग उनके समर्थन में नारेबाजी भी करने लगे.
बरही विधानसभा क्षेत्र की आजसू प्रभारी एवं स्वर्गीय तिलेश्वर साहू की पत्नी साबी देवी और उससे पहले स्वयं तिलेश्वर साहू ने आजसू को हजारीबाग प्रमंडल में स्थापित करने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. तिलेश्वर साहू ने पार्टी केे लिए बेहिसाब पैसा पानी की तरह बहा दिया, लेकिन जब चुनाव का समय आया, तो महतो ने साबी देवी को बरही विधानसभा क्षेत्र से टिकट देना भी गंवारा नहीं समझा. आजसू और भाजपा का चुनावी गठबंधन होने से कई नेताओं का विधायक बनने का सपना चकनाचूर हो गया. विधानसभा चुनाव लड़ने के मकसद से उक्त नेताओं ने कई सालों तक मेहनत की, जो गठबंधन के कारण बेकार चली गई. कई नेताओं ने तो चुनाव लड़ने के लिए भाजपा और आजसू को छोड़कर अन्य दलों का दामन थाम लिया, जबकि कई नेता मायूस होकर पार्टी में ही रह गए. बोकारो विधानसभा सीट से भाजपा के विरंची नारायण के नाम की घोषणा होने से यहां टिकट की दौड़ में शामिल रहे भाजपा विधायक समरेश सिंह के पुत्र संग्राम सिंह, ज़िला परिषद अध्यक्ष मिहिर सिंह, पूर्व ज़िलाध्यक्ष राजेंद्र महतो, पूर्व ज़िलाध्यक्ष रोहित लाल सिंह एवं एनके राय सहित कई नेताओं के सपने टूट गए. वहीं चंदन कियारी विधानसभा सीट आजसू के खाते में चले जाने से भाजपा के टिकट के दावेदार अमर बाउरी, प्रकाश दास एवं सुनीता देवी की उम्मीद पर पानी फिर गया.
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