क्या भारत आज से सौ साल पहले के जर्मनी की स्थिति में चला जा रहा है ?

लगता है कि संघ के अच्छे दिन आ चुके हैं ! लेकिन किस किमत पर ? शायद ही मुल्क का कोई हिस्सा होगा जहाँ बलवा – बेदिली का आलम नही होगा ! इस बार के रामनवमी और हनुमानजयंती के दौरान कमअधिक प्रमाण में भारत के सभी हिस्सों में हिंदुत्ववादीयो के तरफसे जो हिंसक प्रदर्शन किये गये ! लगता है सौ साल पहले के जर्मनी में भी इसी तरह का ! यहुदियो के खिलाफ हिटलर के स्टॉर्म स्टुपर्स ने, इसी तरह की हरकतों को अंजाम दिया ! और उन्हें भी रोकने की कोशिश नहीं की गई थी ! शायद हम भी नाजी जर्मनी की मनोदशा में चले गए हैं ! कार्ल जी जुंग ने अपने निबंधों में इस दशा का वर्णन किया है ! और जर्मनी की जनता एक अल्पशिक्षित और सनकी आदमी के प्रभाव में चलीं गई थी !


जबकि विश्व के एकसे बढकर एक बुद्धजीवियों के रहते हुए ! खुद कार्ल जी जुंग उसके गुरु सिग्मंड फ्रायड, अल्बर्टआईनस्टाईन,(कल इनकी पूण्यतिथी थी! ) अॉर्थर कोस्लर, एरिक फ्रॉम, जॉं पॉल सात्र, सिमॉन द बोएवर, बर्टांड रसेल, रोमा रोला, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी, जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया, जवाहर लाल नेहरू, पर्ल बक, मौलाना आझाद, जे कृष्णमूर्ती, अँडल्स हक्सले, जॉर्ज बर्नार्ड शाँ, हेराल्ड लास्की के जैसे शेकडो लोगो की मौजूदगी में !
और इन सबके अलावा हिटलर को चाहने वाले हिंदुत्ववादीयो के सभी सदस्य ! जिन्होंने उसे अपना आदर्श बनाया ! और उसी के नकल पर संघ की नींव डाली गई थी ! हिटलरने तो 30 अप्रैल 1945 को आत्महत्या कर ली ! लेकिन हिटलर के नजीवाद के तर्ज पर संघ की स्थापना नागपुर के मोहिते वाडा की शाखा 1925 के दशहरे के दिन, दस – पंधरा स्वयंसेवकों को लेकर शुरुआत की थी !

आज भारत में कहा कौन-सी सरकार है ? वह बात अलग है ! लेकिन शायद ही कोई क्षेत्र होगा जहाँ संघ की पैठ नही होगी ! आज भारत के तथाकथित हिंदुत्ववादीयो की, गतिविधियों का एकमात्र कारण, 97 साल पहले शुरूआत कि गई नफरत की खेती !(बिल्कुल नफरत की खेती ! जैसे हिटलर ने जर्मनी में यहुदियो के खिलाफ किया वैसे ही ! भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंदुत्ववादी तत्वो द्वारा चलाए जा रहे द्वेषपूर्ण प्रचार- प्रसार द्वारा ! ) लहलहाती नजर आ रही है ! आज भले जर्मनी में हिटलर का नाम लेने से लोग कतराते होंगे ! लेकिन भारतीय नाजी मॉडल का वर्तमान रूप हूबहू सौ साल पुराने जर्मनी की यादें ताजा करते हुए नजर आ रहा है ! और यह भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश के लिए बहुत ही खतरनाक है !


डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी का मुकनायक अखबार का 30 जनवरी 1920 के पहले ही अंक में प्रकाशित लेख में, उन्होंने कहा कि ” अगर कोई जाति अवनति के कगार पर पहुंच गई, तो उसके अवनति के परिणाम और जातीयो को भी हुए बगैर रह नहीं सकता ! समाज एक नौका के जैसा होता है ! और उसमे बैठे हुए कोई अन्य खुराफाती दिमाग के प्रवासी के मन में, नौका में सफर कर रहे और यात्रियों को तकलीफ देने के इरादे से ! अगर उसने चुपचाप उस नौका के किसी कोने में छेद कर दिया तो ! सबको जलसमाधी तो मिलेगी ही भले वह भी बाद में डुबेगा !(हम तो डुबेंगे सनम लेकिन तुम्हें भी लेकर !)
और फिलहाल हिंदुत्ववादीयो के संघटनाओ के तरफसे कुछ सालों से यही पागलपन का आलम जारी है ! जिसका परिणाम संपूर्ण देश को भुगतना पड़ रहा है ! गुजरात और भागलपुर के दंगों के बाद भारत की राजनीति का केंद्रबिंदू सिर्फ सांप्रदायिकता बनाने में संघ को कामयाबी मिली है ! लेकिन किस किमतपर ?


