क्या भारत भी श्रीलंका की राहपर जा रहा है ?
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहा चिराग मयस्सर नही शहर के लिए!
यहां दरख्तों के साये में धुप लगती है,
चलो यहां से चले और उम्र भर के लिए!
न हो कमिज तो पावों से पेट ढक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब है इस सफर के लिए !
खुदा नही, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए !
वे मुतमईन है कि पत्थर पिघल नही सकता,
मै बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए!
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए!
जिएं तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, मरे तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए !
– यह गीत भोपाल के हिंदी और उर्दू में शायरी करने वाले शायर दुष्यंत कुमार ने 1970 के बाद देश की स्थिति को लेकर काफी गित लिखें है ! उसी तरह दिनकर, फिराक गोरखपुरी, अज्ञेय, धर्मवीर भारती, बाबा नागार्जुन जैसे साहित्यकार थे जिन्होंने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के समय अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है ! आज लगभग वही स्थिति में देश चला जा रहा है !
कल आसाम के नौगांव नाम की जगह पर महंगाई के खिलाफ एक धरने में एक नुक्कड़ नाटक में, भगवान शिव के भेष में एक कलाकार को धार्मिक विश्वास के साथ खिलवाड़ करने के अपराध मे ! विएचपी और भारतीय युवा जनता( बीजेपी की युवा ईकाई) की तकरार के कारण सेक्शन 295 के अंतर्गत (deliberate and malicious intention of outraging the religious feelings) गिरफ्तार किया था !
उस नाटक में शिव और पार्वती एक दोपहिया वाहन पर सवार होकर चल रहे हैं ! और शिव पार्वतीजी को पेट्रोल की किमत बढने के कारण, हम अब दोपहिया वाहन पर सफर नही कर सकते हैं ! यह संवाद के कारण आसाम में महंगाई के खिलाफ चल रहे आंदोलन को बदनाम करने के लिए ! आस्था का सहारा लेना पड रहा है ! लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह और कितने रेत में सर गडा कर रहोगे ?
सच कहूँ तो इस कानून का उल्लंघन संघ अपने स्थापना के समय से ही कदम – कदम पर कर रहा है ! भारत जैसे हजारों सालों से विश्व के सभी धर्मों के लोगों का रहना है ! और उनमें से कोई भी कही जाने वाले नही है ! इसी देश में पैदा हुए और इसी देश में मरने वाले हैं ! लेकिन 1925 से विधीवत संघ ने अपनी स्थापना के बाद ही हिंदु संघठन के नाम पर जो धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति को गति देने की शुरुआत करके भारत विभाजन की नौबत लाने के लिए मुस्लिम लिग के बराबरी का योगदान है ! अन्यथा जीना को हिंदु बहुतायत से मुसलमानों को न्याय नहीं मिलेगा यह तर्क देने के लिए और क्या कारण था ? मुस्लिम लिग 1906 में स्थापित होती है ! और उसी की देखा देखी में हिंदु महासभा और 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत को अमली जामा पहनाने की किताबों के संदर्भ गोलवलकर और सावरकर के उपलब्ध है ! इनके सौ साल के इतिहास को खंगालने से हाथ मे क्या आता है ? और हिंदुत्ववादी और मुस्लिम लिगियो की आपसी मिली भगत आजादी के आंदोलन के इतिहास में पुरे के पुरे हाजीर है ! कांग्रेस और समाजवादी भारत छोडो आंदोलन में जेलों तथा भुमीगत कामों में व्यस्त थे तो मुस्लिम लिगियो के साथ सिंध, बंगाल प्रांतों में हिंदु महासभा की सहभागी होने के कारण क्या है ? और दोनों भारतीय आजादी के आंदोलन से अलग रहने के कारण क्या है ? आज देश भक्ति और देशद्रोही के पेटेंट लेने का नैतिक अधिकार है ? और अब धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने का कानून के आड में विरोधियों को सताने वाले लोगों ने, धर्म के नाम पर सतत धार्मिक ध्रुवीकरण करने की राजनीति के अलावा कोई और अन्य काम किए हैं ? इस कानून का उल्लंघन करने के आजादी के बाद पचहत्तर साल के इतिहास में कितने उदाहरण है ! अगर इस कानून का उल्लंघन करने का हिसाब किताब देखने से पता चला है कि सबसे ज्यादा अपराध संघ और संघ की विभिन्न ईकाईयो ने किए हैं !
और अब सरकारों के खिलाफ लोगों की प्रतिक्रियाओं को लेकर, सत्ताधारी पार्टी के कारिंदे ! आस्था की आड लेकर, अपने दल की नाकामयाबी को छुपाने के लिए ! आंदोलनकारियों को इस तरह रोक लगाने के हथकंडे, अपनाने की चालाकी कर रहे हैं !
इसी बीजेपी ने भी कांग्रेस के सरकारों के समय गैस के सिलंडर के साथ, वर्तमान समय में भारत के मंत्रिमंडल में शामिल स्मृति इरानी के , सड़क पर धरना प्रदर्शन करने के फोटो उपलब्ध है ! और अटल बिहारी वाजपेयी जी बैलगाडी के उपर बैठकर संसद में जाने की भी फोटो उपलब्ध है !
