17 जून 1990 के आनंद बाजार पत्रिका के रविवार सरिय विषेश में बंगाली भाषा के मशहूर लेखक,पत्रकार गौर किशोर घोष का मन्नुषेरदेर संन्धाने (इन्सानियत कि खोज में) इस टाईटलसे लेख प्रकाशित होकर आज 34 साल होने जा रहे हैं !


यह लेख 24 अक्तूबर 1989 को शुरु हुआ भागलपुर दंगेके ऊपर लिखा गया लेख था ! जो लगभग आठ महीने के पस्चात लिखा हुआ लेख है ! उसके भी पहले भागलपुर दंगे पर समाचार लेख,रिपोर्टिंग हूई नही ऐसा नहीं ! लेकिन इस लेख के पढने के बाद बंगाल में (पूर्व-पस्चीम) दोनो तरफ काफी चर्चा हुई ! और मुख्यतः कलकत्ता,बर्धमान,और शांतिनिकेतन से कुछ विद्यार्थियो ने भागलपुर आनेका कष्ट किया ! इसमे लडकियो की संख्या अधिक थी ! क्योकि वीणा आलासे नामकी मराठी भाषा की विश्वभारती विश्वविद्यालय की प्राध्यापक तथा शामली खस्तगीर नामकी चित्रकार और युद्द विरोधी आंदोलन की भारत की प्रमुख कार्यकर्ती तथा निसर्ग प्रेमी वाणी सिन्हा यह तिन बुजुर्ग महिलाओकी, और गौर किशोर घोष इन लोगोकी भुमिका काफी महत्वपूर्ण रही है ! और इस लेख के लेखक गौर किशोर घोष भी खुद अपने बायपास सर्जरी दो – दो बार हो चुकी थी ! उसके बावजूद भागलपुर अनेका सिलसिला शुरू हुआ! जो आज 34 साल बाद भी जारी है ! जिसमे उस समय की 20-22 साल उम्रकी मनीषा बेनर्जी जो आज 56 साल की उम्र पार कर चुकी है ! और वह 35 साल से लगातार भागलपुर, मुख्यतः सांम्प्रदायीकता के सवाल पर आना-जाना जारी रखा है ! और वर्तमान समयमे बंगाल मे अपने प्रधानाध्यापिका की नौकरी के साथ-साथ सांप्रदायिक समस्या पर बहुतहि शिद्दत से काम कर रही है ! अभि हालहिमे संपन्न लोकसभा चुनावके समय बंगला सांस्कृतिक मंच बनाकर बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया था ! और कोरोना के समय पेशंटको ऑक्सिजन सिलिंडर से लेकर, एक व्हॅन मे कुछ स्वयंसेवकोके सहयोगसे बहुतहि अच्छा काम किया है ! बंगाल मे राजनीति के अलावा इस तरह के सेवा कार्य कभी रवींद्रनाथटैगोर, इश्वर चंद्र विद्यासागर, और बीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में मदर टेरेसा के और स्वामी विवेकानंद ने उन्ही मिशनरियों के देखा-देखीं में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की है ! और अन्य लोगों को कुछ भी लेना-देना नहीं है ! जिसमें मनिषा और अन्य मित्रों की वर्तमान पहल बंगाल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है ! इसका मोल कितना है ! यह संथालों तथा अन्य गरीबों की प्रतिक्रिया से पता चलरहा है !


