ग्यारह हजार दो सौ करोड़ का लेखा-जोखा नहीं मिलने से बिहार सरकार पशोपेश में है. जिला स्तर से लेकर प्रमंडल स्तरीय अधिकारियों तक ने इस मामले से जुड़े आदेशों को अनसुना किया. फिर मुख्य सचिव व प्रधान सचिवों के द्वारा भी एसी-डीसी बिल को लेकर पदाधिकारियों को झिड़की लगाई गई है. बावजूद इसके, नतीजा के रूप में ढाक के तीन पात वाली स्थिति ही सामने आ रही है. बार-बार सख्त आदेश जारी किए जाने के बाद भी विभागीय अधिकारी, सरकार को लेखा-जोखा समर्पित करने के प्रति गंभीर क्यों नहीं हो रहे, यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा. बिहार के मुख्य सचिव और वित्त विभाग के प्रधान सचिव का आदेश कई बार बेअसर साबित हुआ. विभागीय स्तर पर अब न केवल घपले-घोटाले की आशंका व्यक्त की जा रही है, बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि विभिन्न योजनाओं की राशि विभागों के द्वारा इधर-उधर खर्च कर दी गई है और भ्रष्टाचार की गठरी खुलने के भय से लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में पदाधिकारियों के हाथ-पांव फुल रहे हैं.
चर्चा यह भी है कि अगर विभागों के द्वारा एसी-डीसी अद्यतन कर लिया गया, तो कई पदाधिकारियों की गर्दन पर तलवार लटकनी तय है. ऐसी बात नहीं है कि बार-बार हिदायत के बाद भी किसी एक ही विभाग के द्वारा सरकार को हिसाब-किताब नहीं दिया जा रहा है. आपदा प्रबंधन और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की कौन कहे, स्वास्थ्य विभाग, पथ निर्माण, शिक्षा, समाज कल्याण, एससी-एसटी तथा ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा भी लगभग चौदह साल से एसी-डीसी का विवरण नहीं देना भारी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रहा है. विपक्षियों के कड़े तेवर को देखते हुए एसी-डीसी बिल के मामले को लेकर सरकार घिरती भी नजर आ रही है. लेकिन फिलहाल सरकार के स्तर पर एसी-डीसी बिल मामले को सुलझाने की भरपूर कोशिश की जा रही है. यह बात अलग है कि एसी-डीसी बिल के मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के विरुद्घ सीधे तौर पर कार्रवाई करने से सरकार शायद बच रही है. उच्चाधिकारियों के द्वारा बार-बार आदेश जारी किए जाने के बाद भी विभिन्न विभागीय पदाधिकारियों के द्वारा आदेश को ठेंगा दिखाया जा रहा है. लगभग तीन माह पूर्व आयोजित समीक्षा बैठक में बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने एसी-डीसी बिल को लेकर न केवल सभी विभागों को कड़ी फटकार लगाई थी, बल्कि यह भी आदेश जारी किया था कि डीसी बिल जमा नहीं करने वाले विभागों का आवंटन रोक दिया जाय. मुख्य सचिव का सख्त आदेश जारी होने के बाद विभागीय स्तर से हिसाब-किताब प्रस्तुत करने की कवायद शुरू हुई, लेकिन फिर अचानक ब्रेक लग गया. हालांकि विभागीय कवायद पर रोक लगने का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है. 2016 के जुलाई माह में सभी विभागों के निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी(डीडीओ) वित्त विभाग के निशाने पर रहे. विशेष रूप से आयोजित बैठक में वित्त विभाग के प्रधान सचिव ने अरसे से एसी-डीसी का भुगतान नहीं करने वाले विभागीय डीडीओ के विरुद्घ सख्त कार्रवाई का आदेश जारी किया और कहा कि एसी-डीसी का भुगतान अद्यतन रखने के मामले में किसी भी कीमत पर लापरवाही बरतने वाले नपेंगे. तमाम सख्ती के बाद भी उच्चाधिकारियों का आदेश तो धूल फांकता ही नजर आ रहा है. सभी विभागों के द्वारा पूर्व की तरह जिलों को आवंटन दिया जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि एसी-डीसी बिल लटकाए रखने के बाद भी विभागों को आवंटन किसके आदेश से मिलता रहा. बिना रोक-टोक के विभागों द्वारा किए जा रहे आवंटन मामले को क्या कार्रवाई के दायरे में लाया जाएगा? बावजूद इसके सबसे बड़ी बात है कि अब तक लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को चिन्हित तक नहीं किया गया है, तो फिर आखिर कार्रवाई किस स्तर पर होगी? उच्चाधिकारियों के सख्त आदेश के बाद भी लापरवाही बरतने का ही नतीजा है कि लगभग चौदह वर्षों से विभिन्न विभागों के द्वारा कोषागार या महालेखाकार को ग्यारह हजार दो सौ करोड़ रुपए का हिसाब-किताब नहीं सौंपा गया है. दरअसल, प्रखंड से लेकर जिला स्तर पर विभिन्न विभागों के द्वारा अलग-अलग योजनाओं के नाम पर खर्च की गई राशि में से ग्यारह हजार दो सौ करोड़ का लेखा-जोखा नहीं मिल रहा है. पथ निर्माण विभाग के द्वारा जहां 1200 करोड़ का हिसाब नहीं दिया जा रहा है, वहीं ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा भी 900 करोड़ का हिसाब-किताब अटकाकर रखा गया है. इसी तरह शिक्षा विभाग के द्वारा 520 करोड़, स्वास्थ्य विभाग के द्वारा 225 करोड़, समाज कल्याण विभाग के द्वारा 350 करोड़, एससी-एसटी विभाग के द्वारा 400 करोड़, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के द्वारा 200 करोड़ और आपदा प्रबंधन के द्वारा 170 करोड़ के हिसाब का पेंच फंसाकर रखा गया है. अब्सट्रैक्ट/एडवांस कंटीजेंसी अर्थात एसी बिल का समायोजन कर अगर विभाग को हिसाब-किताब सौंप दिया जाता तो शायद सरकार को अधिकारियों के समक्ष हिसाब-किताब के लिए चिड़ौड़ी नहीं करनी पड़ती. नियम-कानून पर अगर गौर फरमाएंं तो एसी बिल के जरिए एडवांस लेने के बाद छह माह के अंदर डीसी बिल जमा किया जाना आवश्यक है. इधर विभिन्न समीक्षा बैठकों में एसी-डीसी बिल को लेकर अधिकारियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क्रोध का सामना भी करना पड़ा है. इतना ही नहीं, एसी-डीसी बिल अद्यतन करने को लेकर अन्य कई तरीके का उपयोग भी किया जा चुका है. बावजूद इसके, एसी-डीसी बिल के प्रति विभागीय पदाधिकारियों की उदासीनता तरह-तरह के सवालों को जन्म देने लगी है. बहरहाल, चौदह वर्षों से लटके पड़े एसी बिल का समायोजन कर विभागों के द्वारा सरकार को हिसाब-किताब ससमय सौंपा जाएगा अथवा लापरवाही बरतने वाले विभागीय पदाधिकारियों पर गाज गिरेगी, इस पर सबकी नजर है.