संतोषी की मां कोयली देवी का आरोप है कि राशन डीलर उसे सात माह से राशन नहीं दे रहा था. उसने ग्रामीणों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता तारामणि के माध्यम से 21 सितम्बर को सिमडेगा के उपायुक्त के जनता दरबार में यह मामला उठाया था कि उसके घर में इतने पैसे भी नहीं हैं कि वह अपनी बेटी को दो वक्त का भोजन दे पाये. कारी माटी गांव के प्राथमिक स्कूल में पहले संतोषी मिड डे मिल खा लेती थी, पर कुछ दिनों से वह भी बंद था और अंतत: भूख के कारण उसने प्राण त्याग दिये. उसकी मां अपनी कातर आंखों से केवल देखती रही, पर घर में अन्न का एक दाना भी नहीं रहने के कारण कुछ भी नहीं कर पाई.
मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी कागजी उपलब्धियों पर भले ही इतराते हों और पार्टी के आला नेताओं से पीठ थपथपाने में सफल रहते हैं, पर हाल में घटित दो घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. बारह वर्षीय बच्ची की भूख से मौत और दूसरा बारह वर्षीय लड़की जो दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो गयी थी और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उसका गर्भपात कराया गया. भूख से हुई मौत को केन्द्र सरकार ने गंभीरता से लिया और राज्य सरकार ने पल्ला झाड़ते हुए इसे भूख से मौत नहीं बताकर मलेरिया से मौत को कारण बताया. केन्द्र जब राज्य की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुई तो उसने एक उच्च स्तरीय जांच दल भेज दिया. यह दल पूरे मामले की जांच कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी.
झारखंड में विकास कागजों पर ही होता रहता है. मुख्यमंत्री रघुवर दास यह दावा करते हैं कि राज्य में कोई बीपीएल परिवार नहीं रहेगा, पर सच्चाई इससे इतर है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में घोर गरीबी है, जिसे देख कर रुह कांप जाती है. 47 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करती है. उन्हें एक जून का खाना भी नसीब नहीं होता है. सुदूर ग्रामीण इलाकों में अधिकांश आबादी को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. झारखंड की भौगोलिक स्थिति, गरीबी, समाजिक असमानता बहुत ही ज्यादा है और मुख्यमंत्री भी इस बात को भली-भांति जानते हैं, पर राज्य का दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास नकल में विश्वास करते हैं. केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो भी योजना शुरू करते हैं, ठीक उसी की नकल यहां होती है. जन वितरण प्रणाली में आधार एवं पैसे के अभाव में बहुत से लोग आधार कार्ड नहींं बना पाये हैं.
… और भात-भात रटते मर गई संतोषी
सिमडेगा की कारी माटी गांव की संतोषी जिस स्कूल में पढ़ने जाती थी, वहां भी राशि के अभाव में कई महीनों से मिड डे मिल योजना बंद थी. अब संतोषी को न तो स्कूल में खाना मिल रहा था और न ही घर में. घर में राशन कार्ड और आधार कार्ड के कारण कई महीनों से जन वितरण प्रणाली की दुकान से अनाज नहीं मिल पा रहा था. घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था. परिवार के लोग किसी तरह जंगली फल, घास-फूस खाकर अपना पेट भर रहे थे. वे धीरे-धीरे मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे. संतोषी भूख बर्दाश्त नहीं कर सकी और भात-भात मांगते हुए अपनी मां की गोद में ही प्राण त्याग दिए.
संतोषी की मां कोयली देवी का आरोप है कि राशन डीलर उसे सात माह से राशन नहीं दे रहा था. उसने ग्रामीणों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता तारामणि के माध्यम से 21 सितम्बर को सिमडेगा के उपायुक्त के जनता दरबार में यह मामला उठाया था कि उसके घर में इतने पैसे भी नहीं हैं कि वह अपनी बेटी को दो वक्त का भोजन दे पाये. कारी माटी गांव के प्राथमिक स्कूल में पहले संतोषी मिड डे मिल खा लेती थी, पर कुछ दिनों से वह भी बंद था और अंतत: भूख के कारण उसने प्राण त्याग दिये. उसकी मां अपनी कातर आंखों से केवल देखती रही, पर घर में अन्न का एक दाना भी नहीं रहने के कारण कुछ भी नहीं कर पाई.
मुख्यमंत्री रघुवर दास भाजपा के एक दिवंगत नेता के श्राद्ध कार्यक्रम में सिमडेगा गये तो उन्हें भी इस बात की जानकारी हुई. उन्होंने चौबीस घंटे में जांच रिपोर्ट मांगी और पीड़ित परिवार को पचास हजार रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया. इस मामले के उजागार होते ही राजनीति शुरू हो गयी. अधिकारी भी हर दिन इस मामले में अपना बयान बदलते रहे. कभी आधार कार्ड के कारण राशन कार्ड का रद्द होना, तो कभी संतोषी की मौत बीमारी से बताना शुरू किया. यह सोचना भी दुखद है कि 21 वीं सदी में किसी की मौत भूख से हो सकती है. वह भी उस राज्य में जहां के मुख्यमंत्री लगातार यह घोषणा कर रहे हैं कि 2020 तक झारखंड में कोई बीपीएल परिवार नहीं होगा. चौबीस घंटे के भीतर राज्य के अधिकारियों ने तीन बार अपना बयान बदला. राज्य में 11 लाख राशन कार्ड रद्द किये गये थे और मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने एक हजार दिनों की उपलब्धियों में इसे भी गिनाया था.
