mulayaउत्तर प्रदेश के चर्चित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर का निलंबन रद्द कर उन्हें तत्काल तैनात करने के केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव राइब्यूनल) के फैसले पर सरकार ने घुटने तो टेक दिए लेकिन उन्हें काम नहीं दे रही है. ठाकुर का निलंबन समाप्त कर उन्हें डीजीपी मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया है, उन्हें कोई काम नहीं दिया जा रहा है और बैठा कर वेतन दिया जा रहा है. इसे लेकर आईजी अमिताभ ठाकुर ने सरकार के समक्ष नया तकनीकी पचड़ा फंसा दिया है.

ठाकुर का कहना है कि अधिकारियों को सम्बद्ध कर उन्हें काम न देना और बैठा कर वेतन देना सरकार का गैरकानूनी कृत्य है, इस पर फौरन रोक लगनी चाहिए. उन्होंने यह भी मांग की है कि सम्बद्ध किए गए पुलिस अधिकारियों को बेमानी दिए गए वेतन की राशि गृह विभाग के प्रमुख सचिव और पुलिस महानिदेशक के वेतन से काटा जाना चाहिए. इसे लेकर अमिताभ ठाकुर की समाजसेवी पत्नी नूतन ठाकुर ने कानूनी लड़ाई भी छेड़ दी है. सरकारी मंशा का हाल यह है कि पंचाट के फैसले पर नौकरी पर बहाल किए जाने के बावजूद प्रदेश सरकार अपने पत्रों में उन्हें निलंबित ही बता रही है.

केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट के फैसले पर घुटने टेकटे हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आखिरकार आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर को सेवा में बहाल करना पड़ा. गृह विभाग के प्रमुख सचिव देबाशीष पांडा के  11 मई 2016 के आदेश में कहा गया कि अमिताभ ठाकुर को 11 अक्टूबर 2015 से ही पूरे वेतन के साथ बहाल किया जाता है. केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2016 को अमिताभ ठाकुर का निलंबन निरस्त कर दिया था और उस पर केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (कैट) की लखनऊ बेंच ने भी 25 अप्रैल 2016 को अपनी मुहर लगा दी थी. उत्तर प्रदेश सरकार के टालमटोल पर केंद्र सरकार ने 26 अप्रैल 2016 को अमिताभ की बहाली का दोबारा आदेश दिया, जिसके अनुपालन में राज्य सरकार को उनकी बहाली का आदेश जारी करना पड़ा.

जिस लिफाफे में अमिताभ ठाकुर की बहाली का परिपत्र भेजा गया, उस पर ठाकुर को निलंबित आईपीएस अफसर ही लिखा गया. आईजी कार्मिक पीसी मीना की तरफ से ठाकुर को आदेश पत्र प्राप्त कराया गया, उसमें अमिताभ ठाकुर, आईपीएस (निलंबित) बताया गया.

इस मंशागत भूल की तरफ ध्यान दिलाए जाने के बाद उसे दोबारा सुधार कर भेजा गया. अमिताभ ठाकुर को डीजीपी मुख्यालय से अटैच कर दिया गया है, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया जा रहा. काम देने के लिए भी अमिताभ को कैट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है. उन्होंने कैट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा है कि उन्हें सात महीने तक अवैध रूप से निलंबित रखा गया और अंत में केंद्र सरकार और कैट के आदेश पर 11 मई 2016 को उनकी बहाली हुई. उन्हें डीजीपी कार्यालय में ज्वाइन भी करा लिया, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया.

16 मई को आईपीएस अफसरों की तैनाती के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक हुई जिसमें 62 आईपीएस अफसरों की तैनाती तय हुई लेकिन उनके प्रति पूर्वाग्रह से भरी सरकार ने जानबूझ कर उन्हें तैनाती नहीं दी. अमिताभ का कहना है कि उनकी बहाली के आदेश में यह स्पष्ट लिखा है कि उनकी तैनाती के आदेश अलग से जारी किए जाएंगे, फिर तैनाती का आदेश क्यों नहीं जारी किया जा रहा है? अब राज्य सरकार से इस सवाल का जवाब पंचाट में पूछा जाएगा.

