gujrat electionगुजरात और हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने इस तथ्य को मजबूती प्रदान की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी और कुछ समय तक राजनीति के केन्द्रबिन्दु और अपनी पार्टी के लिए मुख्य चुनाव प्रचारक बने रहेंगे. ये बात भी सही है कि गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने कड़ा मुकाबला देते हुए अपनी स्थिति सुधारी, लेकिन भाजपा ने अपनी स्थिति बरकरार रखी और छठवीं बार सत्ता के लिए चुन ली गई. गुजरात मोदी और उनके मुख्य प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए एक चुनौती थी. हालांकि ताकत और प्रबंधन कौशल के मामले में इन दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है. फिर भी राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को कड़ा मुकाबला दिया जिससे कुछ अवसरों पर प्रधानमंत्री परेशान होते दिखे.

हालांकि, गुजरात परिणाम (हिमाचल नहीं, जहां परिणाम अपेक्षित था) ने इस तथ्य को पुनः बल दिया है कि भारत की चुनावी राजनीति में धर्म एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में काम करना जारी रखे हुए है. 2014 के आम चुनावों के बाद से इसने इस तथ्य को बार-बार मजबूत किया है. हालांकि यह भी एक तथ्य है कि मोदी के विकास की अवधारणा की बात भी लोग करते हैं. गुजरात में जहां भाजपा 22 साल से सत्ता में रही थी, पार्टी के लिए राज्य को बनाए रखना मुश्किल हो गया था. एंटी इनकम्बेंसी और जीएसटी व नोटबंदी जैसे आर्थिक उपायों की अपनी भूमिका थी. जाति का पहलू भी तीन युवा नेताओं, जिग्नेश, हार्दिक और अल्पेश के रूप में दिखाई दे रहा था, जो राहुल गांधी के साथ थे, ताकि भाजपा को एक कठिन मुकाबला दिया जा सके.

पार्टी जीती, लेकिन यह 2017 की यूपी जैसी चुनावी जीत नहीं है, जहां भाजपा ने सपा और बसपा को करारी शिकस्त दी थी. गुजरात मोदी या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए घरेलू मैदान था. जैसे भाजपा ने बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर चुनावी कैंपेन चलाया था, वैसा ही गुजरात में इन्हें करने की जरूरत नहीं थी. उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व ने काम किया और शायद गुजरात के लिए भी यही अंतिम उपाय था.

जीत दर्ज किए बिना, कांग्रेस एक ऐसे राज्य में वापसी करने में कामयाब रही जो इसके लिए एक प्रतिबंधित क्षेत्र की तरह बन गई थी. इसने अपनी संख्या में सुधार किया और भाजपा को 100 तक पहुंचने से रोक दिया, जबकि भाजपा का लक्ष्य 150 था. कांग्रेस को 80 सीटें मिलीं और कम से कम 15 ऐसी सीटें हार गई जहां हार का अंतर 3000 वोटों से कम रहा. भाजपा के लिए यह एक नुकसान है, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2014 में इसे 60.11 प्रतिशत वोट मिला था, जो घट कर 49.3 प्रतिशत हो गया.

इसी तरह, कांग्रेस ने 2014 में 33.45 प्रतिशत वोट लिया था और उसे सहयोगियों के साथ बढ़ा कर 43 प्रतिशत कर लिया. कांग्रेस का अकेले का वोट प्रतिशत 41.3 प्रतिशत रहा. यह निश्चित रूप से भाजपा और मोदी दोनों के लिए खतरे की घंटी है, जो भूमि पुत्र कार्ड खेलते रहे. अपनी पिछली चुनावी लड़ाई के मुकाबले इस बार राहुल गांधी ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन मोदी के प्रबंधन, करिश्मा और राजनीति का मुकाबला करने के लिए उन्हें अभी बहुत कुछ करना होगा. पिछले तीन सालों में कांग्रेस ऐसे मोड पर है, जहां उसे और अधिक नहीं खोना है.

हालांकि उसे ये लग रहा है कि जब तक मोदी वहां होंगे, तब तक वह सत्ता में नहीं आएगी. ये वक्त कांग्रेस के अस्तित्व के लिए सबसे कठिन है, क्योंकि उसे ध्रुवीकरण की राजनीति का सामना करना पड़ रहा है और ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में जा रहा है. कांग्रेस ने अपना धर्मनिरपेक्ष कार्ड छोड़ने की पूरी कोशिश की, लेकिन यह काम नहीं कर सका. इसलिए, मंदिरों में जाने के राहुल का फैसला भी बहस का विषय बन रहा है.

यह स्पष्ट है कि गुजरात चुनाव में मोदी को न केवल विकास के मुद्दे पर चुनौती का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्होंने गुजरात के मतदाताओं को डराने के लिए पाकिस्तान को भी चुनावी राजनीति में ला दिया. राजनीति का स्तर देखिए, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह पर भी आरोप लगाए. सिंह अपने सहयोगी मणिशंकर अय्यर के घर एक निजी बैठक में गए थे. उस बैठक में अय्यर ने अपने पुराने मित्र और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी, पाकिस्तान के उच्चायुक्त सोहेल महमूद और कई प्रतिष्ठित भारतीय राजनयिकों को अपने घर डिनर के लिए आमंत्रित किया था.

