मैंने अपने अध्यक्षता के समय 14 एप्रिल 2018 के कचड़ा (उत्तराखंड) के डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के जयंतीपर की हुई घोषणा का पालन नहीं करने के लिए सार्वजनिक माफी मांगने के लिए ही यह पोस्ट लिखी है !

(1917-19) राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के नाते इन दो सालों में कम-से-कम पांच बार उत्तराखंड के दौरे पर गया हूँ ! हमारे दोनों पूर्ण समय कार्यकर्ता दलित है ! उत्तराखंड का दुसरा नाम देवभूमि है  ! लेकिन शेकडो मंदिर है ! जहां दलितों को प्रवेश नहीं है ! शादी या अन्य भोजन के कार्यक्रम में दलित समुदाय के लोगों को अलग बैठाया जाता है !
और सबसे हैरानी वाली बात, हाय वे पर चलने वाले हर ट्रक के पिछले हिस्से पर बेटी बचाओ का नारा लिखा हुआ मिलेगा ! लेकिन उत्तराखंड की दलित बेटी रजस्वला होने के तुरंत बाद, अपहरण कर के बगल के हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बेची जाती हैं ! लेकिन नाही प्रथमिकि होने देते और न ही कोई कार्रवाई ! और प्रधानमंत्री महोदय परसो गुजरात के किसी कार्यक्रम में अपने आठ साल के उपलब्धियां गिना रहे थे ! दिल्ली से उत्तराखंड की दूरी किधर से भी जाईये सिर्फ 300 किलोमीटर के दायरे में है !
उत्तराखंड के चारों धाम के लिए चौडे रास्ते ! वह भी हिमालय पर्वत को काटकर और लाखो पेड़ों की बलि चढ़ाकर ! देश भर के तिर्थयात्री उत्तराखंड की यात्रा के लिये जाते रहते हैं ! लेकिन वहां की जातीयता के तरफ कोई संज्ञान लेते हुए नहीं देखा गया ! और देश भर के लोगों को दर्शन करने दिया जाता है ! लेकिन स्थानीय अनुसूचित जनजातियों के लोगों को दर्शन मना है !
उसी तरह देहरादून स्थित, भारत सरकार की श्री. लालबहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी से ! भारत के कलक्टर, सेक्रेटरी और प्रशासनिक अधिकारियों की हरसाल कितनी बड़ी संख्या में बॅचेस निकल कर ! भारतीय प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में जाते हैं ! और उन्हीमेसे कुछ उत्तराखंड के प्रशासन के लिए भी नियुक्त होते हैं ! डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के जयंती – पुण्यतिथी जोर – शोर से मनाते हैं ! लेकिन उत्तराखंड की घोर जातियता कम होने का नाम नहीं ले रही है !


और लेंगे भी कैसे ? क्योंकि सभी अगड़ी जातीयो को पिछड़ी जातियों के अंतर्गत डालने का षड्यंत्र जो करके रखा हुआ है ! इस कारण कौन किसपर जातियवादी होने का आरोप करेगा ? और सबसे महत्वपूर्ण बात रिझर्व्हेशन के खिलाफ तो बहुत कुछ भला – बुरा कहा जाता है ! लेकिन रिझर्व्हेशन की सबसे ज्यादा लाभान्वित अगड़ी जातीया हो रही है ! यहां तक कि विधानसभा और लोकसभा तथा स्थानीय निकाय के चुनाव में भी यही हाल बना हुआ है ! आजादी के पचहत्तर साल और उत्तराखंड अलग राज्य बनकर बाईस साल से अधिक समय हो गया है ! लेकिन अगड़ी जातियों के पिछडी जाती में समावेश करने की कृती को ! कोई छूने की कोशिश भी नहीं कर रहा है ! तो जाती जो जाति नही कहावत को उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि, व्यक्तिगत जीवन में जातीयता के पालन के उदाहरण शेकडो है !

