यह सिर्फ एक नमूने के तौर पर दे रहा हूँ ! इंडिया अलायंस ने चौदह पत्रकारों को बैन करने की घोषणा से, भाजपा और उसके मातृसंस्था संघ के लोग अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए खुब हल्ला-गुल्ला कर रहे हैं !
क्या उनके नेता और देश के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी ने अपने पच्चीस साल के राजनीतिक जीवन में पंद्रह साल गुजरात के मुख्यमंत्री, और अभी साडे नौ सालों से भारत के प्रधानमंत्री पदपर बैठने के बाद, पत्रकारों को संबोधित करने के, और उनके साथ किस तरह से व्यवहार करते हैं ? यह करन थापर के एक इंटरव्यू की झलक से पता चल जाएगा ! करन थापर को नरेंद्र मोदी ने इस इंटरव्यू के बाद खुद तो बायकॉट किया ही ! लेकिन अपनी पार्टी के दिल्ली मुख्यालय को कहकर उसे आज बीस वर्षों से अधिक समय से बायकॉट करके रखा है !
जब अरुण जेटली जिवित थे, उस समय करन थापर ने उन्हें कहा कि “मुझे भाजपा ने बायकॉट क्यों किया है ?” तो जेटली ने कहा कि “मैं देखता हूँ !” बेचारे इस दुनिया से चले गए ! लेकिन कुछ भी नहीं कर सके ! वैसे ही करन थापर ने एक दिन राम माधव को भी कहा कि ” मुझे पंद्रह साल से भाजपा ने बुलाना बंद कर दिया है !” राम माधव ने भी कहा कि मैं” देखता हूँ !” राम माधव अभी तक देख रहे हैं !
यह हुई करन थापर जैसे आंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रकार के साथ, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले लोगों के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए आदमी की बात ! वैसे ही राजदीप सरदेसाई नामके पत्रकार ने कहा कि “मुझे जीवन में पहली बार किसी इंटरव्यू देने वाले शख्स ने रुलाया तो वह व्यक्ति नरेंद्र मोदी है !” सबसे संगिन बात आज साढ़े नौ सालों में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद एक दिन भी पत्रकार वार्ता की नही है ! (एक फिल्मि प्रेस कांफ्रेंस, अक्षय खन्ना को घर में बुलाकर पूरी स्क्रिप्ट पहले से ही लिखकर किया गया तथाकथित इंटरव्यू ! ) नरेंद्र मोदी भारतीय संसदीय इतिहास में पहले प्रधानमंत्री है ! जो भारतीय पत्रकारों को एकत्रित संबोधित नही कर रहे हैं ! क्या भाजपा या उसके मातृसंस्था संघ के लोगों को यह सब दिखाई नहीं देता है ? अंधे हो गए हो आप लोग ? अरे भाई मेरे परिचय के राष्ट्रीय स्तर पर के कई वरिष्ठ पत्रकार मित्रों ने कहा कि “सुरेशभाई हमारे पत्रकार के पेशे में जीवन मे पहलीबार पीएमओ से फोन कर के हमनें कीए हुए कवरेज पर नुक्ताचीनी की जा रही है” ! और ऊपर से कुछ समय बाद मालिक के फोन आते हैं ! “कि खबरदार वर्तमान सरकार के बारे में कोई टिका – टिप्पणी करते हुए लिखा या बोला तो !” यह है वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता !
आपातकाल की घोषणा के चालिस साल के उपलक्ष्य में, तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के संपादक श्री. शेखर गुप्ता ने, पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा को वर्तमान स्थिति में लाने के लिए सब से बड़ी भूमिका निभाने वाले ! और नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों के बाद गोवा की बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अपने खुद के वेटो का इस्तेमाल कर के, उन्हें राजनीतिक जीवनदान देने वाले ! श्री. लालकृष्ण आडवाणी ने 25 जून 2015 को दिए गए साक्षात्कार में, कहा कि “इंदिरा गाँधी ने तो 25 जून 1975 को आपातकाल विधिवत रूप से घोषणा की थी जिसे आज चालिस साल पूरे हो रहे हैं ! लेकिन वर्तमान में गत एक वर्ष से अधिक समय हो रहा है ! ( मई 2014 मे नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी ! ) अघोषित आपातकाल और प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई है ! उसका क्या ?
शायद श्री लालकृष्ण आडवाणी आज भी वर्तमान सरकार के सलाहकार समिति में सब से वरिष्ठ नेता है ! और यह कथन शेखर गुप्ता के साथ एन. डी. टी.वी. के ‘वॉक वुइथ टॉक कार्यक्रम’ में यू ट्यूब पर सर्च करने से मिल जायेगा ! और 26 जून “2015 के इंडियन एक्सप्रेस में भी छपा है ” जब भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करने वाले सबसे वरिष्ठ नेता श्री. लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीनों के भीतर यह प्रतिक्रिया दी है !