मोदी ने इस बैठक का चुनाव में इस्तेमाल किया और मतदाताओं से कहा कि ये बैठक उन्हें हराने के लिए एक साजिश के तौर पर आयोजित की गई. मोदी ने मतदाताओं से पूछा कि क्या वे उस पार्टी को वोट देंगे जो उन्हें (मोदी)  हराने के लिए पाकिस्तान के साथ मिल कर साजिश रच रहे थे. उन्होंने एक पूर्व पाकिस्तान जनरल का भी नाम सामने उछाला, जिसने उनके मुताबिक अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने के लिए टि्‌वट किया था. पटेल का गुजरात का मुख्यमंत्री बनना अविश्वसनीय है. ये सब बातें साबित कर रही थी कि मोदी अपने गृह राज्य में कितने चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे थे.

इससे पहले अय्यर ने उनके बारे में एक अप्रिय टिप्पणी की थी, इसका भी उन्होंने भावनात्मक रूप से फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल किया और कहा कि ये गुजरात के लोगों के गौरव पर हमला है. अमित शाह ने बिहार चुनाव में पाकिस्तान कार्ड का इस्तेमाल किया था. इसलिए, मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने में पाकिस्तान भाजपा के बड़े काम आ रहा है, कम से कम गुजरात की अस्मिता की रक्षा के लिए. यूपी में मोदी ने कब्रिस्तान और शमशान के बीच कोई भेदभाव नहीं करने की बात की. उत्तर प्रदेश की तरह ही गुजरात में भी भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया, जबकि उनकी संख्या करीब 10 फीसदी है. गुजरात की चुनावी राजनीति में मुस्लिम किनारे पर ही रहते हैं. इस बार कांग्रेस ने छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जिसमें 4 जीते. 2007 में पांच मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे, जबकि 2002 में  सिर्फ तीन. भाजपा ने विधानसभा चुनावों में कभी भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे.

तथ्य ये है कि 2002 के दंगों के बाद भी मुस्लिमों की स्थिति में बदलाव नहीं हुआ है और वे सेकेंड क्लास नागरिक बने हुए हैं. मुस्लिमों को हाशिए पर रखना भाजपा की नीति का हिस्सा है. काउंटर ध्रुवीकरण सुनिश्चित करके भाजपा उन्हें चुनावी राजनीति में अप्रासंगिक बना देती है. नवंबर में गुजरात दौरे के बाद, पत्रकार सबा नकवी ने द ट्रिब्यून में लिखा कि 2002 के बाद से मुसलमानों के लिए कुछ भी नहीं बदला है. उन्होंने लिखा है कि 2002  को लेकर गुजरात में कोई अपराध बोध नहीं है और अभी भी मुसलमानों को संदेहास्पद, गंदा, खतरनाक माना जाता है. यूपी में भी इसी पैटर्न पर काम हुआ और भाजपा ने शुरू से जता दिया कि इसे चुनाव जीतने के लिए मुस्लिमों की आवश्यकता नहीं है. भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिए. 28 प्रतिशत आबादी होने के बाद भी विधानसभा में मात्र 24 मुस्लिम विधायक आए. पिछले विधानसभा में 71 सदस्य थे. इस बार केवल 24 चुने गए, जिसमें से 15 सपा, 7 बसपा और 2 कांग्रेस के टिकट पर जीत कर आए.

भाजपा अब 19 राज्यों में सत्ता में है और बाकी भी जीतने की कोशिश कर रही है. वैसे गुजरात, भाजपा और मोदी के लिए एक चेतावनी के रूप में आया है. लेकिन, जैसे भाजपा युवाओं के बीच विकास और हिन्दुत्व कार्ड का उपयोग कर रही है, उनके लिए यह मुश्किल नहीं होगा. पार्टी और आरएसएस ने हिन्दुत्व को जो स्वरूप दिया है, वो हर एक चुनाव को प्रभावित कर रही है. ये लोगों को ये समझाने में सफल हो रहे हैं कि भारत हिंदू देश बन सकता है और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में शामिल होने वाले धर्मनिरपेक्षतावादी इस राह में रुकावट हैं. इससे भी भाजपा को फायदा हो रहा है. लेकिन, नीतियों के कारण मची उथल-पुथल और अर्थव्यवस्था की हालत, मोदी और उनके नेतृत्व के लिए एक गंभीर चुनौती हो सकती है. गुजरात की जीत मोदी की वजह से थी न कि भाजपा की वजह से. लेकिन, कब तक मोदी अकेले सारे चुनाव जितवाते रहेंगे?

–लेखक राइजिंग कश्मीर के संपादक हैं.

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