विणादी,बानिदी,और श्यामलिदी तिनो अब इस दुनिया में नहीं हैं ! उनके पहलेही गौरदा ने विदाई ली ! लेकिन मनीषा ने उस इंसानियत की खोज आज भी जारी रखी है ! और सबसे बड़ी बात उसकी 22 वर्षीय मेघना नामकी बेटी जो अभी विश्वभारती विश्वविद्यालय में तुलनात्मक धर्मों के उपर पढ़ाई कर रही है ! वह उम्र के 3-4 सालकी थी, तब से लगातार भागलपुर में आ रही है ! यह बच्ची 26 मार्च 2002 के दिन इस दुनिया में प्रवेश की थी ! जब गुजरात का दंगा परवान पर था ! और भागलपुर के 13 साल बाद का दंगा है ! 13 साल पहले माँ मनीषा ने अपने उम्र के 20 वें साल में भागलपुर दंगे के बाद के शांती सदभावना के काममे अपनी पढाई और उसके बाद अपनी शिक्षिका की नौकरी संभालकर तन मन धन से इस काममे अपने आप को झोंक दिया है ! इसलिए आज वह बंगाल की सांप्रदायिकताके खिलाफ लड़ाई की प्रमुख साथियोमेसे एक साथी के तौर पर उभरकर आइ है ! और अब मेघना उसि कदमो पर चलने की कोशिश कर रही हैं !


असल मे भागलपुर दंगे की तीव्रता जिसमेँ तीन हजार से अधिक लोगों की जान ले ली थी ! और 300 से अधिक मुस्लिम बहुल गावोके मुसलमनोके घर उनके आजीविका के लिए रेशम का कपडे बुनने के यंत्र जलाकर राख कर दिये गये थे ! सिमेंटेड मकान तक तोडकर,मस्जिदें धरासायी करके उनके मलबे पर माँ दुर्गा, हनुमानजी, राम का मन्दिर जैसे कोलतार या गेरू से लिखा गया था ! यह सब नजारा हम लोग मई 1990 के प्रथम सप्ताह में गए थे ! तब भी मौजूद था ! हालाकि तबतक छ महीने से अधिक समय हो गया था ! उस दंगेकी तीव्रता इतने दिनों बाद भी हम लोगोंको महसूस हो रही थी ! और एक सप्ताह से ज्यादा समय रहकर जब हम लोग वापस लौट रहे थे ! तो वापसीकी रातकी ट्रेन में मुझे नींद नहीं आ रही थी ! जो बिमारी अबतक जारी है ! तो गौरदा मेरे बगलके बर्थपरसे उठकर बैठ गए ! मनिषा ऊपर की बर्थपरसे निचे उतर कर, हम लोग रातभर आगे क्या करें ? इस बात पर मंत्रणा में व्यस्त थे ! और उसी चर्चा का फल था ! की काफी एन जी ओ रिलीफ के काम में लगे हुए थे ! लेकिन लोगों के मन में जो दर्द-पीडा बैठी हुई थी उसे सुनना,सझने के कामके लीये कोई दिखाई नहीं दे रहा था ! इसलिए हम लोग महिनेमे एक बार हप्ते दस दिन के लिए आते जायेंगे यह बात तय कर के, हम लोगो ने आना- जाना शुरू कर दिया ! सभी अपनी – अपनी जेब से पैसे खर्च करेंगे ! और नहीं किसी संस्था संगठन की मदद लेंगे ! और नहीं हम खुद कोई संस्था,संगठन के बैनर तले काम करेंगे !


इस संकल्प के वजह से गौरदा को मैग्सेसे अवॉर्ड की तरफ से 15000 डॉलर का चेक आया हुआ, वापस लौटा दिया गया ! दिन बन्धु अन्ड़रूज के भतीजे ब्रुस अन्ड़रूज के 500 पौण्ड के चेक कोभी वापस कर दिया था ! क्योकिं भागलपुर दंगेके काम में महाराष्ट्र के लातुर – किल्लरी भूकंप के जैसे एन जी ओ की बाढ सी आ गई थी ! और दंगा पीडित लोगोमे एक अजीबोगरीब लालच, स्पर्धा शुरु हो गई थी ! इसलिऐ वह सब कुछ देख कर हम लोग इस नतिजे पर आये थे, की हम फंडिग एजेंसियों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते ! हालाकि हमे अप्रोच किया गया था ! लेकिन जैसे दो उदाहरण प्रस्तुत किया है ! वैसेही अन्य लोगों को मना कर दिया था ! और हम जो भी कोई जब भागलपुर जाते थे! अपने अपने खर्च कर के ही जाते थे ! शायद इस तरह के लोग हमही होनेके कारण, शुरुआत के दिनोमे लोग कहते थे, की “बाकी लोग थोडा बहुत पैसा खाकर भी हमे कुछ न कुछ देते हैं ! लेकिन ये शांतिनिकेतन और कलकत्ता वाले लोग तो पूरा पैसा खुद ही डकार रहे हैं !”