लेकिन कानूनी कार्रवाई कौन किसपर करेगा ? क्योंकि पिछडी जाती के सभी प्रकार के लाभ तो उठा रहे हैं ! लेकिन जब शादी या अन्य कोई भी तिजत्योहारोमे बदस्तूर जाति के आधार पर उच – निच का पालन किया जाता है ! कितनी अजिबोगरीब स्थिति है ? कानूनी तौर पर अगड़ी जातीयो के लोग पिछडे होने का लाभ उठाने के लिए सबसे आगे है ! और सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर घोर जातीयता का पालन करते हैं ! उन्हें इतनी भी शर्म नहीं है कि वह खुद पिछडी जाती के लाभ उठा रहे हैं ! तो कम-से-कम उसीके कारण उत्तराखंड में जातिवाद रहना नहीं चाहिए ! लेकिन हमारे मराठी भाषी कहावत है “कि जात जो नहीं जाती”!


शायद यह भारत के किसी भी राज्य में इस तरह का पहला ही उदाहरण कहा जा सकता ! व्यक्तिगत रूप से कुछ लोग अन्य राज्यों में चोरी से अपनी जाति को छुपाकर अनुसूचित जाति में शामिल करने के उदाहरण इक्का-दुक्का मिल जाते हैं ! कुछ सालों पहले नागपुर विश्वविद्यालय के यूजीसी रिफ्रेशर कोर्स में मुझे रिसोर्स पर्सन के रूप में बुलाया गया था ! और मेरा विषय जाती ही था ! मैंने अपने संबोधन में जो भी कुछ कहा था ! उसे सुनने के बाद एक टिचर मेडम ने, चाय के समय मुझे अलग से अकेले में पुछा “की मै अभी अपने जाती को बदलना चाहती हूँ ! ” तो मैंने पुछा क्यो ? तो मेडम बोली की मेरे बराबर की एक दलित महिला टिचर प्रोफेसर हो गई है ! और मै उसी पोस्ट पर हूँ ! जहाँ पर मेरी बहाली हुई है ! तो मैंने कहा ” कि मेडम आप अगर अपने करियर के लिए जाती बदलने की कृती करोगी तो यह गैरकानूनी है ! और अभी जो नौकरी है वह भी चली जा सकती है ! और शायद आपको सजा भी हो सकती है !” खैर वह मेरी बात सुनकर बहुत ही हैरान-परेशान हुई थी ! लेकिन कुछ लोग इस तरह की हरकतों को करने के कुछ उदाहरण हैं ! और उनके उजागर होने के खबरें भी आते रहती है !


लेकिन पूरे प्रदेश के सवर्ण जाती अनुसूचित जनजातियों में कानूनी तौर पर शामिल करने की कृती ! मुझे तो शुरु में विश्वास भी नहीं हो रहा था ! लेकिन हमारे दोनों कार्यकर्ता दलित होने के कारण और दोनों भी पढे – लिखे होने के कारण, अविश्वास की गुंजाइश ही नहीं है ! अगर यह घपला अभी भी चल रहा होगा, तो इसे अविलंब बदलने की मांग मैंने अपने पांच साल पहले कचड़ा के डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के जन्मदिन के अवसर पर, घोषणा की थी ! ” कि राष्ट्र सेवा दल इस तरह की गैरकानूनी बात को बदलने के लिए आंदोलन करेगा ! और बच्चियों की तस्करी को रोकने के लिए भी ! और देवभूमि के अंदर जितने भी मंदिर हैं जहाँ दलितों को प्रवेश वर्जित है ! वहां मंदिर प्रवेश के आंदोलन किया जायेगा !”


लेकिन मुझे खुद को कबूल करने की आवश्यकता है कि ! मैंने भी समस्त भारत के राष्ट्र सेवा दल को फैलाने के व्यस्तता में इस विषय पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया ! इसके लिए मैं खुद शर्मिंदा हूँ ! और उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति के लिए अपने आप को भी जिम्मेदार मानता हूँ ! और सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 30 मई, नागपुर, 2022

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