और सबसे हैरानी की बात वर्तमान समय में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी 1972 – 73 के समय गुजरात की महंगाई के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन में सचिव की हैसियत से शामिल होने की जानकारी है ! क्योंकि हम भी उस समय उस आंदोलन के समर्थकों में से एक थे ! और मनिषि जानी से लेकर रविशंकर महाराज का आशिर्वाद उस आंदोलन को हमने अपने आखो से देखा है !
और सबसे अहं बात वर्तमान भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक हैसियत प्राप्त होने के लिए, एतिहासिक बिहार आंदोलन ही तो जिम्मेदार है ! खुद आंदोलन के और मुख्यतः बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राम मंदिर का आंदोलन वाले कौन लोग हैं ? उसके भी फोटो और आडियो – विडियो रेकॉर्ड मौजूद हैं !
तो खुद शिशे के घरों में रहने वाले दुसरो के घरों पर पत्थर नहीं मारते ! भारतीय जनता पार्टी की गलतफहमी हो गई है कि, वह इस देश पर हमेशा राज करेंगी ! तो यह गलतफहमी श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी की है ! और सौ साल पहले जर्मनी में हीटलर नाम के सनकी तानाशाह ने भी की थी ! और उसे अपने खुद के पिस्तौल से अपनी कनपटी पर गोली मारकर आत्महत्या करनी पड़ी थी ! 30 अप्रैल 1945 ! सिर्फ 77 साल पुरानी बात है ! इतिहास सिर्फ जुगाली करने के लिए नही होता है ! इतिहास में की गई गलतीयो से सिखना पड़ता है !
पीछले तीस चालीस सालों से, यही संघ, बीजेपी और उनके अॉक्टोपस के जैसे संघठनोने ! सिर्फ और सिर्फ धार्मिक और आस्था के आड में, संपूर्ण देश में ! तथाकथित रथयात्राओ, और कारसेवा तथा विभिन्न आंदोलनों के समय हमारे देश के सहिष्णुता के प्रतिक ! भगवान राम की एक बाहुबली वाली प्रतिमा बना कर ! देश भर में उनके चित्रों से लेकर मूर्तियां और हनुमानजी तथा अन्य भगवानों का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्थिति को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल किया है ! तब कोई धार्मिक विश्वास के साथ खिलवाड़ नहीं हुआ ?
और अब कोई महंगाई या किसी नाटक – सिनेमा में इन्हीं प्रतिको का इस्तेमाल करते हैं ! तो बीजेपी और उसके अन्य इकाइयों को लगता है ! कि हमारे हिंदु धर्म के एक मात्र ठेकेदार यही लोग बन गये हैं ! जैसे इन सभी देवी-देवताओं और प्रतिको का पेटेंट सिर्फ बीजेपी और उसके समर्थक ईकाईयो ने कर लिया है !
फिर कोई महुआ या अन्य कोई भी व्यक्ति अपनी बात कहने का अधिकार नहीं रखता है ?
अभी – अभी आपातकाल की घोषणा के 47 साल होने के सिर्फ दो हप्ते हो रहै है ! (25 जून 1975) और उसी आपातकाल और सेंसरशिप को लेकर, सत्ताधारी पार्टी के नेतृत्व से लेकर गली मुहल्ले के कार्यकर्ताओं ने ! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उपर खुब कशिदे पढे !
कितने पाखंडीयो से भरी हुई जमात है ! इन्हें थोड़ी भी लाज शर्म नहीं है ! कि अपनी ही पार्टी की प्रवक्ता किसी एक धर्म संस्थापक को लेकर कितनी अभद्र टिप्पणी करने के बावजूद इन्हें क्या नैतिक अधिकार है ?
उल्टा चोर कोतवाल को डाटे वाली कहावत के जैसा आये दिन लोगों के रोजमर्रे के सवालों को लेकर, अगर कोई व्यक्ति, संघठन या राजनीतिक दलों ने आंदोलन किया तो, उसे सराहना तो दूर की बात है ! उल्टा आस्था के नाम पर केसेस करने से ! संघ और बीजेपी के ईकाईयो की गलतफहमी होगी कि ! इस तरह के पुलिस – प्रशासन की मदद लेकर अगर कोई भी आंदोलन रोक सकते हैं ! तो फिर भारत का श्रीलंका होना दूर नहीं है ! आखिरकार सर्वसामान्य नागरिकोकी अभिव्यक्तियों को धार्मिक या आस्था के डंडे दिखाकर रोक सकते हैं ! तो रोककर दिखा दो ! लोगों के गुस्से को जितना ज्यादा दबाओगे उससे दोगुनी ताकत से वह उफान पर आयेगा और यही श्रीलंका में हो रहा है ! धार्मिक ध्रुवीकरण से अब और लोगों को बेवकूफ़ नही बना सकते !
डॉ सुरेश खैरनार 11 जुलै 2022, नागपुर