झारखंड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर चारा घोटाले में लालू यादव की मदद का आरोप लगा है. 1983 बैच की प्रशासनिक अधिकारी राजबाला वर्मा उस समय चाईबासा की उपायुक्त थीं, जब कोषागार से अवैध निकासी की गई थी. चारा घोटाले में मुख्य सचिव का नाम आने से राज्य का पूरा प्रशासनिक महकमा हतप्रभ है. राजबाला वर्मा मुख्यमंत्री रघुवर दास की सबसे करीबी मानी जाती हैं और सारे नीतिगत एवं महत्वपूर्ण फैसले इन्हीं की सहमति से होते हैं. बिना उनकी अनुमति के झारखंड के सरकारी महकमे का पत्ता तक नहीं हिलता. अब इसे लेकर विपक्ष के साथ-साथ सरकार के अपने लोग भी रघुवर सरकार पर हावी हो गए हैं. चारा घोटाला मामले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भाजपा नेता एवं राज्य के संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने तो अब अपनी मुख्य सचिव पर भी हमला बोल दिया है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि जब सीबीआई ने चारा घोटाले मामले में लालू प्रसाद को दोषी पाया और गिरफ्तार करने की कोशिश की, तो राजबाला ने गिरफ्तारी में कोई सहयोग नहीं किया. राजबाला वर्मा उस समय पटना की जिला अधिकारी थीं. सरयू राय ने कहा है कि सीबीआई की विशेष अदालत ने जब लालू प्रसाद को दोषी मानते हुए उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया था, तो पटना की तत्कालीन जिला अधिकारी राजबाला वर्मा फूट-फूट कर रोने लगी थीं. इतना ही नहीं, लालू यादव को पटना केन्द्रीय कारा ले जाने के रास्ते में राजबाला वर्मा ने उन्हें एक पांच सितारा होटल के पास चाय एवं नास्ता भी कराया, इस पर सीबीआई ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के साथ-साथ राज्य के अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह पर भी चारा घोटाले में संलिप्तता का आरोप है. चारा घोटाले के समय राजबाला वर्मा जहां चाईबासा की उपायुक्त थीं, वहीं सुखदेव सिंह देवघर के उपायुक्त थे. देवघर कोषागार से फर्जी आवंटन के आधार पर लगभग 80 लाख रुपए की निकासी कर ली गई थी. सीबीआई की विशेष अदालत ने इसी मामले में लालू प्रसाद सहित 16 लोगों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाया था. सीबीआई ने 1990-91 में चाईबासा ट्रेजरी से अवैध निकासी के मामले में राजबाला वर्मा को भी दोषी माना था. उस समयचाईबासा कोष से 36 करोड़ की अवैध निकासी की गई थी. यह मामला 30 अप्रैल 1990 से 30 दिसम्बर 1991 के बीच का है.
सीबीआई जांच में यह सामने आया था कि उपायुक्त के रूप में राजबाला वर्मा ने न तो कभी कोषागार का निरीक्षण किया और न ही मंथली एकाउन्ट्स महालेखाकार को भेजे. कुछ लेखा अगर भेजे भी गए, तो उनपर कनीय अधिकारियों के हस्ताक्षर थे. 1998 में सीबीआई ने राजबाला वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की अनुशंसा राज्य सरकार को भेजी. तत्कालीन मुख्य सचिव को सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट और केस फाईंडिंग्स देते हुए कहा था कि सरकार राजबाला पर विभागीय कार्रवाई करते हुए मेजर पनिसमेंट की कार्रवाई करे, लेकिन बिहार में लालू एण्ड फैमिली की सरकार ने कार्रवाई के नाम पर केवल राजबाला वर्मा से जवाब मांगा. हालांकि राजबाला वर्मा ने तीस से अधिक रिमाइंडर भेजे जाने के बाद भी जवाब नहीं दिया.
केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय ने ढाई माह पहले भी राज्य सरकार से इस मामले में रिपोर्ट मांगी थी. उसके बाद राज्य सरकार ने मुख्य सचिव राजबाला वर्मा से फिर स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन मुख्य सचिव ने अभी तक अपना स्पष्टीकरण नहीं दिया है. दरअसल, सीबीआई यह भी मान रही है कि तत्कालीन उपायुक्त द्वारा ट्रेजरी का निरीक्षण नहीं करने के कारण ही चाईबासा ट्रेजरी से अवैध निकासी हो सकी थी. सीबीआई ने राजबाला को इस घोटाले के आरोपियों में दूसरी कैटिगरी में रखा था. इस कैटेगरी में वैसे आरोपी थे, जिन पर लापरवाही एवं मिसकंडक्ट के सबूत मिले थे.
लेकिन अब तक कोई भी सरकार राजबाला के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकी, जबकि ऐसे ही मामले में सीबीआई की रिपोर्ट पर तीन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी. भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अंजनी कुमार, गोरेलाल यादव एवं एस विजय राघवन पर विभागीय कार्यवाई हो चुकी है. मुख्य सचिव राजबाला वर्मा 28 फरवरी 2018 को रिटायर होने वाली हैं. सरकार के नियमों के अनुसार रिटायरमेंट के बाद चार वर्ष से पुराने मामले पर किसी अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाई नहीं चल सकती है. जबकि यह मामला तो 25 वर्षों से भी पुराना है. शायद यही कारण है कि राजबाला को बचाने के लिए सरकार केवल रिमाइंडर भेजकर औपचारिकता पूरी कर रही है.
सरकार ने जारी की नोटिस
चारा घोटाला मामले में राजबाला वर्मा द्वारा लालू यादव की मदद की बात सामने आने पर अब झारखंड सरकार ने अपनी इस मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और उनसे 15 दिनों में जवाब मांगा है. मुख्यमंत्री रघुवर दास की स्वीकृति के बाद कार्मिक विभाग ने मुख्य सचिव से इस सम्बन्ध में जवाब देने को कहा है. कारण बताओ नोटिस में राजबाला वर्मा से पूछा गया है कि 14 जुलाई 2003 से मांगे जा रहे स्पष्टीकरण का जवाब आखिर अभी तक क्यों नहीं दिया गया है. चारा घोटाले के जिन्न ने राज्य के अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को भी अपने घेरे में ले लिया है. सुखदेव सिंह उस समय देवघर के उपायुक्त थे. तब पशुपालन विभाग का वास्तविक आवंटन मात्र छह हजार रुपए था, पर पशुपालन माफियाओं ने लगभग 80 लाख रुपए की निकासी कर ली.
सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में सुखदेव सिंह को भी प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए सम्मन जारी किया है और 23 जनवरी 2018 को उन्हें अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया है. इस मामले में सुखदेव सिंह का कहना है कि उन्होंने इस सम्बन्ध में वित्त आयुक्त को रिपोर्ट भेजी थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई. अदालती सम्मन के बाद सुखदेव सिंह ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखकर यह अनुरोध किया कि जांच पूरी होने तक उन्हें वित्त मंत्रालय से मुक्त किया जाय, क्योंकि वित्त मंत्रालय के अधीन ही कोषागार आता है. सुखदेव सिंह अभी वित्त विभाग के भी प्रधान सचिव हैं.
गौर करने वाली बात यह है कि झारखंड सरकार के जिन दो वरिष्ठ अधिकारियों पर चारा घोटाले की आंच आ रही है, वर्तमान में उनकी छवि स्वच्छ, कड़क एवं ईमानदार अधिकारी के रुप में है. मुख्य सचिव के रूप में राजबाला वर्मा रघुवर दास सरकार की सबसे ताकतवर अधिकारी के रुप में जानी जाती हैं. उनके बारेे में यह भी सुनने को मिलता है कि वे कनीय अधिकारी तो दूर, मंत्रियों को भी तरजीत नहीं देतीं. एक कड़क अधिकारी के अलावा वे अपने अक्कड़ रवैये के लिए भी जानी जाती हैं. कभी लालू प्रसाद की सबसे विश्वस्त अधिकारी रहीं राजबाला वर्मा ने रघुवर सरकार में भी अपनी रसूख कायम कर ली है.
