जल संकट से उबारने के लिए पीलीभीत के गोमती उद्गम माधोटांडा से निकलने वाली गोमती नदी का लगभग 47 किलोमीटर रास्ता 16 ग्राम पंचायतों के उन किसानों ने छोड़ दिया, जिसपर वे वर्षों से खेती कर अपना और अपने परिवार का गुज़ारा किया करते थे. पीलीभीत के गांव माधोटांडा के सात कुंडों से निकलने वाली गोमती नदी अब एक तालाब की शक्ल ले चुकी है, क्योंकि अब ये कुंड पानी नहीं देते. कुंडों में खुलने वाले पानी के श्रोत भूमिगत पानी के अत्यधिक दोहन के कारण सूख गए हैं, जिन्हें एक बार फिर रिचार्ज करना होगा.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री हैं. गोमती उन पवित्र नदियों में से एक है, जिसके बारे मेंे मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि हिन्दुओं के आराध्य श्रीराम रावण का वध करने के पश्चात ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए गुरु महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार इसी गोमती नदी में स्नान करने आए थे. जनपद पीलीभीत में गोमती नदी की लम्बाई 47 किलोमीटर है. पीलीभीत के 16 ग्राम पंचायतों माधोटांडा, हरीपुर फुलहर, देवीपुर, नवदिया धनेश, रमपुरा फकीरे, सबलपुर मु. फकीरे, उदयकरनपुर, शेरपुर मकरंदपुर, कल्यानपुर, शाहबाजपुर, गोपालपुर, टांडा, गुलडिया भूपसिंह, सिकरहना, पिपरिया मझरा और सुन्दरपुर के 34गांवों से होकर गोमती नदी गुज़रती है.
जब प्रशासन ने लखनऊ स्थित रिमोट सेन्सिंग विभाग से गोमती नदी उद्गम से आगे के नदी के रास्ते के बारे में जानकारी मांगी, तो वहां के वैज्ञानिक स्तब्ध रह गए, क्योंकि वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट से उद्गम स्थल के आगे का रास्ता खोजने की कोशिश की तो मालूम हुआ कि आगे नदी का कोई रास्ता है ही नहीं, नदी के रास्तों पर पूर्ण रूप से अतिक्रमण है. ग्रामीणों का कहना है कि उनके परिवार के बुजुर्ग बताते हैं कि उद्गम स्थल में सात कुंड हैं. इन्ही कुंडों से गोमती नदी का पानी निकलता था जो आगे चलकर नदी का रूप ले लेती थी. कुंडों में स्थित पानी के श्रोत अवरुद्ध हो जाने के कारण वर्षों पूर्व निकलने वाला पानी अब नहीं निकलता है. यही वजह है कि उद्गम स्थल एक तालाब बन कर रह गया और आगे नदी के रास्तों पर अतिक्रमण हो गया और लोग खेती करने लगे.
ग्राम प्रधान माधौटांडा श्रीमती किरण सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन ने 16 ग्रामपंचायतों के प्रधानों की एक सभा बुलाई, जिसमें प्रस्ताव रखा कि गोमती को पुनर्जीवित करने के प्रयास को जनसहयोग की जरूरत है. यदि लोगों ने सहयोग दिया तो गोमती पुनर्जीवित होकर नदी के रूप में बहने लगेगी. प्रधानों ने सहमति देते हुए इसे जन आंदोलन बनाने का संकल्प लिया. साथ ही यह भी तय किया कि गोमती नदी के रास्तों पर किए गए अतिक्रमण को आपसी सहमति से हटा लिया जाएगा. श्रीमती सिंह ने बताया कि ग्राम प्रधानों ने धार्मिक पौराणिक मान्यताओं को दृष्टिगत रख कर अपनी-अपनी ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों की आपसी सहमति बनाकर अतिक्रमण हटाने का काम शुरू कर दिया.
नदी के रास्तों को अवरुद्ध करने वाले अतिक्रमण जैसे, किसानों ने अपनी फसल तथा ग्रामीणों ने अपने मकान स्वयं हटा लिए और 2 अप्रैल को उद्गम स्थल पर पूजा अर्चना कर गोमती को पुनर्जीवित करने के लिए खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया. जिला प्रशासन ने ग्रामीणों की जन सहभागिता बनाए रखने के लिए गोमती परिक्षेत्र की 16 ग्राम पंचायतों में जल पंचायत समितियां बनवाई है, जिससे खुदाई का काम एक बार प्रारंभ हो तो बंद न हो. प्रशासन ने अपनी देखरेख में नदी के रास्ते मनरेगा तथा श्रमदान से खुदाई प्रारंभ कर दी, जो अब तक जारी है.