और यह मुल्क सिर्फ संघ की जागिर नही है ! इस देश में रहने वाले कुल 135 करोड़ लोगों का भी उतना ही हक है ! जितना कि किसी हिंदुत्ववादी का ! लेकिन पिछले कुछ सालों से आप लोग लगातार अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बदनामी की मुहिम शुरू करने के बाद ! अब उनके उपर शारीरिक और मानसिक हमले कर के ! डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 30 जनवरी 1920 के मुकनायक के लेख में दि गई हिदायत की ! भले ही आप नौका में बैठे – बैठे यह सोच कर नौका के अंदर चुपचाप छेद कर देने से ! नौका के भीतर बैठे हुए अन्य यात्रियों के बाद आप सहीसलामत बचकर निकल जाओगे इस गलतफहमी में मत रहना ! हालांकि 2005 में मनमोहन सिंह सरकारने जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में मुस्लिम समुदाय के आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक स्थिती के आकलन के लिए एक समिती का गठन किया था और समिति ने एक साल के भीतर ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी ! जो कि बहुत ही हैरान करने वाली रिपोर्ट है !

संघ सतत मुस्लिम अपिजमेंट का आरोप लगाते थकता नही है ! लेकिन आजादी के पचहत्तर साल के अंत में पंद्रह प्रतिशत आबादी का आर्थिक विकास, शैक्षणिक विकास और सामाजिक स्थिति कितनी भयावह है यह बात सामने आई है ! सरकारी विभागों में मुस्लिम समुदाय नही के बराबर है ! और इसी कारण वह शिक्षा के प्रति उदासीन है ! क्योंकि पढ लिखकर भी नौकरी नहीं मिलती तो लगभग सभी कारागिरी या हाथों के कामकाज में किसी तरह अपने और अपने परिवार के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और उसमे भी उन्हें शत्रुओं की जगह जोर – जबरदस्ती से डालने के कारण वह अपने आप में सिकुड़ने के लिए मजबूर हुए हैं ! और इसी कारण गत 30-35 सालों से हिंदुत्ववादीयो के तरफसे चलाए जा रहे द्वेषपूर्ण प्रचार के दौरान भारत में भी ! ( अफ्रीकीअमेरिकी नागरिकों के और नाजी जर्मनी में हिटलर के यहुदियो के खिलाफ चले अभियान के दौरान भी जर्मनी में यहुदियो के लिए भी घेट्टोज बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था !) अपने – अपने घेट्टोज मे रहने के लिए मजबूर हो गये हैं ! और यह सामाजिक दुरी एक – दुसरे के लिए बहुत ही दुःखद है और खतरनाक भी ! क्योंकि इससे एक दूसरे के बारे में, गलतफहमियां और भी बढ़ रही है ! और संघ की बदनामी की मुहिम को और अधिक मजबूत करने के लिए काम में आ रही हैं !

Security personnel patrol near burnt-out and damaged residential premises and shops following clashes between people supporting and opposing a contentious amendment to India’s citizenship law, in New Delhi on February 26, 2020. – Riot police patrolled the streets of India’s capital on February 26 following battles between Hindus and Muslims that claimed at least 20 lives, with fears of more violent clashes. (Photo by Sajjad HUSSAIN / AFP) (Photo by SAJJAD HUSSAIN/AFP via Getty Images)

क्योंकि 1947 भारत का बटवारे के लिए दिखने के लिए ! मुस्लिम लिग या बॅरिस्टर मोहम्मद अली जिना की अलग देश की मांग ! सिर्फ हवा के झोके के साथ नहीं आई थी ! डॉ राम मनोहर लोहिया ने भारतीय बटवारे के गुनाहगार किताब में साफ तौर पर लिखा है कि “अखंड भारत के लिए सबसे अधिक व उच्च स्वर में,नारा लगाने वाले, वर्तमान जनसंघ और उसके पूर्व पक्षपाती जो हिंदुवाद की भावना के अहिंदु तत्व के थे, उन्होंने ब्रिटिश और मुस्लिम लीग की देशविभाजन में सहायता की, यदि उनकी नियत को नहीं, बल्कि उनके कामों के नतीजों को देखा जाए तो स्पष्ट हो जायेगा ! एक राष्ट्र के अन्तर्गत मुसलमानों को हिंदुओ को नजदीक लाने के संबंध में उन्होंने कुछ नहीं किया ! उल्टा उन्हें एक-दुसरे से पृथक रखने के लिए लगभग सबकुछ किया ! ऐसी पृथकता ही विभाजन का मुल कारण है ! पृथकता की नीति को अंगिकार करना, साथ ही अखंड भारत की भी कल्पना करना अपने आप में घोर आत्मवंचना है, यदि हम यह भी मान ले कि ऐसा करने वाले लोग इमानदार है ! उनके कृत्यों को युद्ध के संदर्भ में अर्थ और अभिप्राय माना जायेगा ! जबकि वे उन्हें दबाने की शक्ति रखते हैं ! ऐसा युद्ध असंभव है, कम-से-कम हमारी शताब्दी के लिए ! और यदि यह संभव भी हुआ तो इसका कारण घोषणा न होगी ! युद्ध के बीना, अखंड भारत और हिंदु – मुस्लिम पृथकता की दो कल्पनाओं का एकिकरण, विभाजन की नीति का समर्थन और पाकिस्तान को संकटकालीन सहायता देने जैसा ही है ! भारत के मुसलमानों के विरोधी पाकिस्तान के मित्र है ! जनसंघी और हिंदु नीति के सभी अखंड भारतवादी वस्तुतः पाकिस्तान के सहायक है ! मैं एक असली अखंड भारत वादी हूँ ! मुझे विभाजन मान्य नहीं है ! विभाजन की सीमारेखा के दोनों ओर ऐसे लाखों लोग होंगे, लेकिन उन्हें केवल हिंदु या केवल मुसलमान रहने से अपने आपको मुक्त करना होगा, तभी अखंड भारत की आकांक्षा के प्रति वे सच्चे रह सकेंगे !


