महंगाई की किसी पर अगर सबसे अधिक मार पड़ी है, तो वे हैं ग़रीब और दो वक्त के लिए बाहर से कमाने आने वाले मज़दूर. विश्लेषकों का मानना है कि आम बजट से किसी का फ़ायदा हुआ है तो वह मिडिल क्लास है. अभी हाल ही में आई रंगराजन समिति की रिपोर्ट में कहा गया है भारत में दस से तीन व्यक्ति ग़रीब है और सरकार भी कहती है कि वह ग़रीबों की हितैषी है, लेकिन आम बजट पेश करते वक्त उन्हीं गरीबों को कैसे भूल गई.
पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता पर मानसून कमज़ोर होने की आशंका के बीच आने वाले दिनों में महंगाई की और मार पड़ने वाली है. आम बजट से जनता को काफी उम्मीदे थीं कि महंगाई से पड़ने वाली मार के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी जिससे महंगाई कम होगी. सरकार ने आम बजट में जो एलान किए हैं, उसमें महंगाई को कम करने के लिए वित्त मंत्री द्वारा किसी ठोस कदम का जिक्र नहीं किया गया, लेकिन सरकार ने महंगाई रोकने के लिए खुले बाजार में खाद्य सामग्री बेचने का प्रावधान किया है. खराब मानसून के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित होगा जिससे खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे. देश का बढ़ता घाटा 4.5 फीसदी पर है जो 2012-2013 के दौरान 4.1 पर था. सरकार घाटा काबू करने के लिए सब्सिडी घटाने पर जोर दे सकती है जिसका भी जिक्र किया गया है. 11.7 प्रतिशत पर पहुंची थोक महंगाई दर फिलहाल इस समय 6.1 प्रतिशत पर स्थिर है जो साल के अंत तक रहेगी यानी बढ़ती कीमतों से ज्यादा राहत नहीं मिलने वाली है. अप्रैल में यह दर 5.1 और मई में यह 6.01 हो गई. भाजपा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान एक नारा दिया था कि बहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने महंगाई पर केवल प्राइस स्टेबिलिटी फंड के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन का जिक्र किया है और भंडारण बढ़ाने के लिए 50 हजार करोड़ के फंड की बात कही गई है.
वस्तु एवं सेवा कर(जीएसटी) कब से लागू होगा इसे लेकर भी स्पष्ट एलान बजट में नहीं हुआ है. वो भी इस समय में जब सुधारों के क्रम में विशेषज्ञ इस पर जल्द से जल्द अमल की वकालत करते रहे हैं. जीएसटी पर इस वर्ष राज्यों के साथ सहमति बनाने की उम्मीद वित्त मंत्री ने जरूर जाहिर की है. महंगाई कम करने के उपायों की बात करें तो सरकार का कहना है कि वह पेट्रो-पदार्थो पर सब्सिडी घटा सकती है, यदि सब्सिडी घटी तो महंगाई और बढ़ेगी. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा कि अगर भारत में ऐसे ही डीजल के दाम बढ़ते रहे तो अगले एक साल में भारत में डीजल पर सब्सिडी खत्म हो जाएगी. इराक में गृहयुद्ध जैसे हालात बने हुए हैं जिसके कारण अन्तराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका है. यदि सरकार भी सब्सिडी कम करती है तो तेल के दाम बाजार में बढ़ेंगे, जिससे महंगाई बढ़ेगी. अब तक मानसून कमज़ोर रहा है अगर आगे भी मानसून खराब रहा तो खाने-पीने की चीजों की आने वाले दिनों में जमाखोरी बढ़ेगी जिससे महंगाई बढ़ेगी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक भाषण में कहा था कि अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए हमें कड़वी दवा की जरूरत है जिससे हमारे अपने नाराज भी हो सकते हैं, लेकिन सरकार जानती थी कि महंगाई की मार झेल रही जनता को कड़वी दवा दी गई तो पूरे देश में इसका असर हो सकता है, शायद इसलिए सरकार अपने आम बजट में कड़वी दवा देने से बची. वित्त मंत्री ने महंगाई की मार झेल रही जनता को टैक्स में थो़डी राहत तो जरूर दी है, लेकिन जो टैक्स में बचेगा वह महंगाई खा जाएगी. टैक्स स्लैब में बदलाव से कम से कम हर टैक्सपेयर को पांच हजार रुपये सलाना बचेंगे लेकिन रिपोर्ट कहती है कि महंगाई 8 फीसदी की दर से बढ़ रही है और साल भर ऐसे ही बढ़ेगी. अगर सलाना पांच हजार बचेंगे तो महंगाई 40 हजार रुपये खा जाएगी. आम आदमी बचत कहां कर पाएगा, उल्टा उसका खर्च ही बढ़ेगा. यदि महंगाई को छोड़ दिया जाय तो सरकार ने अपनी तरफ से सबके लिए कुछ न कुछ रियायतें देने की कोशिश की है. महंगाई के मसले पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि 45 दिन में सरकार से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती.