और बाद में जब उनके साथ अच्छा परिचय हुआ, तो वही लोग अपने घर से खाना लेकर हमारे शिबिर या बैठके संपन्न करने लगे थे ! हमारे देश में लोगोकी उदारता की यह झलक हमे भागलपुर दंगेके बादके शांती सदभावनाके काम करते हुए हम लोगों ने अनुभव किया है ! जब मैंने देखा कि दंगे के बाद के दहशत का माहौल में ! जहाँ हिंदू-मुस्लिम में बर्फ जैसे रिस्तो को फ्रीज होते हुए देखकर लगा कि, इस तरह का माहौल ज्यादा लंबा चलना ठीक नहीं है ! तो क्यों नहीं बच्चो की गतिविधियों को अंजाम दिया जाए! तो मैंने राष्ट्र सेवा दल के दस्तानायक-शाखानायक के शिबिर का आयोजन किया ! जिसमें राष्ट्र सेवा दल के मध्यवर्ती कार्यालय की तरफ से प्रशिक्षण के लिए महिला मित्र, जो की मराठी-हिंदी फिल्म के मशहूर अभिनेता नीलू फुले ( वह भी राष्ट्र सेवा दल के कलाकार थे !य) की बहन प्रमिला फुले और मैंने मिलकर राष्ट्र सेवा दल के, सौ से भी ज्यादा बच्चे-बच्चीयोका, एक हप्ते से भी ज्यादा समय का शाखानायक-दस्तानायक शिबिर आयोजित किया था ! जिसमें खाना घर-घरसे आता था ! और अंतिम चरण में तो कुछ लोगों को मना करने की नौबत आ गई थी ! क्योंकि काफी खाना बचने लगा था ! तो खराब होने के बजाय मुझे मना करने की नौबत आ गई ! तो लोग नाराज हो गए थे ! तो बडी मुश्किल से उन्हें समझाया कि “आप सब लोग बहुत ज्यादा उदार हो ! और हमारे बच्चों की आवश्यकता से अधिक खाना आने लगा था ! एक तरह से आपसमे गाँव वाले खाना भेजने की स्पर्धा करने लगे थे ! तो हमारे आवस्यकता से भी ज्यादा खाने का आना शुरू हो गया था ! ( वैसे भी महाभारत के कर्ण के राज्य का यही अंग प्रदेश था ! ऐसी किंवदंती सुन रहा हूँ! और यहां की लोकल डायलेक्ट को अंगिका बोला जाता है ! )
तो लोग जो दंगे के बाद हम लोगोंको शुरू मे अपने घर में भी नहीं आने देते थे ! कई-कई बार बारिश में हम और हमारी पूरी टीम भीगते हुए दहलीज के बाहर खड़े होकर बात की है ! और एकने भी अंदर नहीं आने दिया था ! लेकिन यह वही घर के ही लोग है ,जिन्होंने राष्ट्र सेवा दल के एक हप्ते से भी ज्यादा समय रात-दिन सौ से भी ज्यादा बच्चे और हमारे टीम का भोजन घर-घरसे आता था ! और इस शिबिर की सबसे बड़ी उपलब्धि उसके बाद भागलपुर परिक्षेत्र मे एक के बाद एक बारह शाखा शुरू हो गई थी ! और उन्हें चलाने के लिए स्थानीय कार्यकर्ता शंकर और मुन्ना सिंह की बेटी पिंकी ने जिम्मेदारी सम्हाली थी !


