भोपाल। अधिनियम कहता है, प्रभारी सीमित समय के लिए रहेगा, काम चलाऊ काम करेगा, नीतिगत निर्णय नहीं लेगा…। मप्र वक्फ बोर्ड का इतिहास कहता है, एक बाबू बारंबार सीईओ(प्रभार का) बन जाता है, मर्जी के फैसले करता है और कई स्थाई सीईओ को ठिकाने लगा सकता है।
मप्र वक्फ बोर्ड में बिना अहर्ता और बिना उचित शिक्षा या अनुभव रखे यहां पदस्थ एक बाबू अलग- अलग समय पर पांच से अधिक बार सीईओ की जिम्मेदारी उठा चुके हैं। अधिनियम के मुताबिक यह व्यवस्था पूर्णकालिक सीइओ के आने तक चलाई जा सकती है और इस दौरान भी प्रभारी को महज ऑफिस के जरूरी काम (वेतन आहरण और अन्य दफ्तरी व्यवस्था) संभालने की पात्रता है, लेकिन वक्फ बोर्ड के कर्मचारी मोहम्मद अहमद ने पिछली बार करीब 18 महीने तक यह व्यवस्था संभाल रखी।
साथ ही इस दौरान बोर्ड के नीतिगत कार्य (कमेटी गठन से लेकर लोगों को सजा देने तक) भी कर डाले हैं। हाल ही में जबलपुर हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्रभारी सीइओ किसी तरह के नीतिगत निर्णय लेने के लिए पात्र नहीं होगा।
प्रभारी ने कई स्थायी सीइओ को दे डाली सजा
सूत्रों का कहना है कि मोहम्मद अहमद खान ने अपने प्रभारी सीइओ के कार्यकाल में बोर्ड में पदस्थ रहे पिछले कई स्थायी सीइओ के खिलाफ कानूनी कार्यवाहियां कर डाली हैं। जिसके चलते इन अधिकारियों को विभागीय जांचों से लेकर अदालत तक के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक अलग-अलग मामलों में मोहम्मद अहमद ने डॉ. एसएमएच जैदी, दाऊद अहमद खान, एमए फारुखी, डॉ. युनूस खान जैसे कई अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाहियां कर दीं। जिसके चलते डॉ. जैदी और डॉ. युनूस खान को विभागीय जांचों, निलंबन और सजा से दो-चार होना पड़ गया है।
खुद स्वीकारा, कार्यवाही का नहीं अधिकार
कई बार प्रभार में रहे वक्फ बोर्ड के पूर्व सीइओ मोहम्मद अहमद खान ने इस बात को खुद ही लिखित में स्वीकार किया है कि उन्हें नैतिक निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत चाही गई एक जानकारी में उनसे पूछा गया था कि उनके कार्यकाल में वक्फ संपत्तियों पर किए गए अवैध कब्जों को लेकर धारा 54 के तहत कितनी कार्यवाही की गई है। इसके जवाब में उन्होंने अपने कार्यकाल में कोई भी कार्यवाही होने से इंकार किया है। गौरतलब है कि वक्फ बोर्ड में अवैध कब्जे करने वालों के खिलाफ वक्फ अधिनियम की धारा 54 के तहत कार्यवाही करने का अधिकार पूर्णकालिक सीइओ को होता है। इस कार्यवाही के बाद ही वक्फ ट्रिब्यूनल या अन्य अदालत की तरफ जाने की कार्यवाही शुरू होती है।
बीवी पांच साल पहले रिटायर, अहमद कर रहे सरकार सेवा
सूत्रों का कहना है कि वक्फ बोर्ड कर्मचारी मोहम्मद अहमद द्वारा नियुक्ति के समय विभाग को अपनी शैक्षणिक और आयु संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं। इस बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगने पर भी गोलमोल जवाब दे दिया जाता है। इसके चलते उनके रिटायरमेंट की अवधि भी तय नहीं हो पा रही है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि शासकीय सेवा में रहीं उनकी पत्नी की सेवानिवृत्ति करीब पांच साल पहले हो चुकी है।