महंगाई पर काबू पाने की पूरी कोशिश जारी है. यह सही बात है कि महंगाई कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल की देन है. वह हर 100 दिन में महंगाई कम करने की बात करती रही, लेकिन महंगाई उसके शासन काल में चरम पर पहुंच गई. अब उसके नेता महंगाई पर संसद में प्रवचन देते हैं और अब जब विपक्ष में हैं तो ब़डी-बड़ी बाते करते हैं. महंगाई पर संसद में चर्चा के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि सब किया धरा यूपीए का है, बजट में हमारा काम दिखेगा, लेकिन जिसकी उम्मीद थी वह नहीं दिखा. लेकिन छोटी सी उम्मीद बजट से जरूर जगी है. महंगाई पर चर्चा के दौरान सरकार और विपक्ष द्वारा केवल एक दूसरे पर दोषारोपण हुआ. चर्चा के दौरान महंगाई कैसे कम की जा सकती है, इस पर चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन संसद में नेता एक दूसरे पर आरोप ही मढ़ते रहे. प्रधानमंत्री मंत्री ने संसद में कहा था कि यह सरकार आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति की होगी, लेकिन इस बजट से ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा. टीवी, पंखा सस्ता करने से गरीबों का क्या फायदा? उन्हें फायदा तब मिलेगा जब चावल, गेहूं, दाल, चीनी, सब्जियां सस्ती होंगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में जरूर कहा है कि कमजोर तबकों को सस्ता गेहूं-चावल मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है, जिससे गरीबों के बीच थोड़ी आस जरूर जगी है.
महंगाई बढ़ने का सबसे बड़ा कारण वायदा कारोबार और जमाखोरी है, जिसे सरकार भी मानती है लेकिन बजट में इसे रोकने को लेकर कोई प्रावधान नहीं किया गया है. सरकार जमाखोरों के खिलाफ अभियान चला रही है, लेकिन केवल छोटे जमाखोरों के खिलाफ. देश में जो बड़े जमाखोर हैं, उन पर हाथ डालने से सरकार भी कतराती है. असली कार्रवाई उनपर करने की जरूरत है. आलू और प्याज के दाम बढ़ने का सबसे कारण जमाखोरी है. लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई था, जिसे एनडीए ने भी विपक्ष में रहने के दौरान सड़क से लेकर संसद तक खूब उठाया था. महंगाई की किसी पर अगर सबसे अधिक मार पड़ी है, तो वे हैं गरीब और दो वक्त के लिए बाहर से कमाने आने वाले मजदूर. विश्लेषकों का मानना है कि आम बजट से किसी का फायदा हुआ है तो वह मिडिल क्लास है.
अभी हाल ही में आई रंगराजन समिति की रिपोर्ट में कहा गया है हिंदुस्तान का दस में से तीन व्यक्ति गरीब है और सरकार भी कहती है कि वह गरीबों की है, लेकिन आम बजट पेश करते वक्त उन्हीं गरीबों को कैसे भूल गई. महंगाई पर काबू पाने के लिए जिन उपायों का बजट में जिक्र किया गया है, उन्हें ठोस कदम नहीं माना जा सकता है. आर्थिक सर्वे में महंगाई को लेकर जिन बातों का जिक्र किया गया है वह चिंतित करने वाली हैं. आर्थिक समीक्षा में महंगाई को कम करने और खाद्यान्नों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का सुझाव दिया गया है. प्याज और आलू के दाम में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. सरकार यदि भविष्य में डीजल के दाम बढ़ाती है तो माल ढुलाई बढ़ेगी, जिससे महंगाई बढ़ेगी. सरकार पहले ही रेल यात्री किराए के साथ माल भाड़े में भी 6.5 की बढ़ोत्तरी कर चुकी है जिससे माल ढुलाई महंगी हुई है. नेफेड का मानना है कि मानसून के कारण प्याज की बुवाई में देरी होती है, तो लगभग इसकी कीमतें 100 रुपये तक जा सकती हैं. खराब मानसून के कारण खरीफ की बूवाई में पहले ही देरी हो चुकी है जिसका उसके उत्पादन पर असर पड़ेगा, लेकिन सरकार ने बजट में इससे निपटने के लिए भी किसी उपाय का जिक्र नहीं किया है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली से सबसे ज्यादा गृहणियों को उम्मीद थी कि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत के लिए कोई उपाय बजट होगा जिससे उनके रसोई का बिगड़ता बजट ठीक हो सके, लेकिन वह भी निराश हुई होंगी. इस बजट में ठीक कहा जा सकता है, लेकिन महंगाई रोकने के कोई ठोस कदम उठाने का एलान नहीं किया गया. जिससे आने वाले दिनों खाद्य पदार्थों के दामों में वृद्धि होगी जिससे आम आदमी का बजट बिगड़ेगा और रोजमर्रा की वस्तुओं गरीबों से दूर होंगी. पहले से ही आम आदमी की थाली का बजट बिगड़ा हुआ जो सरकार के आम बजट में कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण और बिगड़ सकता है. मोदी सरकार ने भी लोकसभा चुनावों के दौरान सरकार आने पर अच्छे दिनों की बात थी और उनका नारा भी था अच्छे दिन वाले हैं, लेकिन आम बजट में अगर सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया तो कोई बात नहीं. वित्त मंत्री ने संसद में जो बजट पेश किया है उससे महंगाई कम नहीं होने वाली है. अब सरकार को चाहिए की महंगाई खिलाफ ठोस कदम उठाए और जनता से किए गए अच्छे दिनों के वादों को पूरा करे.
इस बजट से महंगाई ख़त्म नहीं होगी
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