लेकिन बाबरी विध्वंस के समय मोहल्ला समितिके गठन मे शाखा पिछड़ने की गलती हुई है ! हालाँकि मोहल्ला समितिके गठन मे उम्मीद से ज्यादा यश मिला लगभग 115 मोहल्ला समितियां गठित किए थे ! और उसीके कारण 6 दिसंबर 2006 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत के कई-कई हिस्सों में दंगे हुए ! लेकिन भागलपुर के एक कंकड़ भी नहीं उछाला गया था ! और यह उपलब्धि सिर्फ छह दिसंबर के दिन से ही मोहल्ला समितिके गठन करने के कारण संभव हुआ है !


स्वातंत्र भारत में दंगे हुए नहीं ऐसा नहीं ! लेकिन भागलपुर दंगा उन सभी दंगो से अलग दंगा रहा है ! इसके पहले के सभी दंगे कुछ गली मोहल्ले तक मर्यादित दंगे हुए ! लेकिन भागलपुर का दंगा लगभग पूरे भागलपुर कमिशनरी के सभी जिलों में फैले हुए दंगा था ! और सबसे हैरानी की बात इस दंन्गेमे लोग पारंपरिक हथियारो को लेकर हजारोकी संख्यामे मुसलमान बस्तियाँ उजाड़नेका युद्द जैसा दंगा किये हैं ! गुजरात उसके तेरह साल बाद का है ! और हजारों की संख्या में लोग दंगे मे शामिल शायद बटवारे के बाद भारत में प्रथम बार, और 2002 गुजरात उसके बाद की कडी कहा तो गलत नहीं होगा !


यह सब देखते हुए मैंने भी 1990 के साधना नामके मराठी भाषा की पत्रिकामे लिखा है ! “कि आने वाले 50 सालों तक भारतीय राजनीति का केंद्रबिंदू सिर्फ और सिर्फ सांम्प्रदायीकता ही रहेगा ! बाकी हमारे रोजमर्रा की जिंदगीके सभी सवाल दोयम दर्जे के हो जायेंगे !” आज 35 साल के बाद वास्तव सबके सामने है ! नरेंद्र मोदी या बिजेपि की सांप्रदायीकता के जहरमे घोलकर किया हुआ हर तरह का प्रचार – प्रसार, के कारण देश की किसी भी समस्याओ के बारेमे हमारे नागरिक समाज क्या सचमुच ठीक धंगसे सोच-विचारों करते हुए नज़र आ रहे है ?
मेरे हिसाब से संघ ने 1925 के दशहरे के दिन, हिन्दुत्व का अजेंडेको अमली जामा पहनाने के लिए स्थापित किया हुआ संगठन ! जिसने नाही आजदिके आंदोलनमे भाग लिया ! और नाही इस देश की किसी भी रोजमर्रा के जीवन से संबंधित मामलों में ! अपना काम करने की कोशिश की होगी दलितों, आदिवासी तथा महिलाओं के सवाल को लेकर शायद ही कोई सार्थक पहल की है! और सिर्फ और सिर्फ सांम्प्रदाईक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया ! और उस प्रक्रिया में दलितों का और आदिवासी तथा महिलाओं के भी शामिल होने के उदाहरण गुजरात के दंगे में साफ-साफ नजर आये हैं ! और इसी कारण आसिमानंद जैसे डांग के आदिवासियों को शबरी के वंशज है, करके पट्टी पढाने मे कामयाब रहा है ! और रोजमर्रा के सवाल पर जिसमें जातिवाद, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, विस्थापन, पार्यवरण की हानी, याने हिंदुत्व का मुद्दा छोडकर संघ ने देश के किसी भी आम नागरिक के जीवन से संबंधित मामलों में कभी भी ध्यान नहीं दिया ! और सिर्फ और सिर्फ सांम्प्रदाईक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को गति देने के काममे लगे रहे ! और उसीके फल स्वरुप नरेंद्र मोदी,की सरकार 2019 मे दोबारा सत्ता में आई है ! और अभी भी तीसरी बार भले ही बहुमत से कुछ सिटे कम आई लेकिन सरकार तो भाजपा की ही बनी है हालाकि 10 साल के कार्यकाल के दौरान एक भी ऐसा काम नहीं किया है, कि जिससे इस देश के महामारी कोरोनाके सवाल से लेकर अन्य सभी रोजमर्रा के सवाल, गरीबों, किसानो, मजदूर, आदिवासियो एवं महिलाओ के लिए कुछ भी नहीं करने बावजूद तीसरी बार सत्ता में आने के कारण देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया करनमे आज संघ परिवार यशस्वी है ! यह कड़वा सच हमे कबूल करने में बहुत दिक्कत होती है ! लेकिन शतुर्मर्ग की तरह रेत में सर गडाकर बैठने से कुछ भी बदलनेवाला नहीं है !