इस सरकार में सारे नीतिगत एवं महत्वपूर्ण फैसले मुख्यमंत्री इनकी सहमति से ही लेते हैं. लेकिन अब चारा घोटाले में इन्हें फंसता देख झारखंड का पूरा सरकारी महकमा की पशोपेस में पड़ गया है. दोनों ही अधिकारियों को हटाए जाने की मांग तेज हो रही है. विपक्षी दलों ने इसे लेकर रघुवर सरकार पर हमला बोल दिया है कि जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार में दो बड़े अधिकारी ही चारा घोटाले में संलिप्त हैं. हालांकि इन सबके बाद भी रघुवर दास सरकार इन दोनों ही बड़े अधिकारियों के विरुद्ध कोई कड़ा कदम नहीं उठा रही है. राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को पद से हटाने के लिए तो झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है.
विपक्षी दलों के साथ-साथ अपने मंत्री ने भी सरकार को घेरा
चारा घोटाले में सीबीआई द्वारा मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को भी जिम्मेदार ठहराने के बाद तीनों प्रमुख विपक्षी दलों के साथ-साथ सरकार के अपने मंत्री ने भी रघुवर दास को घेरा है. संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय ने कहा है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है. सरकार को चाहिए कि रिटायरमेंट से पहले राजबाला वर्मा पर कार्रवाई की जाय. सरयू राय ने इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को चिट्ठी भी लिखी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि कानून का उल्लंघन करने वाला समुचित दंड का भागी होता है, चाहे वो कितना भी शक्तिशाली और प्रभावशाली पद पर क्यों न हो. सरकार इस मामले में कानून सम्मत कार्रवाई का आदेश दे, वरना सरकार की छवि पर असर पड़ेगा. उन्होंने सवाल उठाया है कि 30 रिमाइंडर भेजने के बाद भी राजबाला वर्मा ने जवाब क्यों नहीं दिया और प्रतीक्षा करने के बदले किसी सक्षम प्राधिकार ने मुख्य सचिव पर कार्रवाई क्यों नहीं की.
इसके लिए अफसरों की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी चाहिए. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने राजबाला वर्मा को मुख्य सचिव पद से तत्काल हटाने की मांग की है. उन्होंने कहा है, हमें इंतजार है कि भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सरकार अब क्या करती है. झामुमो के केन्द्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने भी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि चाईबासा ट्रेजरी से अवैध निकासी मामले में दोषी पाए जाने पर पूर्व सीएस सजल चक्रवर्ती को सजा हुई, लेकिन बार-बार रिमांइडर के बावजूद जवाब न देने वाली राजबाला वर्मा पर विभागीय कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए राज्यपाल सरकार को कार्रवाई करने का आदेश दें. वहीं झाविमो के केन्द्रीय महासचिव प्रदीप यादव ने भी राजबाला वर्मा को तत्काल हटाने और उनपर विभागीय कार्रवाई चलाने की मांग की है.
उन्होंने कहा है कि झाविमो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राज्यपाल से राजबाला वर्मा मामले की शिकायत करेगा. कांग्रेस ने भी इस मामले को लेकर सरकार पर हमला बोला है. प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने कहा है कि सरकार इस मामले में तत्काल कार्रवाई करे. ऐसे मामलों में कार्रवाई न होने से राज्य की छवि खराब हुई है. उन्होंने कहा कि राजबाला वर्मा को सेवा विस्तार देने की भी चर्चा है. ऐसा हुआ तो यह काफी गलत होगा.