अमिताभ ने यह भी कहा कि बिना काम के वेतन दिया जाना गैरकानूनी है. ठाकुर ने डीजीपी एस जावीद अहमद को पत्र लिख कर बेमानी वेतन देने की प्रक्रिया को खत्म कर उन्हें और अन्य सम्बद्ध अफसरों को तत्काल तैनाती देने की मांग की. ठाकुर ने कहा कि उनसे बिना सरकारी काम लिए प्रतिदिन लगभग पांच हजार रुपये वेतन दिया जा रहा है, जो पूरी तरह अनुचित है.

लिहाजा, या तो उन्हें स्वतंत्र तैनाती दी जाए या डीजीपी ऑफिस में ही कोई जिम्मेदारी दी जाए, ताकि उनके वेतन का औचित्य साबित हो सके. अमिताभ ठाकुर द्वारा यह मसला उठाए जाने के बाद उनकी समाजसेवी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर ने इसे लेकर कानूनी लड़ाई शुरू कर दी है. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर महीनों से डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध आईपीएस अफसरों को बिना काम लिए वेतन देने के मामले में त्वरित कार्रवाई करने की मांग की है और कहा है कि सम्बद्ध अफसरों को बैठा कर दिए गए वेतन की राशि की वसूली गृह विभाग के प्रमुख सचिव और डीजीपी के वेतन से की जाए.

नूतन ठाकुर ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि मौजूदा समय में भी आधा दर्जन आईपीएस अफसर डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध हैं, जिनमें आईपीएस अफसर सुनील सक्सेना 14 जनवरी से और लव कुमार 22 जनवरी 2016 से ही अटैच कर रखे गए हैं. इनके अलावा चार अन्य अफसर भी पिछले कई महीनों से बिना कोई सरकारी काम के निठल्ले बैठे हैं और इन पर सरकार द्वारा लाख-सवा लाख रुपये प्रति माह का वेतन दिया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि यदि इन सभी अफसरों का वेतन जोड़ा जाए तो यह हर महीने लगभग 15 लाख रुपये आता है. नूतन ठाकुर ने कहा कि पिछले कुछ साल में ऐसे सारे सम्बद्ध अफसरों का हिसाब निकाल कर उन्हें दिए गए वेतन की राशि गृह विभाग के प्रमुख सचिव और डीजीपी से वसूली जाए. उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री की तरफ से कोई अपेक्षित जवाब नहीं मिलने पर वे इस मामले में अदालत की चौखट पर जाएंगी.

उत्तर प्रदेश के चर्चित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर का निलंबन रद्द कर उन्हें तत्काल तैनात करने के केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव राइब्यूनल) के फैसले पर सरकार ने घुटने तो टेक दिए लेकिन उन्हें काम नहीं दे रही है. ठाकुर का निलंबन समाप्त कर उन्हें डीजीपी मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया है, उन्हें कोई काम नहीं दिया जा रहा है और बैठा कर वेतन दिया जा रहा है. इसे लेकर आईजी अमिताभ ठाकुर ने सरकार के समक्ष नया तकनीकी पचड़ा फंसा दिया है.

ठाकुर का कहना है कि अधिकारियों को सम्बद्ध कर उन्हें काम न देना और बैठा कर वेतन देना सरकार का गैरकानूनी कृत्य है, इस पर फौरन रोक लगनी चाहिए. उन्होंने यह भी मांग की है कि सम्बद्ध किए गए पुलिस अधिकारियों को बेमानी दिए गए वेतन की राशि गृह विभाग के प्रमुख सचिव और पुलिस महानिदेशक के वेतन से काटा जाना चाहिए. इसे लेकर अमिताभ ठाकुर की समाजसेवी पत्नी नूतन ठाकुर ने कानूनी लड़ाई भी छेड़ दी है. सरकारी मंशा का हाल यह है कि पंचाट के फैसले पर नौकरी पर बहाल किए जाने के बावजूद प्रदेश सरकार अपने पत्रों में उन्हें निलंबित ही बता रही है.

केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट के फैसले पर घुटने टेकटे हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आखिरकार आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर को सेवा में बहाल करना पड़ा. गृह विभाग के प्रमुख सचिव देबाशीष पांडा के  11 मई 2016 के आदेश में कहा गया कि अमिताभ ठाकुर को 11 अक्टूबर 2015 से ही पूरे वेतन के साथ बहाल किया जाता है. केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2016 को अमिताभ ठाकुर का निलंबन निरस्त कर दिया था और उस पर केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (कैट) की लखनऊ बेंच ने भी 25 अप्रैल 2016 को अपनी मुहर लगा दी थी. उत्तर प्रदेश सरकार के टालमटोल पर केंद्र सरकार ने 26 अप्रैल 2016 को अमिताभ की बहाली का दोबारा आदेश दिया, जिसके अनुपालन में राज्य सरकार को उनकी बहाली का आदेश जारी करना पड़ा.

जिस लिफाफे में अमिताभ ठाकुर की बहाली का परिपत्र भेजा गया, उस पर ठाकुर को निलंबित आईपीएस अफसर ही लिखा गया. आईजी कार्मिक पीसी मीना की तरफ से ठाकुर को आदेश पत्र प्राप्त कराया गया, उसमें अमिताभ ठाकुर, आईपीएस (निलंबित) बताया गया. इस मंशागत भूल की तरफ ध्यान दिलाए जाने के बाद उसे दोबारा सुधार कर भेजा गया. अमिताभ ठाकुर को डीजीपी मुख्यालय से अटैच कर दिया गया है, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया जा रहा.

काम देने के लिए भी अमिताभ को कैट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है. उन्होंने कैट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा है कि उन्हें सात महीने तक अवैध रूप से निलंबित रखा गया और अंत में केंद्र सरकार और कैट के आदेश पर 11 मई 2016 को उनकी बहाली हुई. उन्हें डीजीपी कार्यालय में ज्वाइन भी करा लिया, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया.

16 मई को आईपीएस अफसरों की तैनाती के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक हुई जिसमें 62 आईपीएस अफसरों की तैनाती तय हुई लेकिन उनके प्रति पूर्वाग्रह से भरी सरकार ने जानबूझ कर उन्हें तैनाती नहीं दी. अमिताभ का कहना है कि उनकी बहाली के आदेश में यह स्पष्ट लिखा है कि उनकी तैनाती के आदेश अलग से जारी किए जाएंगे, फिर तैनाती का आदेश क्यों नहीं जारी किया जा रहा है? अब राज्य सरकार से इस सवाल का जवाब पंचाट में पूछा जाएगा.

अमिताभ ने यह भी कहा कि बिना काम के वेतन दिया जाना गैरकानूनी है. ठाकुर ने डीजीपी एस जावीद अहमद को पत्र लिख कर बेमानी वेतन देने की प्रक्रिया को खत्म कर उन्हें और अन्य सम्बद्ध अफसरों को तत्काल तैनाती देने की मांग की. ठाकुर ने कहा कि उनसे बिना सरकारी काम लिए प्रतिदिन लगभग पांच हजार रुपये वेतन दिया जा रहा है, जो पूरी तरह अनुचित है. लिहाजा, या तो उन्हें स्वतंत्र तैनाती दी जाए या डीजीपी ऑफिस में ही कोई जिम्मेदारी दी जाए, ताकि उनके वेतन का औचित्य साबित हो सके. अमिताभ ठाकुर द्वारा यह मसला उठाए जाने के बाद उनकी समाजसेवी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर ने इसे लेकर कानूनी लड़ाई शुरू कर दी है. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर महीनों से डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध आईपीएस अफसरों को बिना काम लिए वेतन देने के मामले में त्वरित कार्रवाई करने की मांग की है और कहा है कि सम्बद्ध अफसरों को बैठा कर दिए गए वेतन की राशि की वसूली गृह विभाग के प्रमुख सचिव और डीजीपी के वेतन से की जाए.

