सुकून वहां भी था, सुनवाई भी बराबरी की थी, लेकिन दिल की खलिश को कोई कहां ले जाए…! ठप्पे के साथ ‘यहां’ से ‘वहां’ गए और शान के साथ अपनी बची ख्वाहिशों को पूरा करने के अभियान पर तेज दौड़ चल पड़े…! बेवफाई के भागीदार बने साथियों को टिकट दिलवाने से जीत हासिल करवाने तक, पसंद के विभाग से लेकर मन मुताबिक काम पाने तक कामयाबी साथ चलती रही…! लंबे समय से रुकी एक ख्वाहिश को भी आज वे मनवा चुके…! महीने में इक्का-दुक्का दिन रैन बसेरा बनाने के लिए उन्होंने आधा गांव बस जाने वाले एरिया को अपना आशियाना तय किया है…! ‘इनसे’ भी बड़ी जगह, ‘उनसे’ भी बड़ा बंगला…! सबसे अलग हैं, सबसे अलग दिखना भी चाहिए…! बरसों की सेवा, दल के लिए आस्था, मेहनत और वफादारी करने वाले खुद को ठगा सा महसूस कर रहे होंगे, खुद को मिले चिंदी प्रसाद और बेवफाई के ईनाम के रूप में मिल रहे ईनाम की तुलनात्मक समीक्षा को देखकर उनकी आंखें भी डबडबा रही होंगी…! ठप्पे से की गई दोगलाई के ईनाम की ख्वाहिशें फिलहाल अधूरी हैं, एक तमगे के साथ, एक लकब, एक पद की उनकी इच्छाएं अभी लहरा रही हैं…! जल्दी या देर से पूरी होंगी, नहीं होंगी, फिलहाल इसके लिए कोशिश जारी है…! साहब की बेवफाई के बदले मिल रहे ईनामों के हालात अब कई लोगों की अपनी ईमानदारी, आस्था और एक खूंटे से बंधे रहने पर अफसोस भी हो रहा होगा…!

पुछल्ला
बैठे-बैठे क्या करें, करना है कुछ काम
प्रदेश की सियासत किसी मंदिर के घंटे जैसी हो गई है। जिसका जी चाहता है, आकर बजा जाता है। दुश्मनों के वार हों तो किसी को महज दर्द महसूस हो, असहजता नहीं। लेकिन अपना कहते हुए वार करने वालों की कतार लगातार लंबी हुई जा रही है। मालवा से लेकर विंध्य तक, मर्द से लेकर जनाना तक उस एक शख्सियत को डिस्टर्ब करने पर उतारू दिखाई देते हैं, जो सारी बाधाओं से बचाकर सधी-सधाई सरकार चलाने की कोशिशों में लगा हुआ है।

खान अशु

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