सबसे पहले यह वास्तव जान कर उसके खिलाफ क्या किया जा सकता ? यह बात हो सकती है ! दिक्कत हमारे अपने घर भी मजबूत नहीं है संघ परिवार के 100 सालों के अथक प्रयासों के कारण और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बारे में इतनी सारी गलतफहमियां फैला कर रखे हैं ! जिसमें हमारे आसपास के लोग भी उस असर में आ जाते हैं !
अभिके केरल राज्य के हाथिनी की मृत्युकी बात को ही लीजिए घटना पलक्क ड जिले की लेकिन शुरु से ही माल्यपुरम,माल्यपुरम उछाल रहे थे ! क्यो कि माल्यपुरम मुस्लिम बहुल क्षेत्र है ! अखिर में बात पलक्कड की निकली ? और किसिनेभी जानबुझकर की हूई घटना नहीं थी ! लेकिन पूरे देश भर एक सप्ताह से भी ज्यादा समय तक इशारों इशरौमे क्या प्रचार चल रहा था ?


वही बात कोरोना की महामारी में निजामुद्दीन के तब्लिगी जमात के लाॅकडाऊन के पहले से जमा लोगों को लेकर भाजपा और संघ परिवार ने कितना हल्ला-गुल्ला किया ? मर्कज मर्कज लेकीन असली हकीकत क्या निकली ? आखिरकार औरंगाबाद हाईकोर्ट को संज्ञान लेते हुए तब्लिगी जमात की कुछ भी गलती नहीं थी ! लेकिन आज भी कई लोगों के दिमागोमे मुसलमानोने कोरोना फैलाया यह बात घर करके बैठी है ! और धडल्ले से पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से लेकर कुंभ मेला के आयोजन मे कोरोनाके दुसरी लहर की चेतावनी वैज्ञानिक देते हुए प्रधानमंत्री ने अनदेखी की है ! और सबसे हैरानीकी बात आज ही उजागर हुई है कि कुंभ मेला मे शामिल होने वाले लोगों के कोरोनाके टेस्ट फर्जी किए गए हैं ! और करोड़ों रुपये की अफरा तफरी के अलावा देश के कोने-कोने से आये हुए लोगों को एक एप्रिल से तीस एप्रिल के बीच में कुंभ मेला मे शामिल होने के कारण भारत की सबसे बड़ी आबादी मे कोरोनाके दुसरी लहर की चपेट में डालने का गुनाहगार कौन है ? और लाखों लोगों की जानें गई इसके बारे में क्या जवाब देंगे ? लेकिन मुसलमानों को लेकर भाजपा गाहे-बगाहे कितना हल्ला-गुल्ला करते हैं ! आयोध्या के मंदिर निर्माण ट्रस्ट से जमीन खरीदने की अफरा तफरी के अलावा देश के लोगों को कोरोनाके जैसी महामारी मे ढकेला उसके लिए जिम्मेदार लोगो पर मनुष्य वध के अंतर्गत कार्यवाई होनी चाहिये ! लोगों की आस्था के साथ इस तरह का खिलवाड़ करने वाले लोगों के उपर सक्त से सक्त कारवाई होनी चाहिये !


