प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे जो इज़राइल का दौरा करेंगे. इज़राइल अब भारत में कंपनी लगाकर भारत सरकार की मेक-इन-इंडिया योजना के साकार करेगा. इज़राइल अब हर शहर और गांव में हर घरों तक डिजिटल इंडिया नामक योजना के तहत पहुंचेगा. इज़राइल अब देश में बनने वाले 100 स्मार्ट सिटीज में प्रभावी भूमिका निभाएगा.
स्मार्ट सिटी के निर्माण में तकनीक के साथ-साथ घरों और शहरों को भी बनाएगा. इसके अलावा इज़राइल अब देश में हथियार बनाएगा, साथ ही भारत के साथ कंधे से कंधे मिलाकर आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ लड़ेगा. ये सारे फैसले तब हुए, जब देश की जनता बैंकों के बाहर लाइन में लगी थी.
उसी दौरान इज़राइल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन भारत में एक सप्ताह के राजकीय दौरे पर थे. इस दौरान वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. कई समझौतों पर दस्तखत किए और तो और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके स्वागत में भोज भी रखा. 1996 के बाद किसी इज़राइली राष्ट्रपति का यह पहला दौरा था. भारत और इज़राइल के बीच हुए समझौतों को समझने से पहले इस दौरान दिए गए बयानों का विश्लेषण जरूरी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया कि दोनों देश रिश्ते को और भी सशक्त करने पर सहमत हैं. सवाल ये है कि और कितना सशक्त करना है और क्यों करना है. भारत वैसे ही इज़राइली हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है और इज़राइल का दसवां सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर है. हमने इज़राइल से अब तक 12 बिलियन डॉलर के हथियार खरीदे हैं और उसके साथ 4.52 बिलियन का हमारा सालाना व्यापार होता है. इसके बावजूद अगर रिश्ते को और भी ज्यादा सशक्त करने की जरूरत है, तो इसका मतलब है कि मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि रिश्ते को सशक्त करने की इसलिए जरूरत है ताकि चरमपंथ, अतिवाद और आतंकवाद जैसे खतरे से मिलकर लड़ा जा सके. अब आज के दौर में इन भारी भरकम शब्दों का मतलब समझना ज्यादा
कठिन नहीं है. इन तीनों शब्दों में सब शामिल हैं, जैसे इस्लामिक रू़िढवादी, आतंकवादी, अलगाववादी, नक्सली संगठन, व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ने वाले और सत्ता से लड़ने वाली सारी शक्तियां हैं, जो यथास्थिति के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. मतलब साफ है कि भारत सरकार इज़राइल के साथ मिल कर इन खतरों से लड़ने की तैयारी कर रही है और दोनों देश इन्हें खत्म करने पर सहमत हैं.
अब जरा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बयानों पर गौर करते हैं. उन्होंने तो आजादी के बाद से चली आ रही विदेश नीति को ही उल्टा-पुल्टा कर दिया. उन्होंने पहले अपने बयान में इज़राइल की जनता को अनोखा व उत्कृष्ट बताया और फिर भारत की जनता के साथ उनके अटूट रिश्ते का वास्ता दिया और कहा कि दोनों देशों की जनता के बीच कितनी समानता है. इतना ही नहीं, राष्ट्रपति रेवलिन से गांधी जी की समाधि पर फूल भी चढ़वाया गया और रात्रि भोज के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यहां तक कह दिया कि इज़राइल की जनता ने हिम्मत के साथ अपनी दिक्कतों का सामना किया और अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत यह एक सशक्त राष्ट्र बनकर उभरा है.
क्या प्रणब मुखर्जी के बयान से ये प्रतीत नहीं होता है कि उन्होंने इज़राइल द्वारा फिलिस्तीन की जनता पर ढाए सारे जुल्म को उचित ठहराया? लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाला बयान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ये दिया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इज़राइल पर यहूदियों के अधिकार को न्यायसंगत माना था. साथ ही पंडित नेहरू ने भी इज़राइल पर यहूदियों के अधिकार का समर्थन किया था और उसे एक हकीकत माना था. अब ये बात समझ के बाहर है कि जब महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने इज़राइल पर यहूदियों के अधिकार को जायज मान लिया तो फिर 1992 तक इज़राइल के साथ भारत के रिश्ते को गुप्त क्यों रखा गया? क्यों भारत फिलिस्तीन का हिमायती होने का दावा करता रहा?
अब जरा दोनों देशों के बीच हुए करारों पर नजर डालते हैं. भारत सरकार अब इज़राइलियों को कृषि, शोध, व्यापार, साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने की छूट दे रही है. गौर करने वाली बात ये है कि भारत सरकार पहले से ही इज़राइली कंपनियों को भारत में ज्वाइंट वेंचर बना कर हथियार बनाने की इजाजत दे चुकी है. इज़राइल के राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में जारी उदारीकरण इज़राइली कंपनियों के लिए एक सुनहरा अवसर है.
