बेशक, पिछले दस सालों में कांग्रेस सरकार का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है, विनिर्माण लगभग नीचे चला गया है, इस क्षेत्र में बहुत काम करने की ज़रूरत है, लेकिन विकास और कॉरपोरेट सेक्टर की बात करके आप भारत की विशाल आबादी की उपेक्षा नहीं कर सकते. वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ऐसी सरकार चाहिए, जो उन्हें यह आशा बंधाए कि वे भी गरिमापूर्ण और उचित समृद्धि का जीवन जी सकते हैं. वे लोग सुपर रिच नहीं बनना चाहते, मर्सिडीज या बीएमडब्ल्यू में यात्रा नहीं करना चाहते. वे केवल बिना किसी परेशानी के अपना दिन-प्रतिदिन का काम करना चाहते हैं. वे स़िर्फ गांव में अच्छी सड़क, स्वच्छ पानी एवं बिजली चाहते हैं. दुर्भाग्य से, इस सबकी बात कोई नेता नहीं कर रहा है और न ऐसा कोई वादा कर रहा है.
(55)चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है और आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. चुनाव नौ चरणों में 7 अप्रैल से 12 मई के बीच होने हैं. मतदाताओं की संख्या और ऐसे क्षेत्र, जहां क़ानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है, को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग ने चुनाव को कुशलता से आयोजित किए जा सकने के हिसाब से ही तारीख़ें घोषित की हैं. इस लिहाज़ से यह बेहतर समय तालिका चुनाव आयोग ने तैयार की है. अर्द्धसैनिक बलों के मूड को भी ध्यान में रखा गया होगा. अब सवाल आता है मैदान में उतरी महत्वपूर्ण पार्टियों का, कि वे क्या करने के लिए खड़ी हैं? दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी. कांग्रेस की हालत खराब है. इस वक्त उसका ग्राफ दो कारणों से नीचे है. पहला, कांग्रेस दस सालों से सत्तारूढ़ है. दूसरा, उसके ख़िलाफ़ एक सत्ता विरोधी लहर है. उसके शासन के दौरान सामने आए घोटाले, भले ही उनके आरोप साबित न हुए हों, कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के मुख्य कारक रहे.
दूसरी ओर, भाजपा दस सालों के अंतराल के बाद फिर से सत्ता में आने की उम्मीद पाल रही है. उसके लिए यह एक बेहतर मौक़ा भी हो सकता है. दुर्भाग्य से, भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी को सामने लाकर इस चुनाव को राष्ट्रपति चुनाव में परिवर्तित करने की कोशिश की है. चुनाव भारत में इस तरह से नहीं लड़ा जाता है. तब तक कि आपका कद इंदिरा गांधी की तरह न हो, जो किसी भी भाषा, क्षेत्र, धर्म और जाति आदि से काफ़ी ऊपर थीं. क्या नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व ऐसा है? किसी को पता नहीं. अपने भाषणों में मोदी गुजरात में किए गए काम को लेकर बहुत गर्व का प्रदर्शन करते हैं. उन्होंने गुजरात में क्या किया? गुजरात एक पिछड़ा राज्य कभी नहीं था. गुजरात हमेशा से एक विकसित राज्य है. यहां के लोगों में शुरू से उद्यमिता का भाव रहा है, कपड़ा मिलों के पुराने दिनों से लेकर अब तक. ऐसा नहीं है कि मोदी ने बिहार जैसे पिछड़े राज्य को चारों ओर से बदल दिया हो, लेकिन हर कोई अपने काम का बखान करता ही है. सबको ऐसा कहने का अधिकार है और मोदी सब जगह ऐसा ही कर रहे हैं. हर जगह जाकर मोदी यही कह रहे हैं कि वह अगर प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो भारत को गुजरात में परिवर्तित कर देंगे, यह दिखाता है कि देश के बाकी हिस्सों के बारे में उनका ज्ञान क्या है. हालांकि महत्वपूर्ण बात यह नहीं है.

एक तीसरा मोर्चा बनाने के लिए प्रयास किए गए थे. दुर्भाग्य से, तीसरे मोर्चे के नेताओं के अहंकार से एक संयुक्त मोर्चा नहीं बन सकता, न बन सका. ये नेता अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं. ये अब कुछ समूह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस सबका कोई अर्थ नहीं है. अच्छा तो तब होता, जब मुलायम सिंह और मायावती अपनी सीटों को एडजस्ट करते या इसी तरह वामपंथी और ममता अपनी सीटों को एडजस्ट करते. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद असली एडजस्टमेंट शुरू होगा, यह तय करने के लिए कौन देश को सबसे विश्‍वसनीय और स्थिर सरकार दे सकता है.

