सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामले को ‘गंभीर मुद्दा’ माना है. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग कर रही याचिकाओं पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा. बता दें कि जस्टिस लोया की मौत के बाद उनके परिवार की इजाज़त के बगैर ही उनके गाँव ले लाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एक पक्षीय सुनवाई की बजाए द्विपक्षीय सुनवाई की जरूरत है. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायामूर्ति एम एम शांतानागौदर की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के अधिवक्ता निशांत आर कटनेश्वरकर को 15 जनवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है.
सुनवाई की शुरुआत में ‘बांबे लायर्स एसोसिएशन’ का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि हाईकोर्ट इस पर सुनवाई का रहा है. ऐसे में सुप्रीमकोर्ट को याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए.
दवे ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय को मामले की जानकारी है और मेरे विचार से सुप्रीमकोर्ट को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए. अगर न्यायालय सुनवाई करता है तो उच्च न्यायालय के समक्ष उलझन पड़ सकती है.
इस मामले में याचिकाकर्ता और महाराष्ट्र के पत्रकार बीआर लोन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उन्हें भी बांबे लायर्स एसोसिएशन से निर्देश हैं कि इस मामले को उच्चतम न्यायालय द्वारा नहीं सुना जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि वह याचिकाओं पर गौर करने के साथ ही उठाई जा रही आपत्तियों पर भी विचार करेगी.
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याचिकाकर्ता कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला का पक्ष रख रहे अधिवक्ता वरींदर कुमार शर्मा ने कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें एक दिसबंर 2014 को एक न्यायाधीश की रहस्यमयी परीस्थितियों में मौत हो गई जिसकी जांच होनी चाहिए.