मुझे लगता है कि पिछले संपादकीय के ऊपर फिर कुछ लिखना चाहिए, जिसमें मैंने नरेंद्र मोदी से संबंधित चार कहानियां लिखी थीं. इनमें एक कहानी के ऊपर श्री राजनाथ सिंह ने स्वयं का और अपने बेटे पंकज सिंह का बचाव किया. उन्होंने कहा, अगर मेरे ऊपर एक भी आरोप सिद्ध हो जाता है या प्राथमिक तौर पर भी सिद्ध हो जाता है, तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा. लेकिन, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इन सारी चीजों के पीछे संभवत: उन्हीं का कोई सहयोगी हो सकता है. उन्होंने एक जगह यह भी कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में नंबर दो के पद पर कौन हो, शायद इसके पीछे यही राजनीति हो सकती है कि उनके चेहरे को धूमिल किया जाए और नंबर दो के पद पर एक व्यक्ति का रहना निर्णायक तौर पर मान लिया जाए. हालांकि अब उन्हें मंत्रिमंडल में नंबर दो की हैसियत मिल गई है.
सवाल है कि नंबर दो के पद की लड़ाई किनके-किनके बीच में थी. नंबर दो कैबिनेट में कौन हो, इसके स़िर्फ दो ही उम्मीदवार सामने थे. एक तो स्वयं श्री राजनाथ सिंह और दूसरे देश के वित्त मंत्री एवं रक्षा मंत्री श्री अरुण जेटली. देश में किसी से छिपा नहीं है कि नंबर दो के इस पद के लिए इन दोनों के समर्थक आपस में भिड़े हुए थे. तो क्या यह माना जाए कि राजनाथ सिंह के ख़िलाफ़ उनके पुत्र द्वारा लिए गए किसी काम के बदले में पैसे की अफवाह जो दूसरे उम्मीदवार अरुण जेटली थे, उनके कैंप ने फैलाई? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभी बहुत काम करना है. चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत काम करना है, इसलिए उन्हें इस तरह के घात-प्रतिघातों से सचेत रहने की चेतावनी अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को देनी होगी, क्योंकि सारी चीजों का दुष्प्रभाव मंत्रिमंडल की साख के ऊपर पड़ता है.
हमने लिखा था कि धर्मेंद्र प्रधान से प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक बिजनेसमैन के साथ ज़्यादा लंच न करें और एक फाइल पर दस्तखत कर दें. अब सरकार से ही हमारे पास जानकारी आई है कि वह शख्स धर्मेंद्र प्रधान नहीं, बल्कि ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल हैं. और, कहानी यह आई कि पीयूष गोयल मुकेश अंबानी से मिलने जा रहे थे, तभी रास्ते में ही उनके पास प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अफसर का फोन आया और बिना लंच किए उन्हें वापस जाना पड़ा और उनकी टेबल के ऊपर एक फाइल पड़ी थी, जिसमें मुकेश अंबानी की कंपनियों के ऊपर जुर्माना लगाने की सिफारिश थी, जिस पर उन्हें दस्तखत करने पड़े. अब इस सत्य को या अर्द्धसत्य को करेक्शन करने की बात भी प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल से ही निकल कर हमारे पास आई.
तीसरी एक और कहानीनुमा अफवाह हमारे पास आई कि सूचना मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर दिल्ली से बाहर जाने के लिए हवाई अड्डे की तरफ़ जा रहे थे, लेकिन वह जींस एवं टी-शर्ट पहने और चश्मा लगाए थे. उनके पास फिर प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आता है कि यह वेशभूषा एक मंत्री को शोभा नहीं देती. श्री जावड़ेकर ने विमान छोड़ दिया और वहां से वापस लौट आए. उन्होंने कुर्ता, पाजामा और अपनी जैकेट पहनी. इसके बाद वह विमान में सवार हुए.