नूतन ठाकुर ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि मौजूदा समय में भी आधा दर्जन आईपीएस अफसर डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध हैं, जिनमें आईपीएस अफसर सुनील सक्सेना 14 जनवरी से और लव कुमार 22 जनवरी 2016 से ही अटैच कर रखे गए हैं. इनके अलावा चार अन्य अफसर भी पिछले कई महीनों से बिना कोई सरकारी काम के निठल्ले बैठे हैं और इन पर सरकार द्वारा लाख-सवा लाख रुपये प्रति माह का वेतन दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यदि इन सभी अफसरों का वेतन जोड़ा जाए तो यह हर महीने लगभग 15 लाख रुपये आता है. नूतन ठाकुर ने कहा कि पिछले कुछ साल में ऐसे सारे सम्बद्ध अफसरों का हिसाब निकाल कर उन्हें दिए गए वेतन की राशि गृह विभाग के प्रमुख सचिव और डीजीपी से वसूली जाए. उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री की तरफ से कोई अपेक्षित जवाब नहीं मिलने पर वे इस मामले में अदालत की चौखट पर जाएंगी.

भ्रष्ट खनन मंत्री को बचाने में खोद डाली मुलायम ने अपनी छवि

उत्तर प्रदेश के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के भीषण भ्रष्टाचार के खिलाफ आईपीएस अमिताभ ठाकुर और उनकी समाजसेवी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा अभियान चलाने से नाराज उत्तर प्रदेश सरकार ने ठाकुर परिवार को अपना सीधा निशाना बनाया. ठाकुर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराने से लेकर तमाम षडयंत्र किए गए, लेकिन ठाकुर दम्पति ने धैर्य के साथ उसका मुकाबला किया. आखिरकार सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने फोन करके अमिताभ ठाकुर को धमकियां दीं, लेकिन ठाकुर ने मुलायम की धमकी वाले फोन की पूरी रिकॉर्डिंग कर ली और उसे सार्वजनिक कर दिया. इस पर अखिलेश सरकार और बौखला गई. अमिताभ ने धमकी भरे फोन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनकी बात नहीं मानी.

आखिरकार अदालत के सीधे हस्तक्षेप पर एफआईआर तो दर्ज कर ली गई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर जैसी उम्मीद थी, वैसा ही हुआ, पुलिस ने मामले की लीपापोती करने की कोशिश की और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. सपाइयों ने धमकी वाले टेप को फर्जी साबित करने की भी कोशिश की थी, लेकिन उसमें नाकाम रहे थे. मुलायम की धमकी को एक अभिभावक की झिड़की बता कर मामले को हल्का करने की उस समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कोशिश तो की थी, लेकिन सरकार की साजिश तुरंत ही उजागर हो गई जब अमिताभ ठाकुर पर बलात्कार का प्रतिशोधी मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

विडंबना यह है कि बलात्कार के इसी प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ के गोमतीनगर थाने में मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी समेत आठ लोगों पर षडयंत्र करने का मुकदमा दर्ज किया गया था. नूतन ठाकुर की तहरीर पर हाईकोर्ट ने मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया था. महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी ने आइपीएस अमिताभ ठाकुर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. इसमें उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के सहयोग करने का भी आरोप था. इसके जवाब में नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल कर खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और जरीना उस्मानी समेत आठ लोगों पर फर्जी फंसाने का आरोप लगाया था और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी.

