(Sportsman spirit) मतलब खेल भावना ! कतार में हुए विश्व कप फुटबाल फाइनल में ! अर्जेन्टीना से दो गोल से फ्रांस की टीम हारने के तुरंत बाद ! फ्रांस के दर्शक, फ्रांस के विभिन्न शहरों में तोड़फोड़ करने पर उतारू हो गए ! और इसके बिल्कुल उल्टा अर्जेन्टीना में जबर्दस्त उत्सव का माहौल है ! जैसे कोई विश्वयुद्ध जितकर आये हो !
खेल भावना, यह सिर्फ एक मुहावरा बनकर रह गया है ! वास्तविकता में जहाँ स्पर्धा है ! और उसमे हार – जीत के बाद ही, तथाकथित ट्रॉफी या पुरस्कार दिया जाता है ! और एक हारता है ! तो कोई दूसरा जितता है ! भारत – पाकिस्तान के बीच, क्रिकेट या हॉकी जैसे खेलों में ! पचहत्तर साल से, खेल कम युद्ध जैसा माहौल रहता है ! लेकिन तथाकथित Renaissance मतलब नवजागरण हुए देशों में सबसे अग्रणी, फ्रांस में चार सौ साल पहले ! (1790) ! हुई फ्रेंच राज्यक्रांती के कारण ! विश्व में सबसे अधिक सभ्य देश माना जाता है ! जहाँ पर रोमा रोला, जो पॉल सात्र, सिमोन द बोआर जैसे लेखकों से लेकर चित्रकार, गायक, नाटक और विभिन्न कलाविधाओ के अविष्कारक लोगों की भूमि ! वाले फ्रांस में कतर के फुटबाल विश्व कप की मैच में फ्रांस की हार के बाद, फ्रांस की जनता की हिंसक प्रतिक्रिया जारी है !
लेकिन कल की घटना को देखते हुए ! समस्त विश्व एक जैसा है ! यह बात सामने आयी है ! और खेल भावना एक मुहावरा भर का शब्द है ! वास्तविकता में हार – जीत का परिणाम फ्रांस में दंगे में परिणित होना ! किस बात का परिचायक है ? तोड़फोड़ की कृती चल रही है ! और दंगाइयों के उपर पुलिस पानी के फौवारे डालकर उन्हे रोकने की कोशिश कर रहे हैं ! तो अर्जेन्टीना में जबर्दस्त जश्न मनाया जा रहा है ! मानवीय स्वभाव के दो पहलू देखने के बाद ! मुझे लगता है! “कि कोई भी स्पर्धा हो उसमें भावनाओं का प्रदर्शन होता है ! जो फ्रांस में राष्ट्रीय स्तर पर गुस्सेमे तब्दील हो गया है ! और अर्जेन्टीना में राष्ट्रीय स्तर पर ! खुषी में तब्दील हो गया है !
मतलब जड में राष्ट्रीयता की भावना ! जिसका जन्म फ्रांस की क्रांति से ही हुआ है ! आधुनिक राजनीतिक चेतना अधिकतर राजनीतिक हिंसा को ऐतिहासिक प्रगति की दृष्टि से आवश्यक मानतीं है ! फ्रांसीसी क्रांति के समय से ही हिंसा को इतिहास की धात्री के तौर पर देखा जाता है ! फ्रांसिसी क्रांति ने हमें आतंक दिया तथा इसने नागरिक सेना को जन्म दिया ! युद्धों में नेपोलियन की गैर मामुली कामयाबीयो के पिछे जिन सैनिकों का हाथ था वे किराए के सैनिक नही थे बल्कि देशभक्त थे जिन्होंने एक उद्देश्य की खातिर हत्याएं की !
वे राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित थे – जिसे हमने राष्ट्रीयता के प्रति नागरिक धर्म के रूप में स्वीकार किया है !
फ्रांसीसी क्रांति पर हेगल अपनी प्रतिक्रिया लिखते हैं कि वह व्यक्ति अपने जीवन के बजाय महान मुल्यो के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार था ! शायद हेगल को यह विचार और जोड देना चाहिए था कि वह व्यक्ति ऐसे किसी भी उद्देश्य की प्राति के लिए हत्याएं करने को तैयार था ! मै सोचता हूँ कि यह बात जितनी अतित के प्राप्ति के लिए हत्याएं करने को तैयार था ! मैं सोचता हूँ कि यह बात जितनी अतित के लिए सच थी, हमारे समय में आज भी उतनी ही सच है !
देशों के एकीकरण ने नेशन – स्टेट को जन्म दिया ! आज राजनीतिक आधुनिकता को प्रजातंत्र के आरंभ के साथ देखा जाता है ! लेकिन 19 वी शताब्दी के राजनीतिक शास्त्रियों – विशेष रूप से मैक्स वेबर – ने पहचान की कि राजनीतिक आधुनिकता राज्य द्वारा नियंत्रित हिंसा पर आश्रित है ! नेशन-स्टेट ने हिंसा को बिखरे हुए औजारों को एक मुठ्ठी में बंद कर दिया जिसमें सारे शत्रुओं को आस्चर्यजनक रूप से चोट पहुंचाने की क्षमता थी, ये चाहे देश के अंदर हो या बाहर ! यह नागरिक समाज के लिए राजनीतिक पूर्वशर्त भी थी !