महत्वपूर्ण बिंदु है कि क्या वह वास्तव में लोगों की भावनाओं को समझ रहे हैं? क्यों भाजपा अपने दम पर 275 या 300 सीटों की बात नहीं कर रही है? क्यों वह सबसे बड़ी पार्टी होने की बात कर रही है?
इंदिरा गांधी ने इस तरह की बात कभी नहीं की. उनके व्यक्तित्व का कमाल था कि उन्हें 350 सीटें मिली थीं. वर्तमान परिदृश्य ही उलझा हुआ है. आरएसएस, जो भाजपा की रीढ़ की हड्डी है, सहित भाजपा के ही लोग अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में मिली 182 सीटों से अधिक सीटें मिलने का अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं. वे इस आंकड़े को छूने से भी खुश हो जाएंगे. वे शिवसेना, अकाली दल आदि को मिलाकर 200 सीटों की उम्मीद करते हैं. हालांकि, बातचीत में वे 225-250 सीटों की बात करेंगे. सवाल यह है कि किस हालत और किस क़ीमत पर कौन लोग उनके साथ शामिल होंगे? दूसरी तरफ़ कांग्रेस है. खुद कांग्रेसी अपना आंकड़ा हर रोज कम कर रहे हैं. वे हतोत्साहित होते जा रहे हैं. पहले वे 150, 120 की बात कर रहे थे, अब डबल डिजिट पर आ गए हैं. यह दु:ख की बात है. कांग्रेस भारत की एक सबसे बड़ी पार्टी है. देश के हर हिस्से में यह मौजूद है. उसे इतना हतोत्साहित होने की ज़रूरत नहीं है.
एक तीसरा मोर्चा बनाने के लिए प्रयास किए गए थे. दुर्भाग्य से, तीसरे मोर्चे के नेताओं के अहंकार से एक संयुक्त मोर्चा नहीं बन सकता, न बन सका. ये नेता अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं. ये अब कुछ समूह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस सबका कोई अर्थ नहीं है. अच्छा तो तब होता, जब मुलायम सिंह और मायावती अपनी सीटों को एडजस्ट करते या इसी तरह वामपंथी और ममता अपनी सीटों को एडजस्ट करते, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद असली एडजस्टमेंट शुरू होगा, यह तय करने के लिए कौन देश को सबसे विश्‍वसनीय और स्थिर सरकार दे सकता है.
मैं समझता हूं कि सभी राजनीतिक विश्‍लेषकों एवं कमेंटेटरों, जो वर्तमान स्थिति का अध्ययन करते हैं, को अभी से मई तक ज़मीन से आने वाली आवाज़ सुनने के लिए अपने कान खुले रखने चाहिए. उन्हें सोशल नेटवर्क पर टिप्पणी करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि वे मतदाताओं को समझा सकें कि वे जल्दी में निर्णय न लें. उन्हें समझना चाहिए कि भारत पांच हजार वर्ष पुराना देश है. कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता का दावा करती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस पार्टी का उपहार है. धर्मनिरपेक्षता आज़ादी से पहले से, सैकड़ों वर्ष पुरानी चीज है. यह भारतीय लोकाचार में रची-बसी हुई चीज है.
इसी तरह अति उत्साह में भाजपा इतिहास या भूगोल पढ़े बिना कांग्रेस पर आरोप लगाती रहेगी. यह त्रासदी है कि हम उस समय से गुजर रहे हैं, जब देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां निरक्षरता का संकेत दे रही हैं. हमारे संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत अभी भी मान्य हैं, यह हमें समझना चाहिए. सरकार ग़रीबों को देखे, उनके बारे में सोचे, उन्हें रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करे. यह किसी भी सरकार की ज़िम्मेदारी है. पुलों, फ्लाईओवरों एवं मॉल्स की बात करके आप केवल शहरी मतदाताओं की बात करते हैं. भारत का विशाल बहुमत गांवों में रहता है. वह कृषि पर निर्भर है. विश्‍व बैंक या आईएमएफ के नवीनतम अध्ययन बताते हैं कि पिछले दस सालों में भारत में कृषि पर निर्भर लोगों की संख्या बढ़ी है. यह सरकार के उस दावे के विपरीत है कि लोग शहरों में अधिक आ रहे हैं.
इससे पता चलता है कि कृषि और अपनी ज़मीन लोगों को उनकी स्थिरता के लिए एक बहुत बड़ा अवसर देती है. क्या मोदी ने एक किसान या ज़मीन मालिक के लिए कोई प्रस्ताव दिया है? क्या मोदी के पास उनके लिए एक बेहतर सौदे की पेशकश है? नहीं. आप उन्हें अपनी ही ज़मीन से उखाड़ कर बेरोज़गार बना देते हैं. उस ज़मीन पर एक कारखाना डालना चाहते हैं. आप हज़ार किसानों की भूमि लेकर एक कारखाना डालना चाहते हैं, जिससे केवल दो सौ लोगों को रा़ेजगार मिलेगा. यह किस तरह का विकास है? ऐसा विकास भारत की मदद नहीं करेगा. विनिर्माण महत्वपूर्ण है. देश में लाखों एकड़ ज़मीन ऐसी है, जो उपजाऊ नहीं है, उसका अधिग्रहण किया जाना चाहिए और कारखाने वहां लगाए जाने चाहिए.
बेशक, पिछले दस सालों में कांग्रेस सरकार का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है, विनिर्माण लगभग नीचे चला गया है, इस क्षेत्र में बहुत काम करने की ज़रूरत है, लेकिन विकास और कॉरपोरेट सेक्टर की बात करके आप भारत की विशाल आबादी की उपेक्षा नहीं कर सकते. वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ऐसी सरकार चाहिए, जो उन्हें यह आशा बंधाए कि वे भी गरिमापूर्ण और उचित समृद्धि का जीवन जी सकते हैं. वे लोग सुपर रिच नहीं बनना चाहते, मर्सिडीज या बीएमडब्ल्यू में यात्रा नहीं करना चाहते. वे केवल बिना किसी परेशानी के अपना दिन-प्रतिदिन का काम करना चाहते हैं. वे स़िर्फ गांव में अच्छी सड़क, स्वच्छ पानी एवं बिजली चाहते हैं. दुर्भाग्य से, इस सबकी बात कोई नेता नहीं कर रहा है और न ऐसा कोई वादा कर रहा है.

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