बराबर अप्रैल 2002 में इस्राइल के तरफसे, वेस्ट बैंक के जेनीन के कॅम्प पर भी 75 घंटे लगातार बुलडोजर चलाने का विश्व रिकॉर्ड मौजूद हैं ! क्या भारत में भी खरगोन से लेकर दिल्ली तक, बीस साल पहले इस्राइल के तरफसे फिलिस्तीन के जेनीन कॅम्प को, खंडहरों में तब्दील करना तय किया है ?
वर्तमान दंगों के बाद मध्य प्रदेश सरकारने यह सिलसिला शुरू किया ! काश बीस साल पहले गुजरात के दंगों के बाद भी यह फार्मूला इस्तेमाल किया होता !!
इस बहाने इस्राइली सरकार ने फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ जेनिन कारवाई के नाम से बदनाम 2002 की ही बात है ! और महीना भी अप्रेल के एक तारीख से लेकर अठारह अप्रैल को वेस्ट बैंक के जेनीन कॅम्प को बर्बाद करने के, और ऐतिहासिक गुजरात दंगों के बीस साल और महीने भी वही !
इतिहास में हुई बर्बरता से आदमी सबक सिखने की जगह जब उसे दोहराया जाता है ! तो औरंगजेब, चंगीझ खान, घोरी हो या बाबर और बीसवीं शताब्दी के सभी फासिस्टोने जो भी कुछ किया, मैं इतिहास के सही गलत के बहसों में नही पडना चाहता हूँ !
क्योंकि अगर इतिहास में कोई जालिम ने किसी भी कौम के उपर अत्याचार किया होगा तो ! इसका मतलब आज इतने बरसों के बाद उसके कौम के साथ वही बर्बरता की जाय ! फिर यह कहनेवाले सावरकर – गोलवलकर हो या वर्तमान समय में उनके कोई अनुयायियों में से कोई भी क्यों न हो ! यह बदले की भावना विकृत मानसिकता का परिचायक है ! जो फासीस्ट हिटलर ने हाल की शताब्दी में इस विकृति का परिचायक है !
वह अगर मनुष्य जाति के इतिहास में गलत था ! तो जेनीन, भागलपुर, गुजरात, मुझफ्फरनगर और हाल ही में खरगोन, दिल्ली खांबात, हिम्मतनगर, मुजफ्फरपुर के मस्जिदों के उपर हिंदुपुत्र के नाम से किए गए कारनामे भी इन्सानियत के नाम पर धब्बा है ! और लगता है कि वर्तमान केंद्र सरकारने बुलडोजर के मॉडेल को इस्रायल से सिखा हुआ दिखता है ! क्योंकि भारत की सुरक्षा में इस्राइली सरकार और मुख्यतः मोसाद के मार्गदर्शन से काफी कुछ चल रहा है !
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अमेरिका फिलिस्तीन की समस्या का समाधान इराक की तर्ज पर करना चाहता है ! यानी सत्ता परिवर्तन के साथ वहां अमेरिका तथा इस्राइल की इराक तथा फिलिस्तीन नीति में 9/11 के बाद काफी साम्यता दिखाई देती है !
जिस प्रकार इराक में अमेरिका ने लगातार बमबारी तथा बड़े प्रतिबंधों का सहारा लिया और आज संपूर्ण इराक खंडहरों में तब्दील हो चुका है ! 15 लाख से अधिक लोग मारे गए जिनमें पंद्रह साल के बच्चे पांच लाख की संख्या में दुषित पानी और दवा और अन्न के अभाव में मरने के लिए मजबूर हूए है !