युरोप, जो कि राजनीतिक आधुनिकता की दहलीज पर खड़ा था, राष्ट्र को संस्कृति तथा जाति के रूप मे देखता था ! फर्डिनांड तथा इजाबेला के स्पेन में राष्ट्र सबसे पहले तथा सबसे ऊपर इसायत के साथ जुड़ा हुआ था ! स्पेन के एकीकरण की प्रक्रिया जातिय सफाई की कार्रवाई के साथ शुरू होती है : 1492 में फर्डिनांड तथा इजाबेला ने देश निष्कासन के फरमान पर हस्ताक्षर किए थे जिसका उद्देश्य स्पेन को यहूदियों के प्रभुत्व से सुरक्षित रखना था ! एकीकृत स्पेन ने अपने यहूदी नागरिकों के सामने दो ही विकल्प रखें थे, या तो ईसाई मत स्वीकार करो या फिर देश छोड़ने के लिए तैयार हो जाओ !
रविंद्रनाथ टागौर ने अपने, राष्ट्र – राज्य संकल्पना की आलोचना 1917 के निबंध ‘नेशनलिज्म इन इंडिया’ में साफ तौर पर लिखा है “कि राष्ट्रवाद का राजनीतिक एवं आर्थिक संगठनात्मक आधार सिर्फ उत्पादन में वृद्धि तथा मानवीय श्रम की बचत कर अधिक संपन्नता प्राप्त करने का यांत्रिक प्रयास इतना ही है ! राष्ट्रवाद की धारणा मुलतः विज्ञापन तथा अन्य माध्यमों का लाभ उठाकर राष्ट्र की समृद्धि एवं राजनीतिक शक्ति में अभिवृद्धि करने में प्रयुक्त हुई है ! शक्ति की वृद्धि की इस संकल्पना ने राष्ट्रों में पारस्परिक द्वेष घृणा तथा भय का वातावरण उत्पन्न कर मानव जीवन को अस्थिर एवं असुरक्षित बना दिया है ! यह सिधे जीवन के साथ खिलवाड़ है ! क्योंकि राष्ट्रवाद की इस शक्ति का प्रयोग बाह्य संबंधों के साथ – साथ राष्ट्र की आंतरिक स्थिति को नियंत्रित करने में भी होता है ! ऐसी परिस्थिति में समाज पर नियंत्रण बढाना स्वाभाविक है ! फलस्वरूप, समाज तथा व्यक्ति के निजी जीवन पर राष्ट्र छा जाता है ! और एक भयावह नियंत्रणकारी स्वरूप प्राप्त कर लेता है !”
रविंद्रनाथ टागौर ने इसी आधार पर राष्ट्रवाद की आलोचना की है ! उन्होंने राष्ट्र के विचार को जनता के स्वार्थ का ऐसा संगठित रूप माना है, जिसमें मानवीयता तथा आत्मत्व लेशमात्र भी नहीं रह पाता है ! दुर्बल एवं असंघटित पडोसी राज्यों पर अधिकार प्राप्त करने का प्रयास यह राष्ट्रवाद का ही स्वाभाविक प्रतिफल है ! इस से उपजा साम्राज्यवाद अंततः मानवता का संहारक बनता है ! राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि पर कोई नियंत्रण संभव नहीं, इसके विस्तार की कोई सीमा नहीं ! उसकी इस अनियंत्रित शक्ति में ही मानवता के विनाश के बीज उपस्थित है ! राष्ट्रों का पारस्परिक संघर्ष जब विश्वव्यापी युद्ध का रूप धारण कर लेता है, तब उसकी संहारकता के सामने सब कुछ नष्ट हो जाता है ! यह निर्माण का मार्ग नहीं है, बल्कि विनाश का मार्ग है ! राष्ट्रवाद की धारणा किस तरह के शक्ति के आधार पर विभिन्न मानवी समुदायों में वैमनस्य तथा स्वार्थ उत्पन्न करती है, इस बात को उजागर करता रविंद्रनाथ टागौर का यह आजसे सौ साल पहले का राष्ट्रीयता के उपर आज भी कितना सही है ! यह कोई खेल हो या सिमा विवाद हर बात में प्रतिक्रिया स्वरूप कहा युद्ध तो कहीं दंगे – फसाद के रूप में अभिव्यक्त होता है ! यह एक तरफ संपूर्ण विश्व एक ग्लोबल फॅमिली हो गया है ! जैसे बातो के साथ कहा मेल खाता है ? फ्रांस जैसे आजसे चार सौ से अधिक सालों पहले नवजागरण हो चुके देश में ! एक फुटबॉल संघ के हार को लेकर, जो प्रतिक्रियाएं लगातार जारी है ! यह फ्रांस के राष्ट्रीयता के बुखार की बिमारी का लक्षण के अलावा और कुछ नहीं है ! जो भारत – पाकिस्तान के खेलों के बाद और भी भयावह रुप धारण करता है ! क्योंकि दोनों देशों की निर्माण प्रक्रिया में राष्ट्रीयता और वह भी धर्म के आधार पर तय होने के कारण ! और भी अधिक हिंसक घटनाओं में परिवर्तित होती है ! इसलिए मेरे जैसे राष्ट्रवाद के आलोचक को ! खेल भावना के नाम पर चल रहे ! राष्ट्रवाद के फुहड प्रदर्शन प्रक्रिया को लेकर ही आपत्ति है ! कि यह सब बंद हो तो और भी अच्छा होगा !
डॉ. सुरेश खैरनार 21 दिसंबर 2022 , नागपुर