5306_661911607234299_354860ऐलान-ए-जंग हो चुका है, अपनी-अपनी सेनाओं को सजाने और मैदान में उतारने से पहले कील-कांटे दुरुस्त करने की कवायद हर खेमे में जारी है. भ्रम की स्थिति साफ़ करते हुए नीतीश कुमार ने दो टूक कह दिया है कि वह राजद के साथ ही चुनावी अखाड़े में उतरेंगे और भाजपा को चारों खाने चित्त कर देंगे. भाजपा ने भी देर नहीं की और सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार जंगलराज पार्ट-2 का आगाज करने वाले हैं, लेकिन बिहार की जनता जंगलराज दोबारा पनपने नहीं देगी, क्योंकि यहां तो स़िर्फ सुशासन ही विकल्प है. लोजपा एवं रालोसपा ने भी साफ़ कर दिया है कि वे उपचुनाव में राजद-जदयू गठबंधन को सभी दस सीटों पर धूल चटा देंगी. कांग्रेस भी अपना अलग रास्ता अख्तियार कर सकती है.
ग़ौरतलब है कि नरकटियागंज, राजनगर, जाले, छपरा, हाजीपुर, मोहिउद्दीनगर, परवत्ता, भागलपुर, बांका एवं मोहनिया में आगामी 21 अगस्त को मतदान होगा. बिहार यूं भी राजनीतिक प्रयोग की धरती रहा है. इस उपचुनाव के बहाने यहां एक बार फिर प्रयोग किया जा रहा है. लगभग डेढ़ दशकों से लालू प्रसाद का हर स्तर पर विरोध करने वाले नीतीश कुमार इस उपचुनाव में उनके साथ एक बार फिर गलबहियां कर रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा कि सूबे के दोनों बड़े नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अकेले लड़ने से भाजपा का मुकाबला करना असंभव है. दोनों को यह गणित भा रहा है कि लोकसभा चुनाव में पड़े वोट मिला दिए जाएं, तो वह कुल वोटों का 45 फ़ीसद हो जाता है. यानी साथ लड़ा जाए, तो विधानसभा चुनाव में जीत तय.
उधर सुशील मोदी कहते हैं कि राजनीति का अंकगणित इतना भी आसान नहीं है, इसमें दो और दो का जोड़ हमेशा चार नहीं होता, बल्कि कभी शून्य भी हो जाता है, तो कभी 22 भी. लेकिन, नीतीश कुमार ने अपनी लाइन साफ़ कर दी है. वह चाहते हैं कि लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में मुसलमान, अति पिछड़े एवं पिछड़े वोटों का बंटवारा न हो, इसलिए इस गठबंधन में कांग्रेस को भी समेटने का प्रयास चल रहा है. अगर उपचुनाव में बात न भी बने, तो भविष्य के चुनाव में विकल्प खुला रखा जाएगा. नीतीश कुमार कहते हैं कि जो भी भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ना चाहते हैं, उनका गठबंधन में स्वागत है. लालू प्रसाद ने भी इस गठबंधन को विजयी गठबंधन करार देना शुरू कर दिया है. वह कहते हैं कि पूरा बिहार हमारे साथ है, भाजपा का कोई नामलेवा नहीं मिलेगा और उपचुनाव की सभी दस सीटों पर उनकी जीत तय है.
आख़िर ऐसी क्या बात है कि हर कोई इस उपचुनाव को इतनी तवज्जो दे रहा है. देखा जाए, तो यह बिहार विधानसभा चुनाव के पहले का सबसे बड़ा उपचुनाव है. बिहार के ज़्यादातर इलाकों में उपचुनाव की इन दस सीटों का फैलाव है. कहने का अर्थ यह है कि इस उपचुनाव के नतीजों से लगभग पूरे बिहार की जनता का मिजाज समझने में सहूलियत होगी. किस दल की ताकत और तैयारी कैसी थी, इसका भी अनुमान लग जाएगा. सबसे बड़ी बात यह होगी कि सभी दलों को आगे की रणनीति तैयार करने का एक रोडमैप मिल जाएगा. अगर इस उपचुनाव में जदयू एवं राजद की दोस्ती को जनता ने नकार दिया, तो फिर विधानसभा चुनाव की लड़ाई की तस्वीर ही बिल्कुल अलग हो जाएगी.
अगर भाजपा गठबंधन को जनता ने तवज्जो नहीं दी, तो फिर भाजपा के अंदर ही विरोध का नया खेल खुलकर शुरू हो जाएगा. लोकसभा चुनाव तो भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नाम पर निकाल लिया, लेकिन उपचुनाव में उसे अपने भरोसे ही ज़्यादातर रास्ते तय करने हैं. अब प्रदेश भाजपा कौन सा रास्ता बनाती है और उसे कैसे तय करती है, यह देखना दिलचस्प साबित होने वाला है. अगर सब कुछ सही रहा, तो फिर सुशील मोदी भाजपा में सर्वमान्य नेता के तौर पर उभरेंगे और उन्हें चुनौती देने की हिम्मत जुटाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. ठीक इसी तरह अगर राजद एवं जदयू गठबंधन नाकाम हो गया, तो दोनों ही दलों में आंतरिक कलह बहुत बढ़ सकती है. संभव है, कलह इतनी बढ़ जाए कि उसे रोकने में दोनों दलों के वरिष्ठ नेता कामयाब न हो पाएं. यह उपचुनाव दोनों ही खेमों के लिए बेहद अहम हैं, इसलिए दोनों तरफ़ से हर क़दम फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है. ज़मीनी स्तर पर फीडबैक लिया जा रहा है और गठबंधन के लिए दिल बड़ा किया जा रहा है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सारा फोकस सीट निकालने पर है, ताकि आगे का रास्ता तय किया जा सके. अगर उपचुनाव गड़बड़ा गया, तो फिर आगे की राह बेहद कठिन हो जाएगी और यदि उपचुनाव सही रहा, तो फिर बिहार का अगला सिकंदर बनने का रास्ता खुद-ब-खुद बन जाएगा.

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