हमारे वर्तमान मुख्यन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड ने, एक दिन पहले ही कहा है कि “कोई केस छोटा नही होता ! अगर हम नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकते तो ! फिर हम यहां क्या करने को बैठें है ?” भारत के कानून मंत्री कीरेन रिज्जू ने गुरुवार को कहा था! “कि सर्वोच्च न्यायालय को छोटे मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए ! उन्हें केवल संवैधानिक मामले सुनने चाहिए !” और आये दिन सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति से लेकर ! उसके विभिन्न मामलों में फैसले देने की बातों को लेकर ! सत्ताधारी पार्टी के तरफसे चलाए जा रहे न्यायपालिका के खिलाफ ! अभियान को देखते हुए ! आखिर में मुख्यन्यायाधीश महोदय को ! सज्ञान लेकर जवाब देना पडा ! जिसका मै, तहेदिल से स्वागत करता हूँ ! सरकार को न्यायालय, अपने दल की ईकाई जैसे, अपने कंट्रोल में रखने की इच्छा है !
जिसके खिलाफ 12 जनवरी 2018 के दिन सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में पहली बार ! चार न्यायाधीशों ने जस्टिस लोया मर्डर केस को लेकर जस्टिस चलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरिएन जोझेफ और जस्टिस रंजन गोगोई अपने सरकारी आवास पर ! पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहे थे ! “कि हमारे उपर जबरदस्त दबाव हो रहा है !” अगर हमारे देश के ! सबसे बड़े न्यायालय की यह स्थिति है ! तो इस देश की स्वतंत्रता और न्यायिक प्रणाली खतरे में है !
शायद ही कोई संविधानिक संस्था होगी ? जिसमें वर्तमान सरकार हस्तक्षेप नहीं कर रही है ! न्यायपालिका के बारे में, बीजेपी अपने पसंदीदा व्यक्तियों को न्यायाधीश बना कर, उससे अपने मनमर्जी से उससे निर्णय लेने की आदत ! 2002 गुजरात दंगों के जांच के लिए,जस्टिस नानावटी आयोग के, कामकाज का अध्ययन करने हेतु ! मुझे एडवोकेट मित्र मुकुल सिन्हा के साथ, अहमदाबाद में पांच बार ! दिनभर बैठकर उस कमिशन की कार्रवाई, देखने का मौका मिला है ! यहां तक कि ! मुकुल भाई ने मेरा जस्टिस नानावटी के साथ परिचय भी कराया है ! और नानावटी के कामकाज को देखते हुए ! मैंने मुकुलभाई को कहा था “कि आप अपना बहुमूल्य समय गवा रहे हो ! क्योंकि जस्टिस नानावटी की कार्यशैली को देखते हुए ! मुझे लगता है, कि यह नरेंद्र मोदी को क्लिनचिट देने के लिए तूला हुआ है !” तो मुकुलभाई ने कहा ” कि यह बात मुझे भी मालूम है ! लेकिन मैं नरेंद्र मोदी को क्लिनचिट देने का समय बढ़ाने के लिए ही ! जस्टिस नानावटी के सामने रोज नये – नये गवाह और मुद्दों को उपस्थित करते हुए, कोशिश कर रहा हूँ ! क्योंकि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनने का, समय आगे बढ़ाने के लिए ! विशेष रूप से कोशिश कर रहा हूँ !”
गुजरात में कोर्ट, पुलिस – प्रशासन की, विस्वसनियता खत्म होने के कारण ही ! गुजरात दंगों के संगिन मामलों को महाराष्ट्र के कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था ! जिसमें बिल्किस बानो के उपर हुए सामुहिक बलात्कार के मामले में जो सजा सुनाई गई है ! वह महाराष्ट्र के कोर्ट में सुनवाई के बाद ! इसलिए भी गुजरात की सरकार की 1992 के रेमिसन के अंतर्गत 11 गुनाहगारों को छुट देने के निर्णय को !चुनौती देने वाली, बिल्किस बानो की याचिका को ! सर्वोच्च न्यायालय ने, वापस गुजरात सरकार के तरफ ! भेजनेका निर्णय अनुचित है ! महाराष्ट्र के जिस जज ने, इन ग्यारह गुनाहगारों को सजा देने का फैसला लिया था ! उन्होंने भी इन्हें स्वतंत्रता के 75 साल के आड में, ‘1992 रेमिसन’ की सहुलियत के आधार पर,अपराधियों को छोडने के ! गुजरात सरकार के निर्णय को गलत बताया है ! और सर्वोच्च न्यायालय ने उसी गुजरात सरकार के पास बिल्किस बानो को जानें के लिए कहा है ! यह कहा तक ठीक है ?