दक्षिण राष्ट्रवादीता की दो धाराएँ है, एक धारा ने विभाजन के विचार को समर्थन दिया, जबकि दुसरी ने इसका विरोध किया ! जब ये घटनाएँ घटी तब उनकी नाराज व खुष करने की शक्ति कम न थी, लेकिन वे घटनाएँ फलहीन थी ! महत्वहीन ! दक्षिण राष्ट्रवादीता केवल शाब्दिक या शब्दहीन विरोध कर सकती थी, इसमें सक्रिय विरोध करने की ताकत न थी ! अतः इसका विरोध समर्पण अथवा राष्ट्रीयता की मुलधारा से दूर होने में मिट गया ! इसी तरह दक्षिण राष्ट्रवादी विचार, जिसने विभाजन में मदद की, उसने थोड़ी भीन्न भुमिका भी अदा की, इस सत्य के बावजूद कि इसके भाषणों से असली राष्ट्रवादी बुरी तरह से उब चुके थे ! इस भाषणबाजी में प्रभाव की शक्ति न थी ! दोष इसमें इसी का नही था, भारतीय जनता व भारतीय राष्ट्रवाद की पलायनवृत्ति, पंगुत्व, भग्नता, और आत्मशक्ति की कमी का भी दोष था ! दक्षिण राष्ट्रवादीता ने विभाजन का विरोध और समर्थन दोनों किया, यह उनके मूल – वृक्ष की निष्पर्ण शाखाएँ थी ! मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि क्या देशद्रोही लोग भी कभी इतिहास बनाने में कोई मौलिक भुमिका अदा कर सकते हैं ? ऐसे लोग तिरस्करणीय होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं, लेकिन वे क्या महत्वपूर्ण लोग हैं ? मुझमें शक है ! ऐसे देशद्रोहियों के काम अर्थहीन होंगे, यदि उन्हें पूरे समाज के गुप्त विश्वासघात का सहयोग न मिले ! ”
यह डॉ राम मनोहर लोहिया के द्वारा, साठ साल के भी पहले लिखी गयी पुस्तक हैं ! उनके मृत्यु के बाद भारत की राजनीति में दक्षिण पंथी हिंदुराष्ट्रवादीयोने अहिस्ता – अहिस्ता अपने आप को राजनीतिक रूप से आगे बढाने के लिए कोई कोर – कसर बाकी नही रखी ! 1985-86 के शाहबानो के विवाद में से उन्होेंने सवाल आस्था का है, कानून का नही ! यह जुमले को लपकने के बाद उन्होंने बाबरी मस्जिद – रामजन्मभूमी विवाद को हवा देते हुए, आज का मुकाम हासिल किया है ! (तबतक उन्हें छ प्रतिशत से कम वोट नहीं मिलते थे!और वह आज सत्ता में बैठे हैं ! )