उसी प्रकार इस्राइल ने फिलिस्तीन की आर्थिक जिंदगी को तबाह करने का काम किया, तथा लोगों को भुखो मरने के लिए मजबूर किया ! दोनों ही स्थितियों में जानमाल की काफी हानि हुई ! 2 फरवरी 2002 को न्यूयार्क टाइम्स ने यरूशलम से प्राप्त हुई एक विज्ञप्ति प्रकाशित की थी, जिस पर इस्राइल के एक सौ से अधिक रिजर्व सैनिकों के हस्ताक्षर थे, जिसमें उन्होंने कहा था” कि वे वेस्ट बैंक और गाज़ापट्टी में अब अपनी सैनिक सेवाएं नही देंगे ! क्योंकि इस्राइल की नीतियों में यह बात शामिल की गई है कि “पूरी कौम पर अपना दबदबा कायम करो, उन्हें निष्कासित करो, भूखे मरने के लिए मजबूर करो, तथा उन्हें अपमानित करो !” अमेरिका की तरह ही इस्राइल ने नागरिक तथा सैनिक ठिकानों में फर्क करना छोड़ दिया ! तर्क यह था कि हमारी कारवाई या तो हमें पेश आने वाले खतरे के पेशेनजर पेशगी तौर पर बचाव की सुरत में की गई कार्रवाई है ! या फिर उनके आतंक का जवाब है ! इसका निष्कर्ष यह निकला कि पूरी इराकी तथा फिलिस्तीनी आवाम को सामुहिक रूप से सजा देने का सिलसिला जारी रखा गया, बीना किसी दंड की चिंता किए !
जबसे इस्राइल ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर अपना कब्जा कायम किया है, जेनीन की घटना इस्राइली आतंक के लिए एक बड़ी मिसाल बन गई है ! अमेरिका की तरह इस्राइल का भी मानना है कि दुश्मन को जवाब भारी हमलों की सुरत में देना मुनासिब है ! भले ही जिन पर हमला किया जा रहा हो वे निहत्थे ही क्यों न हो !
इस्राइली हमले में इस्राइली सेनाओं ने दर्जनों टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों तथा अमरीकी एपाची हेलीकाप्टरों द्वारा दागी जाने वाली मिसाइलों के जरिए एक वर्गकिलोमीटर में फैले जेनीन शरणार्थी शिविरों पर एक हप्ते तक हमला किया, जिसमें 15000 बच्चे रहते थे, चंद नौजवान थे जिनके पास न तो कोई टैंक था, न मिसाइलें थी ! क्या इसे किसी आतंकवादी खतरे की वजह से की जाने वाली कारवाई कहा जाए ? या इन निहत्थे लोगों से इस्राइल के वजूद को कोई खतरा था ?
इतने बड़े पैमाने पर सैनिक बल का प्रयोग तो वही कर सकता है, जिसे न आंतरराष्ट्रीय कानूनों का लिहाज हो, न सजा दिए जाने का खतरा न किसी के सामने जवाबदेही का भय ही ! और इस्राइल को इतना निर्भीक बनाने में निस्संदेह अमेरिका के अलावा और किसका हाथ हो सकता है ?
ऐसे युग में जबकि अमेरिका हमेशा यही राग अलापता रहा है “कि किसी देश की संप्रभुता तभी तक कायम रह सकती हैं जब तक कि वह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन नहीं करता,” लेकिन इस्राइल इस मामले में अपवाद रहा ! उसने बड़ी सफलतापूर्वक जेनीन कारवाई के संबंध में जांच की मांग को टालने का काम किया !
चूंकि संयुक्त राष्ट्र की ओर से जांच की कोई कार्रवाई नहीं की गई ! इसलिए वास्तविक स्थिति के बारे में जानना निहायत कठिन काम होगा ! लेकिन हमें कुछ व्यक्तिगत जानकारियों के आधार पर किसी नतीजे पर पहुंचने का मौका मिल सकता है !
विशेष रूप से मोशोनिसम की कहानी की तरह, जिसे इस्राइली सैनिक रेडियो पर कुर्दी भालू के नाम से संबोधित किया जा रहा था ! कुर्दी से तात्पर्य यह था कि वह कुर्द संप्रदाय का व्यक्ति था, तथा भालू से अर्थ उसके पास 60 टन वजनी डी – 9 बुलडोजर था ! जिससे उसने बडे पैमाने पर घरों को उध्वस्त करने का काम किया था !
