अकड़ और अहंकार झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की खूबियों में शुमार है. लेकिन उनकी ये अकड़ तब चारो खाने चित हो गई, जब राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने सीएनटी एसपीटी संशोधन विधेयक लौटा दिया. वो भी एक-दो आपत्तियों के साथ नहीं, 192 आपत्तियों के साथ. राज्यपाल द्वारा बिल लौटाए जाने की भनक मुख्यमंत्री ने किसी को नहीं लगने दी, यहां तक कि मंत्रिमंडल एवं मुख्य सचिव से भी पूरी तरह गोपनीयता बरती गई.

राजभवन से जब ये सूचना लीक हुई कि राज्यपाल ने संशोधन विधेयक को कई आपत्तियों के साथ लौटा दिया है, तब मुख्यमंत्री की हंसी उड़ गई, उनका चेहरा स्याह पड़ गया. मंत्रिमंडल के सहयोगियों एवं भाजपा के आदिवासी नेताओं ने इस बात को छुपाए रखने के लिए मुख्यमंत्री को आड़े हाथों लिया और कहा कि इस बात की जानकारी सहयोगियों को जरूर देनी चाहिए थी. इसे लेकर मुख्यमंत्री की काफी किरकिरी हुई और रघुवर दास इस पर कोई प्रतिक्रिया देने से भागते रहे.

यहां तक कि जब ये मामला लीक हुआ, तो पूरे भाजपा कार्यालय में कई दिनों तक सन्नाटा पसरा रहा. कोई भी वरिष्ठ नेता इसपर किसी भी तरह से प्रतिक्रिया देने से बचते रहे. लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने हिम्मत कर इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री रघुवर दास से बातचीत की और एक सप्ताह बाद पत्रकारों के सामने मुखातिब हुए. उन्होंने कहा कि भाजपा के आदिवासी नेताओं से विचार-विमर्श कर इस संशोधन विधेयक को मानसून सत्र में लाया जाएगा और पुनः राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने जो आपत्तियां जताई हैं, उस पर गंभीर मंथन होगा और इस समस्या का समाधान निकाला जाएगा.

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस संशोधन विधेयक को पूरी तरह से अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा था. उन्होंने सार्वजनिक सभाओं में साफ तौर पर कहा था कि कोई कितना भी हल्ला कर ले, इस संशोधन को किसी भी हाल में वापस नहीं लिया जाएगा. इस मामले पर विपक्ष ने पूरा सत्र नहीं चलने दिया था. भारी शोर-शराबे और हंगामे के बीच प्रस्ताव पारित कराने में मुख्यमंत्री सफल रहे और पूरे आत्मविश्वास के साथ उसे राज्यपाल के पास भेजा. मुख्यमंत्री ने इस अध्यादेश पर बातचीत के लिए राज्यपाल से मुलाकात भी की थी. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा सहित दर्जनों भाजपा के आदिवासी विधायक इसकी मुखालफत कर रहे थे.

मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भी इस संशोधन का विरोध किया, पर मुख्यमंत्री ने किसी की नहीं सुनी और इसे मंत्रिमंडल से पारित कराकर राजभवन भेज दिया. लेकिन राज्यपाल की आपत्तियों के बाद इस संशोधन विधेयक को लेकर बैकफुट पर आए रघुवर दास ने अब आदिवासी नेताओं से राय लेने का मन बनाया है. आदिवासी नेताओं और ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी की सिफारिशों को लागू कराने को लेकर उन्हें झुकना पड़ा.

आदिवासियों की कृषि योग्य भूमि के व्यावसायिक उपयोग एवं अधिग्रहण वाले संशोधन को निरस्त करना पड़ा. अब मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्यपाल द्वारा उठाए गए बिन्दुओं पर राजनीतिक व सामाजिक संगठनों, सरकार के मंत्रियों, पार्टी के विधायकों-सांसदों व वरिष्ठ नेताओं की राय जानने के बाद सीएनटी की धारा-21 और एसपीटी की धारा-13 में प्रस्तावित संशोधनों को निरस्त करने का निर्णय लिया गया है. उन्होंने मौजूदा हालात के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर विपक्ष ने विधानसभा में अपनी राय दी होती, तो इन संशोधनों पर उसी समय चर्चा हो जाती और इन धाराओं को मूल प्रावधान में ही रहने दिया जाता. मुख्यमंत्री ने राज्यपाल द्वारा संशोधन विधेयक लौटाए जाने के बाद सर्व सम्मत राय लेने का मन बनाया. जबकि उन्हें पहले ही ऐसा करना चाहिए था.

