अमेरिका पिछले आठ वर्षों से मुल्ला उमर को पकड़ने में नाकाम रहा है. अब वह अपनी नाकामी का ठीकरा उस रिपोर्ट पर फोड़ रहा है, जिसमें यह कहा गया है कि मुल्ला उमर पाकिस्तान में है,  जिसकी वजह से वह अमेरिकी पहुंच से बाहर है. शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक़, पहले वह चमन के सीमावर्ती इलाक़ों में रह रहा था. उसके बाद हाल में ही उसने अपना ठिकाना क्वेटा बदल लिया और अब अमेरिकी मीडिया के हवाले से ख़बर आ रही है कि फिलहाल मुल्ला उमर कराची में है. मुल्ला उमर के चरित्र और इतिहास को ध्यान में रखते हुए इसकी संभावना कम ही है कि उसने पाकिस्तान में शरण ली होगी.

ख़ुफिया एजेंसियां हमेशा अपना काम सुस्त चाल से करती हैं और ऐसा लगता है कि अमेरिकी अपनी असफलताओं के लिए पाकिस्तान को बलि का बकरा बना रहे हैं. मुल्ला उमर ने जब कंधार पर क़ब्ज़ा किया, तबसे पांच बार मेरी उससे मुलाक़ात हुई और मेरा आकलन था कि मूल रूप से वह एक सशक्त और सक्षम लड़ाकू है. साथ ही छोटे स्तर के ऑपरेशन के लिए उसमें एक जुनून था.