बुलडोजर चलाने के लिए उसे केवल कुछ घंटों का प्रशिक्षण दिया गया था ! एक इस्राइली अखबार में उसके असाधारण कार्यो का ब्योरा इन शब्दों में प्रकाशित हुआ: ” वह 75 घंटों तक लगातार उस भिमकाय बुलडोजर पर बैठा अपना काम करता रहा ! उसके रास्ते में जो भी मकान आया उसे ध्वस्त कर दिया ! जेनीन में कोई ऐसा सैनिक नही था जो उसके नाम से वाकिफ नहीं था ! कुर्दी भालू बड़ा समर्पित, बहादुर तथा विध्वंसक बुलडोजर चालक था !” आखिर कोई आदमी बिना दम लिए इतने लंबे समय तक कैसे काम कर सकता है ? इसका जवाब उसने स्वयं इन शब्दों में दिया:
” आपको मालूम है कि लगातार 75 घंटों तक मैंने कैसे काम किया ? मैं बुलडोजर से उतरा ही नहीं, न ही मुझे थकान महसूस हुई, क्योंकि मैं लगातार व्हिस्की पीता रहा ! तीन दिनों तक मैंने केवल विध्वंस किया, सिर्फ विध्वंस ! मैंने पुरे क्षेत्र को जमींदोज कर दिया ! जिस घर से भी गोली चली, वह मेरा निशाना बना ! हां मुझे दुख केवल इतना है कि मैं पूरे शिविर को तहस – नहस नही कर सका! ”
मुझे यह कोटेशन आज अचानक श्याम के चहलकदमी के समय याद आया है ! यह महमूद ममदानी की गुड मुस्लिम बॅड मुस्लिम के इस्रायली शक्ती तथा स्थानिय दंड मुक्ती नाम से पन्ना नंबर 240 से 242 तक के पन्नों से हूबहू लिया है !
भारत में इस बार के हालही में संपन्न रामनवमी और हनुमानजयंती के दौरान हुए दंगों में मध्यप्रदेश और दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के सरकारों ने दंगों को लेकर यह जो एक नई खोज अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कि गई है ! अंत में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद वह भी पूर्व सांसद तथा सीपीएम नेता वृंदा कारत खुद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को अपने हाथ लेते हुए बुलडोजर चलनेवाले के सामने खड़ी हुई ! तब कहीं यह कार्रवाई रुकी !
हमारे देश के पुलिस – प्रशासन के भीतर इस तरह की हरकतों को देखते हुए मुझे आजसे बीस साल पहले के फिलिस्तीनी जेनीन के कैम्प के 75 घंटों तक चलाए गए बुलडोजर की याद आई ! और उसी समय हुए गुजरात के दंगों की भी जीससे वर्तमान सत्ताधारी पार्टी को आज देश, और देश के कुछ क्षेत्रों में तथाकथित राजनीतिक सफलता प्राप्त करने का मौका मिला ! लेकिन देश की एकता और अखंडता का क्या ?
आज कल देशभक्ति का पेटेंट भले सत्तारूढ़ दल ने अपने नाम पर करने का प्रयास किया है ! लेकिन वर्तमान समय में भारत के कुछ हिस्सों में आज जो कुछ चल रहा हैं वह देश के 75 साल के आजादी के समय में बहुत ही चिंता का विषय है ! अगर यही आलम जारी रहा तो भारत की आजादी के बाद के इतिहास में भारत कभी नहीं उतना खतरनाक दौर से गुजर रहा है ! हमने 1975 के 25 जून को लागू की गई घोषित आपातकाल की घोषणा के खिलाफ मुखालफत की है ! और आज भी अघोषित आपातकाल के विरोध में ही यह पोस्ट लिखने का प्रयास कर रहे हैं ! इसलिये आने वाले 25 जून को 47 साल पहले आपातकाल को लेकर वर्तमान सत्ताधारी दल को अभिव्यक्ती की आजादी, जनतंत्र जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर खुद को अंतर्मुख होकर सोचना होगा ! अन्यथा विधवा विलाप के जैसा और एक कर्मकांड होगा !
डॉ सुरेश खैरनार 21 अप्रेल 2022, नागपुर