कुछ संशोधनों के निरस्त होने के बाद भी सरकार एवं पार्टी के अंदर मतभेद है. रघुवर सरकार के कैबिनेट मंत्री सरयू राय ने कहा कि सीएनटी-एसपीटी अति संवेदनशील मुद्दा है. इस पर गहराई से विचार मंथन होना चाहिए. उधर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता करिया मुंडा ने कहा कि इस संशोधन को लेकर मैं शुरू से आवाज उठाता रहा हूं. उन्होंने कहा कि अगर इस विधेयक को पुनः विधानसभा में लाया गया, तो इस बार पार्टी के विधायक भी सदन में अपना विरोध दर्ज कराएंगे. सरकार में शामिल गठबंधन दल आजसू से मंत्री कोटे में शामिल जन संसाधन मंत्री चन्द्रप्रकाश चौधरी ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही इस विधेयक का विरोध कर रही है.

भू-राजस्व मंत्री अमर बाउरी का कहना है कि राज्य सरकार सीएनटी-एसपीटी में संशोधन कर उसे फिर विधानसभा के मानसून सत्र में लाएगी. सरकार ने राज्यपाल द्वारा की गई आपत्तियों का निराकरण कर लिया है और कृषि योग्य भूमि के व्यावसायिक उपयोग वाले संशोधन को निरस्त कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि ये संशोधन आदिवासियों के हित में है और इसके आने के बाद आदिवासी समाज के जीवन में और बदलाव आएगा. उन्होंने कहा कि ये विधेयक पूरी तरह जनहित में है.

उधर, विपक्ष सरकार पर इस विधेयक को लेकर लगातार हमला कर रहा है. राज्यपाल द्वारा संशोधन विधेयक को लौटाए जाने के बाद विपक्षी दलों का मनोबल और बढ़ गया है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास व्यवसायिक एवं औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए ही इस तरह का विधेयक लाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि ये मामला केवल संशोधनों तक ही सीमित नहीं है. स्थानीयता का मामला झारखंडियों की पहचान और शहीदों के सपने से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार ने सदन को कैद कर आदिवासियों का विनाश करने वाले इस विधेयक को संख्या बल के आधार पर पारित करा लिया था.

लेकिन राज्यपाल ने इसे समझा और आदिवासियों का अस्तित्व बच गया, नहीं तो आदिवासियों का क्या होता, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है. आदिवासियों को भूमि से वंचित करने की साजिश की जा रही थी. भाजपा सरकार आदिवासियों का अस्तित्व मिटा देने की कोशिश कर रही है. उन्होंने रघुवर सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि बिल फिर से विधानसभा में लाने का दुस्साहस नहीं करे, नहीं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.

कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का कहना है कि अगर सरकार ने बिल दोबारा राजभवन भेजा, तो पूरे राज्य में नया आंदोलन होगा. राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को गलती सुधारने का मौका दिया है, वे गलती सुधार लें, वरना विपक्षी दल उन्हें उखाड़ फेंकेगा. सहाय ने कहा कि राज्यपाल ने सही वक्त पर सही फैसला किया है. राज्य सरकार को भी हठ छोड़कर तत्काल बिल को रद्द कर देना चाहिए, ताकि राज्य में अमन-चैन रहे और जनता तरक्की करे.

सीएनटी-एसपीटी की धारा 21 और 13 के संशोधन को निरस्त करने पर सहमति

मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में पिछले दिनों हुई जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की बैठक में छोटानागपुर संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी-एसपीटी एक्ट) की धारा 21 और 13 में संशोधन को निरस्त करने पर सहमति बनी. टीएसी की अगली बैठक तीन अगस्त को बुलाई गई है. उस बैठक के बाद ही इसे विधानसभा में पेश किया जाएगा. टीएसी की बैठक के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पत्रकारों से कहा कि सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने वापस भेजा है, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने संशोधन को लेकर अपनी आपत्ति राज्यपाल के समक्ष दर्ज कराई थी.

