amit-shahझारखंड राज्य के गठन के 15 वर्ष बाद विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ तो मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी के अंदर मतभेद उत्पन्न हो गया. पार्टी के अधिकांश विधायक किसी आदिवासी को ही मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में थे, पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आगे किसी की भी नहीं चली. अनुशासन का दंभ भरने वाली भाजपा में विधायकों की राय लिए बिना रघुवर दास को विधायक दल का नेता चुन लिया गया और दास के माथे पर मुख्यमंत्री का ताज पहना दिया गया. अमित शाह के इस फैसले के बाद अधिकांश आदिवासी विधायक नाराज हो गए. यह अहसास अमित शाह के साथ ही रघुवर दास को भी होने लगा. पार्टी के बहुमत में रहने के बाद भी मुख्यमंत्री को हमेशा सरकार गिरने का भय सताने लगा. यही कारण है कि दूसरी पार्टी को तोड़ने का काम भाजपा के आला नेताओं के इशारे पर शुरू हुआ. भाजपा से अलग होकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने नई पार्टी बनाई थी. इस चुनाव में बाबूलाल की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने आठ विधानसभा क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमाया, पर उसके छह विधायकों को मंत्री पद का लालच देकर भाजपा में शामिल करा लिया गया. विधानसभा एवं न्यायालय में दल-बदल को लेकर अभी भी मामला चल रहा है. फैसला आना अभी बाकी है. सरकार पर कोई खतरा नहीं आए यह सोच कर कांग्रेस को भी तोड़ने की मुहिम शुरू हुई पर भाजपाई इसमें सफल नहीं हो सके.

मुख्यमंत्री रघुवर दास शुरू से ही अंहकारी और बड़बोले नेता के रूप में जाने जाते हैं. इस बार तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होने के बाद मुख्यमंत्री पर अहंकार और सिर चढ़कर बोलने लगा. पार्टी के वरीय नेताओं तक को अहमियत नहीं दी जा रही है. कार्यकर्ता और जिला अध्यक्षों को तो मुख्यमंत्री ऐसी फटकार लगाते हैं कि जैसे वो उनकी पार्टी का नेता नहीं होकर कोई अपराधी हो. इस वजह से पार्टी के लोगों के साथ उनकी दूरियां बढ़ती जा रही हैं. मुख्यमंत्री के इस तानाशाही रवैये के कारण झारखंड में संगठन भी दिनोदिन कमजोर पड़ता जा रहा है. यह अहसास पार्टी के आला नेताओं को भी है पर अमित शाह के सामने अभी सबकी जुबान बंद पड़ी है, पर कभी भी यह विस्फोटक रूप ले सकता है. सरकार में शामिल घटक दल आजसू ने तो मुख्यमंत्री को तानाशाह ही करार दे दिया है. आजसू नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री सरकार को इस तरह चला रहे हैं जैसे कोई तानाशाह. किसी भी मुद्दे पर सहयोगी दलों के साथ मुख्यमंत्री सलाह-मशविरा करना उचित नहीं समझते हैं. स्थानीय नीति का हवाला देते हुए आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने कहा कि उनकी पार्टी ने स्थानीय नीति को लेकर जो सुझाव दिए थे उसे मुख्यमंत्री ने नजरअंदाज कर दिया और आदिवासी-मूलवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए स्थानीय नीति घोषित कर दी, जिसका पूरे राज्य में विरोध हो रहा है. पार्टी ने तो यहां तक चेतावनी दे डाली है कि अगर रघुवर अपने कार्यप्रणाली में सुधार नहीं लाते हैं तो पार्टी किसी भी हद तक जाने को तैयार है. यहां तक कि गठबंधन सरकार से अपना नाता भी तोड़ सकती है.