कई द़फा जब वह उत्तरी अ़फग़ानिस्तान में वायरलेस के ज़रिए कंपनी लेवल के ऑपरेशन को अंजाम दे रहा होता तो उसके साथ मीटिंग के लिए हमें इंतज़ार करना पड़ता था. वह भयंकर युद्ध के लिए कुख्यात था और आरपीजी-7 से भी अधिक यानी 400 किलोमीटर की दूरी तक टैंक को मार गिराने की क्षमता रखता था.
वह शारीरिक तौर पर दुबला-पतला था, लेकिन अपने जुझारूपन और संयमित जीवनशैली की वजह से का़फी प्रभावशाली था. हालांकि सरकार की जटिलताओं या बाहरी लोगों से बातचीत के मामले में उसके पास धैर्य बेहद ही कम था. उसका व्यक्तित्व भी देश को चलाने में बाधा था, जबकि युद्ध के मैदान में वह एक सफल योद्धा था. उसके चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह भावनाओं को सम्मान देता था और उसमें रूसी आक्रमणकारियों से अपने देश को आज़ाद कराने का दृढ़ निश्चय भी था. उक्त सभी मक़सदों को हासिल करने के लिए वह दक्षिण अ़फग़ानिस्तान में रूसियों के ख़िला़फ अभियान में लगातार शामिल रहा और स़िर्फ दो बार ही उसने पाकिस्तान का दौरा किया.
पहली बार रूसी आक्रमण के बाद क्वेटा में तीन महीने के प्रशिक्षण के लिए गया और दूसरी बार जब उसकी आंखें बुरी तरह ज़ख्मी हो गईं तो क्वेटा के आईसीआरसी अस्पताल में इलाज के लिए वहां तीन महीने रहा. उसकी बाक़ी पूरी ज़िंदगी अ़फग़ानिस्तान के युद्ध मैदान में बीती. मुल्ला उमर अ़फग़ानिस्तानी नेताओं को ऩफरत भरी नज़रों से देखता था, क्योंकि वे नेता पाकिस्तान में आरामतलब ज़िंदगी गुज़ार रहे थे और उनके काडर उनके लिए लड़ाई लड़ रहे थे. इन सभी वजहों ने भी मुल्ला उमर को निरपेक्ष सिद्धांतवादी बना दिया. वह अपनी मर्ज़ी का इस्लाम पूरे अ़फग़ानिस्तान में लागू करना चाहता था, हालांकि यह उतना व्यवहारिक नहीं था, क्योंकि उसने महज़ सात साल ही मदरसे में गुज़ारे थे. इसी तरह वह शरण के अधिकार का भी कट्टर हिमायती था, जिसने पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उसके संबंधों को प्रभावित किया. रूसी आक्रमण भी एक ऐसा मसला था, जिस पर कोई बातचीत नहीं की जा सकती थी.
युद्ध के प्रति उसकी इसी प्रतिबद्धता ने उसे अपने लोगों के बीच सम्मान दिलाया. यही वजह है कि अमेरिका द्वारा उसके सिर पर एक बड़ी इनामी राशि की घोषणा के बावजूद वह पकड़ा नहीं गया. दरअसल शुरुआती चार महीने तक अमेरिका मुल्ला उमर की जगह किसी और शख्स की तस्वीर दिखाता रहा और उसकी तस्वीर तभी बदली गई, जब उस शख्स ने इस बात की शिकायत की. जबकि कंधार पर क़ब्ज़े के बाद बीबीसी ने मुल्ला उमर को एक वीडियो में पैगंबर का वस्त्र धारण किए हुए दिखाया था, बावजूद इसके एजेंसियों का यह कारनामा आश्चर्यजनक था. इस नाटकीय घटना का निराशाजनक प्रभाव उमर के व्यक्तित्व पर पड़ा, जिसने अ़फग़ानिस्तान के हेलमंड प्रोविंस से लेकर तमाम अ़फग़ानी शासकों के लिए मुल्ला उमर को एक छद्म मुल्ला बना दिया.
अपने बेहतर व़क्त में अ़फग़ानी भाग्यवादी होते हैं. वे अपनी पूरी ज़िंदगी हॉबेशियन दुनिया (अल्पकालिक, घृणास्पद और पाशविक) में जीते हैं और मुल्ला उमर ने यह मान लिया कि वह अल्ला के रहमोकरम से सफलता हासिल कर रहा है. यह एक ऐसा नज़रिया है, जिसकी वजह से पैसे के लालच के बावजूद मुल्ला उमर पकड़ में नहीं आ रहा है, क्योंकि अधिकांश मुजाहिद्दीन भी यही मानते हैं कि मुल्ला उमर अल्ला के काम को अंजाम दे रहा है. इतना ही नहीं, मुल्ला उमर ने रूसियों के ख़िला़फ जिहाद लड़कर ही सबसे पहले इन इलाक़ों में सम्मान हासिल किया और रूसियों के जाने के बाद उसने सरदारों के ज़ुल्म से इस इलाक़े को आज़ाद कराया.
अमेरिका के इस आरोप के सही होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है कि मुल्ला उमर कराची में है. इलाज की ज़रूरत होने पर ही इस ख़बर के सही होने की संभावना है. उसके व्यक्तित्व के मुताबिक़ जिस इलाक़े में भयंकर लड़ाई हो रही होगी, वहीं उसके होने की संभावना भी अधिक होगी यानी दक्षिणी अ़फग़ानिस्तान में जहां वह अपनी शैली में मोर्चा संभालता है.
वहीं दूसरी ओर यदि मुल्ला उमर के कराची में होने की रिपोर्ट सही है तो इसे  ख़तरे की अपेक्षा एक अवसर समझा जाना चाहिए. इसका मतलब यह होगा कि वह अपने व्यक्तित्व के विपरीत काम कर रहा है और आठ वर्षों तक जंगलों में रहने के कारण उसकी विचारधारा इस क़दर प्रभावित हुई है कि वह अपनी निरपेक्ष विचारधारा से दूर जा रहा है. जबकि पहले वह अपनी विचारधारा से किसी भी क़ीमत पर कोई समझौता नहीं करता था. अमेरिका-तालिबान के बीच मीटिंग की रिपोर्ट और मुल्ला उमर का बयान तालिबान को अलक़ायदा से दूर कर रहा है और ये सभी बातें अ़फग़ान समस्या को सुलझाने की दिशा में अमेरिका के लिए एक शुभ संकेत लेकर आई हैं.

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