बलात्कार के मुकदमे में अदालत को भी आखिरकार यह कहना पड़ा कि इस मामले में कोई कानूनी सूत्र नहीं है. मुलायम की धमकी को अभिभावक की डांट बताने वाले अखिलेश यादव उन सवालों का जवाब नहीं दे पाए कि अमिताभ ठाकुर की वह गलती क्या थी, जिस पर नेता जी नाराज होकर उन्हें डांटने लगे? आरटीआई ऐक्टिविज्म वे पहले से कर रहे थे, जनहित याचिकाएं वे पहले से दाखिल कर रहे थे, धरना-प्रदर्शन में वे पहले से शामिल होते रहे और सरकार के गलत फैसलों के खिलाफ वे अपना विरोध पहले से दर्ज कराते रहे, फिर समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के  कार्यकाल में उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इस दरम्यान अमिताभ ठाकुर को क्यों नहीं डांटा?  दरअसल, अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के प्रति समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम और मुख्यमंत्री अखिलेश की नाराजगी प्रदेश के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई गई मुहिम से गहराती गई. खनन मंत्री के भ्रष्टाचार की शिकायत सबसे पहले प्रतापगढ़ के ओमशंकर द्विवेदी और उनके  वकील अजय प्रताप सिंह राठौर ने की थी. लोकायुक्त से की गई शिकायत में कहा गया था कि गायत्री प्रसाद प्रजापति ने जब विधानसभा चुनाव में नामांकन दाखिल किया था तब उनकी सम्पत्ति 1.81 करोड़ रुपये थी और मंत्री बनने के बाद गायत्री ने 942.57 करोड़ रुपये की सम्पत्ति बना ली. लोकायुक्त के समक्ष 1725 पन्ने का साक्ष्य भी प्रस्तुत किया था.

लोकायुक्त से की गई शिकायत में खनन मंत्री की 943 करोड़ की सम्पत्ति की बात कही गई, लेकिन बाद में कई और सम्पत्तियों का ब्यौरा मिला. अब तक गायत्री की 1350 करोड़ से अधिक की सम्पत्तियों की रजिस्ट्री मिल चुकी है. खनन मंत्री के भ्रष्टाचार मामले को नूतन ठाकुर ने मुहिम की शक्ल में बदल दिया और अखिलेश सरकार के भ्रष्ट मंत्री की करतूतें सार्वजनिक होने लगीं. जब हाईकोर्ट के निर्देश पर खनन मंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया, तभी सपा नेतृत्व पूरी तरह बौखला गया और अनापशनाप कदम उठाने लगा.

निलंबन पर अखिलेश का नहीं अनीता सिंह का हस्ताक्षर था

आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के निलंबन आदेश पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बजाय प्रमुख सचिव अनीता सिंह का हस्ताक्षर था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच को गृह विभाग द्वारा दिए गए दस्तावेजों से यह मामला उजागर हुआ. अभिलेख के अनुसार 13 जुलाई 2015 को तत्कालीन डीजीपी जगमोहन यादव ने बिना किसी तत्कालिक कारण का उल्लेख किए प्रमुख सचिव गृह को अमिताभ ठाकुर को निलंबित करने के लिए पत्र लिखा. उक्त पत्र मुख्य सचिव आलोक रंजन के जरिए मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचा और प्रमुख सचिव अनीता सिंह ने फौरन ही मुख्यमंत्री की तरफ से उसे अनुमोदित कर दिया. अमिताभ ठाकुर ने कैट में यह मामला भी उठाया था और अपने निलंबन को अवैध बताया था.