राज्यपाल ने उन आपत्तियों के साथ विधेयक को वापस भेजा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार जनहित के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगी. सभी सदस्यों की सहमति के बाद तीन अगस्त को फिर से टीएसी की बैठक बुलाई गई है, जिसमें प्रस्ताव पारित होने के बाद ही राज्य सरकार संशोधन विधेयक विधानसभा में लाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि टीएसी की अनुसूचित जनजाति मोर्चा और आदिवासी विधायकों व अन्य वरिष्ठ नेताओं और विपक्षी दलों व सामाजिक संगठनों की आपत्ति की समीक्षा के बाद सीएनटी की धारा 21 और एसपीटी की धारा 13 में संशोधन के प्रस्ताव को निरस्त करने पर सहमति बनी है. मुख्यमंत्री ने साफ किया कि राज्य सरकार किसी जल्दबाजी में नहीं है, सभी पक्षों से विचार करने और आम सहमति के बाद ही समुचित फैसला लिया जाएगा.

विकास विरोधी तत्वों ने भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश जरूर की, लेकिन इसके निपटारे का भी लोकतांत्रिक हल निकाला जाएगा. राज्य सरकार प्रारंभ से ही सीएनटी-एसपीटी एक्ट जैसे गंभीर मुद्दे पर विधानसभा में बहस के पक्ष में थी, लेकिन विपक्ष ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से सदन को बाधित कर वाद-विवाद नहीं होने दिया. आजादी के 70 वर्ष बाद भी आदिवासियों की आर्थिक सामाजिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ है, अरबों-खरबों रुपए आदिवासी विकास के नाम पर खर्च हुए, लेकिन उनकी जमीनी हकीकत में कोई खास बदलाव नहीं आया. मुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्षी दल सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध न करें, बल्कि गरीबों के हित को ध्यान में रखकर और सुधार तथा परिस्कार के लिए अपना सुझाव दें.

राज्यपाल ने 192 शिकायतों पर लौटाया बिल

झारखंड की राज्यपाल डॉ. द्रौपदी मुर्मू ने विधानसभा से पारित किए गए सीएनटी-एसपीटी संशोधन बिल को मंजूर किए बिना राज्य सरकार को लौटाने का फैसला आदिवासी संगठनों की 192 शिकायतों के आधार पर किया है. इनमें कार्डिनल तेलेस्फोर पी. टोप्पो के नेतृत्व में राज्यपाल को दिया गया ज्ञापन भी शामिल है, जिसमें आदिवासियों के हित में इन जुड़वां विधेयकों में संशोधन को नामंजूर करने की मांग की गई थी. इन्हीं शिकायतों को आधार बनाकर राज्यपाल ने बिल लौटाया और सरकार से यह जानना चाहा है कि इन संशोधनों से जनजातीय समुदाय को क्या फायदा होगा? भाजपा के ज्यादातर आदिवासी नेता भी नहीं चाहते हैं कि इस विवादित बिल को दुबारा विधानसभा में लाकर झारखंड में पार्टी के मिशन-2019 की उम्मीदों को धूमिल किया जाए.

राज्य में लोकसभा की 14 सीटें हैं. इनमें भाजपा के पास 12 सीटें हैं. मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान और पंजाब में भाजपा के विरोध में उठती आवाज के मद्देनजर भाजपा झारखंड में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है. भाजपा के महामंत्री दीपक प्रकाश प्रतुल शाहदेव ने कहा कि संशोधन बिल दुबारा लाना पार्टी का नहीं, सरकार के निर्णय क्षेत्र का विषय है. खूंटी से भाजपा सांसद करिया मुंडा ने कहा कि गेंद सरकार के पाले में है.

सरकार को आदिवासियों के हित में फैसला करना चाहिए. अभी तक इस संशोधन का विरोध कर रहे वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा ने बिल लौटाने पर कहा कि सरकार निर्णय लेने में सक्षम है. सरकार की सहयोगी आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा कि राज्यपाल ने जनभावना का ख्याल रखा, अब सरकार की बारी है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्यपाल ने आदिवासियों की भावनाओं का ख्याल रखा है.

राज्य की जनता इस बिल के खिलाफ है. मरांडी ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए वह सीएनटी/एसपीटी संशोधन विधेयक राज्यपाल को दुबारा नहीं भेजे. मरांडी ने कहा कि झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां के 194 संगठनों ने प्रदेश सरकार के संशोधन बिल के खिलाफ मोर्चा खोला.

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