मालूम हो कि गोमती नदी में 12 सहायक नदियां तथा 22 बरसाती नाले मिलते हैं. उद्गम स्थल के तालाब में लगभग 10 विभिन्न प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं. लखनऊ स्थित रिमोट सेन्सिंग विभाग के वैज्ञानिक राजेन्द्र ने बताया कि जिला प्रशासन के बुलावे पर वे अपनी टीम के साथ पीलीभीत जनपद के गोमती उद्गम स्थल माधोटांडा गए थे. गोमती नदी के क्षेत्र में अत्यधिक जलदोहन के कारण भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे चला गया है. यही वजह है कि गोमती उद्गम स्थल स्थित कुंडों के श्रोतों ने पानी देना बंद कर दिया है. भूमिगत जलस्तर को कम करने के लिए एकमात्र उपाय है कि भूमिगत जल को विभिन्न तरीकों से रिचार्ज किया जाए.
पीलीभीत के किसान गर्मियों के दिनों में भी धान की फसल उगाते हैं, जिसके लिए उन्हें भूमिगत जल का दोहन करना पड़ता है, जो किसी भी दशा में उचित नहीं है. नदियां सदा नीरा बनी रहें, इसके लिए जरूरी है कि भूमिगत जल का भंडार कम न होने पाए. गोमती उद्गम से पानी लगातार निकलता रहे इसके लिए जरूरी है कि जन जागरूकता अभियान चले, जिससे हर स्तर पर पानी को रिचार्ज करने का काम होता रहे. गोमती उद्गम में शारदा नहर का पानी लाया जा रहा है. 16 ग्राम पंचायतों में 34 ग्राम आते हैं. इन ग्रामों में जो भी पानी के परम्परागत श्रोत हैं, जैसे तालाब, कुएं, उन्हें पानी से भरा जाना चाहिए, तभी गोमती क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर ऊपर आएगा और गोमती फिर से बहने लगेगी. उन्होंने बताया कि उद्गम के तालाब को भूमिगत पानी से नहीं भरा जाना चाहिए.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के 130 ब्लॉक पानी के अतिदोहन के चलते डार्क जोन घोषित हो चुके हैं, जिसमें 122 ब्लॉकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है. बिगड़ते पर्यावरण के चलते प्रदेश में वर्षा कम होती है और प्रयोग में आने वाले पानी का 80 प्रतिशत पानी भूमि का ही लिया जाता है. हम एक हज़ार वर्षों के संचित पानी को सौ वर्षों में ही खर्च कर चुके हैं. पीलीभीत क्षेत्र में गन्ना तथा धान की खेती की जाती है. जो किसान धान की खेती करते हैं, वो साल में तीन फसलें लेते हैं और जो गन्ना की खेती करते हैं, उनका गन्ना लगभग आठ से नौ महीने खेत में रहता है.
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : नेता-नौकरशाह नहीं, बकरे ही होंगे हलाल -दीनबंधु कबीर
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री का पद संभालते ही लखनऊ में गोमती किनारे जाकर सपा के कार्यकाल में बने गोमती रिवर फ्रंट का जायजा लिया था. मुख्यमंत्री ने गोमती रिवर फ्रंट के नाम पर भारी घोटाला किए जाने की बात स्वीकार की थी, जिसमें तत्कालीन सरकार के अलमबरदार और बड़े नौकरशाह लिप्त थे. योगी ने मामले की सीबीआई जांच कराने की घोषणा की और प्रदेश के लोगों को यह उम्मीद बंधाई कि घोटाले में लिप्त बड़े लोग जल्दी ही शिकंजे में होंगे.
लेकिन बड़े घोटालेबाज नेताओं और नौकरशाहों के लिए कानून का शिकंजा-शिकंजी साबित हुआ, जिसे वे घोल कर पी गए. शासन स्तर की भी जांच हुई. सीबीआई भी मैदान में उतरी और प्रवर्तन निदेशालय (इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) भी जांच में शामिल हो गया, लेकिन इतना अर्सा बीत जाने के बाद भी नतीजा क्या निकला? यही न कि रिवर फ्रंट घोटाले में इंजीनियर फंसेंगे और बलि के बकरे हलाल किए जाएंगे! दिलचस्प यह भी है कि गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की न्यायिक जांच भी कराई गई थी. पांच वर्ष बाद जब दूसरी सरकार आएगी तो वह घोटाले की जांच में हुए घोटाले की जांच कराएगी.
प्रवर्तन निदेशालय ने बहुत मगजमारी करके गोमती रिवर फ्रंट घोटाला मामले में आठ इंजीनियरों के खिलाफ केस दर्ज किया है. लखनऊ पुलिस भी इन्हीं आठ इंजीनियरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर चुकी है और सीबीआई भी सिंचाई विभाग के इन्हीं आठ अधिकारियों को लेकर पिली पड़ी है. किसी भी जांच एजेंसी को उसके आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही है. जबकि गोमती रिवर फ्रंट के नाम पर 1513 करोड़ रुपए की हेराफेरी की गई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुगबुगाहट दिखा कर भी घोटालेबाजों का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं. सपा सरकार में घोटाले इतने परवान पर थे कि सब ‘बहती गंगा थी’ और यही फार्मूला गोमती पर भी आजमाया जा रहा था.