दूसरी तरफ उनकी पत्नी नूतन ठाकुर ने फर्जी दस्तावेज रच कर उनके पति अमिताभ ठाकुर को प्रताड़ित किए जाने के  मामले में मुख्य सचिव आलोक रंजन और गृह विभाग के प्रमुख सचिव देबाशीष पांडा के खिलाफ लोकायुक्त संजय मिश्रा की अदालत में मामला दायर कर रखा है. परिवाद में कहा गया है कि इन अफसरों ने उनके  पति आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर के सेवा सम्बन्धी मामलों में फर्जी अभिलेख बना कर उन्हें प्रताड़ित किया. अदालत को विस्तार से जानकारी दी गई है कि किस तरह उक्त अफसरों ने सिविल सर्विस बोर्ड की कोई वास्तविक मीटिंग किए बगैर फर्जी अभिलेख बना कर अमिताभ ठाकुर का निलंबन दो-दो बार बढ़ाया.

फर्जी अभिलेख बनाने के तमाम सबूत देकर लोकायुक्त से गृह विभाग और डीजीपी कार्यालय की सम्बन्धित पत्रावली तलब करते हुए मामले की गहराई से जांच करने और आपराधिक कृत्य के दोषी अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश करने की अपील की गई है.उत्तर प्रदेश के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के भीषण भ्रष्टाचार के खिलाफ आईपीएस अमिताभ ठाकुर और उनकी समाजसेवी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा अभियान चलाने से नाराज उत्तर प्रदेश सरकार ने ठाकुर परिवार को अपना सीधा निशाना बनाया.

ठाकुर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराने से लेकर तमाम षडयंत्र किए गए, लेकिन ठाकुर दम्पति ने धैर्य के साथ उसका मुकाबला किया. आखिरकार सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने फोन करके अमिताभ ठाकुर को धमकियां दीं, लेकिन ठाकुर ने मुलायम की धमकी वाले फोन की पूरी रिकॉर्डिंग कर ली और उसे सार्वजनिक कर दिया. इस पर अखिलेश सरकार और बौखला गई.

अमिताभ ने धमकी भरे फोन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनकी बात नहीं मानी. आखिरकार अदालत के सीधे हस्तक्षेप पर एफआईआर तो दर्ज कर ली गई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर जैसी उम्मीद थी, वैसा ही हुआ, पुलिस ने मामले की लीपापोती करने की कोशिश की और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. सपाइयों ने धमकी वाले टेप को फर्जी साबित करने की भी कोशिश की थी, लेकिन उसमें नाकाम रहे थे. मुलायम की धमकी को एक अभिभावक की झिड़की बता कर मामले को हल्का करने की उस समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कोशिश तो की थी, लेकिन सरकार की साजिश तुरंत ही उजागर हो गई जब अमिताभ ठाकुर पर बलात्कार का प्रतिशोधी मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

विडंबना यह है कि बलात्कार के इसी प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ के गोमतीनगर थाने में मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी समेत आठ लोगों पर षडयंत्र करने का मुकदमा दर्ज किया गया था. नूतन ठाकुर की तहरीर पर हाईकोर्ट ने मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया था. महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी ने आइपीएस अमिताभ ठाकुर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. इसमें उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के सहयोग करने का भी आरोप था. इसके जवाब में नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल कर खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और जरीना उस्मानी समेत आठ लोगों पर फर्जी फंसाने का आरोप लगाया था और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी. बलात्कार के मुकदमे में अदालत को भी आखिरकार यह कहना पड़ा कि इस मामले में कोई कानूनी सूत्र नहीं है.

मुलायम की धमकी को अभिभावक की डांट बताने वाले अखिलेश यादव उन सवालों का जवाब नहीं दे पाए कि अमिताभ ठाकुर की वह गलती क्या थी, जिस पर नेता जी नाराज होकर उन्हें डांटने लगे? आरटीआई ऐक्टिविज्म वे पहले से कर रहे थे, जनहित याचिकाएं वे पहले से दाखिल कर रहे थे, धरना-प्रदर्शन में वे पहले से शामिल होते रहे और सरकार के गलत फैसलों के खिलाफ वे अपना विरोध पहले से दर्ज कराते रहे, फिर समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के  कार्यकाल में उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इस दरम्यान अमिताभ ठाकुर को क्यों नहीं डांटा?