रिजर्व बैंक से लेकर ! चुनाव आयोग, मिडिया, यूजीसी ! संरक्षण दलों से लेकर, हमारे देश की महत्वपूर्ण एजेंसियों आई बी, एन आई ए, सीबीआई, ईडी ! विभिन्न प्रकार के ट्रायबुनल, प्रेस कौन्सिल, महिला एवं बाल आयोगों से लेकर, मानवाधिकार आयोग तक के ! कामों में दखलअंदाजी करने के कारण ! हमारे देश की पचहत्तर साल के आजादी के बाद ! पहली बार किसी भारतीय सरकार का, हमारे सभी संविधानिक संस्थानों का, अपने दल की ईकाई जैसा इस्तेमाल करने का, प्रयास देख रहा हूँ !
सर्वोच्च न्यायालय और सरकार के भीतर, चल रही रस्साकसी को भी देखते हुए ! देश के संविधानिक मुल्यो को पैरों तले रौंदा जा रहा है ! अन्यथा वर्तमान समय में, न्यायिक प्रक्रिया को लेकर ! आये दिन इतनी नुक्ताचीनी करने की कोई वजह नहीं है ! जजो की नियुक्ति से लेकर ! कौन-से केसेस सर्वोच्च न्यायालय ने देखना चाहिए ? यह बताने का दुस्साहस मंत्री कर रहे हैं !
और इसी कारण दुसरे ही दीन एक बलात्कार पिडीत महिला ! आजसे बीस साल पहले के ! गुजरात के दंगों के दौरान ! उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले लोगों को ! गुजरात सरकारने आजादी के पचहत्तर साल के आड में ! उन 11 गुनाहगारों को ‘1992 के रेमिसन पॉलिसी’ के तहत, 13 मई 2022 को छोड़ दिया ! तो बिल्किस बानो ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया ! और सर्वोच्च न्यायालय ने उस याचिका को स्वीकार किया ! और एक बेंच बना कर, इस केस को देखने के लिए, विशेष रूप से उस बेंच में एक महिला जज को भी रखा गया था ! लेकिन उस महिला जज ने इस केस सुनवाई के पहले ही ! अपने आपको अलग कर लिया ! यह बहुत ही संगीन बात है ! क्योंकि बिल्किस बानो की याचिका पर सुनवाई के पहले बनी हुई बेंच में से एक महिला जज ने अपने आपको अलग कर लेना किस बात का परिचायक है ? और इसका कोई कारण पता नहीं ! यही इस केस में आगे क्या होता है ? इस पर सवाल खड़े करने के लिए पर्याप्त है ! क्योंकि वर्तमान समय में सरकार में बैठे हुए, लोगों की पृष्ठभूमि को देखते हुए ! कुछ भी हो सकता है ! जो सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्किस बानो को गुजरात सरकार के पास जाने के लिए कहना ! कहाँ तक उचित है ? समस्त विश्व को मालूम है ! कि गुजरात के दंगों के लिए कौन जिम्मेदार है ? और उस दंगे में हत्या, बलात्कार जैसे कांडों के लिए भी ! वही सरकार जिम्मेदार है ! और ताजा – ताजा चुनाव में भारतीय चुनावी राजनीति के इतिहास में पहली बार ! कोई गृहमंत्री पदपर बैठा हुआ ! चुनाव प्रचार की सभा में कहता है ! “कि गुजरात का दंगा चिरशांति के लिए आवश्यक कदम था !” मतलब बिल्किस बानो के उपर अन्याय करने वाले ! अपराधियों को, शांति के प्रहरी कहने वाले ! ब्राम्हण लोग अच्छे होते हैं ! और वह कभी गलत काम कर नही सकते ! यह सर्टिफ़िकेट दे चुके हैं ! और उन्हें फुलो की मालाएँ पहनाकर उनके स्वागत की खुशी में मीठाईया बांटी जा रही है ! और ऐसे लोगों के पास एक सताई गई, अपमानित की गई जिसके आबरू के साथ खिलवाड़ करने वाले और उसके परिवार के ग्यारह सदस्यों को जिसमें उसकी तीन साल की बच्ची भी थी ! और बिल्किस बानो खुद पेटसे थी ! तो भी उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसे जधन्य कांड ! करने वाले लोगों को लेकर ! जिन्हें उस राज्य में महिमामंडित किया जा रहा है ! ऐसे राज्य के पास न्याय मांगने के लिए ! भेजने का फैसला ! हमारे देश के सबसे बड़े न्यायालय के तरफसे हो रहा है !
और इसी वजह से गुजरात सरकारकी विस्वसनियता शंकास्पद बन जाने के कारण ! इसीलिये दंगे के कई संगिन अपराध के मामले ! महाराष्ट्र के कोर्ट में सुनवाई करने के लिए, स्थानांतरित किये गये थे ! सरकार की विस्वसनियता पहले से ही ! संशयास्पद होने के बावजूद ! वापस गुजरात सरकार के पास भेजने का फैसला कहा तक उचित है ?
