नई दिल्ली: भारतीय नौसेना के लिए गुरूवार का दिन किसी त्यौहार से कम नहीं था. आपको बता दें की गुरूवार को हमारे देश की नौसेना को उसकी पहली स्कोर्पियन क्लास की सबमरीन कलवरी मिल गई है. मझगांव डॉक शिपब्युल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) ने नौसेना को यह सबमरीन हैंडओवर कर दी है. बहुत जल्द ये सबमरीन भारतीय नौसेना का गौरव बढ़ाने के लिए बेड़े में शामिल कर ली जाएगी.
बता दें कि भारतीय सबमरीन ऑपरेशंस के पचासवें साल को गोल्डेन जुबली के तौर पर मनाया जा रहा है. इसके लिए फ्रांस की डीसीएनएस और एमडीएल के बीच अक्टूबर 2005 में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए समझौता हुआ था.
कलवरी का नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम रखा गया है. नौसेना की परंपरा के मुताबिक शिप और सबमरीन के सेवामुक्त होने पर उन्हें दोबारा अवतरित किया जाता है. वैसा ही कलवरी के साथ भी हुआ.
जानिए क्या है कलवरी की खासियत
– सबमरीन कलवरी में स्टेट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है.
– कलवरी एडवांस्ड साइलेंसिग टेक्निक से लैस है.
– शोर और ध्वनि को कम रखने के लिए सबमरीन में रेडिएटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है.
– कलवरी को हाइड्रो-डॉयनामिकली ऑप्टिमाइज्ड शेप दिया गया है.
– ये सबमरीन दुश्मनों पर अपने घातक हथियारों से हमला करने में सक्षम है.
– कलवरी टारपीडो और ट्यूब तरीके से एंटी-शिप मिसाइल का इस्तेमाल कर सकती है.
आपको बता दें कि कलवरी को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह कई तरह के अभियानों में हिस्सा ले सकती है. जैसे एंटी सरफेस वॉर, एंटी सबमरीन वॉर, इंटेलिजेंस इकट्ठा करना, माइंस बिछाना और एरिया सर्विलांस जैसे काम है. कलवरी सभी तरह के थियेटर में काम कर सकती है. इसका मतलब ये है कि नौसैनिक टास्क फोर्स के साथ मिलकर यह काम कर सकती है.