संसदीय चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक शिकस्त का असर अब जम्मू-कश्मीर में भी साफ़ दिखाई दे रहा है. देश भर में कांग्रेस की इस हार ने जम्मू-कश्मीर में उसकी लीडरशिप पर जबरदस्त असर डाला ही था, लेकिन अब मुस्लिम बाहुल्य इस राज्य में पहली बार भाजपा के उभार ने भी कांग्रेस को ख़तरों से दो-चार कर दिया है. जम्मू के हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों, जहां पहले कांग्रेस की तूती बोलती थी, में अब भाजपा धर्म के नाम पर मतदाताओं को अपने पाले में लाते हुए सफल नज़र आ रही है. इसके सुबूत संसदीय चुनाव में भी देखने को मिले थे. संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने जम्मू की सभी तीन सीटों से अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें गुलाम नबी आज़ाद जैसे मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी शामिल थे, लेकिन पार्टी को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली. संसदीय चुनाव में कश्मीर, जम्मू और लद्दाख में डाले गए कुल वोटों में से 32.4 प्रतिशत वोट भाजपा को मिले थे. जबकि सामूहिक रूप से 30 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को वोटों का बहुमत हासिल था. उल्लेखनीय है कि वर्तमान राज्य विधानसभा में कांग्रेस के 17 विधायक हैं, जिनमें अधिकतर जम्मू से हैं. ज़ाहिर है, जम्मू में भाजपा की जारी लहर का खामियाज़ा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा.
राज्य की राजनीति पर गहरी नज़र रखने वाले विश्लेषक ताहिर मुहीउद्दीन का मानना है कि जारी विधानसभा चुनाव में भाजपा, जिसके पास फिलहाल 11 सीटें हैं, को निश्चित रूप से अतिरिक्त सीटें मिलेंगी और उसके खाते में आने वाली ये अतिरिक्त सीटें कांग्रेस की होंगी. मुहीउद्दीन कहते हैं कि जम्मू के हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में जारी लहर देखकर यह बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वहां इस बार कांग्रेस की छुट्टी होने वाली है. कांग्रेस का दुर्भाग्य यह भी है कि पिछले 12 वर्षों के दौरान राज्य की गठबंधन सरकारों का हिस्सा रहने के बावजूद वह राज्य में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और जड़ें मजबूत करने में नाकाम रही. इस दौरान अपने कुछ नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण भी जनता में उसकी काफी बदनामी हुई. पिछले छह वर्षों यानी नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार के दौरान ही कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों में संलिप्त होने के गंभीर आरोप लग चुके हैं. वर्ष 2009 में राज्य में गठबंधन सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री जीएम सरवरी पर अपनी बेटी को कॉमन एंट्रेंस टेस्ट में पास कराने के लिए नकल कराने का आरोप लगा और जांच के बाद आरोप सही साबित हुआ. शिक्षा राज्य मंत्री पीरजादा मोहम्मद सईद के बारे में खुलासा हुआ कि उन्होंने अपने सौतेले बेटे को दसवीं कक्षा में पास कराने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उसके घर में अलग से परीक्षा केंद्र बनवाया था. इस मामले की जांच राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच ने की, जिसमें आरोप सही साबित हुआ. एक और कांग्रेसी मंत्री श्याम लाल शर्मा, जिनके पास पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग की ज़िम्मेदारी थी, पर नकली दवाओं के स्कैंडल में संलिप्त होने का आरोप लगा. मामले का खुलासा होने के बाद घाटी में आक्रोश की लहर फैल गई और राज्य स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं राज्य मंत्री ताज मुहीउद्दीन के बारे में खुलासा हुआ कि उन्होंने घाटी के शोपियां क्षेत्र में जंगल का एक भूभाग अपने नाम करा लिया. इस खुलासे के बाद विधानसभा में विपक्ष ने काफी हंगामा किया, लेकिन न तो कोई जांच हुई और न सच्चाई जनता के सामने आई.
इसी तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य के उप- मुख्यमंत्री ताराचंद पर भ्रष्टाचार और छेड़खानी का आरोप लगा. स्वयं उनके पीआरओ केवल कुमार ने खुलेआम बताया कि उप-मुख्यमंत्री पर लगे आरोपों के साक्ष्य हैं. एक अन्य कांग्रेसी नेता शब्बरी खां, जो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे, द्वारा अपने दफ्तर में एक महिला डॉक्टर के साथ छेड़खानी करने का मामला सामने आया. इस संदर्भ में स्वयं उस महिला डॉक्टर ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई. खां को बाद में अदालत के आदेश पर गिरफ्तार किया गया. राज्य के कृषि मंत्री गुलाम हुसैन मीर, जो कांग्रेस के समर्थन से मंत्री बने थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने वर्ष 2010 में उमर अब्दुल्लाह सरकार गिराने के लिए सेना से पैसे लिए थे. ये तो कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो केवल पिछले 6 वर्षों के दौरान नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के दौरान सामने आए. ताहिर मुहीउद्दीन कहते हैं कि जम्मू के हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा का उभार तो कांग्रेस को प्रभावित करेगा ही, भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेसी नेताओं की बदनामी भी राज्य में पार्टी को ले डूबने की एक वजह बन सकती है. जहां तक राज्य में कांग्रेस के राजनीतिक करियर का संबंध है, उसे पहली बार 2002 के चुनाव से ही प्रगति मिलनी शुरू हो गई थी. उससे पहले पार्टी की राज्य में कोई साख नहीं थी. वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 8 सीटें मिली थीं. यह वह दौर था, जब पार्टी में मुफ्ती मोहम्मद सईद जैसे मंझे हुए राजनीतिज्ञ शामिल थे और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती उसके शीर्ष राज्य नेताओं में शुमार की जाती थीं. लेकिन, जब मुफ्ती ने कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया, तो 2002 के विधानसभा चुनाव में एक विभाजित जनादेश निकल कर सामने आया और कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं, जबकि मुफ्ती की नई पार्टी पीडीपी को 16. मुफ्ती ने सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का सहयोग लिया और इस तरह पहली बार राज्य में कांग्रेस सरकार में भागीदार बनी. वर्ष 2008 के चुनाव के बाद नेशनल कांफ्रेंस ने भी सरकार गठन के लिए कांग्रेस की मदद ली और एक बार फिर कांग्रेस राज्य की गठबंधन सरकार का हिस्सा बन गई. इस तरह लगातार 12 वर्षों तक कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में सत्ता की साझीदार बनी रही, लेकिन अब ऐसा लगता है कि जिस तरह केंद्र में लगातार दस वर्षों तक शासन करने के बाद कांग्रेस का पतन हुआ, उसी तरह राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में भी पार्टी अपना महत्व खो रही है.
जम्मू-कश्मीर : कांग्रेस राजनीतिक पटल से हट रही है
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