सोहराबुद्दीन एन्काऊंटर के केस को ही लीजिए ! इस केस को भी ! महाराष्ट्र में स्थानांतरित किया गया था ! और उस केस को देखने वाले ! सीबीआई स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश की संशयास्पद स्थिती में, मौत होने के बाद ! उससे संबंधित हाईकोर्ट से लेकर, सर्वोच्च न्यायालय तक ! तथाकथित याचिकाओं को लेकर क्या हुआ है ? और उसके परिवार के सदस्यों को आज कितनि ? दहशत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ा है ? और उसी मौत के मामले की, सुनवाई करने के बेंच को लेकर ही ! सर्वोच्च न्यायालय के चारों जजो ने, पत्रकारों को संबोधित करते हुए ! “कहा था कि वह कितने दबाव में हम लोग काम कर रहे हैं ?” जबकि यह सब कुछ होते आ रहा है ! तो वर्तमान समय की सरकार ! अपने खिलाफ नहीं मिडिया को कुछ लिखने – बोलने दे रहा है ! और न ही विरोधी दलों को देश के सबसे बड़े सभागृह संसद में बोलने दे रहा है ! और न ही लोगों को ! अपने सवालों को लेकर, रास्ते पर धरना प्रदर्शन करने दे रहा है ! और देश के कानून और गृहमंत्री धमकी भरे अंदाजो में कहे जा रहे हैं कि ! “छोटे मामलों की (जस्टिस लोया मर्डर केस, बिल्किस बानो बलात्कार केस ) सुनवाई नहीं करनी चाहिए !” और गृहमंत्री ने कहा “कि कोर्ट को जनभावनाओं को देखते हुए फैसले लेने चाहिए !” जैसे बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमी मामले में ! भारत के संविधान को परे रखकर ! सर्वोच्च न्यायालय ने जनभावनाओं के आधार पर राममंदिर बनाने का फैसला किया ! आखिर सवाल आस्था का है कानून का नही ! इसी आधार पर, यह फैसला है ना ?
और इधर, हमारे देश के वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ! गुरुवार को एक अन्य फैसले को देते हुए कहते हैं ! “कि हम यहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए है ! जज आधी रात तक जागकर फाईलों को पढते है ! साधारण मामला भी नागरिक अधिकारों के लिहाज से अहम होता है ! सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों का संरक्षक है ! जब हम यहां बैठते हैं तो हमारे लिए न कोई मामला छोटा होता है न बड़ा ! हम यहां लोगों के अंतरात्मा की पुकार और स्वतंत्रता की पुकार का जवाब देने के लिए बैठे हैं ! हम हर मामले को समानता के आधार पर न्याय की दृष्टि से देखते हैं ! हम अपना कर्तव्य निभाते हैं न कम न ज्यादा ! अगर अदालत हस्तक्षेप करना बंद कर दें तो घोर अन्याय होगा ! जिनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित की गई हो, उनकी आवाज कोई नहीं सुन पाएगा ! सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे मामलें आते हैं ! और इनका निपटारा करना संवैधानिक दायित्व है ! यदि हमारे देश के सबसे बड़े न्यायालय के, प्रमुख की ताजी टिप्पणी को देखते हुए !
बिल्किस बानो की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने दुसरे ही दिन ! वापस गुजरात सरकार के पास, भेजने का फैसला ! कौन सा संविधानिक दायित्व निभाने का तरीका है ? और बिल्किस बानो की आवाज गुजरात में, कौन सुनने वाला है ? मेरी हमारे देश के सबसे बड़े, न्यायालय के प्रमुख को हाथ जोड़कर, विनम्र प्रार्थना है कि ! जिस औरत ने अपने आखों के सामने परिवार के ग्यारह सदस्यों को मारे जाते हुए देखा है ! जिसमें उसकी तीन साल की बच्ची भी थी ! और खुद बिल्किस बानो कुछ ही समय बाद अपने दुसरे बच्चे को जन्म देने वाली ! मां होने के बावजूद इन अपराधियों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया है ! इन्हें ‘1992 के रेमिसन’ के आधार पर आजादी के पचहत्तर साल के आड में ! छोडने का निर्णय, गुजरात सरकारने लिया हुआ है ! और जेल से बाहर आने के बाद उन अपराधियों को फुलमालाए पहनाकर उनका स्वागत किया गया है ! और मिठाईयों को बांटने की घटना को देखते हुए ! उसी सरकार के पास बिल्किस बानो को भेजना कहा तक ठीक है ? जब कि आप खुद अपने बात में कह चुके हैं कि यहां पर हम और कौन सा काम करने के लिए बैठे हैं ? तो बिल्किस बानो को न्याय देने का आपक संविधानिक दायित्व का पालन करने का कष्ट करेंगे इस उम्मीद के साथ इसे समाप्त करता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 18 दिसंबर 2022, नागपुर