दोनों देशों के बीच हुए समझौते का लब्बोलुबाब ये है कि इज़राइल मोदी सरकार की मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी जैसी तमाम योजनाओं में एक प्रभावी भूमिका निभाएगा. इज़राइली कंपनियां सीधे इन योजनाओं से जुड़ कर इन्हें पूरा करेंगी. मतलब ये कि मेक इन इंडिया के तहत इज़राइली कंपनियां भारत में निवेश करेंगी और अलग-अलग उपयोगी सामान बनाएंगी. इसी योजना के तहत भारत सरकार देश में रोजगार पैदा करने की बात कह रही है.
अब सवाल ये है कि क्या इज़राइली कंपनियों में सभी धर्म के लोगों को रोजगार मिलेगा या इन कंपनियों में भेदभाव होगा? उसी तरह डिजिटल इंडिया के जरिए इज़राइली कंपनियां गांव-गांव तक अपनी पहुंच बनाएंगी. क्या सरकार ने ये सोचा है कि इससे देश के अल्पसंख्यकों खास कर मुसलमानों के बीच क्या संदेश जाएगा? उसी तरह अगर इज़राइल के जरिए देश में स्मार्ट सिटी बनाया जाएगा या इज़राइली कंपनियां मकान बनाएंगी तो क्या देश के मुसलमान उन शहरों और घरों में रहने में सहज महसूस करेंगे? ये सवाल अटपटा जरूर लग सकता है,
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लेकिन सच्चाई ये है कि दुनिया भर के मुसलमान इज़राइल को लेकर असहज महसूस करते हैं. इन समझौतों पर अमल करने के पहले क्या सरकार को देश के करीब 20 फीसदी आबादी के बारे में सोचना नहीं चाहिए था? सरकार ने नहीं सोचा तो क्या देश की दूसरी पार्टियों को इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाना चाहिए? ये बात इसलिए भी कही जा सकती है, क्योंकि राष्ट्रपति रिवलिन की भारत यात्रा से एक अजीबोगरीब संदेश देने की कोशिश की गई है. उनके कार्यक्रम में 2008 में हुए मुंबई हमले के घटनास्थलों का दौरा शामिल किया गया. उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों की समाधि पर ले जाया गया.
मुंबई के यहूदी समुदाय के लोगों ने चाबाद हाउस में एक विशेष श्रद्धांजलि समारोह का अयोजन किया. भारत के शीर्ष अधिकारियों और यहूदी समुदाय के विशिष्ट लोगों से मुलाकात भी कराया गया. भारत सरकार को समझना पड़ेगा कि देश के अंदर जब अल्पसंख्यकों या समाज के पिछड़े वर्गों के खिलाफ हिंसक घटनाएं होती हैं, तो लोग लड़ते हैं. कोर्ट मीडिया और गली चौराहों पर अपने अधिकार जमाते हैं. कुछ दिन बाद भूल भी जाते हैं. भारत का बहुसंख्यक समाज हिंसक घटनाओं की निंदा भी करता है, जिससे अल्पसंख्यकों का हौसला कभी पस्त नहीं होता है.
गौ-मांस का मुद्दा हो या कॉमन सिविल कोड का, उस पर विरोध भी होता है और वाद-विवाद भी होता है. हर पक्ष जमकर बहस भी कर लेता है. बात आई गई हो जाती है लेकिन जब मामला इज़राइल को देश के अंदर खुली छूट देने का हो, तो यह बाकी सारे मामलों से ज्यादा संवेदनशील हो जाता है. इज़राइल के हस्तक्षेप से देश की 20 फीसदी आबादी के विमुख होने का खतरा पैदा हो जाता है, जिसे वापस खत्म करना मुश्किल हो जाएगा. इसकी वजह यह है कि इज़राइल का इतिहास और नीति शुरू से ही मुस्लिम विरोधी रही है. यही भारत-इज़राइल समझौते का प्रच्छन्न भाव भी था.
ऐसा लगता है कि भारत-इज़राइल वार्ता के दौरान हर फैसला इस्लामिक आंतकवाद को ध्यान में रख कर लिया गया है. दोनों देशों के द्वारा जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति को पढ़ कर ऐसा लगता है कि दुनिया के सामने सिर्फ आंतकवाद ही एक मात्र समस्या है. हालांकि विज्ञप्ति में इस्लामिक आंतकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन भाषा और शैली से ये साफ हो जाता है.
इज़राइल को फिलिस्तीनियों से परेशानी है और भारत को पाकिस्तान से इसलिए विज्ञप्ति में ये लिखा गया कि वो देश या संगठन, जो आंतकवाद को संरक्षण देते हैं, उनके खिलाफ दोनों देश एकजुट होकर लड़ेंगे. इस एकजुटता का सबसे ज्यादा असर सैन्य, तकनीक और साइबर क्षेत्र में होगा. अब ये समझ के बाहर की बात है कि न तो मीडिया और न ही विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को उठाया. खासकर खुद को सेकुलर होने का दंभ भरने वाली पार्टियों और नेताओं को तो सामने आना चाहिए.