गोमती रिवर फ्रंट का काम शुरू भी नहीं हुआ था कि सपा सरकार ने 1513 करोड़ में से 1437 करोड़ रुपए का पेमेंट भी कर दिया. इसके बावजूद, सीबीआई को या दूसरी जांच एजेंसी को आठ इंजीनियर ही चोर दिखते हैं. जिन आठ इंजीनियरों को हलाल करने की घेरेबंदी हो रही है, उनमें चार पहले ही रिटायर हो चुके हैं. कुछ और रिटायर होने वाले हैं. यानि घोटाले पर कार्रवाई के नाम पर छीछालेदर की पूरी तैयारी है. इसी छीछालेदर का पूरा प्रचार-प्रसार भी किए जाने की अभी से तैयारी हो रही है. लोकसभा चुनाव के पहले यह सब प्रहसन खेल लिया जाएगा.
आप एक बार फिर उन बलि के बकरों के नाम जान लें जिन इंजीनियरों के खिलाफ इन्फोर्समेंट निदेशालय ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की है. उन्हीं के खिलाफ लखनऊ पुलिस और सीबीआई भी एफआईआर दर्ज कर चुकी है. उन बलि के बकरों में गुलेश चंद्र, एसएन शर्मा, काजिम अली, शिव मंगल यादव, अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव और सुरेंद्र यादव के नाम शामिल हैं. इनमें गुलेश चंद्र, शिव मंगल यादव, अखिल रमन और रूप सिंह यादव रिटायर हो चुके हैं. करोड़ों के घोटाले में किसी भी नेता या नौकरशाह का नाम नहीं है. परियोजना की डिजाइन तैयार करने वाले सामर्थ्यवान आर्किटेक्ट का नाम भी नहीं है. परियोजना का खाका खींचने वाले एक आईएएस अफसर का नाम भी एफआईआर में नहीं है.
जो जानते हैं, वे यह जानते हैं कि गोमती नदी के नाम पर हमेशा घोटाला होता आया है. सपा के कार्यकाल में, बसपा के कार्यकाल में और भाजपा के कार्यकाल में भी गोमती के सौंदर्यीकरण के नाम पर जनता के धन का बेजा इस्तेमाल होता रहा है. लेकिन गोमती नदी वैसी की वैसी रह गई. वर्ष 2007 में बसपा सरकार ने गोमती नदी को संवारने का बीड़ा उठाया था. नदी की तलहटी तक सफाई करने के लिए सरकार ने यूपी प्रोजेक्ट कारपोरेशन को काम दिया था. करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन गोमती की गंदगी दूर नहीं हुई. बसपा के कार्यकाल में अंबेडकर स्मारकों की रौनक बढ़ाने की गरज से गोमती नदी में पानी का ठहराव बनाने के लिए 40 करोड़ रुपए की लागत से लामार्ट कॉलेज के पीछे गोमती पर तटबंध बनाया गया था.
इसमें ढाई मीटर चौड़ा और 825 मीटर लंबा जॉगिंग ट्रैक भी बना था. इसी तरह जब भाजपा की सरकार थी, तब भी गोमती नदी को गंदगी से मुक्त करने के लिए बड़ी योजना बनी थी. कोलकाता से ड्रेजिंग मशीन ‘स्वाति’ मंगवाई गई थी. कुछ गाद निकली और फिर जनता का धन मवाद की तरह बह गया. तब लालजी टंडन प्रदेश के नगर विकास मंत्री हुआ करते थे. अखिलेश की तरह उनके पिता मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में भी गोमती के नाम पर घोटाला हुआ था. तब भी गोमती नदी को संवारने में पानी की तरह पैसा बहाया गया, लेकिन परियोजना अधूरी ही रह गई. विजिलेंस ने मामले की जांच भी की, लेकिन रिपोर्ट का पता नहीं चला. तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खान ने दावा किया था कि स्विटजरलैंड की तर्ज पर गोमती तट को संवारा जाएगा. इसके लिए भव्य गेट बनने थे.
हनुमान सेतु के पास पिलर खड़े भी किए गए, कई अन्य काम भी हुए, लेकिन असली काम ही नहीं हुआ. काम का जिम्मा जलनिगम की सीएंडडीएस इकाई को दिया गया था. पहले चरण में हनुमान सेतु से निशातगंज पुल तक गोमती के दोनों तटों को संवारते हुए पिकनिक स्पॉट बनाना था. करोड़ों रुपए खर्च हो गए, पर काम आगे नहीं बढ़ सका. सरकार बदलने पर काम रोक दिया गया. उस प्रोजेक्ट के लिए फ्रांस से 45 करोड़ की लागत से एक फव्वारा मंगाया गया था, जिसके चलने पर लेजर लाइट के जरिए लखनऊ के प्राचीन इमारतों की तस्वीर बनती. चार करोड़ की लागत से वाटर बस भी आई थी, जो घूमने वालों को लखनऊ की सैर कराती और उन्हें गोमती नदी में भी सफर कराती. लेकिन वह सब कहां विलुप्त हो गईं, सीबीआई के आका और काका भी नहीं ढूंढ पाएंगे.