चुनाव प्रचार विचारधारा पर ही केंद्रित होना चाहिए । भारत में फासीवाद के गहराते संकट और लोकतंत्र ,समाजवाद ,धर्म निरपेक्ष मूल्यों के महत्व पर मुख्य रूप से विचार विमर्श होना चाहिए । यदि चुनाव प्रचार विचारधारा पर केंद्रित होगा तो जन विरोधी ,फासीवादी और प्रतिगामी दलों को सवालों के कटघरे में खड़ा किया जा सकता है ।सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बात की जा सकती है ।विगत वर्षों में लोकतंत्र ,संविधान और मानवीय मूल्यों पर गहराते संकट पर चिंता की जा सकती है ।सरकार और पूंजीवादी ताकतों के गठजोड़ से भारत के सार्वजनिक उपक्रमों ,बैंकों और संवैधानिक संस्थाओं पर गहराते संकट को मुद्दा बनाया जा सकता है ।किसानों ,मजदूरों ,कर्मचारियों पर थोपे गए काले कानूनों को लेकर सरकार से सवाल किया जा सकता है । लेकिन यह करने के लिए प्रतिपक्ष के पास वैचारिक समझ और प्रतिबद्धता होना भी बेहद जरूरी है ।यह समझ अभी सिर्फ वामपंथी दलों तक ही सीमित है ।इसे व्यापक होना चाहिए । भारत को फासीवाद के शिकंजे से बचाने के लिए वैचारिक समझ के साथ समस्त लोकतांत्रिक ,धर्म निरपेक्ष और वामपंथी दलों का व्यापक मोर्चा बनना बेहद जरूरी है ।
शैलेन्द्र शैली