इराक में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, दरअसल वह बुश सरकार की नीतियों का नतीजा है. अगर बुश सरकार ने इराक पर हमला नहीं किया होता और सद्दाम हुसैन को ख़त्म नहीं किया होता तो, आज इराक में आतंकवादी संगठन नहीं होते. फ़िलहाल इराक में जितने भी आतंकी संगठन हैं, वे अमेरिका की कठपुतली सरकार की वजह से हैं. इराक में सुन्नी और कुर्द अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा और सत्ता से अगल रखने की ग़लती की. इराक में जहां प्रजातंत्र की बहाली होनी थी, वहां न स़िर्फ अराजकता फैली हुई है, बल्कि रैडिकल थ्योक्रेसी पर चलने वाली सरकार का ख़तरा मंडरा रहा है.
इराक इन दिनों फिर अशांत है और वहां गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई है. इराकी सरकार की सत्ता बगदाद और उसके आस-पास के इलाक़ों में क़ायम है, लेकिन मुल्क ज़्यादातर इलाक़ों पर नूरी अस मलिकी सरकार का नियंत्रण ख़त्म हो गया है. दरअसल, पिछले कई दिनों से देश के कई हिस्सों में शिया, सुन्नी और कुर्द एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं. पूरे इराक में इन दिनों तोप और गोलियों की आवाज़ सुनाई दे रही है. पिछली बार अमेरिकी हमले के दौरान ऐसा ही माहौल बना था.
ग़ौरतलब है कि अमेरिका ने वर्ष 2003 में इराक पर हमला किया था. उस समय अमेरिका ने इराक पर यह आरोप लगाया था कि इराक के पास हथियारों का काफ़ी बड़ा जखीरा है. अमेरिका ने इराक पर पूरी तरह से क़ब्ज़ा भी कर लिया, लेकिन वे हथियार आज तक नहीं मिले, जिसकी तलाश अमेरिका को थी. जहां तक इराक पर हमले की बात है तो, सद्दाम हुसैन को फांसी देने की वजह आज भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि सद्दाम कभी भी अलक़ायदा के समर्थक नहीं रहे. इसलिए अमेरिका का इराक पर हमला किसी भी तरी़के से जायज़ नहीं था. सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद अमेरिका ने लोकतंत्र बहाली के नाम पर इराक में अपना दख़ल बढ़ाना शुरू किया और उसने वहां सरकार के नाम पर एक कठपुतली सरकार क़ायम कर दी. कहने को अमेरिका ने इराक में लोकतंत्र क़ायम करने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन सच्चाई यह है कि इराक़ में न तो मज़बूत लोकतंत्र स्थापित हो सका और न ही वहां दहशतगर्दों का मनोबल घटा.
बेशक, तालिबान का प्रभाव इराक़ में अब नहीं रह गया है, लेकिन उसकी जगह अब आईएसआईएस नामक एक आतंकी संगठन खड़ा हो गया है. यह तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक है. इराक की मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र पहला सवाल यह है कि आख़िर इराक की इस हालत के लिए ज़िम्मेदार कौन है? निश्चित रूप से इराक की इस स्थिति के लिए अमेरिका ही ज़िम्मेदार है. सद्दाम हुसैन की सरकार को जबरन हटाने और सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद अमेरिका 10 वर्षों तक इराक में रहा. अगर इन दस वर्षों में वहां की स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो, इससे लिए भी अमेरिका दोषी है. इराक में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, दरअसल वह बुश सरकार की नीतियों का नतीजा है. अगर बुश सरकार ने इराक पर हमला नहीं किया होता और सद्दाम हुसैन को ख़त्म नहीं किया होता तो, आज इराक में आतंकवादी संगठन नहीं होते. फ़िलहाल इराक में जितने भी आतंकी संगठन हैं, वे अमेरिका की कठपुतली सरकार की वजह से हैं. इराक में सुन्नी और कुर्द अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा और सत्ता से अगल रखने की ग़लती की. इराक में जहां प्रजातंत्र की बहाली होनी थी, वहां न स़िर्फ अराजकता फैली हुई है, बल्कि रैडिकल थ्योक्रेसी पर चलने वाली सरकार का ख़तरा मंडरा रहा है.