मामला जब उजागर हुआ और यह समाचार जब मीडिया की सुर्खियां बनने लगा, तब सरकार की नींद खुली. इसके बाद उस क्षेत्र के आला अधिकारियों पर भी गाज गिरना तय माने जाने लगा. इसके बाद उस क्षेत्र के दबंगों ने उस पीड़ित परिवार को ही गांव से भगा दिया. जाहिर है इसके पीछे आला अधिकारियों का ही हाथ होगा. बाद में भारी सुरक्षा के बीच उस परिवार को पुन: गांव लाया गया. जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गांव के संतोषी की मां कोयली देवी और उनका परिवार डरा-सहमा है. लोगों ने उनके घर में घुस कर धमकी दी और सामान भी बाहर फेंक दिया. इसके बाद तंग आकर कोयली देवी ने गांव छोड़ दिया. कोयली देवी का कहना है कि मैं और मेरा परिवार भय के माहौल में जी रहा है. गांव के कुछ दबंग लोग मेरे घर आए और गांव से भाग जाने की धमकी देने लगे. कोयली देवी का कहना है कि एक तो हमलोग भूख से परेशान हैं और उस पर लोग भी प्रताड़ित कर रहे हैं.
दरअसल प्रशासनिक महकमा का पहले कहना था कि आधार कार्ड नहीं रहने के कारण कोयली देवी का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था. उच्चतम न्यायालय के आदेश की जब जानकारी अधिकारियों को याद आयी, तो अधिकारियों ने अपना बयान बदलना शुरू कर दिया. इसके बाद अधिकारी संतोषी की मौत मलेरिया से होने की बात कहने लगे. संतोषी की मौत के बाद कोयली देवी को राशन कार्ड दिया गया था. गौरतलब है कि मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने यह तुगलकी फरमान जारी किया था कि बिना आधार कार्ड वाले उपभोक्ताओं का राशन कार्ड रद्द कर दिया जाए. इसके बाद ही पूरे राज्य में ग्यारह लाख राशन कार्ड रद्द कर दिये गये थे.
इधर राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास और मुख्य सचिव को ही जिम्मेदार मानते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ गलत निर्णय भी राज्य सरकार ले लेती है. उन्होंने कहा कि आधार नहीं रहने से राशन कार्ड से वंचित करना गलत होगा. मुख्मंत्री सचिव के आदेश पर विभाग ने आपत्ति जतायी थी. उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव के उस आदेश को निरस्त कर दिया गया है और जो अधिकारी इसे नही मानेंगे, वे अधिकरी दंड के भागी होंगे. मंत्री ने कहा कि बच्ची की मौत का मामला जो भी है, पर उस परिवार को जुलाई से राशन नहीं मिल रहा था. मौत के कारणों की सही जानकारी ली जा रही है. सिमडेगा उपायुक्त की अध्यक्षता में जांच कमिटी बनायी गयी है. उन्होंने कहा कि हड़बड़ी में एक तरफा निर्णय लिये जा रहे हैं.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने तो केन्द्र की खाद्यान्न नीति को ही दोषपूर्ण बताते हुए उसमें बदलाव की मांग की है. जो भी हो, इस मौत पर राजनीति दुखद है. जहां देश एवं राज्य विकास का दावा कर रहे हैं, वहां भूख से मौत हो तो इस पर गंभीरता से विचार कर ठोस पहल करने की जरूरत है, ताकि अब भूख से कोई न मरे.
सिमडेगा में बच्ची की मौत की जांच करेगी केन्द्रीय टीम : पासवान
केंन्द्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने बुधवार को कहा कि एक केंद्रीय टीम झारखण्ड भेजी जाएगी, जो सिमडेगा की 11 वर्षीय बच्ची की भूख से हुई मौत की जांच करेगी. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से भी इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है. पासवान ने कहा कि यदि गरीब लोग भूख से मरते हैं, तो यह चिंता की बात है. इस बीच झारखंड सरकार ने भी मामले की जांच के आदेश दिए हैं और बच्चों के परिवार के लिए 50 हजार रुपए सहायता की घोषणा की है. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि बच्ची की मौत भूख से हुई है. उनका कहना है कि आधार नंबर से नहीं जोड़े जाने के कारण बच्ची के परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था.
भूख से मौत के लिए सरकार की ग़लत नीतियां ज़िम्मेवार : हेमंत सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सिमडेगा में 11 वर्षीय बच्ची की भूख से मौत को लेकर रघुवर सरकार पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य में भूख से मौत निश्चित रूप से पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार के लिए शर्मनाक है. इसकी देशभर में निंदा हो रही है. हम कहां खड़े हैं, इसके बारे में राज्य की भाजपानीत सरकार को सोचना होगा. इससे मर्माहत और हृदयविदारक घटना हो ही नहीं सकती कि ग्यारह वर्षीय बच्ची ने भात-भात कहते हुए अपनी मां की गोद में प्राण त्याग दिए. यह सरकार की गलत नीतियों के कारण ही हुआ है. आज इस घटना के बाद सबकी नींद खुली है कि यह सरकार किस तरह से चल रही है. हमारी मांग है कि राज्य के सभी गरीबों को खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाये. उन्होंने कहा कि जिन लोगों का आधार नहीं है, तो क्या ऐसे लोग भूखे मरेंगे. हेमंत सोरेन ने कहा कि इस घटना के बाद विभागीय मंत्री और सीएस अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. राज्य की सभी प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है, जिसके बाद हमारे मुख्यमंत्री की नींद खुली है. हमने पहले ही आशंका जतायी थी कि पदाधिकारी भाजपा के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं. गरीबों को अनाज नहीं मिल रहा है. राज्य के सीएम बहुराष्ट्रीय मुख्यमंत्री बन गये हैं. गरीबों से ज्यादा विदेशी कंपनियों के नुमाइंदों से मिल रहे हैं.