जादू की छड़ी का नाम आते ही आप के चेहरे पर एक सहज मुस्कुराहट का आ जाना कोई असहज बात नहीं है, क्योंकि जिन लोगों ने (उनमें नाचीज़ भी शामिल है) अपने बचपन में किसी जादूगर को छड़ी के सहारे जादू के फन का मुज़ाहरा करते हुए न देखा हो, उन्होंने अपने किसी न किसी रहनुमा या नेता को इस छड़ी की विशेषता बताते हुए और इसकी शान में क़सीदे कहते हुए ज़रूर सुना और देखा होगा. वैसे हमारे नेता जब छड़ी का गुणगान करते हैं, तो आंखें नहीं, आंसू मुस्कुराते हैं. मेरे ख्याल से यहां वजह बताने की आवश्यकता नहीं है… आप खुद भुक्तभोगी हैं. हमारे पहले नेता जी (हालांकि वह इस बार चुनाव हार गए हैं और अगले चुनाव की तैयारी में जी-जान से लग गए हैं) ने जब चुनाव जीतने के बाद जादू की छड़ी की बात की थी, तो उस छड़ी का वास्तविक प्रतिरूप मेरे दिमाग़ में नहीं बन पाया था. मुझे लगा था कि मेरे स्कूल के मास्टर साहब की छड़ी जैसी कोई चीज़ होगी, जो बात बे बात हम पर चलने लगती थी. मुझे बहुत बाद में टीवी महाराज की वजह से इस असीम ज्ञान की प्राप्ति हुई कि जादू की छड़ी होती क्या है?
ये मदारी के तमाशे अपने साथ मेले-ठेले, धींगा-मस्ती, खेल-खिलौनों, अल्हड़पन और बेफिक्री को भी आपकी यादों के झरोखे में खींचकर आपके अंदर गुड़गुड़ाहट पैदा करते हैं. भले ही आपका बचपन कितनी भी मजबूरी, तंगदस्ती, लाचारी, कठिनाई या खुशहाली में क्यों न बीता हो. बात कहां से कहां पहुंच गई.
चूंकि हमारा संबंध देश के एक वंचित गांव से है, जहां बहुत सारे काम जुगाड़ से होते हैं. हमारे जादूगर, जिन्हें हम मदारी कहते हैं और वे खुद भी मदारी कहलाना पसंद करते हैं. इसीलिए वे अपने साथ अपने प्रचार के लिए जमूरे भी रखते हैं. बहरहाल, हमारे मदारी छड़ी का काम अपनी बांसुरी से लेते हैं. अब बांसुरी का ज़िक्र आ गया, तो एक सच्चा वाकया याद आ गया. और, बात चूंकि जादू की भी चल रही थी, इसलिए इस क़िस्से को यहां सुनते चलना अनुचित भी नहीं है. एक जादूगर हमारे गांव आया, बल्कि वह हमेशा आता था. उसका मशहूर खेल था, सांप और नेवले की लड़ाई. नेवला तो हमेशा उसके कंधे पर बैठा दीखता था, लेकिन सांप कहीं नज़र नहीं आता था. वह बांसुरी की तान और डुगडुग्गी की चोट पर ज़ोर-ज़ोर से ऐलान करता था, आज देखिए, सांप और नेवले की लड़ाई….बांसुरी से बनाऊंगा नेवला….नेवला सांप के टुकड़े-टुकड़े करेगा…फिर उससे जोड़कर ज़िंदा करेगा. यह हैरतअंगेज़ तमाशा आपके गांव में….जिस तरह कुबड़े महुवे के पेड़ का भूत हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा था, उसी तरह नेवले के रोम-रोम में सांप के ज़हर का तोड़ है और नेवला सांप के टुकड़े-टुकड़े करने के बाद फिर उसे ज़िंदा कर सकता है, भी हमारे लिए एक सार्वभौमिक सत्य था. मदारी की बातों पर यक़ीन न करने की हमारे पास कोई वजह नहीं रहती थी. वह हमारी ही चेतना की बातें तो करता था. बहरहाल, अब समां बंध गया था, मदारी भी जोश में आ गया था, लेकिन वह बीच-बीच में सांप और नेवले के खेल का हवाला देना नहीं भूलता था. साथ में एक-दो बार हाथ की सफाई भी दिखाता जाता था. अब हमारे ऊपर उसका पूरा रंग चढ़ चुका था. उसने अपने थैले से कुछ पेड़-पौधों की जड़ें निकालीं. अपने चाकू से उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उनमें नेवले के दो-चार बाल (रोम) भी मिलाए और एक नुस्खा बनाया.
उसके बाद उस नुस्खे को अपनी हथेली पर अंगूठे से मसलते हुए उसने अजीब-व-ग़रीब आवाज़ में कुछ बोलना शुरू कर दिया, शायद किसी मंत्र का जाप कर रहा था. पास में बैठे बेचू भाई ने बताया कि यह अपने मलंग को आवाज़ दे रहा है. देखते-देखते उसके नुस्खे से धुआं निकलने लगा. अब वह और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, बाबा, यहां कोई ऐसा नहीं है, जो आपकी तावीज़ लेने से इंकार कर दे…..कोई नहीं……तो भाइयो, स़िर्फ एक रुपया…आपका बच्चा बीमार है…..किसी ने जादू कर दिया है….किसी डायन का प्रकोप है आप पर… और मैं देख रहा हूं इसी जगह…कई डायनों को…यह तावीज़ सांप के काटे का भी अचूक इलाज है…यह मलंग बाबा का तावीज़ सभी परेशानियों का समाधान है. इतना कहकर वह मजमे के चारों ओर चक्कर लगाने लगा. देखते-देखते उसके सारे तावीज़ बिक गए. मदारी ने ज़मीन पर बिखरा हुआ अपना सारा सामान समेटा और पड़ोस के गांव की तरफ़ निकल गया. हम पिछले साल की तरह इस साल भी सांप और नेवले की लड़ाई देखने की लालसा लिए के लिए रह गए…अगले साल के इंतज़ार में.
ये मदारी के तमाशे अपने साथ मेले-ठेले, धींगा-मस्ती, खेल-खिलौनों, अल्हड़पन और बेफिक्री को भी आपकी यादों के झरोखे में खींचकर आपके अंदर गुड़गुड़ाहट पैदा करते हैं. भले ही आपका बचपन कितनी भी मजबूरी, तंगदस्ती, लाचारी, कठिनाई या खुशहाली में क्यों न बीता हो. बात कहां से कहां पहुंच गई. दरअसल, मदारियों या जादूगरों की छड़ी जादू के अलावा राजनीति में भी अहम भूमिका निभाती है. इसलिए पुराने नेता जी ने यह घोषणा कर दी थी कि उनके पास जादू की छड़ी नहीं है, लेकिन हमारे नए नेता जी, जिन्हें हमने इस बार चुना है, उन्होंने तो चुनाव के दौरान ही सारी समस्याओं का हल जादू से करने का ऐलान कर दिया था. अब देखना यह है कि वह स़िर्फ तावीज़ बेचकर चले जाते हैं या सांप और नेवले का खेल भी दिखाते हैं. हमें इंतज़ार रहेगा!