उसके बाद अलग – अलग चैनलों पर कब्जा करने से लेकर, अखबारों के मालिकों को धमकाने के बाद ! आज भारत के मिडिया संस्थाओं की वैश्विक स्तर पर क्या इज्जत है ? भाजपा के और संघ के लोगों को चौदह पत्रकारों को इंडिया अलायंस ने बैन करने के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोलते हुए देखकर आश्चर्य लग रहा है ! कि अंधभक्त कितने अंधे हो सकते हैं ? आज कितने पत्रकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है ? और कितने पत्रकारों को दहशत में रहते हुए काम करना पड रहा है ! मेरा व्यक्तिगत अनुभव बता दूँ ! “कि मैंने राष्ट्रवाद और रविंद्रनाथ टागोर के उपर एक अकादमिक लेख लिखने के बाद ! भारत के सबसे अधिक प्रसारण वाले हिंदी अखबार के कार्यालय में खुद उस लेख को लेकर गया था ! क्योंकि संपादक महोदय मेरे मित्र ही थे ! और उन्होंने बहुत बार मुझे अपने अखबार में नियमित रूप से कॉलम लिखने के लिए आग्रह किया था ! और यह पहला ही कॉलम लिखकर मै खुद ही उनके पास चला गया ! और उन्होंने उसे गौर से पढकर कहा कि “आजकल के दिन कैसे है ? आप को तो मालूम ही है ! मैं भले ही संपादक हूँ , लेकिन मेरे मालिक को वर्तमान सरकार की आंखों में आने वाली कोई भी खबर या लेख छपा तो उसके पीएमओ के दफ्तर से डायरेक्ट हमें ही फोन आता है ! इसलिए मुझे माफ करेंगे, क्योंकि मैंने आपको कॉलम लिखने का आग्रह, यह सरकार आने के पहले किया था ! अब मैं खुद लाचार हूँ !”
क्या यह नब्बे साल पहले जर्मनी में हिटलर के प्रचार-प्रसार के प्रमुख डॉक्टर गोएबल्स के द्वारा बिल्कुल ऐसी ही स्थिति नहीं बनाई गई थी ? यह चौदह पत्रकारों को पत्रकार बोलना यानी पत्रकारों का अपमान करने की बात है ! यह सभी पत्रकारों के धर्म की जगह पुराने राजाओं के दरबार में भाट होते थे ! जो राजा को महिमामंडित करने में ही अपनी प्रतिभा लगा देते थे ! आज यह लोग नए भाट बने हुए हैं ! इन्हें देखकर, और इनके सभी के बोलने और एंकरिंग करने के तरीके, किसी भी तरह पत्रकारों के केटेगरी में नही आते हैं ! यह खुद के साथ सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता और तथाकथित एक्सपर्ट जो पूरी तरह संघी मानसिकता से लबालब भरा होता है ! और बेचारे दूसरे एखाद दो विरोधी दलों के लोगों को नहीं पर्याप्त समय दिया जाता है ! और एंकर से लेकर भाजपा के प्रवक्ता से लेकर तथाकथित एक्सपर्ट सब मिलकर विरोधी दल के प्रवक्ता पर टूट पडते है !
सबसे ज्यादा फजिहत मुस्लिम प्रवक्ता के साथ होते हुए मैंने देखा है और कहा कि यह लोग अपनी फजिहत करने के लिए क्यो जातें है ?” हमारे ही एक दिल्ली के मित्र है, डॉ. रहमानी ! मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि डॉ. रहमानी इन चानलो पर क्यों जा रहै है ? क्योंकि ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं देखा कि डॉ. रहमानी को स्पष्ट रूप से अपनी बात कहने के लिए मिली हो ! उनके एखाद वाक्य पर ही उन्हें घेर कर, एंकर तथा भाजपा और तथाकथित एक्सपर्ट मिलकर उन्हें घेर कर, उनके मुद्दों को तोडमरोडकर, उन्हें हास्यास्पद बनाने की कोशिश करते हैं ! भारत का वर्तमान समय का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्तर इतना गिर गया है ! कि एक ‘रिपब्लिक’ नाम का चैनल का मुखिया अपनी खुर्सि से उठकर बुलाए गया मेहमानों के पास जाकर जोर – जोर से चिल्ला कर बताओं बताओं की रट लगाता है ! और मुझे डर लगता कि यह कही उन्हें मारना- पिटना न शुरू कर दे !
शायद ही दुनिया के किसी भी टीवी चैनल पर इस तरह के कार्यक्रम होते होंगे ! यह है भारत के वर्तमान मिडिया संस्थाओं की स्थिति तो इंडिया अलायंस ने चौदह ही क्यों मेरा तो आगे जाकर कहना है कि संपूर्ण मिडिया ही वर्तमान सरकारी मिडिया बनकर रह गया है ! तो पूरे मिडिया के साथ बहिष्कार करना चाहिए ! भारत के मिडिया की विश्वसनीयता गत नौ सालों से दिन-प्रतिदिन कम होते – होते अब लगभग खत्म हो चुकी है !
डॉ. सुरेश खैरनार, 17 सितंबर 2023, नागपुर