इराक की मौजूदा स्थिति के बारे में जानने के लिए आपको मोसुल के रहने वाले 35 वर्षीय इयाद नफिया शीयत की कहानी समझनी होगी. वह मोसुल में विद्रोहियों का क़ब्ज़ा होने के बाद अपना घर-बार छोड़कर अल खंजार कैंप में रह रहे हैं. एक महीने पहले वह अपने पांच बच्चों और पत्नी के साथ शरणार्थी शिविर में आए थे. यह शिविर उनके शहर के लोगों से पूरी तरह भरा हुआ था. रमजान के पवित्र महीने में खाना, पानी और बिजली के बिना उन्हें रहना पड़ रहा है. रमजान में वह सहरी और इफ्तार जैसी बातों को भूल गए हैं. बावजूद इसके कैंप में रहने वाले कुछ लोग रोजे रखने की कोशिश कर रहे हैं. मोसुल के एक रेस्टोरेंट में काम करने वाले सैयद हामिद जुमा अपनी पत्नी और छह बच्चों के साथ शिविर में रह रहे हैं. वे दिन भर अपने सिर पर भींगा हुआ तौलिया बांधे रहते हैं. उनके अनुसार, शिविर में एक दिन गुजारना मानों एक साल गुजारने के बराबर हैै, क्योंकि यहां इतनी गर्मी है कि वह सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे के दौरान सो भी नहीं सकते हैं.
इराक की जारी अशांति की वजह से वहां लगभग 12 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा है. पिछले कुछ महीनों के दौरान आईएसआईएस के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों को छोड़कर ये आम लोग अपने-अपने परिवार के साथ शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं. इन्हें यह भी नहीं मालूम की भूखे-प्यासे ये कितने दिन तक ज़िंदा रहेंगे, क्योंकि ये लोग कुर्द इलाक़ों में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. यहां के क़ानून अलग हैं और इस वजह से लोगों को कुर्दिस्तान की सीमा से सटे इलाक़ों में बने शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ रहा है.
इस बीच इराक सरकार विस्थापित हुए हर नागरिक को तीन लाख इराकी दीनार दे रही है, लेकिन इसके लिए भी कुछ शर्तें हैं. मसलन, जिस व्यक्तिका रजिस्ट्रेशन नहीं होगा, उसे पैसे नहीं मिलेंगे. यही वजह है कि अधिकांश लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन शरणार्थी के रूप में नहीं करा सके हैं. सरकार और विद्रोहियों के बीच हो रहे इस संघर्ष में लोगों को अपनी जान की फ़िक्र ज्यादा है. इराक में आईएसआईएस ने जिस बेरहमी से शियाओं की हत्याएं की, वह मानवता को शर्मसार कर देने वाली है. आईएसआईएस के आतंकियों ने अमेरिका के ख़िलाफ़ छेड़ी गई जंग को शिया विरोधी बना दिया है. पिछले दिनों आईएसआईएस आतंकियों ने एक वीडियो जारी किया. इस वीडियो में दिखाया गया है कि तीन ट्रक ड्राइवरों को आतंकियों ने स़िर्फ इसलिए मार दिया, क्योंकि उनका ताल्लुक सीरिया के नुसरा समुदाय से था. यह समुदाय शियाओं का ही एक अंग है. इराक की राजधानी बग़दाद के दक्षिण में स्थित शहर हमजा-अल-गर्बी में पिछले दिनों सुरक्षा बलों को 53 लोगों के शव मिले. मारे गए लोगों के सिर और छाती पर गोलियों के निशान थे. इन बेगुनाह लोगों की हत्या क्यों की गई, इस बारे में स्थिति अभी साफ़ नहीं है.