इसीतरह इतिहास की दर्जनो घटनाओं को 100 सालों से शाखाओ में बचपन से ही घुट्टी में पिलाया जाता है ! तब नरेन्द्र मोदी,अमित शाह,आदित्यनाथ ,प्रज्ञा सिंह जैसे लोग तैयार हो कर निकलते हैं ! और अब वह सिर्फ स्वयंसेवक नही रहे ! देश के प्रथम सेवक की भूमिका में आ गये हैं ! यह बात सबसे अधिक गंभीर है ! और इसिलिए संघ परिवार को चेक करने के लिए सभी मानवतावादी लोगोने अपने मतभेदों को भूलकर लामबन्द होने की जरूरत है ! अन्यथा 30 से 35 करोड़ की आबादी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की आबादी को असुरक्षा की भावना का शिकार होने देना देशके सामाजिक स्वास्थ के लिये बहुत हानिकर है ! और हम एक और बटवारे नीव खोदने का काम करने के लिए मौका दे रहे हैं ! 1945-46 मे क्या बोलकर पकिस्तान की मांग की है ? जरा याद करो !


और सबसे अहम बात यह है, कि हमारे देश के असली सवाल इस तरह के भावनिक मुद्दो के कारण हशियेपर डालनेमे मदद मिलती है ! और देश सिर्फ हिंदु-मुसलमान के इर्द-गिर्द घूमते रह जा रहा है ! यह ज्यादा गंभीर समस्या है ! इसलिऐ मै गत 35 वर्षों से लगातार इस बात पर ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा हूँ ! पर हमारे सथियोको क्या हो गया पता नहीं, वे अपने विस्थापन और पुनर्वास नीति के इर्द-गिर्द घूमते हुए नजर आते हैं ! उन्ही के कार्यक्षेत्र में भी सांप्रदायिक राजनीति और राम मंदिर के नाम पर लोग बट चुके हैं ! यह उन्हे नही दिख रहा है ! हमारे कितने साथीयोको मन साफ है ? किसी को लगता है कि मुस्लमान संख्या में वृद्धि हो रही है! और हम जल्द ही अल्पसंख्यक होनेवाले है ! जैसे संघ परिवार के अपप्रचार के प्रभावमे आ चुके हैं ! इसलिऐ जब तक हम सांम्प्रदायीकता के जहरीले वातावरण को नहीं रोक सकते तब तक कोई भी अन्य मुद्दो की लड़ाई जीत नहीं सकते ! इसलिए अभी भी कुछ बातें हैं, अगर हम सभी मिलजुलकर एकजुट होकर संघ परिवार के सौ साल पहले से ही कोई सार्थक पहल करते हैं, तो हम लोग भारत को बचाने का इतिहास दत्त कार्य कर सकते ! भागलपुर या गुजरात की सिर्फ यादों के साथ आहे भरने की जगह, जमीनी स्तर पर राष्ट्र सेवा दल के जैसे पर्यायवाची संगठन को बढाने के लिए शिद्दत के साथ लगना ही एकमात्र विकल्प है ! लेकिन राष्ट्र सेवा दल के 83 साल के इतिहास मे यह पहला मौका है ! जब की संघ परिवार के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए ! तो शायद हमारे देश की एकता-अखंडता को बचा सकते ! अन्यथा संघ परिवार कश्मीर से लेकर लक्षद्वीप तक, सांप्रदायिक राजनीति करने का गुप्त षडयंत्र करते हुए, देश को पुनःह अमीबा जैसे तुकडो मे तब्दील कर के रखेंगे ! क्योंकि बाटो और राज्य करने की अंग्रेजी शासन की दि हुई कृती से देश की एकता-अखंडता के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे !

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