क्या वजह है कि सबकुछ गुप्त रूप से किया गया. भारत का मीडिया, टीवी चैनल या अखबार, भारत-इज़राइल रिश्ते पर विस्तृत जानकारी नहीं देते हैं, लेकिन इज़राइल की अखबारों से पता चलता है कि भारत-इज़राइल रिश्ता पिछले कुछ सालों में कितना प्रगाढ़ और गहरा हो गया है. ये बहुत कम लोग जानते हैं कि करीब 40 हजार यहूदी हर साल भारत आते हैं. इनमें ऐसे कई लोग शामिल होते हैं, जो इज़राइली सेना में काम कर चुके हैं. ये बात क्यों छिपाई गई है कि भारत की स्पेस एजेंसी इसरो ने हाल में ही इज़राइल के लिए एक मिलिट्री सेटेलाइट को लॉन्च किया था. सितंबर 2015 में मोदी सरकार ने इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री से 10 ड्रोन खरीदने की इजाजत दी.
इसके अलावा सितंबर 2016 में भारत सरकार ने इज़राइल से अथअउड प्लेन लेने की योजना को हरी झंडी दी. साथ ही भारत और इज़राइल की सेना के बीच एक ज्वाइंट एक्सरसाइज की भी पूरी तैयारी कर ली गई है. हाल में ही इज़राइली अखबार द हारेट्ज़ ने खबर दी कि इज़राइली एफ-16 लड़ाकू विमान के पायलटों का एक जत्था भारतीय वायुसेना के साथ एक अलग किस्म का प्रशिक्षण देगा. नवंबर 2015 में एक और अजीबोगरीब खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तुर्की यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी इज़राइली खुफिया एजेंसी मोसाद के हाथों थी. मोदी जब जी-20 समिट के लिए इंग्लैंड जा रहे थे उस दौरान वो टर्की में रुके थे.
इज़राइली अखबार जेरूसलम पोस्ट ने खबर दी कि अगस्त के महीने में भारत की बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की एक टीम इज़राइल पहुंची थी. बीएसएफ की टीम इज़राइली रडार टेक्नोलॉजी और डिटेक्शन सिस्टम को ऑपरेट करने की तकनीक की ट्रेनिंग के लिए वहां गई थी. मतलब यह कि इज़राइली रडार टेक्नोलॉजी भारत आने वाला है. इसे कश्मीर में इस्तेमाल किया जाएगा. इसे नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस पूरे सिस्टम की खासियत यही है कि यह घने जंगल और पहाड़ों में सटीक काम करता है.
इसमें उच्च कोटि के सेंसर लगे हैं, जो इंसानों और गाड़ियों को घने जंगल में भी चिन्हित कर सकते हैं और उनका पीछा कर सकते हैं. इस खबर में ये भी बताया गया कि इस रडार सिस्टम को खरीदने की अनुमति सीधे अजीत डोभाल ने दी थी. जानकार बताते हैं इस रडार सिस्टम का इस्तेमाल इज़राइल ने फिलिस्तीन के कई नेताओं और उपद्रवियों को खत्म करने के लिए किया है. इसका निशाना अचूक होता है.
भारत और इज़राइल के बीच ऐतिहासिक समझौते हुए लेकिन देश को पता तक नहीं है. भारत-इजराइल के साथ क्यों नज़दीकियां बढ़ाना चाहता है. दोनों देशों की रणनीति क्या है और दोनों देशों को इससे क्या फायदा मिलने वाला है. लगता तो यही है कि इस गठजोड़ का मक़सद है, इस्लामिक आतंकवाद का खतरा दिखा कर दक्षिण एशिया को वार-जोन में बदलना. क्या इज़राइल और भारत सरकार पाकिस्तान की तबाही और जम्मू-कश्मीर मे दमन की तैयारी कर रही है. क्या इस गठजोड़ का आधार सिर्फ इतना है कि दोनों देशों का दुश्मन एक ही है, मतलब इस्लामिक आतंकवाद और पाकिस्तान.
क्या भारत सरकार ने इज़रायल और अमेरिका के साथ मिलकर आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ़ स्ट्राइक एंड क्रश यानी हमला करने और कुचलने की नीति बनाई है. ऐसे कई सवाल हैं, जो आज महत्वपूर्ण बन गए हैं. आंतकवाद, वैचारिक अतिवाद, धार्मिक रू़िढवाद व हिंसा से भारत को खतरा तो है, लेकिन इसका हल देश के अंदर ही निकालना पड़ेगा. पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधार कर निकालना पड़ेगा. इज़राइल के साथ मिल कर इसका कोई हल नहीं निकल सकता, उल्टा ये पूरा इलाका वार जोन में बदल जाएगा.