बहरहाल, इराक के हालात दिनों दिन ख़राब होते जा रहे हैं. दहशतगर्दों के आगे सरकार ने घुटने टेक दिए हैं. ख़बरों के मुताबिक़, आईएसआईएस के आतंकियों ने कई हथियार फैक्ट्रियों पर भी क़ब्ज़ा कर लिया है. मोसुल विश्वविद्यालय में तकरीबन 40 किलोग्राम यूरेनियम रखा गया था. वह भी दहशतगर्दों के हाथों लग गया है. इसके अलावा, इराक सरकार ने मुथन्ना रासायनिक हथियार परिसर पर भी क़ब्ज़े की पुष्टि कर चुकी है. ग़ौरतलब है कि रासायनिक हथियारों की यह फैक्ट्री बगदाद के पश्चिमोत्तर भाग में है, जहां कई तरह के रासायनिक हथियारों के अवशेष रखे गए हैं. इस संबंध में संयुक्तराष्ट्र संघ का कहना है कि ये हथियार उस अवस्था में नहीं हैं कि चरमपंथी उनका इस्तेमाल कर सकें. इसके आलावा, आईएसआईएस के हाथ 2500 ख़तरनाक रॉकेट भी लग गए हैं. इस बीच इराक सरकार ने दावा किया है कि उनके रासायनिक हथियारों के भंडार पर आईएसआईएस के आतंकियों ने कब्जा कर लिया है.
इराक में ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है कि यहां लोगों ने अपने परिवार की रक्षा के लिए भी हथियार उठा लिए हैं. बगदाद में महिलाओं को हथियार चलाने और आतंकियों द्वारा शहर पर हमला करने की स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जा रही है. यहांं ट्रेनिंग ले रही 47 वर्षीय एक महिला का कहना है कि जब आईएसआईएस ने मोसुल पर क़ब्ज़ा किया तो, हमें बेहद दुख हुआ. हमें लगा कि हमें भी बंदूक चलाना सीखना चाहिए. हमारे घरों के पुरुष जंग पर गए हुए हैं. ऐसे में बच्चों की सुरक्षा अब हमारी ज़िम्मेदारी है.
शिया, सुन्नी और कुर्द इन्हीं तीन समुदायों से मिलकर इराक बना है. इनके बीच सारे युद्धों का स़िर्फ एक ही हल है कि एक ऐसा नेता चुना जाए, जो इराकी जनता को मान्य हो. शायद, यही एक तरीक़ा बचा है जो देश को इस त्रासदी से बाहर निकाल सकता है. वर्तमान समय में अगर किसी एक बात पर राय बन सकती है तो, वह यह है कि नूरी अल मलिकी अपना पद छोड़ दें. इराक में स़िर्फ शिया-सुन्नी विवाद ही नहीं चल रहा है, जैसा कि मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है. दरअसल, आईएसआईएस और दूसरे सुन्नी विद्रोही समूह अलग लक्ष्यों को साधने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. सबसे पहले बात करते हैं सुन्नी विद्रोहियों की. इनके समूह में सद्दाम हुसैन के वफ़ादार हैं, जो अनबर प्रांत के कबायली लोग हैं. उनका स़िर्फ एक ही लक्ष्य है और वह है सत्ता परिवर्तन. वे आईएसआईएस के बैनर तले, इसलिए लड़ रहे हैं, ताकि वे अपने मक़सद में कामयाब हो सकें. कई कबायली नेता भी इस बात को समझ रहे हैं. इराक में एक प्रभावकारी समूह प्रोविंशियल काउंसिल ऑफ अनबर के डिप्टी हेड फलेह अल इसावी ने खुले तौर पर कहा है कि सभी सुन्नी विद्रोहियों को आईएसआईएस से लड़ने के लिए एक बैनर तले आ जाना चाहिए. इस बाबत सुन्नी सांसद हामिद अल मुतलाक का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री इन कबायली नेताओं से बात करें तो, वे उनका साथ दे सकते हैं. अब अगर बात आईएसआईएस की लड़ाई की करें तो वह एक सुनियोजित योजना के साथ काम कर रहे हैं. वे कई देशों में इस्लामिक राज्य की स्थापना की लड़ाई ही नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि पूरे विश्व के मुसलमानों को जोड़ने का एक सपना भी संजोए हुए हैं.
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