एक चौथी नई कहानी राजनीतिक क्षेत्रों में यह चल रही है कि बाबा रामदेव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना चाह रहे थे. यह वाकया कैबिनेट के निर्माण के समय का था. नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल की सूची को अंतिम रूप देने में लगे थे, इसलिए उन्होंने अपने मित्र अमित शाह से कहा कि वह बाबा रामदेव से बात कर लें. अमित शाह ने बाबा रामदेव से बात की. बाबा रामदेव अमित शाह से मिलने रात्रि में ही दिल्ली आ गए. जब अमित शाह ने कारण पूछा कि आप मोदी जी को फोन कर रहे थे, तो बाबा रामदेव ने स्वाभाविक तौर पर कहा कि मेरे चार-पांच शिष्य लोकसभा का चुनाव जीते हैं, जिन्हें मैंने ही टिकट दिलवाया था. उनमें से इन तीन या दो लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहिए. ख़बर बाहर निकल कर यह आ रही है कि अमित शाह ने उनसे कहा कि बाबा जी, या तो आप अपने सहयोगियों को मंत्रिमंडल में शामिल करा लीजिए या फिर सीबीआई इन्क्वायरी को रुकवा लीजिए. बाबा रामदेव संकेत समझ गए और वापस हरिद्वार चले गए और वह शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए. यह आश्चर्य की बात थी कि जिस व्यक्ति के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्ष आए हों, वहां उन्हें जिताने के लिए जी-जान से कैंपेन करने वाले बाबा रामदेव उपस्थित न रहे हों! इस समारोह में बाबा रामदेव के सहयोगी और नंबर दो की पोजीशन रखने वाले आचार्य बालकृष्ण मौजूद थे, पर बाबा रामदेव नहीं थे. अब पता चला है कि बाबा रामदेव को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई गई है. बाबा रामदेव इन दिनों पूर्णतया खामोश हैं और ज़्यादातर वक्त पतंजलि आश्रम में ही गुजारते हैं.
ये सारी कहानियां जो अफवाहों के रूप में साउथ ब्लॉक में चल रही हैं, वहां से निकल कर सोशल मीडिया में जा रही हैं और फिर वहां से एक शक्ल लेकर सारे देश में घूम रही हैं. यह कोई अचरज की बात नहीं है. इन सारी कहानियों में कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत दम है, पर यह देखने का काम स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है और उससे भी ज़्यादा स्वयं गृहमंत्री राजनाथ सिंह का है कि आख़िर कौन इन अफवाहों को फैला रहा है? क्या ये अफवाहें हमारे जैसे पत्रकार फैला रहे हैं? क्या ये अफवाहें कुछ राजनीतिक दल फैला रहे हैं या ये अफवाहें नरेंद्र मोदी के राजमहल में होने वाले नए षड्यंत्रों का परिणाम हैं. इसका खुलासा स़िर्फ और स़िर्फ राजनाथ सिंह और उनकी टीम द्वारा हो सकता है. अगर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की टीम इन षड्यंत्रों का खुलासा नहीं करती है, तो इसका मतलब है कि राजनाथ सिंह इन षड्यंत्रों का खुलासा करना नहीं चाहते. मुझे यही देखकर दु:ख होता है. राजमहलों के षड्यंत्र नौकरशाही को फ़ायदा पहुंचाते हैं. नौकरशाह इन्हीं षड्यंत्रों को लेकर मंत्रियों के बीच में तनातनी पैदा करते हैं और अपने काम न करने का कारण तलाश लेते हैं. वे स़िर्फ कारण ही नहीं तलाशते, बल्कि यहां से खुद धन का लाभ लेने या देने की रणनीति बनाने लगते हैं.
इन सारी चीजों के पीछे स़िर्फ एक अनुरोध है, जिसे शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनसुना कर दें या शायद सुन लें, पर अनुरोध बहुत साफ़ है कि अगर वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे, तो उनके मंत्रिमंडल रूपी राजमहल में षड्यंत्रों का सिलसिला और तेज हो जाएगा. इसके लिए ज़रूरी है कि वह सौ दिन बीत जाने के बाद अपने मंत्रियों की योजनाओं का खुलासा करें और उन्हें अपना टारगेट पूरा करने के लिए वक्त दें. अगर उनके मंत्री 365 दिनों में टारगेट पूरा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें उन मंत्रियों को बदल देना चाहिए. अगर वह नाकारा मंत्रियों को नहीं बदलते हैं, तो फिर 365 दिन बीतने के बाद लोग यह मान लेंगे कि नरेंद्र मोदी स़िर्फ बाजीगरी दिखा रहे हैं, कोई ठोस काम नहीं कर रहे हैं. और, तब यह देश के लिए एक निराशा का बिंदु होगा.
मैं पुन: श्री नरेंद्र मोदी से यह अनुरोध करना चाहूंगा कि वह इस बात का पता लगाएं कि इन अफवाहों के केंद्र में कौन लोग हैं या कौन-सा गु्रप है? अगर वह ग्रुप या वे लोग उनके अपने मंत्रिमंडल या उनकी अपनी पार्टी में हैं, तो उन्हें सख्ती के साथ रोकें, क्योंकि इससे स़िर्फ कुछ मंत्रियों की साख के ऊपर असर नहीं पड़ेगा, इससे खुद प्रधानमंत्री की साख के ऊपर असर पड़ेगा. और, इस समय प्रधानमंत्री के सामने अपनी साख बचाने का भी सवाल है, देश के लिए काम करने की चुनौती भी है.
इस साज़िश का ख़ुलासा बहुत ज़रूरी है
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