दरअसल, अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के प्रति समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम और मुख्यमंत्री अखिलेश की नाराजगी प्रदेश के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई गई मुहिम से गहराती गई. खनन मंत्री के भ्रष्टाचार की शिकायत सबसे पहले प्रतापगढ़ के ओमशंकर द्विवेदी और उनके  वकील अजय प्रताप सिंह राठौर ने की थी. लोकायुक्त से की गई शिकायत में कहा गया था कि गायत्री प्रसाद प्रजापति ने जब विधानसभा चुनाव में नामांकन दाखिल किया था तब उनकी सम्पत्ति 1.81 करोड़ रुपये थी और मंत्री बनने के बाद गायत्री ने 942.57 करोड़ रुपये की सम्पत्ति बना ली. लोकायुक्त के समक्ष 1725 पन्ने का साक्ष्य भी प्रस्तुत किया था.

लोकायुक्त से की गई शिकायत में खनन मंत्री की 943 करोड़ की सम्पत्ति की बात कही गई, लेकिन बाद में कई और सम्पत्तियों का ब्यौरा मिला. अब तक गायत्री की 1350 करोड़ से अधिक की सम्पत्तियों की रजिस्ट्री मिल चुकी है. खनन मंत्री के भ्रष्टाचार मामले को नूतन ठाकुर ने मुहिम की शक्ल में बदल दिया और अखिलेश सरकार के भ्रष्ट मंत्री की करतूतें सार्वजनिक होने लगीं. जब हाईकोर्ट के निर्देश पर खनन मंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया, तभी सपा नेतृत्व पूरी तरह बौखला गया और अनापशनाप कदम उठाने लगा.

निलंबन पर अखिलेश का नहीं अनीता सिंह का हस्ताक्षर था

आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के निलंबन आदेश पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बजाय प्रमुख सचिव अनीता सिंह का हस्ताक्षर था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच को गृह विभाग द्वारा दिए गए दस्तावेजों से यह मामला उजागर हुआ. अभिलेख के अनुसार 13 जुलाई 2015 को तत्कालीन डीजीपी जगमोहन यादव ने बिना किसी तत्कालिक कारण का उल्लेख किए प्रमुख सचिव गृह को अमिताभ ठाकुर को निलंबित करने के लिए पत्र लिखा. उक्त पत्र मुख्य सचिव आलोक रंजन के जरिए मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचा और प्रमुख सचिव अनीता सिंह ने फौरन ही मुख्यमंत्री की तरफ से उसे अनुमोदित कर दिया. अमिताभ ठाकुर ने कैट में यह मामला भी उठाया था और अपने निलंबन को अवैध बताया था.

दूसरी तरफ उनकी पत्नी नूतन ठाकुर ने फर्जी दस्तावेज रच कर उनके पति अमिताभ ठाकुर को प्रताड़ित किए जाने के  मामले में मुख्य सचिव आलोक रंजन और गृह विभाग के प्रमुख सचिव देबाशीष पांडा के खिलाफ लोकायुक्त संजय मिश्रा की अदालत में मामला दायर कर रखा है. परिवाद में कहा गया है कि इन अफसरों ने उनके  पति आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर के सेवा सम्बन्धी मामलों में फर्जी अभिलेख बना कर उन्हें प्रताड़ित किया. अदालत को विस्तार से जानकारी दी गई है कि किस तरह उक्त अफसरों ने सिविल सर्विस बोर्ड की कोई वास्तविक मीटिंग किए बगैर फर्जी अभिलेख बना कर अमिताभ ठाकुर का निलंबन दो-दो बार बढ़ाया. फर्जी अभिलेख बनाने के तमाम सबूत देकर लोकायुक्त से गृह विभाग और डीजीपी कार्यालय की सम्बन्धित पत्रावली तलब करते हुए मामले की गहराई से जांच करने और आपराधिक कृत्य के दोषी अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश करने की अपील की गई है.

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