और सबसे संगीन बात अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत फैला – फैलाकर आज तक उन्होंने रोजमर्रे के मुद्दे हाशिये पर डालने में कामयाबी हासिल की है ! फिलहाल की महंगाई को ही लीजिए ! लेकिन लाऊडस्पीकर, हिजाब, हलाल, कुतुबमीनार, गाय, लवजेहाद, 370, नागरिकता, और मंदिर – मस्जिदों जैसे गैरमामुली विवादों में महंगाई लुप्त हो गयी है !
और रामनवमी और हनुमानजयंती के बहाने कमअधिक प्रमाण में ! संपूर्ण भारत में धार्मिक उन्माद का वातावरण बनाने के लिए आये दिन नये-नये धमकीया और घोषणाएं जारी है ! जिस कारण संपूर्ण देश का अल्पसंख्यक समुदाय इतिहास के क्रम में कभी नहीं इतना आज अपने आप को असुरक्षित महसूस नहीं कर रहा था, जितना आज कर रहा है ! तथाकथित मुख्य धारा का मिडिया हिंदुत्ववादीयो की तरफ से चौबीसों घण्टे लगा हुआ है ! कभी लगता था कि सोशल मीडिया पर्याय बन सकता है !
लेकिन आज उसे भी कंट्रोल करने की वजह से ! लगता है कि सौ साल पहले जर्मनी में भी यही माहौल बनाने का उदाहरण मौजूद था ! उस समय के हिटलर के जर्मन लोगों को भड़काने वाले वीडियो और वर्तमान भारत में यहां के सब से प्रमुख पद पर बैठे हुए व्यक्ति का भाषणों में क्या फर्क नजर आ रहा है ?
हनुमानजयंती के दिन मोरवी के 108 फीट उंची भगवान हनुमानजी की मूर्ति के अॉनलाईन उद्घाटन भाषण में कहा ” कि भारत के एकता के लिए इस तरह की चार मूर्तियां खडी करने का ऐलान किया है !” जिससे भारत में एकता कायम हो ! और उसी क्षण हनुमानजी के भक्तों द्वारा अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों के उपर भगवे झंडे लगाने के कई शहरों में प्रयास करना कौन-सी राष्ट्रीय एकात्मता के लिए काम आने वाला है ?


और जबरदस्ती से मुसलमानों को पकडकर जयश्रीराम के नारे लगवाना, भी भारत की एकता को मजबूत करने के लिए काम आ रहा है ? या हमारे देश की गंगा – जमनी संस्कृति को नष्ट करने के लिए काम आने वाला है ? और गेरूआ कपड़े पहनकर, खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ जहरीले भाषण, कौन सी एकात्मता बनाने के लिए काम आ रहे हैं ?
कोरोना के समय हमारे स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पूरे विश्व को पता चल चुकी है ! अब लाशों के आकडे छुपा रहे है ! मैं तो कहुंगा की चालीस लाख हो या चार लाख ! आखिर में लोगों की मौत हो गई है ! यह बात सत्य है ! कि आकड़ों के खेल में आपकी संवेदनशीलता को झकझोरने की जगह, असंवेदनशीलता का परिचायक है ! और यही असंवेदनशीलता को आजसे बीस साल पहले गुजरात के दंगों में दिखाकर ही, यहां तक कि यात्रा तय की है ! तो अब आवश्यकता है ! कार्ल जी जुंग के जैसा ही भारत की मनोदशा की मुल से निदान करने की ! सिर्फ हेटस्पिच – हेटस्पिच की रट लगाने से क्या होगा ?

भारत अघोषित हिंदुराष्ट्रवादी हो चुका है ! और भारत के एक भी संघठन या किसी अन्य राजनीतिक दलों की ओर से इस परिस्थिति का विरोध करने की जगह ! कोई खुद लाऊडस्पीकर बाटने का काम कर रहे हैं ! तो कोई खुद भगवा कपड़े पहनकर महाआरती करते हुए देखकर ! सौ साल पहले के जर्मनी की याद आ रही है !
या डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के अनुसार इस सब स्तिथि के तरफ, स्थितप्रज्ञ के जैसा देखने वाले इन दुष्परिणामों से बच नहीं सकते ! कोई कौम अवनति के रास्ते पर चलने लगे तो, उसके अवनति का दुष्परिणामों से वह भी बच नहीं सकता ! इसलिये उन्होंने एक पानी के जहाजपर यात्रा कर रहे लोगों का उदाहरण देते हुए, कहा कि “अगर उनमें कोई खुराफाती दिमाग वाले ने दुसरे यात्रियों को परेशानी का सामना करने के लिए ही कोई छेद कर दिया तो वह जहाज तो डुबेगाही लेकिन अंत में ही सही उस खुराफाती को भी लेकर डुबेगा ! इतना पक्का !”
फिर यह नफरत की खेती करके दो दिन के लिए सत्ता मिली तो, भी अखंड भारत का क्या ? क्योंकि आजकल देशभक्ति के सर्टिफिकेट देने का काम भी आप लोग ही कर रहे हो ! जैसा हिटलर अपने आखिरी समय तक अपने निर्णय से अलग निर्णय लेने वाले, अपने ही मातहतों के लोगों के साथ करता रहा ! क्या इतिहास में की गई गलतियों से कुछ सिखना नहीं ? उल्टा उन्हें दोहराने के परिणाम मालूम होने के बावजूद????????????
डॉ सुरेश खैरनार 19 अप्रैल 2022, नागपुर

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