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मुख्यमंत्री रघुवर दास का अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ भी संबंध मधुर नहीं रहा है. तालमेल एवं समन्वय का घोर अभाव है. मंत्रियों पर भड़ास निकालने में मुख्यमंत्री कोई गुरेज भी नहीं करते. राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय के मुख्यमंत्री का हुआ विवाद खुलकर सामने आ गया है. दरअसल दोनों के बीच खटास का रिश्ता शुरू से बना हुआ है. संघ परिवार के भारी दबाव के कारण मजबूरी में सरयू राय को मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ा था. झारखंड में राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले सरयू राय को मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण स्थान भी नहीं मिला और उन्हें केवल खाद्य आपूर्ति विभाग का झुनझुना थमा दिया गया. श्री राय इस तरह का विभाग मिलने से खुश नहीं थे, पर वे इस विभाग में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए कामकाज पटरी पर ला रहे थे. लेकिन मुख्यमंत्री ने इस विभाग की समीक्षा के दौरान केवल इस विभाग की खामियां निकालीं और उसे गिनाना शुरू कर दिया. इससे विभाग के मंत्री बौखला गए. उन्होंने मुख्यमंत्री पर जमकर निशाना साधा और कहा कि मुख्यमंत्री बेवजह भड़ास न निकालें, नहीं तो कई और बातें सतह पर आने लगेंगी. मुख्यमंत्री और मंत्री के बीच आंतरिक कलह चर्चा में है.

विभागीय समीक्षा के दौरान भी देखा जाता है कि मुख्यमंत्री मंत्रियों पर हावी होने की कोशिश में लगे रहते हैं और अपना निर्णय थोपते हैं. मुख्यमंत्री के ऐसे रवैये और बार-बार अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण अधिकांश मंत्री नाखुश हैं. वरीय अधिकारियों के साथ भी मुख्यमंत्री का व्यवहार कुछ अव्यावहारिक ही है. अड़ियल रवैये के कारण राज्य के अधिकतर अधिकारी नाखुश हैं और इसका खामियाजा मंत्रियों को भुगतना पड़ता है. मुख्यमंत्री से नाखुश अधिकारी मंत्रियों पर अपनी खुन्नस निकालते हैं. इस कारण मंत्रियों और विभागीय सचिवों के बीच टकराव की नौबत बनी रहती है. मुख्यमंत्री वरिष्ठ अधिकारियों को धमकी भरे शब्दों से ही संबोधित करते हैं. कभी अधिकारियों को बर्खास्त करने की धमकी देते हैं तो कभी सचिवालय में शंट    कर सड़ा देने की धमकी देते हैं. अधिकारियों को कभी अरे, क्या कर रहा है तू जैसे शब्दों का भी उपयोग कर देते हैं. अधिकारियों को काम करने की नसीहत एवं भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की नसीहत दे-देकर वे हमेशा अधिकारियों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. सचिवालय में अधिकारी दबी जुबान से मुख्यमंत्री को अड़ियल और अहंकारी बताते हैं.

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दरअसल, मुख्यमंत्री रघुवर दास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का संरक्षण एवं आशीर्वाद मिलने के कारण कुछ ज्यादा ही दंभी हो गए हैं. यही कारण है कि वे राज्य के पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं और अधिकारियों को तरजीह नहीं देते. यहां तक कि प्रदेश के पार्टी पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों के साथ भी उनका बेहतर समन्वय नहीं है. पार्टी कार्यकर्ता ऐसे व्यवहार के कारण पार्टी से दूर होते जा रहे हैं. पार्टी के लोग अपने अध्यक्ष या संगठन मंत्री से खुलेआम शिकायत कर रहे हैं कि पार्टी या सरकार में उनकी कोई पूछ नहीं है, उनका कोई काम नहीं हो रहा है, ऐसे में पार्टी में बने रहने का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है. राज्य में संगठन की स्थिति भी दिनोदिन कमजोर होती जा रही है. यह अहसास केंद्रीय नेताओं को है, लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे! निश्‍चित तौर पर इसका असर अगले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा. मुख्यमंत्री पार्टी नेताओं कोखुलेआम दलाल और बिचौलिया वगैरह कहते रहते हैं, इसीलिए पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा या पूर्व केंद्रीय मंत्री करिया मुंडा जैसे नेता भी रघुवर सरकार को सलाह देने से कतराते हैं. यशवंत सिन्हा, उनके बेटे केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रवीन्द्र राय समेत कई अन्य वरीय नेता भी मुख्यमंत्री से दूर रहना ही ठीक समझते हैं. वैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास यह दावा करते हैं कि डेढ़ साल में झारखंड को पटरी पर लाकर खड़ा कर दिया है, विकास का कार्य दिखने लगा है, स्थानीयता का मुद्दा खत्म कर एक नया इतिहास बनाया है, राज्य से भ्रष्टाचार को समाप्त कर ही दम लेंगे, वगैरह वगैरह. लेकिन इन बातों से वे कब तक अपनी कुर्सी बचा पाते हैं, यही देखना है.

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